- भारत और नेपाल के सीमाई इलाकों में नीलगायों की तादाद में अनियंत्रित बढ़ोतरी के बाद कई किसानों ने खेती छोड़ दी है, क्योंकि ये जीव उनकी फसलों को खा जाते हैं।
- शिकार और शिकारियों की कमी से नीलगायों की तादाद तेजी से बढ़ी है, फिर भी आबादी में बढ़ोतरी के सटीक कारण पर वैज्ञानिकों के बीच सहमति नहीं है।
- बिहार में नीलगाय को नुकसान पहुंचाने वाला जीव जीव माना जाता है। यहां साल 2016 से 2020 के बीच पांच हजार नीलगायों को मार दिया गया। नेपाल में भी किसान नीलगाय को कृषि कीट की श्रेणी में रखने की मांग कर रहे हैं, ताकि नियंत्रण के उपाय किए जा सकें।
- भारत में किसान नीलगायों द्वारा फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली बाड़, बिजूका और रात में गश्त का सहारा ले रहे हैं।
तीन साल पहले दक्षिण-पश्चिमी नेपाल के गैदाहवा गांव के किसान राम चंद्र कुर्मी ने अपने छोटे-से खेत में सब्जी उगाना छोड़ दिया। 39 साल के कुर्मी कभी खेती करके पांच सदस्यों वाले अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। अब वे लगातार स्थायी आय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उनकी नजर में इसकी वजह नीलगाय (बोसेलाफस ट्रैगोकैमेलस) की तादाद में अनियंत्रित बढ़ोतरी है, जो इस क्षेत्र में मृग की बड़ी प्रजाति है। उन्होंने कहा, “नीलगाय रात में तब आती हैं जब उन्हें भगाने के लिए कोई नहीं होता और वे सब्ज़ियां खा जाती हैं। मैं इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए मुझे खेती पूरी तरह से छोड़नी पड़ी।”
कुर्मी की कहानी नेपाल-भारत सीमा क्षेत्र में फैले गंगा के मैदानों में भी आम है, जहां हाशिए पर पड़ा किसान समुदाय समस्या के समाधान के लिए सरकार की हीला-हवाली की शिकायत करते हैं।
आमतौर पर नीलगाय 75-300 मीटर (लगभग 300-1,000 फीट) की ऊंचाई पर पाई जाती है। इसे घोड़े के शरीर और मृग के सिर के रूप में बताया गया है। इसे और भी खास बनाने वाला तथ्य यह है कि वयस्क नर आयरन-ब्लू से हल्के भूरे रंग के होते हैं, इसलिए इसका नाम नीलगाय (“नीली गाय”) है। इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि इसमें “गाय की भूख, घोड़े की गति और कुत्ते जैसी सतर्कता” होती है।
नेपाल सरकार के पास देश के राष्ट्रीय उद्यानों के बाहर नीलगायों पर आधिकारिक आंकड़ें नहीं हैं, लेकिन 2018 के वन और पर्यावरण मंत्रालय के आकलन में रूपन्देही (जहां गैदाहवा शहर स्थित है), कपिलवस्तु, नवलपरासी, रौतहट, सरलाही, धनुषा और सिरहा जैसे कई सीमावर्ती जिलों में 300-350 नीलगायों का अनुमान लगाया गया है।

माना जाता है कि इस प्रजाति की आबादी में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि नीलगाय बहुत ज्यादा प्रजनन करती हैं। उदाहरण के लिए, 1929-30 में अमेरिका के टेक्सास राज्य के एक खेत में एक दर्जन नीलगाय लाई गईं, जिनकी संख्या तब से बढ़कर 36,000-50,000 हो गई है। ऐसा तब हुआ, जब इनका बड़े पैमाने पर शिकार किया गया।
नेपाल में नगरपालिका के अधिकारी, संरक्षणवादी और शोधकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि पिछले दशक में आबादी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, वैज्ञानिक अध्ययनों के बिना इस बढ़ोतरी की वजहें अलग-अलग हैं। सीमावर्ती जिले नवलपुर में त्रिवेणी बफर जोन उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष धीरज थापा के अनुसार, कुछ लोग इसे नेपाल में माओवादी विद्रोह (1996-2006) के खत्म होने से जोड़ते हैं। विद्रोह के दौरान भोजन के लिए नीलगाय का शिकार किया गया था। अगर कोई अब नीलगाय का शिकार करने की कोशिश करता है, तो वह कहते हैं, “हर किसी के पास मोबाइल फोन है,” इसलिए “कोई तुरंत सुरक्षा अधिकारियों को इसकी जानकारी दे देगा।”
