- झारखंड में प्रस्तावित गोदलपुरा कोल ब्लॉक के लिए जमीन अधिग्रहण का गांव वाले पुरजोर विरोध कर रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि वे किसी भी कीमत पर कोयला खदान के लिए अपनी उपजाऊ जमीन नहीं देंगे।
- हाल के सालों में भारत सरकार ने कोयला खनन में तेजी लाई है। अगले 10 सालों में उत्पादन बढ़ाकर 1500 मिलियन टन से ज्यादा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति के तहत झारखंड में कई नई खदानों का आवंटन हुआ है और उनके लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है।
- पिछले साल सितंबर में आई एक रिपोर्ट में झारखंड सरकार को अर्थव्यवस्था में विविधात लाने और ग्रीन बजटिंग की तरफ बढ़ने का सुझाव दिया गया है, क्योंकि कोयला उत्पादन के पीक पर पहुंचने पर राज्य के राजस्व मे कमी आ सकती है।
झारखंड में बड़कागांव प्रखंड के गोंदलपुरा गांव में प्रवेश करने से ठीक पहले सदानीरा ददमाही नदी आपका स्वागत करती है। यहां के बहु-फसली खेतों में लोग अपनी फसलों की देखभाल करने में लगे हैं। साग-सब्जियों के बीच आपको गन्ने के खेत भी दिख जाते हैं। गांव में बसाहट की तरफ आते ही गन्ने का रस निकालते लोग और कड़ाह में खौलता गन्ने का रस दिख जाएगा, जिससे बाद में यहां का मशहूर और स्वादिष्ट गुड़ तैयार होगा।
लेकिन, गांव की कच्ची-पक्की सड़क और बसाहट को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ने पर तिरपाल के नीचे महिलाएं और पुरुष हाथ में तख्ती लिए बैठे हुए दिखते हैं। ये लोग यहां 15 जुलाई, 2023 से लगातार प्रस्तावित गोंदलपुरा कोल माइन के विरोध में धरना दे रहे हैं जो अडाणी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को अलॉट किया गया है।
झारखंड में कोयला खनन, खेती-बाड़ी के बाद, सबसे बड़ा और पारंपरिक उद्योग है। पिछले साल सितंबर में आई इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स और फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) और सेंटर फॉर एनवॉयरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीईईडी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड सरकार को अपनी आय का 32 फीसदी जीवाश्म ईंधनों से मिलता है। वहीं, कोयला खनन वाले छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 22 फीसदी और ओडिशा में 16 फीसदी है।

बड़कागांव बन जाएगा कोर कोल एरिया
दामोदर नदी घाटी में आने वाले गोंदलपुरा कोल ब्लॉक के लिए पांच गांव हाहे, फुलांग, बलोदर, गाली और गोंदलपुरा में भूमि अधिग्रहण प्रस्तावित है। इसमें वन भूमि 219.8 हेक्टेयर और गैर-वन भूमि 293.38 हेक्टयर शामिल है। अगर अधिग्रहण हुआ, तो कुल 1721 परिवार प्रभावित होंगे। इनमें गोंदलपुरा के सबसे ज्यादा 1324 परिवार हैं। वहीं, गाली से 207 और बलोदर से 190 परिवारों पर असर पड़ेगा।
प्रोजेक्ट से कुल 521 स्थायी नौकिरियां पैदा होंगी और अस्थायी नौकिरयों में 4,80,000 कार्यदिवस शामिल हैं। प्रोजेक्ट की कुल अवधि 32 साल है, तो ऐसे में हर दिन करीब 42 अस्थायी नौकरियां सृजित होंगी। अधिग्रहित होने वाली जमीन के लिए प्रति एकड़ करीब 24 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। यहां से हर साल चालीस लाख टन कोयला निकाला जाएगा।
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लेकिन, गोंदलपुरा के निवासी किसी भी कीमत पर अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। 79 साल के सेवानिवृत्त शिक्षक देवनाथ महतो धरना स्थल पर मोंगाबे-हिंदी से अपना डर साझा करते हैं, “हम यहां से उजड़ना नहीं चाहते। ब्लॉक के चुरचू गांव के जो लोग विस्थापित हुए, अभी तक उनका बेहतर पुनर्वास नहीं हो पाया है। इस जमीन पर हमारे पूर्वजों के नाम का खतियान है। जब हम यहां से चले जाएंगे, तो हमारे खतियान का क्या होगा। हमारे बच्चों को बिना कागजात के कौन नौकरी देगा?”

