- मध्य भारत में हुए एक अध्ययन बताया गया है कि किस तरह भूमि उपयोग पैटर्न में परिवर्तन और सड़कों के विकास से गौर और सांभर की आनुवंशिक कनेक्टिविटी बाधित हो रही है।
- अध्ययन में पाया गया कि गौर और सांभर दोनों ने भूमि उपयोग परिवर्तनों के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन गौर की आबादी में इसका प्रभाव अधिक स्पष्ट था।
- इसके विपरीत, सांभर मानव-प्रधान परिदृश्यों में अधिक प्रतिरोधी हैं। हालाँकि, दोनों प्रजातियों की गति और जीन प्रवाह बदलते परिदृश्य से प्रभावित हो रहे हैं।
बड़े स्तनधारियों की धीमी प्रजनन दर और जगह बदलते रहने की आदत की वजह से उन्हें बड़े परिक्षेत्र की आवश्यकता होती है। इसी के चलते उनके रहने की जगहों के नष्ट होने या उनके बंट जाने से इन जीवों पर संकट बढ़ता जा रहा है। बड़े स्तनधारियों में मांसाहारी जीवों पर ठीक से ध्यान दिया जाता है, लेकिन बड़े शाकाहारियों — जो जंगल की आग को नियंत्रित करने, पोषक तत्वों को फ़ैलाने, और मांसाहारी जानवरों के प्राथमिक भोजन स्रोत के रूप में काम करके पारिस्थितिकी तंत्र को सँभालते हैं — अक्सर अनदेखा कर दिए जाते हैं। नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस) के एक नए अध्ययन में इस अनदेखी की बात की गई है।
मध्य भारत में किए गए इस अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि किस तरह भूमि उपयोग पैटर्न में परिवर्तन और सड़कों के विकास से दो बड़े शाकाहारी जानवरों — गौर और सांभर की आनुवंशिक कनेक्टिविटी बाधित हो रही है। मॉलिक्यूलर इकोलॉजी में प्रकाशित यह अध्ययन भारत में भूदृश्य स्तर पर बड़े शाकाहारी जानवरों की आनुवंशिक कनेक्टिविटी की जांच करने वाले शुरुआती अध्ययनों में से एक है।

एनसीबीएस में पोस्ट-डॉक्टरल फेलो और अध्ययन के मुख्य लेखक अभिनव त्यागी कहते हैं, “यह दोनों प्रजातियाँ मांसाहारी जानवरों के आवासों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, उन पर अपेक्षाकृत कम अध्ययन किया गया है, खासकर आनुवंशिक और जनसंख्या जीनोमिक स्तरों पर। हमारा अध्ययन मध्य भारत में इन प्रजातियों की जनसंख्या संरचना और संपर्क को समझने पर केंद्रित है।”
अध्ययन का फोकस
मध्य भारत के वन क्षेत्र में बहुत से संरक्षित क्षेत्र (पीए), आरक्षित और प्रादेशिक वन शामिल हैं। इस क्षेत्र को राजमार्गों और रेलवे लाइनों जैसे बढ़ते सीधे या लीनियर बुनियादी ढांचे, बढ़ते हुए सड़क नेटवर्क, साथ ही बदलते भूमि उपयोग पैटर्न, खनन गतिविधियों और अन्य विकास परियोजनाओं से गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है। ये जानवरों की आवाजाही में बाधा डालते हैं, जिससे छोटे आवास क्षेत्रों में सीमित आबादी बिखर जाती है। इस आबादी के बिखर जाने से इन जानवरों की संभोग क्रिया और आनुवंशिक आदान-प्रदान बाधित होते हैं, जिससे इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र में पाए जाने वाले दो बड़े शाकाहारी जानवरों — गौर और सांभर की आनुवंशिक कनेक्टिविटी की जांच करने का फैसला किया। यह दोनों प्रजातियाँ दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती हैं, और बाघ जैसे बड़े मांसाहारी जानवरों के लिए शीर्ष शिकार प्रजातियों में से एक हैं। इनके आवासों के बीच सम्बन्ध भी समान हैं, ये पेड़ों और झाड़ी वाले क्षेत्रों को पसंद करते हैं और आमतौर पर इंसानी गतिविधिओं से जन्मी गड़बड़ी से बचते हैं।
इस अध्ययन में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में फैले परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित किया गया। एनसीबीएस में वरिष्ठ लेखक और प्रोफेसर उमा रामकृष्णन कहती हैं, “हमने मध्य भारत को इसलिए चुना क्योंकि इस क्षेत्र में मांसाहारी जानवरों, खास तौर पर बाघों और तेंदुओं, के संपर्क के मामलों को अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है। हमारा दीर्घकालिक ध्यान कई प्रजातियों के संपर्क का अध्ययन करना है जो अपने पारिस्थितिक लक्षणों, जैसे शरीर के आकार, ट्रॉफिक स्तर, फैलाव की दूरी और सामाजिक संरचना, में भिन्न हैं। चूंकि मांसाहारियों के संपर्क की जानकारी पहले से ही उपलब्ध है, इसलिए हमने बड़े शाकाहारी जानवरों के संपर्क को मापने की कोशिश की।” ट्रॉफिक स्तर किसी भी खाद्य श्रृंखला में उसके शीर्ष तक के चरणों को दर्शाता है।
