- दुनिया भर में अपनी खुशबू और व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के लिए मशहूर नागौरी पान मेथी को जीआई टैग दिलाने की कोशिशें जारी हैं। राजस्थान सरकार ने मार्च में इसे विविध से मसाले की श्रेणी में शामिल कर लिया है।
- इसे राष्ट्रीय स्तर पर मसालों की श्रेणी में शामिल कराने के लिए स्पाइसेस बोर्ड को भी चिट्ठी भेजी गई है। जानकारों का मानना है कि इस कदम से नकल पर रोक लगेगी और किसानों को फायदा होगा।
- ठंड के कम होते दिनों का दुष्प्रभाव नागौरी पान मेथी पर दिख रहा है। बुआई लेट होने से पान मेथी की कटिंग घट रही है जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
राजस्थान के नागौर जिले की रेतीली मिट्टी में उगने वाली पान मेथी अपनी खुशबू और स्वाद के लिए दुनिया भर में मशहूर है। लेकिन हैरानी की बात है कि यह मेथी अब तक ‘कसूरी मेथी’ के नाम से जानी जाती है। ‘कसूरी मेथी’ का नाम पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के शहर ‘कसूर’ के नाम पर रखा गया था, जहां ऐसी ही खुशबू वाली मेथी उगाई जाती है।
हालांकि, अब नागौर के किसान और व्यापारी इस अनोखी मेथी को उसका असली नाम दिलाना चाहते हैं। यह नाम है नागौरी पान मेथी। इसके लिए जीआई टैग की मांग की जा रही है, ताकि इसकी पहचान न सिर्फ सही हो, बल्कि नकली उत्पादों पर भी रोक लगे और किसानों को सीधा फायदा मिले।
सही पहचान की चुनौतियों के आलावा, नागौर में इस मेथी को उगाने वाले किसान मौसम में तेज बदलाव से चिंतित है। इन्हीं किसानों में से एक हैं उगमा राम भाटी जो सर्जिकल आइटम की सप्लाई का काम छोड़कर अब नकदी फसल पान मेथी उगा रहे हैं। साल 2019 से मेथी की खेती कर रहे उगमा राम शुरुआती कुछ सालों तक कमाई से खुश थे। लेकिन बीते दो साल से उन्हें अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है।

उन्होंने मोंगाबे हिंदी से अपने सलेऊ गांव वाले खेत पर कहा, “पिछले साल तो घाटा नहीं हुआ, लेकिन इस बार नुकसान तय है।” इस निराशा के बीच उन्हें उम्मीद भी दिखाई दे रही है। दरअसल, इसी साल मार्च में राजस्थान सरकार ने पान मेथी को विविध से मसाले की श्रेणी में शामिल कर लिया। दूसरी तरफ, नागौर शहर के करीब 50 किलोमीटर के दायरे में होने वाले इस मसाले को नागौरी पान मेथी के नाम से भोगोलिक संकेतक (जीआई टैग) दिलाने की कोशिश भी हो रही है।
उगमा राम कहते हैं, “हमारी मेथी दुनिया भर मे जाती है। मसाले में शामिल करने के बाद अगर नाम (जीआई टैग) मिल जाएगा, तो हमें अच्छी कीमत मिलने लगेगी।” नागौर जिले में सालाना पच्चीस हजार मीट्रिक टन पान मेथी का उत्पादन होता है। जीआई टैग के लिए सौंपे गए आवेदन के मुताबिक, “नागौरी पान मेथी की खेती में पांच हजार किसान लगे हुए हैं और इससे उन्हें सालाना 250 करोड़ रुपए की आमदनी होती है।जिले में पान मेथी को प्रोसेस करने वाले 100 पंजीकृत उद्योग हैं जिनमें 10,000 लोगों को सीधे रोजगार मिलता है।”
जीआई टैग दिलाने की कोशिश
वैसे राजस्थान समेत भारत के कई इलाकों मे पान मेथी की खेती होती है। लेकिन, नागौर की पान मेथी दुनिया भर में अपनी सुगंध और सब्जियों को स्वादिष्ट बनाने के लिए मशहूर है। राजस्थान में इसकी खेती मुख्य रूप से नागौर और जोधपुर जिलों मे होती है।
करीब 70 सालों से नागौर में हो रही पान मेथी को दुनिया भर के बाजार में तो भरपूर पहचान मिल गई है, लेकिन अब तक इसे भारतीय मसालों में शामिल नहीं किया गया है। भारत के स्पाइसेस बोर्ड यानी मसाला बोर्ड की सूची में फिलहाल 52 मसाले शामिल हैं। वहीं, नागौरी पान मेथी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड की सूची में शामिल है।
नागौरी पान मेथी को लेकर सरकारी स्तर पर इस कमी को दूर करने के मकसद से राजस्थान सरकार ने मार्च के पहले हफ्ते में इसे मसालों की सूची में शामिल कर लिया। इससे पहले पान मेथी राजस्थान राज्य कृषि विपणन अधिनियम 1961 की अनुसूची में विविध में शामिल थी।

नागौर कृषि कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर विकास पावड़िया कहते हैं, “हमने स्पाइसेस बोर्ड को पत्र लिखकर नागौरी पान मेथी को मसाले में शामिल करने का आग्रह किया है। इससे यह अपनी पहचान के साथ निर्यात होगी। इससे किसानों को फायदा होगा। अभी यह दाना मेथी की तरह निर्यात हो रही है। इसकी अपनी पहचान नहीं है।”