गांव के लोग जमीन अधिग्रहण के लिए ग्रामसभा के आयोजन पर भी सवाल उठाते हैं। उनका दावा है कि साल 2022 के जुलाई महीने की 15 तारीख को बलोदर, 19 तारीख को गाली और 22 तारीख को गोंदलपुरा में ग्रामसभा आयोजित करने का नोटिस दिया गया था, लेकिन विरोध के चलते इनका आयोजन नहीं हो पाया। उसके बाद 15 जनवरी, 2023 को आमसभा बुलाई गई लेकिन उसे भी रद्द कर दिया गया।
इस बीच, हजारीबाग जिला प्रशासन की वेबसाइट के अनुसार पिछले साल 2 फरवरी और 12 मार्च को क्रमश: महुगाईकला पंचायत भवन में बलोदर और गोंदलपुरा पंचायत भवन में गोंदलपुरा और गाली के लिए ग्रामसभा का आयोजन किया गया। इस सभा की लोक सुनवाई में प्रभावित होने वाले गांववालों ने हिस्सा लिया और अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी और मांग पत्र भी सौंपा। हालांकि, यह नहीं बताया गया है कि ग्रामसभा से भूमि अधिग्रहण को मंजूरी मिली या नहीं।
गांव के नौजवान कृष्ण कुमार जमीन अधिग्रहण का विरोध करने की एक और वजह बताते हैं। वह मोंगाबे-हिंदी से कहते हैं, “साल भर में हमारे खेत तीन फसलें देते हैं। अनाज उगाने पर हम दो से ढाई लाख रुपए आराम से कमा लेते हैं। अगर सब्जियों की खेती की जाती है, तो मुनाफा और ज्यादा होता है।”
दरअसल, बड़कागांव कर्णपुरा घाटी का हिस्सा है जो पर्यावरण की दृष्टि से अहम पारिस्थितिकी तंत्र है। आजादी बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक और कर्णपुरा बचाओ संघर्ष समिति को अपना समर्थन देने वाले मिथिलेश दांगी बड़कगांव के नया कोयला क्षेत्र बनने पर कहते हैं, “बड़कागांव और उससे सटे केराडारी ब्लॉक में 33 कोल ब्लॉक का आवंटन हुआ है। दोनों प्रखंड मिलाकर करीब 130 गांव प्रभावित होंगे। नॉर्थ और साउथ कर्णपुरा को मिला दिया जाए, तो 180 से ज्यादा खदानें हैं जिनमें कई चल रही हैं और कई प्रस्तावित हैं।“

बढ़ता ही जा रहा कोयले का उत्पादन
वैसे भारत सरकार ने 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा है, लेकिन कोयला उत्पादन में तेजी लाने का संकेत भी दिया है। कोयले का सालाना उत्पादन साल 2013-14 में करीब 565 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 100 करोड़ टन से आगे निकल गया। सरकार ने 2029-30 तक 500 लाख टन की कुल क्षमता वाली करीब 100 खदानें शुरू करने का लक्ष्य रखा है। इस तरह, अगले कुछ सालों में कोयले का उत्पादन बढ़ाकर 150 करोड़ टन से ज्यादा करने की योजना है। सरकार ने राजस्व बांटने के मॉडल पर बंद या छोड़ी गई खदानों को भी फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। एक आंकड़े के मुताबिक साल 2015 के बाद आवंटित हुई 161 कोल ब्लॉक में से झारखंड में 49 कोयला ब्लॉक का आवंटन हुआ है। वहीं 34 ब्लॉक को शुरू करने की कोशिश की जा रही है।
भारत सरकार ने साल 2031-32 तक कोयले से बिजली बनाने की क्षमता में 80 गीगावॉट इजाफे का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 6,67,200 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इसलिए, सरकार ने 18 नए थर्मल पावर प्लांट लगाने की घोषणा की है। उदाहरण के तौर पर झारखंड के पतरातू में फिलहाल फेज वन (800 मेगावाट की तीन यूनिटें) के तहत क्षमता विस्तार का काम चल रहा है। इसके बाद फेज-2 में (800 मेगावाट की दो यूनिटें) पर काम शुरू होगा। वहीं, नॉर्थ कर्णपुरा में (660 मेगावाट की तीन यूनिट) दूसरी यूनिट शुरू हो चुकी है और तीसरी पर काम जारी है। इसके अलावा कोडरमा में भी 800 मेगावाट की दो यूनिट लगाने का प्रस्ताव है।