अन्य जानकार जलकुंभी (पोन्टेडेरिया क्रैसिपेस), डेविल वीड (क्रोमोलेना ओडोराटा) और लैंटाना (लैंटाना कैमरा) जैसे आक्रामक पौधों के प्रसार की ओर इशारा करते हैं, जिन्होंने देशी वनस्पतियों को खत्म कर दिया है। इन वनस्पतियों को नीलगाय खाना पसंद करती हैं।
काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालय के वानिकी संस्थान के डीन ठाकुर सिलवाल कहते हैं, “अगर जंगल में ताजी घास उपलब्ध होती, तो जानवर मानव बस्तियों में नहीं आते।”
खास बात यह है कि नेपाल के पश्चिमी मैदानों से नीलगाय की समस्या काफी हद तक गायब है। यहां के बांके, बर्दिया और शुक्लाफांटा राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों का निवास है। एनजीओ फ्रेंड्स फॉर वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन के आशीष चौधरी इसका श्रेय संतुलित शिकारी-शिकार गतिशीलता को देते हैं: जहां बाघों की स्वस्थ आबादी है, वहां नीलगाय की आबादी नियंत्रण में रहती है।
हालांकि, नेपाल के राष्ट्रीय उद्यानों का प्रबंधन करने वाले नेशनल ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन के वन्यजीव शोधकर्ता नरेश सुबेदी का कहना है कि यह मुद्दा ज्यादा उलझा हुआ है, क्योंकि नीलगाय संरक्षित क्षेत्रों में पाए जाने वाले अछूते आवासों की तुलना में अशांत घास के मैदानों को तरजीह देती हैं। उन्होंने कहा कि वे मानव बस्तियों के करीब रहना भी पसंद करती हैं, जहां वे रात में भोजन के लिए जा सकती हैं।
नेपाल और भारत दोनों में नीलगाय का शिकार करना गैर-कानूनी है। भारत के बिहार राज्य में इस प्रजाति को नुकसानदेह जीव माना गया है। यहां साल 2016 से 2020 के बीच लगभग पांच हजार नीलगाय को मारा गया। फिर भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
नेपाल में 2016 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि रूपन्देही जिले के 16 गांवों में 303 नीलगायों के कारण खेती में सालाना 68,600 डॉलर का नुकसान हुआ। अध्ययन की मुख्य लेखिका सृजना खनल कहती हैं, “असल में यह नुकसान पूरे जिले के लिए बहुत ज्यादा होगा, क्योंकि हमने पूरे इलाके को शामिल नहीं किया।”
दोनों देशों में किसानों को समय पर मुआवजा शायद ही कभी मिलता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के कमलेश के. मौर्य कहते हैं, “जटिल प्रक्रियाएं और देरी से मिलने वाले मुआवजे की वजह से किसान इस प्रजाति के प्रति और भी असहिष्णु हो जाते हैं।” “यह देखा गया कि लोग मुआवजे के लिए आवेदन करने में दिलचस्पी नहीं रखते, क्योंकि नुकसान का आकलन करने की प्रक्रिया बेहद अनुचित थी। भले ही कई बार पैसे दिए गए, लेकिन किसानों को हुए नुकसान के अनुपात में रकम कम थी।”
नेपाल सरकार ने नीलगाय को कृषि कीट वाली सूची में नहीं रखा है, जैसा कि उसने रीसस मैकाक (मकाका मुल्टा) और जंगली सूअर (सस स्क्रोफा) के लिए किया है। हालांकि, निराश किसानों के दबाव में स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि नीति में बदलाव के लिए दबाव बना रहे हैं। गैदाहवा नगरपालिका-4 के अध्यक्ष सुरेंद्र प्रसाद कुर्मी कहते हैं कि वे अपना ज्यादातर समय किसानों की शिकायतें दूर करने में बिताते हैं।
वे कहते हैं, “हम हर दिन लोगों से सीधे संपर्क में रहते हैं।” “स्थानीय प्रतिनिधि होने के नाते, हम सबसे पहले ये शिकायतें सुनते हैं, लेकिन हमारे पास कुछ भी करने के लिए संसाधन और अधिकार नहीं हैं।

सांसदों ने नेपाल की संसद में भी यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने मांग की है कि नीलगाय को भी कृषि कीट घोषित किया जाए, ताकि अगर नीलगाय किसी को मार दें, तो किसान कानूनी कार्रवाई के डर के बिना उन्हें भगा सकें।
राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग भी मानता है कि यह एक मुद्दा है और कहा कि वह आबादी और उसके प्रभाव का अध्ययन कर रहा है। विभाग के प्रवक्ता बेद कुमार ढकाल ने मोंगाबे को बताया, “संख्या का पता लगने के बाद ही कोई फैसला लिया जा सकता है।”