शोधकर्ताओं की टीम ने कान्हा, पेंच, नागजीरा-नवागांव, बोर, ताडोबा-अंधारी, उमरेड करहंडला, और कान्हा और पेंच के बीच के वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर सहित कई बाघ अभयारण्यों और वन्यजीव अभयारण्यों से गौर और सांभर के मल के सैकड़ों नमूने एकत्र किए। नेक्स्ट-जनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS), और जनसंख्या और परिदृश्य आनुवंशिक उपकरणों के संयोजन का उपयोग करते हुए, उन्होंने जांच की कि किसी परिदृश्य में क्या इन प्रजातियों की एक ही आबादी है या ये अलग-अलग समूहों में विभाजित हैं। उन्होंने गौर और सांभर की आनुवंशिक विविधता का भी विश्लेषण किया, जो किसी भी प्रजाति के लिए अचानक हुए पर्यावरणीय परिवर्तनों, बीमारियों, जलवायु परिवर्तनों और अन्य तनावों के अनुकूल होने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्राकृतिक और कृत्रिम परिदृश्यों की विशेषताओं की जांच की जो जानवरों की आवाजाही में बाधा डाल सकते हैं।

परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता
अध्ययन में पाया गया कि गौर और सांभर दोनों ने भूमि उपयोग परिवर्तनों के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन गौर की आबादी में इसका प्रभाव अधिक स्पष्ट था। परिणामों से पता चला कि गौर इन परिवर्तनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, खासकर कृषि क्षेत्रों में। इसके विपरीत, सांभर मानव-प्रधान परिदृश्यों में अधिक प्रतिरोधी हैं। हालाँकि, दोनों प्रजातियों की गति और जीन प्रवाह बदलते परिदृश्य से प्रभावित हो रहे हैं।
शोध के निष्कर्षों से गौर में उच्च आनुवंशिक अंतर दिखाई दिया, जिसका अर्थ है कि वे छोटी, अलग-थलग आबादी में रहते हैं, जिसमें बहुत कम या कोई जीन प्रवाह नहीं होता है, जैसा कि बोर टाइगर रिजर्व में देखा गया है। इन खंडित आबादियों में आनुवंशिक विविधता भी कम है। शोधकर्ता विशेष रूप से महाराष्ट्र के उमरेड करहंडला वन्यजीव अभयारण्य में गौर की आबादी के बारे में चिंतित थे।
रामकृष्णन कहते हैं, “हमने पाया कि यहां गौर की आबादी में बहुत ज्यादा आनुवंशिक भिन्नता है। भौगोलिक रूप से दूर न होने और तीन बड़े बाघ अभयारण्यों (ताडोबा, नागज़ीरा और पेंच) के केंद्र में स्थित होने के बावजूद, यह आबादी बहुत अलग-थलग है।” “हमारा मानना है कि यह उमरेड में आबादी के छोटे आकार के कारण है, जिसके कारण गौर की आबादी की आनुवंशिक संरचना पर आनुवंशिक बहाव का असर हो सकता है। इसके अलावा, यह आबादी जीन प्रवाह और आवाजाही के मामले में अन्य गौर आबादी से अलग-थलग है।”
दूसरी ओर, सांभर की आबादी में बहुत ज्यादा आनुवंशिक भिन्नता नहीं दिखने के बावजूद भी उनकी आनुवंशिक विविधता का स्तर कम चिंताजनक है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इसका कारण सांभर की बड़ी आबादी हो सकती है। हालांकि, अधिक डेटा के साथ आनुवंशिक भिन्नता स्पष्ट हो सकती है।
आगे की राह
यह अध्ययन मध्य भारत में आनुवंशिक संपर्क बनाए रखने और शाकाहारी जानवरों की आबादी के और अधिक अलगाव को रोकने के लिए संरक्षण प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह विशेष रूप से उमरेड करहंडला वन्यजीव अभयारण्य जैसे छोटे संरक्षित क्षेत्रों में गौर की आबादी की रक्षा के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता पर भी जोर डालता है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस तरह के अध्ययन मध्य भारत जैसे प्राथमिकता वाले परिदृश्यों में कई लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए संपर्क बनाए रखने के लिए साक्ष्यों पर आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में मदद करेंगे।
त्यागी कहते हैं, “आबादी की निगरानी करना और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाना और बहाल करना महत्वपूर्ण है, खासकर बोर टाइगर रिजर्व और उमरेड करहंडला वन्यजीव अभयारण्य की छोटी आबादी के लिए। बड़ी शाकाहारी आबादी लगातार छोटी और अलग-थलग होती जा रही है, जिससे संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और बाहर उनकी संख्या और कनेक्टिविटी की निगरानी करना जरूरी हो गया है।”
जानवरों की आवास क्षेत्रों में आवाजाही और आनुवंशिक प्रवाह के सुनिश्चित होने से उनके पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिए आवश्यक आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने और विलुप्त होने के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 7 अगस्त 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: उमरेड करहंडला वन्यजीव अभयारण्य में गौर की आबादी में उच्च आनुवंशिक भिन्नता देखी गई है। प्रजनन और आनुवंशिक आदान-प्रदान में बाधा से प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। तस्वीर: अभिनव त्यागी द्वारा।