आईईईएफए में ऊर्जा वित्त के स्पेशलिस्ट गौरव उपाध्याय ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “तेजी से आगे बढ़ रहे भारत में ऊर्जा की जरूरतें बढ़ती जा रही है। इसलिए, सरकार का इरादा छोटी अवधि में कोयले से बिजली बनाने की क्षमता बढ़ाने की है।“

झारखंड में ग्रीन बजटिंग का सुझाव
पिछले साल सितंबर में जारी रिपोर्ट कहती है, “छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे दूसरे बड़े कोयला उत्पादक राज्यों की तुलना में कोयला और पेट्रोलियम से आय पर झारखंड की निर्भरता बहुत ज्यादा है। राज्य की कुल आय में कोयले का हिस्सा आठ फीसदी और पेट्रोलियम पदार्थों का सात फीसदी है।” यही नहीं, कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर इस्पात व लौह और सीमेंट उद्योग झारखंड में मैन्युफेक्चरिंग की रीढ़ हैं। इनका राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 23.2 प्रतिशत हिस्सा है।
उपाध्याय कहते हैं कि खनिज बहुल झारखंड की दिक्कत यह है कि उसने कर्नाटक या महाराष्ट्र की तरह अपनी अर्थव्यवस्था को विविध बनाने पर ध्यान नहीं दिया। “हमारा सुझाव यह है कि अगले 15 साल में अर्थव्यवस्था में विविधता लाने पर ध्यान दिया जाए, ताकि कोयला उत्पादन कम होने से आर्थिक मोर्चे पर दुष्प्रभाव कम से कम हो। इसलिए, अगले 10-15 साल में जब राज्य की आमदनी बढ़ेगी, तो उन्हें अपना पैसा एनर्जी ट्रांजिशन की तरफ खर्च करना चाहिए,” उन्होंने कहा।
झारखंड के लिए व्यापक तौर पर सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन पाथवेज तैयार कर रहे सीईईडी में जस्ट ट्रांजिशन के डायरेक्टर अश्विनी अशोक ने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “झारखंड सरकार ने ग्रीन बजटिंग पर काम करने का फैसला लिया है। इसके तहत कृषि विभाग ने अपनी ग्रीन बजटिंग शुरू कर दी है। विभाग की जितनी भी ग्रीन स्कीम है उन्हें अलग-अलग कर दिया गया है। अब उस आधार पर पर्यावरण को ध्यान में रखकर जो निवेश बढ़ाना होगा, उस पर काम किया जाएगा।”
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जानकारों का मानना है कि झारखंड आज ऐसे दोराहे पर खड़ा है, जहां भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसे जस्ट ट्रांजिशन की तरफ बढ़ना है। लेकिन, दूसरी तरफ नई खदानों के लिए उपजाऊ और वन भूमि अधिग्रहित की जा रही है।
उपाध्याय कहते हैं, “यह (जमीन अधिग्रहण) स्थानीय समुदायों के लिए सबसे ज्यादा दर्दनाक होता है। एक तो उनकी जमीन चली जाती है। फिर कोयला उद्योग आता है और लोग जीविकोपार्जन के लिए उस पर निर्भर हो जाते हैं। खदान बंद होने के बाद नौकरियां खत्म हो जाती हैं। मेरा मानना है कि जमीन लेते समय बेहतर पुनर्वास और स्थानीय लोगों को नौकरी देना बहुत जरूरी है। कोयला खदान बंद करते समय पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक पहलू का भी ध्यान रखा जाए। “
बैनर तस्वीरः हाल के सालों में भारत सरकार ने कोयला खनन में तेजी लाई है। अगले 10 सालों में उत्पादन बढ़ाकर 1500 मिलियन टन से ज्यादा करने का लक्ष्य रखा गया है। तस्वीर सौजन्य- पीआईबी