पिछले पांच साल से नागौरी पान मेथी को जीआई टैग देने की मांग भी हो रही है। लेकिन, बीते दो साल से इस मांग ने जोर पकड़ा है। इस साल फरवरी में नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस संबंध में लोक सभा में सवाल पूछा था। इसके जवाब में सरकार की तरफ से बताया गया कि नागौरी पान मेथी को जीआई टैग देने के लिए नागौर कृषि उपज मंडी समिति से 13 अगस्त, 2024 को आवेदन मिला है। इसकी जांच रिपोर्ट 22 अगस्त, 2024 को जारी की गई और इसमे आवेदक को आवेदन में कमियों को दूर करने को कहा गया है।
कृषि उपज मंडी समिति के सचिव और रघुनाथ राम ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “आवेदन में कुछ दस्तावेज अधूरे पाए गए थे। उन्होंने जांच रिपोर्ट की मांग की थी। किसानों के टेस्टिमॉनियल मांगे गए थे। हमारी तरफ से ये सभी कागजात भेज दिए गए हैं।”
नागौरी पान मेथी को जीआई टैग दिलाने में सहयोग करने वाले और जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक भागीरथ चौधरी कहते हैं, “नागौरी मेथी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि सूखने के बाद इसमें खुशबू आनी शुरू होती है। जितने समय आप उसको रखते हैं, खुशबू आती रहेगी। यही सुगंध दूसरे मसालों का स्वाद बढ़ा देती है।”
हालांकि, कुछ व्यापारी इससे उलट राय भी रखते हैं। नागौर सूखा साग मेथी पत्ता व्यापार मंडल के उपाध्यक्ष रमेश चंद भाटी ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “जीआई टैग से किसानों और कारोबारियों को कोई फायदा नहीं होगा। भाव तो वही मिलेगा, जो बाजार का होगा।”

नकल से बचाने की कोशिश
जीआई टैग के लिए दिए गए आवेदन के मुताबिक नागौरी पान मेथी में तीन खासियतें पाई जाती हैं। एक तो इसके पत्ते का आकार छोटा होता है। रंग हरा होता है और इससे खास तरह की सुगंध होती है।
जीआई टैग की मांग के पीछे किसानों और व्यापारियों की एक और चिंता नकल भी है। नागौर सूखा साग मेथी पत्ता व्यापार मंडल के अध्यक्ष रामस्वरूप चांडक मोंगाबे हिंदी से कहते हैं, “असली पान मेथी नागौर जिले में ही होती है। कई राज्यों के लोगों ने इसे उगाने की कोशिश की, लेकिन मेथी के साथ-साथ कांटे भी हो गए। हमारी पान मेथी में खुशबू और जायका दोनों चीजें हैं और यह खान-पान को स्वादिष्ट बनाती है।”
किसान उगमा राम का भी दावा है कि नागौर के 50 किलोमीटर के दायरे में होने वाली ही असली नागौरी पान मेथी है। इससे आगे बढ़ने पर खुशबू कम होती जाती है और क्वालिटी भी गिर जाती है।
नकल रोकने के मुद्दे पर चौधरी कहते हैं, “नागौर जिले के जिन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है, उनका अच्छे से विश्लेषण किया गया है। इन क्षेत्रों की क्वालिटी एक जैसी है। दूसरी बात यह हमारे बीज, वातावरण और मिट्टी का कमाल है जो दूसरी जगह की पान मेथी में नहीं दिखता है। इसके अलावा किसानों ने इस लंबे वक्त में इस फसल को उगाने के गुर सीखे हैं और दूसरी जगह के किसान ऐसा नहीं कर सकते हैं। जैसे, बासमती चावल उत्तरी भारत के अलावा दूसरी जगह नहीं उत्पादित हो सकता, वैसे ही नागौर के बाहर होने वाली पान मेथी वैसी खुशबू नहीं दे सकती।“
कम होते ठंड के दिनों का दिख रहा दुष्प्रभाव
रबी की फसल पान मेथी को कोमल फसलों की श्रेणी में रखा जाता है। नागौर जिले में करीब सात हजार हेक्टेयर में इसे उगाया जाता है। पांच हजार किसान इसकी खेती में लगे हैं। जिले के ताऊसर, जनाना, खजवाना, रूण, इंदोकली, मुंडवा, नागौर, मेड़ता सिटी, खिंवसर, जायल और डेंगाना में इसकी खेती होती है।
नागौरी पान मेथी की बुआई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच होती है। चालीस दिन में पहली कटाई होती है। फिर हर 10 दिन पर मार्च के पहले हफ्ते तक मशीन से कोमल पत्तों की कटाई की जाती है। पत्तों को 10 दिन तक सुखाने के बाद बेचा जाता है। पौधों में फूल आने पर कटाई बंद कर दी जाती है, क्योंकि तब पत्तों के साथ डंठल भी आने लगते हैं और कीमत कम हो जाती है। इसके बाद फसल को बीज के लिए छोड़ दिया जाता है।