लेकिन किसानों का धैर्य जवाब दे रहा है। धनुषा जिले के बटेश्वर नगरपालिका वार्ड-1 के अध्यक्ष अशोक मेहता कहते हैं कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं कर पाती है, तो किसान विरोध स्वरूप अपनी जमीन के कागजात सौंपने के लिए काठमांडू तक मार्च करेंगे। वे कहते हैं, “हम नीलगाय के बारे में कुछ नहीं कर सकते, भले ही किसान हमें रोते हुए बुलाएं।”
लंबी अवधि के समाधान के अभाव में, संघीय सरकार ने छोटी अवधि के उपायों पर विचार किया है। छह महीने पहले, कृषि और पशुधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग को चिट्ठी लिखकर सरलाही जिले से नीलगाय को किसी राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। हालांकि, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग की पूर्व महानिदेशक सिंधु धुंगाना के अनुसार, बजट की कमी के कारण योजना अमल में नहीं आ पाई।
और पढ़ेंः प्रवासी हाथियों के साथ जीना सीख रहा भारत-नेपाल सीमा पर बसा एक गांव
वह कहते हैं, “बाघों के प्राकृतिक आवासों में पुनर्वास इस स्थिति से निपटने के लिए एक संभावित अस्थायी उपाय हो सकता है। लेकिन शिकारियों को जानवर को मारने की अनुमति देना शायद स्थायी समाधान है।”
इस विचार का समर्थन सांसद अमरेश कुमार सिंह ने भी किया है, जो संसद में सरलाही जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका कहना है कि मैदानी इलाकों में नीलगायों द्वारा फसल नष्ट करने की दर, पहाड़ी इलाकों में बंदरों द्वारा खेतों को नुकसान पहुंचाए जाने की दर से “ज्यादा खतरनाक” है।

हालांकि, कुछ जानकार इससे सहमत नहीं हैं। वानिकी डीन सिल्वल कहते हैं, “जानवरों को मारना कभी भी समाधान नहीं हो सकता है।” “अगर हम जानवरों के आवास में सुधार करें, खासकर आक्रामक [पौधों] की प्रजातियों से छुटकारा पाएं, तो प्रकृति अपनी आबादी को नियंत्रित कर सकती है।”
डब्ल्यूडबल्यूएफ के मौर्य कहते हैं कि भारत में किसान सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली की बाड़ लगा रहे हैं। बिजूका और रात में गश्त की ओर ध्यान दे रहे हैं। वे कहते हैं, “वे नीलगाय और अन्य वन्यजीवों से फसलों को बचाने में बहुत समय, कोशिश और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं।” “कुछ क्षेत्रों में, किसान अनाज की खेती से हटकर तम्बाकू जैसी फसलों की खेती करने लगे हैं, ताकि उन्हें सालाना नुकसान कम से कम हो सके।”
शाम ढलते ही गैदाहवा के राम बिलाश यादव एक किलोमीटर पैदल चलकर अपने खेत जाते हैं और उनके साथ खाने का पैकेट होता है। वे यहां छोटी-सी झोपड़ी में रात गुजारते हैं। वे कहते हैं, “मैं पूरी रात नीलगाय से बचाव करता हूं और टॉर्च की रोशनी में खेत में घूमता रहता हूं।”
“मैं और कर भी क्या सकता हूं? कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अगर मैं ऐसा नहीं करूंगा, तो वे रातों-रात सारी फसलें चट कर जाएंगे। हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है।”
गैदाहवा के ही बोध राज मौर्या ने दो कुत्ते पाल रखे हैं। ये कुत्ते नीलगाय के खेतों में घुसने पर भौंकने लगते हैं। इससे वह जाग जाते हैं और नीलगायों को भगा देते हैं। अन्य लोग जानवरों को भगाने के लिए सड़ी हुई मछली की आंत और सड़ने वाली चीजों का इस्तेमाल करते हैं।
मौर्या कहते हैं, “इन सभी कोशिशों के बावजूद नीलगाय अभी भी हमारी फ़सलों को चट कर जाती हैं। हमने कुछ क्षेत्रों में बाड़ लगाई है जहां नीलगाय अक्सर आती हैं, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ है।”
यह खबर मोंगाबे की ग्लोबल टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार 7 मार्च, 2025 को हमारी मोंगाबे ग्लोबल साइट पर प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: नेपाल के गैदाहवा के जंगल में देखी गई नीलगाय। तस्वीर – मुकेश पोखरेल।