- थार के रेगिस्तान में वन्यजीवों को बचाने वाले राधेश्याम बिश्नोई का 28 साल की उम्र में निधन हो गया।
- बिश्नोई ने रेगिस्तान में घायल जानवरों की मदद करना शुरू किया था। इसी दौरान उन्होंने वन्यजीवों को रेस्क्यू करने का तरीका सीखा, खासकर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसे पक्षियों को जो अब बहुत कम बचे हैं।
- वे काफी कम उम्र से ही प्रकृति को बचाने के काम में लगे रहे और कम उम्र में ही काफी प्रभावी काम किया।
थार के इलाके में जो कोई भी वन्यजीव संरक्षण से जुड़ा है, उसके लिए राधेश्याम पेमाणी बिश्नोई का नाम जाना-पहचाना है। राजस्थान के पोखरण तहसील के ढोलिया गांव से आने वाले 28 वर्षीय राधेश्याम ने संकटग्रस्त ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने के अलावा अन्य घायल पक्षियों और जानवरों को बचाने में अपना योगदान दिया। वे वन विभाग की टीम के साथ मिलकर शिकार की घटनाएं रोकने में मदद करते थे। इस काम ने उन्हें लोगों के बीच सम्मान और पहचान दिलाई।
23 मई की रात, राधेश्याम की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इस हादसे में उनके साथ वन रक्षक सुरेंद्र चौधरी, श्यामलाल बिश्नोई और कंवराज सिंह की भी जान चली गई। ये सभी हिरण के शिकार को रोकने के लिए जा रहे थे।
वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोगों, स्थानीय समुदायों और राधेश्याम के परिवार के लिए यह क्षति बेहद गहरी और अपूरणीय है।
“मैं समझ नहीं पा रहा क्या कहूं… ये नुकसान मेरे लिए व्यक्तिगत है,” वन्यजीव जीवविज्ञानी सुमित डूकिया ने कहा। राधेश्याम कई वर्षों से डूकिया की संस्था ईआरडीएस (इकोलॉजी, रूरल डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी) फाउंडेशन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे।
डूकिया ने बताया कि उनकी मुलाकात राधेश्याम से 2016 में हुई थी, जब वे डेजर्ट नेशनल पार्क के पास के गांवों में रहने वाले युवाओं को नेचर गाइड के रूप में प्रशिक्षित कर रहे थे। राधेश्याम ने प्रशिक्षण में भाग नहीं लिया था, लेकिन वह संरक्षण कार्यों में रुचि दिखाने लगे। यहीं से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और उसके आवास की रक्षा की दिशा में उनकी यात्रा शुरू हुई।
बीते वर्षों में राधेश्याम इस काम के एक अहम हिस्सेदार बन गए थे — उन्होंने बस्टर्ड के रहवास की रक्षा की, घायल पक्षियों को बचाया, बिजली की हाई टेंशन लाइन और पवन चक्कियों जैसे खतरों की निगरानी की, और गांव-गांव जाकर लोगों को संरक्षण के लिए जागरूक किया।

कुछ साल पहले मुझसे बातचीत के दौरान राधेश्याम ने बताया था कि कैसे उन्होंने एक किसान को मुआवजा दिया था जिसकी खेत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोड़ावण) ने अंडे दिए थे। “वो सिवण घास का खेत था। मैंने किसान से काफी देर बात की, और वह मान गया कि अंडों को नहीं छेड़ेगा,” उन्होंने मुझे बताया था। समय के साथ राधेश्याम ने स्थानीय समुदाय में ऐसा विश्वास बना लिया था कि जैसे ही कहीं गोड़ावण दिखाई देता या उसकी मौत होती, सबसे पहले सूचना उन्हीं तक पहुंचती। “एक बार एक बस्टर्ड खेत में लगी बाड़ पर फंस गया था। गांववालों ने मुझे बताया और मैं समय पर जाकर उसे बचा पाया,” उन्होंने बताया।
राधेश्याम का वन्यजीवों के प्रति प्रेम बचपन से था। वे अक्सर घायल पक्षियों को घर लाकर उनका इलाज किया करते थे। वे बिश्नोई समुदाय से आते थे, जो प्रकृति और वन्यजीवों की पूजा करता है। यह उनके सोचने और समझने के तरीके को गहराई से प्रभावित करता था।
हरियाणा के वल्चर कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर में काम करने वाले श्रवण सिंह को जब राधेश्याम के असमय निधन की खबर मिली, तो वे बेहद दुखी हुए। सिंह जब जोधपुर के मछिया बायोलॉजिकल पार्क रेस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर में पशु चिकित्सक थे, उसी दौरान राधेश्याम ने जानवरों की प्राथमिक चिकित्सा की ट्रेनिंग उनसे ली थी।
“राधेश्याम अक्सर घायल चिंकारा, पक्षी, नीलगाय जैसे जानवरों को अपने ट्रक से लगभग 170 किलोमीटर दूर पोखरण से यहां लाते थे। क्योंकि वहां ऐसी सुविधा नहीं थी,” सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया।
“मानसून के समय अक्सर कुत्तों के हमले बढ़ जाते, जिससे चिंकारा घायल हो जाते। तब राधेश्याम ने मुझसे पूछा कि क्या वे प्राथमिक उपचार सीख सकते हैं ताकि वे वहीं पर जानवरों का इलाज कर सकें।”
उन्होंने दो हफ्ते तक सिंह के साथ रहकर यह सीखा और बाद में इस ज्ञान का इस्तेमाल घायल जानवरों को तुरंत उपचार देने में किया।
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के वर्तमान में मेंबर सेक्रेटरी गोविंद सागर भारद्वाज ने कहा कि राधेश्याम की कमी वन विभाग को भी खलेगी। जब ईआरडीएस और वन विभाग ने मिलकर स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित किया था, तब भारद्वाज जोधपुर वन्यजीव प्रभाग के मुख्य वन संरक्षक थे।
“कई युवाओं ने प्रशिक्षण लिया था, लेकिन शायद वही एक थे जिनमें इस क्षेत्र और वन्यजीवों के लिए इतनी गहरी लगन थी। उनका योगदान बहुत बड़ा था, और इसलिए ये नुकसान भी बहुत बड़ा है,” उन्होंने मोंगाबे इंडिया से कहा। राधेश्याम ने शिकार विरोधी अभियानों में अहम भूमिका निभाई, जिनके चलते कई आरोपियों की गिरफ्तारी और प्राथमिकी दर्ज की गई।
सुमित डूकिया ने यह भी बताया कि पिछले कुछ वर्षों में राधेश्याम ने डेजर्ट नेशनल पार्क क्षेत्र के आसपास गर्मियों में जानवरों के लिए 12 पानी के स्रोत तैयार किए। “हर दूसरे दिन वह अपने ट्रक से इन बिंदुओं पर जाकर अपने ट्यूबवेल का पानी भरते थे,” डूकिया ने कहा।
“यहां तक कि जब भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ा, तब भी वे इन दूरस्थ इलाकों में पानी पहुंचाने जाते रहे।” यह परियोजना क्राउडफंडिंग से शुरू हुई थी, लेकिन इसमें कई अतिरिक्त खर्च भी आए, जिन्हें राधेश्याम ने बिना हिचक खुद वहन किया।

अपने कार्यों के लिए राधेश्याम को 2021 में सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन द्वारा “यंग नेचुरलिस्ट” श्रेणी में सेंचुरी वाइल्डलाइफ सर्विस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। भारत के वन्यजीव संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक सुतिर्थ दत्ता ने उन्हें “थार के सबसे मज़बूत वन्यजीव रक्षकों में से एक” कहा और कहा कि इतनी कम उम्र में भी उन्होंने जो योगदान दिया, उसकी तुलना कर पाना आसान नहीं होगा।
सुमित डूकिया ने कहा, “डेजर्ट नेशनल पार्क के बाहर गोडावण के आवास को बचाने की हमारी लड़ाई में राधेश्याम एक अहम हिस्सा बन गए थे। हमें कॉर्पोरेट गठजोड़ से लेकर अफसरशाही तक, हर बाधा से लड़ना पड़ा। हमने ज़ीरो से शुरू किया और एक ऐसे मुकाम पर पहुंचे जहां हमारी बात सुनी जाने लगी थी। राधेश्याम बाकी लोगों से अलग थे। वे निजी लाभ के लिए काम नहीं करते थे। उन्होंने जाने के बाद जो खालीपन छोड़ दिया है, उसे भरना बेहद मुश्किल होगा।”
यह भावना सिर्फ डूकिया तक सीमित नहीं है। वन्यजीव प्रेमियों, फ़ोटोग्राफ़रों, और मेरे जैसे लेखकों के बीच भी यही भावना है, जिन्हें यह युवा संरक्षणकर्मी हमेशा हर तरह से सहयोग करता रहा।
राधेश्याम के परिवार में पत्नी, दो छोटे बच्चे, और माता-पिता हैं।

बैनर तस्वीर- गोडावण कम्युनिटी कंजर्वेशन प्रोजेक्ट से जुड़े राधेश्याम बिश्नोई डेटा एकत्र करते हुए। तस्वीर सौजन्य- राधेश्याम बिश्नोई