इसकी खेती के लिए 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान मुफीद माना जाता है। लेकिन, ठंड के कम होते दिनों का दुष्प्रभाव खेती पर साफ नजर आ रहा है। पहले इस फसल की 10 से 12 तक कटिंग होती थी, अब कटिंग की संख्या घट गई है। उगमा राम कहते हैं कि इस बार उन्होंने अपने अलग-अलग खेतों में चार से सात बार ही कटाई की।
उन्होंने कहा, “सबसे पहले तो इस बार तापमान ज्यादा रहने पर नवंबर के आखिरी हफ्ते तक बुआई हुई। फिर गर्मी आ जाने पर फूल जल्दी आ गए। इस तरह चार कटिंग कम हो गई और पैदावार घट गई।”
आंकंड़ों पर गौर करें तो नवंबर में शुरुआती 16 दिनों तक तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। वहीं, आधी फरवरी के बाद से तापमान में बढ़ोतरी का दौर दिखने लगा और आधा मार्च बीत जाने के बाद तापमान 31 से 35 डिग्री की रेंज में चला गया।
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मंडी सचिव जलवायु परिवर्तन को देखते हुए जीआई टैग को और ज्यादा जरूरी मानते हैं। वह कहते हैं, “जीआई टैग मिलने से कीमतें अच्छी मिलेंगी और किसान इनोवेशन के लिए प्रेरित होगा। इस फसल को लेकर शोध बढ़ेंगे और ऐसे बीज विकसित किए जाएंगे, जो बदलते मौसम को झेल सकें।”
व्यापारी भी मान रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते बुआई का समय आगे बढ़ गया है। चांडक अपने अनुभव से बताते हैं, “10 साल पहले दीवाली से एक महीने पहले बुआई होती थी और एक महीने बाद कटिंग शुरू हो जाती थी। अब दीवाली के एक महीने बाद बुआई होती है। इस तरह पहली कटिंग में दो महीने का फर्क आ गया है।”
मौसम में बदलाव की वजह से किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तो पैदावार कम हो रही है। दूसरा, आखिरी की कुछ कटाई में ठंडल आ जाने से कीमत गिर जाती है। इस साल मंडी में पान मेथी 160 रुपए से लेकर 30 रुपए किलो तक बिकी।
व्यापारी भाटी कहते हैं, “पहली पांच कटिंग तक भाव सही रहते हैं, क्योंकि कचरा कम होता है। सुगंध भी अच्छी होती है। फिर छठी-सातवीं से फूल और डंठल आने लगते हैं और कीमत घट जाती है।”
उगमा राम भी मानते हैं कि जल्दी गर्मी आने से फूल और पत्तों में ठंडल आ जाने से कीमत कम हो गई। वैसे नागौरी पान मेथी के लिए ज्यादा ठंड भी सही नहीं है। तुड़ाई के बाद ज्यादा ठंड पड़ने या पाला गिरने से मेथी काली पड़ जाती है। गर्मी ज्यादा होने पर पीलापान आ जाता है और इससे भी भाव कम हो जाते हैं।

इस पान मेथी के बीज बाजार में नहीं मिलते हैं। इसे किसान खुद उगाते हैं और बेचते हैं। इस बार मौसम में बदलाव के चलते बीज पर भी खतरा मंडरा रहा है।
किसान उगमा राम कहते हैं, “इस बार दिन और रात के तापमान में बहुत ज्यादा अंतर से फूल झड़ रहे हैं। इससे एक बीघे में दस किलो बीज भी नहीं निकलेंगे। आम तौर पर एक बीघे में 50 किलो से एक क्विंटल तक बीज होते हैं।”
ये बीज बाजार में 40 हजार रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए क्विंटल तक बिकते हैं। पावड़िया जैसे जानकार भी कहते हैं, “इस बार बीज नहीं बनने की वजह तापमान बहुत ज्यादा होना हो सकता है। लेकिन निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन इसकी बड़ी वजह है।“
इन सबके बीच अधिकारी भी मानते हैं कि नागौरी पान मेथी को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। जोधपुर में स्पाइसेस बोर्ड के वरिष्ठ क्षेत्र अधिकारी श्रीशैल के कुल्लौली ने करीब 11 महीने पहले लिंक्डइन पर लिखा, “नागौरी पान मेथी को बढ़ावा और मान्यता देकर हम ना सिर्फ राजस्थानी संस्कृति के अभिन्न अंग को संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि दुनिया को ऐसे शानदार मसाले से भी परिचित करा सकते हैं, जिसमें दुनिया भर के व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने की क्षमता है। यह मान्यता नागौर के किसानों के लिए आर्थिक बेहतरी ला सकती है।”
बैनर तस्वीरः नागौरी पान मेथी से डंठल निकालती महिलाएं। पान मेथी में पहली पांच कटिंग तक डंठल बहुत कम आते हैं। इसके बाद डंठल बढ़ने लगते हैं। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे