- सुनहरे सियार की आहार संबंधी आदतों पर किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि खाने के मामले में ज्यादा चूजी न होने की आदतें उन्हें विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में खुद जीवित बनाए रखने में मदद करती हैं।
- हिमालय में अधिक ऊंचाई पर सुनहरे सियार की उपस्थिति से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन और भोजन की बढ़ती उपलब्धता उन्हें अधिक ऊंचाई पर रहने में सक्षम बना रही है।
- अधिक ऊंचाई पर सभी मेसो-प्रिडेटर एक दूसरे के साथ कैसे रहते हैं और कैसे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, यह समझने के लिए और अधिक अध्ययनों की जरूरत है।
संसाधनों की कमी और प्रतिस्पर्धा से भरी दुनिया में जीवित रहने के लिए, सुनहरा सियार एक सीधी-सादी रणनीति अपनाता है: जो मिले, खा लो। उनकी आबादी का दूर-दूर तक फैला होना इस बात का प्रमाण है कि खाने के मामले में ‘जो मिले उसे खा लेने’ की नीति कितनी कारगर है। सुनहरे सियार (गोल्डन जैकाल) उत्तरी अफ्रीका, यूरेशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। अपने विविध आहार के अलावा, उन्होंने जीवित रहने के लिए अन्य गुण भी सीख लिए हैं, जैसे कि सीधी प्रतिस्पर्धा से बचना और कम ध्यान में आना। इन गुणों ने उन्हें विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों जैसे कि अर्ध-रेगिस्तान, घास के मैदान, सवाना, जंगल और मैंग्रोव, साथ ही कृषि, ग्रामीण और अर्ध-शहरी आवासों में भी फलने-फूलने में मदद की है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, सुनहरे सियार (कैनिस ऑरियस) का आहार बहुत व्यापक होता है, जिसमें पौधों से लेकर पशुओं के शव, पक्षी और इंसानों का बचा हुआ खाना तक शामिल है। अध्ययन के लेखकों में से एक और कश्मीर यूनिवर्सिटी में जूलॉजी के सहायक प्रोफेसर बिलाल ए. भट बताते हैं कि एक समय था जब सुनहरे सियार कश्मीर में आम तौर पर पाए जाते थे और रात में उनकी खास आवाजों से उनकी मौजूदगी का पता चलता था। हालांकि, अब वे गायब हो गए हैं, जिससे भट को उनकी भोजन की आदतों की पड़ताल करने की प्रेरणा मिली। भट बताते हैं, “कश्मीर में वन्यजीवों के आवास का भारी नुकसान हो रहा है। सुनहरे सियार जो महत्वपूर्ण पारिस्थितिक भूमिका निभाते हैं (जैसे शिकार की आबादी को नियंत्रित करना) उसे देखते हुए, इस प्रजाति का अध्ययन करना बहुत जरूरी है।”

एक बड़ा सा बुफे
इस रिसर्च पेपर में पश्चिमी हिमालय में कश्मीर के शोपियां जिले में स्थित हिरपुरा वन्यजीव अभयारण्य में दो साल तक सुनहरे सियार की भोजन संबंधी आदतों की जांच की गई है। उनके मल के विश्लेषण से पता चला कि उनके भोजन का मुख्य हिस्सा जानवरों से प्राप्त होता है, जिसमें पूरे वर्ष कृंतक (रोडेंट) उनके भोजन का मुख्य स्रोत थे। हालांकि, गर्मियों में घरों में पाली जाने वाली भेड़ों के शव उनके आहार में प्रमुख थे, जो उनके द्वारा खाए गए कुल बायोमास का लगभग 33.4% था।
रिसर्च पेपर में यह बात भी सामने आई है कि सुनहरे सियार शिकार करने के बजाय मरे हुए जानवरों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं, खासकर उन जानवरों को जिन्हें चरवाहे मारकर फेंक देते हैं। अध्ययन क्षेत्र के अंदर बनी सड़क का इस्तेमाल चरवाहे एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए करते हैं, जिससे सियारों को उन जानवरों तक आसानी से पहुंच मिल जाती है, जो भूख, खराब मौसम या सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। इस अध्ययन के मुख्य लेखक ज़ाकिर हुसैन नाजर बताते हैं, “किसान और पशुपालक मरे हुए जानवरों को जंगल में फेंक देते हैं, जिससे सियारों को भोजन के लिए अतिरिक्त स्रोत मिल जाता है।”
जंगली खुर वाले जानवरों को खाने का कोई सबूत नहीं मिले हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ऐसा अभयारण्य में जंगली खुर वाले जानवरों की कम संख्या या सियार और खुर वाले जानवरों के बीच भौगोलिक दूरी के कारण हो सकता है। अध्ययन में पॉलीथीन और कपड़ों जैसी अपचनीय वस्तुओं के भी सबूत मिले, जो शायद मानव द्वारा फेंके गए भोजन से आए होंगे। यह वन्यजीवों के आहार पर बढ़ते मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को उजागर करते हैं।
निष्कर्ष बताते हैं कि सुनहरा सियार आमतौर पर कुछ भी खा लेने वाला जानवर है, खासकर सर्दियों में जब भोजन की कमी होती है, लेकिन जब संसाधन भरपूर होते हैं तो यह अपनी पसंद का भोजन करने लगता है। पतझड़ से गर्मी के मौसम में बदलते समय, देखा गया कि सियार कृंतकों, घरेलू भेड़ों और पक्षियों सहित विभिन्न प्रकार के शिकारों को खाते थे।
सुनहरी सियार एक सर्वाहारी और अवसरवादी फीडर है और इसे IUCN रेड लिस्ट ऑफ़ थ्रेटेंड स्पीशीज़ में “सबसे कम चिंताग्रस्त” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। नाजर का कहना है कि ज्यादातर मांसाहारी जानवरों पर होने वाली रिसर्च लोकप्रिय प्रजातियों पर केंद्रित होती है, और अक्सर सुनहरे सियार जैसे जानवरों को अनदेखा कर दिया जाता है। नाजर ने बताया, “हमारा लक्ष्य उन क्षेत्रों में सुनहरे सियारों के लिए उपलब्ध खाद्य संसाधनों का अध्ययन करना था जहां वे पाए जाते हैं। हमारा उद्देश्य यह समझना था कि जलवायु परिवर्तन उनके वितरण को कैसे प्रभावित कर रहा है और वे इससे कैसे निपट रहे हैं।”

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और संरक्षण जीवविज्ञानी बिलाल हबीब ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि सुनहरे सियार जैसी व्यापक रूप से वितरित मेसो-प्रीडेटर जलवायु परिवर्तन के प्रभावी संकेतक के रूप में काम कर सकते हैं, उन प्रजातियों के विपरीत जो एक सीमित क्षेत्र में ही पाई जाती हैं। हबीब इस अध्ययन में शामिल नहीं थे। वह कहते हैं, “उनके व्यवहार और वितरण का अध्ययन इस बात की बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है कि जलवायु परिवर्तन इस क्षेत्र में वन्यजीवों को कैसे प्रभावित कर रहा है।”
इस प्रजाति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के संकेत तब साफ हुए जब पहली बार लद्दाख में एक सुनहरा सियार देखा गया। 2020 के अध्ययन में ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र लद्दाख में समुद्र तल से 3,120 मीटर की ऊंचाई पर सुनहरे सियार के पहली बार देखे जाने की पुष्टि की गई थी, जो विश्व स्तर पर इस प्रजाति के लिए सबसे अधिक दर्ज की गई ऊंचाई है। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि सुनहरे सियार आमतौर पर कम ऊंचाई वाले स्थानों पर रहने के लिए जाने जाते हैं।
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इस अध्ययन के मुख्य लेखक नियाजुल एच. खान बताते हैं कि “2020 में द्रास में एक सुनहरे सियार को कई बार देखा गया, जो कूड़े के ढेर के पास इंसानों द्वारा छोड़े हुए खाने की तलाश में घूम रहा था।” चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य में 4,724 से 5,365 मीटर की ऊंचाई पर जमा किए गए पांच मल के नमूनों के आनुवांशिक विश्लेषण से पुष्टि हुई कि वे सुनहरे सियारों के थे। यह खोज महत्वपूर्ण है, जो उनके क्षेत्र के विस्तार और स्थानीय वन्यजीवों पर संभावित पारिस्थितिक प्रभावों का सुझाव देती है। ये नतीजे सियार के क्षेत्र के बारे में पिछली धारणाओं को चुनौती देते हैं और इस संभावना की ओर इशारा करते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर्यावरणीय परिस्थितियों को बदलकर उन्हें अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाने में सक्षम बना रहा है।

हालांकि, हबीब का मानना है कि सिर्फ गर्मी ही नहीं, बल्कि भोजन स्रोतों की उपलब्धता, जैसे इंसानों का बचा हुआ खाना, सियारों को ऊंची जगहों पर चढ़ने और नए क्षेत्रों में बसने में मदद कर रहा है। अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि बिना निगरानी वाले कचरे के ढेर वाली जगहें मानवजनित गतिविधियों के रूप में काम करती हैं, जिससे उनके क्षेत्र का विस्तार और आसान हो जाता है।
इस अध्ययन से ये भी पता चलता है कि सुनहरे सियार और दूसरे मांसाहारी जानवर जो एक ही जगह में साथ रहते हैं, उनके बीच कैसे संबंध है और वे कैसे एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं- यह जानने के लिए और अधिक रिसर्च की जरूरत है। खान कहते हैं, “जैसे-जैसे सियार की आबादी अन्य इलाकों में बढ़ रही है, हमें ये देखना होगा कि रेड फॉक्स जैसे अन्य मेसो प्रिडेटर के साथ वह कैसे मुकाबला करते हैं।”
एक और अध्ययन में, भट और नाजर समेत वैज्ञानिकों की एक टीम ने हिरपुरा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में सुनहरे सियार और रेड फॉक्स के खानपान में समानता की जांच की। उन्होंने पाया कि हालांकि उनके खाने की पसंद में काफी समानता है, फिर भी दोनों प्रजातियां साथ-साथ रह पाती हैं क्योंकि वे उस जगह में अलग-अलग ऊंचाई पर रहना पसंद करती हैं। आमतौर पर रेड फॉक्स ज्यादा ऊंचाई पर रहती हैं, जबकि सुनहरा सियार कम ऊंचाई पर पाए जाते हैं। लेकिन, सुनहरे सियार के लगातार फैलते दायरे के कारण, ऊंचाई वाले इलाकों में विभिन्न मेसो-प्रिडेटर के बीच होने वाले आपसी मेलजोल पर और खोजबीन करने की जरूरत है।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 29 नवंबर 2024 प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: सुनहरे सियार की आबादी का दायरा काफी व्यापक है, लेकिन संरक्षणवादियों का इस पर कम ही ध्यान जाता है। तस्वीर-ज़ाकिर हुसैन नाजर