- सुंदरबन में मुहानों के आसापास तटबंधों के किनारे जब टेराकोटा छल्लों को गाद रोकने के लिए लगाया जाता है, तो वे प्रभावी रूप से नीचे जमी गाद को बांध कर रखते हैं, जिससे कटाव कम होता है।
- तलछट में जमा होने वाली गाद से मैंग्रोव के बीज वहीं रह जाते हैं और इससे उनके फलने-फूलने के लिए उपयुक्त माहौल बनता है, जिससे वे अपने-आप फिर से उग जाते हैं।
- 16 महीने की अवधि तक जमीनी जांच-पड़ताल से पता चलता है कि ये गाद जाल किनारों को बचाए रखने और कटाव को कम करने में मदद देते हैं।
- यह प्राकृतिक तरीका जोखिम वाले क्षेत्रों में तटों के स्थायी संरक्षण के लिए लागत प्रभावी, आगे बढ़ाने योग्य रणनीति उपलब्ध कराता है।
काल्पनिक उपन्यास ‘द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ में एक जादुई अंगूठी ही सब काम के लिए काफी है। “एक अंगूठी सब पर शासन करने के लिए, एक अंगूठी उन्हें खोजने के लिए, एक अंगूठी उन सभी को लाने के लिए और अंधेरे में उन्हें बांध कर रखने के लिए।” इसमें शिलालेख में दुर्भावनापूर्ण सुनहरी अंगूठी के बारे में बताया गया है जिसने मध्य धरती को हिला कर रख दिया।
लेकिन, असलियत में भारत की कटाव वाली आर्द्रभूमि को सिर्फ एक छल्ले से बांध कर नहीं रखा जा सकता और विनाश के लिए ओर्क्स के बजाय इंसान जिम्मेदार हैं।
फिर भी, उम्मीद है कि एक सुनहरे छल्ले के बजाय साधारण टेराकोटा छल्ला सुंदरबन की आर्द्रभूमि की किस्मत बदल सकता है, क्योंकि “एक छल्ला ही गाद और मिट्टी को बांध कर रखेगा, एक छल्ला ही उन्हें हरा-भरा बनाएगा, एक छल्ला ही उन सभी को एक साथ लाकर तटबंधों का कटाव रोकेगा।”
दो से चार फीट व्यास और लगभग एक या दो फीट ऊंचाई वाले बड़े टेराकोटा छल्लों की व्यवस्था सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में डूबते द्वीपों को बचाने में मदद कर सकती है। तटबंध के साथ 92 मीटर लंबाई और ढलान के साथ लगभग 6.5 मीटर चौड़ाई वाले इलाके में लगाए गए ये छल्ले गाद को रोक कर रखते हैं।
16 महीने की अवधि में, गाद को रोक कर रखने वाले इन छल्लों ने तटबंधों पर कुछ दिलचस्प प्रभाव डाले हैं। इस अध्ययन में 2023 और 2024 के बीच किए गए प्रयोग के ऑब्जर्वेशन दर्ज किए गए हैं। छल्लों ने गाद को रोक कर रखा, जिससे तटबंध का कटाव कम हो गया। समुद्र तल में सालाना बढ़ोतरी की दर के मुकाबले इन छल्लों में शुद्ध तलछट का संचय दो से तीन गुना ज्यादा था। इससे ये सुंदरबन में द्वीप डूबने की समस्या का प्रभावी और अपेक्षाकृत सस्ता समाधान बन जाते हैं। एक और फायदा यह है कि फंसी हुई गाद स्थानीय मैंग्रोव पौधों और सीपों के विकास में मददगार दिखी, जिससे उम्मीद जगी है कि ये संरचनाएं मैंग्रोव को फिर से फलने-फूलने में मदद कर सकती हैं। साथ ही, तटबंधों के निचले हिस्से में होने वाले कटाव से बचाने के लिए प्रकृति-आधारित जीवित तटरेखा बना सकती हैं।
टेराकोटा के छल्ले ही क्यों?
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ)-इंडिया के सुंदरबन डेल्टा प्रोग्राम के निदेशक अनामित्रा अनुराग डांडा कहते हैं, “शुरुआत में विचार यह था कि तटवर्ती क्षेत्र में ऊर्ध्वाधर ट्यूब लगाए जाएं। उच्च ज्वार के दौरान, इन ट्यूबों को गाद से भर जाना चाहिए और तटबंध की ढलान में आ जाना चाहिए, ताकि तटबंध को स्वाभाविक रूप से मजबूत किया जा सके।” वे कहते हैं, “इसलिए, हमने पानी की पाइपलाइन बिछाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बड़े व्यास वाले लोहे के पाइप लाने और उन्हें तटबंधों के सामने लगाने की कोशिश की।”
इससे पहले, सतह की ऊंचाई में परिवर्तन को मापने के लिए सुंदरबन में 10-25 मीटर लंबी ऊर्ध्वाधर छड़ें लगाई गई, जिन्हें सतह ऊंचाई तालिका मार्कर क्षितिज सेट या आरएसईटी-एमएच छड़ें कहा जाता है। हालांकि, बड़े व्यास के खोखले पाइप डालना आरएसईटी-एमएच छड़ जैसी पतली पाइप लगाने से बहुत अलग है।
डंडा कहते हैं, “लोहे के उन पाइपों को लंबवत रूप से लगाना चुनौती थी जिसे हम नहीं कर पाए। यह इस परियोजना में हमारी पहली विफलताओं में एक थी।” “लेकिन फिर, जादवपुर विश्वविद्यालय में समुद्र विज्ञान अध्ययन स्कूल के पूर्व निदेशक सुगाता हाजरा अजीब विचार लेकर आए। वे आगे कहते हैं, “उन्होंने पूछा, क्यों न टेराकोटा के छल्ले का उपयोग किया जाए? इन छल्लों का इस्तेमाल प्राचीन काल से कुओं और सीवेज सिस्टम के लिए किया जाता रहा है और इन्हें आसानी से और स्थानीय रूप से बनाया जा सकता है।”
पुरातात्विक खुदाई के दौरान खोजे गए प्राचीन कुओं का इस्तेमाल पानी को संग्रहीत करने के लिए किया गया है, जहां वे रेत को बाहर रखने और पानी को छानने के लिए गाद को बांध कर रखने के रूप में काम करते थे। सुंदरबन में इस परियोजना में, रिंगों द्वारा गाद को बांधे रखने की अवधारणा को निचले हिस्से को बनाए रखने के लिए नियोजित किया गया है जो स्वाभाविक रूप से तटबंधों को मजबूत कर सकता है और समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी को रोक सकता है।
टीम ने बांग्लादेश में एक परियोजना से भी प्रेरणा ली, जिसमें कंक्रीट के छल्लों का इस्तेमाल किया गया था। ये छल्ले सीप को बढ़ावा देते हुए ब्रेकवाटर रीफ बनाते हैं। इन बनावटी रीफ ने कटाव को कम करने, आस-पास की मिट्टी को बांध कर रखने, तलछट को जमा करने और क्षेत्र के खारे दलदल को समुद्र की ओर बढ़ाने में मदद की है।

शुरुआती जांच-पड़ताल और हैरान करने वाली खोज
जून 2022 और फरवरी 2023 के बीच सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर सात जगहों पर टेराकोटा गाद जाल लगाए गए। तीन निचले मुहाने में और चार मध्य मुहाने में। ये सभी जगहें मानव बस्तियों के पास थी, लेकिन इनमें किसी तरह की वनस्पति नहीं थी।
ट्रैप में गाद जमाव की जांच हर महीने उच्च ज्वार के दिन की जाती थी। 16 महीनों तक (मई 2023 से अगस्त 2024 के बीच)। निगरानी रखने के लिए तय किए गए जाल के निचले हिस्से में टिन की चादरें रखी गई थीं और जमा तलछट की ऊंचाई को जाल में डाले गए स्टील रूलर का इस्तेमाल करके मापा गया था। ऐसा तब तक किया गया, जब तक यह टिन की चादर को छू ना ले। इस अवधि के दौरान सभी साइटों पर नीचे गाद का जमाव औसतन 22 सेमी था। हालांकि, ये मान बहुत अलग-अलग थे, जो साइटों और मौसमों के बीच चार सेमी से लेकर 42 सेमी तक थे, जिसमें मानसून से पहले चरम और मानसून के बाद की अवधि में गिरावट देखी गई थी।
12 महीनों के अवलोकन के आखिर में नीचे गाद का शुद्ध जमाव 1.4 सेमी से 16.5 सेमी के बीच था। सबसे कम तलछट जमाव साइट 1 और 4 पर देखा गया था, जो क्रमशः एक सैंडबार और द्वीपों द्वारा संरक्षित थे। सबसे ज्यादा गाद साइट 2 में निचले मुहाने में देखी गई। साइट 3 और सबसे पूर्वी साइटों (साइट 5-7) पर जमाव की काफी ज्यादा दर देखी गई। जमा हुए गाद के ग्रैनुलोमेट्रिक विश्लेषण से पता चला कि मुहाने के मुंह (साइट 1-3) के पास की जगहों में रेत ज्यादा थी, जबकि मुहाने के मुंह से सबसे दूर के क्षेत्रों में मिट्टी की अधिकता थी। गाद जाल में बने ये पैटर्न प्राकृतिक परिवेश में देखे गए पैटर्न जैसे थे।
इस परियोजना का एक अप्रत्याशित लेकिन स्वागत योग्य नतीजा यह था कि प्राकृतिक मैंग्रोव के फलने-फूलने में गाद जाल से मदद मिली। मिट्टी से भरपूर तलछट वाली जगहों (साइट 3-6) में पोर्टेरेसिया कोआर्कटाटा, सुएडा मैरिटिमा और एविसेनिया मरीना की प्राकृतिक बढ़ोतरी देखी गई। सबसे अच्छी बढ़ोतरी बीच वाले मुहाने में साइट 4-6 में देखी गई। साइट 1 पर इस परियोजना का एक अप्रत्याशित लेकिन स्वागत योग्य परिणाम प्राकृतिक मैंग्रोव वनस्पति द्वारा गाद जाल को अपनाना था। मिट्टी से भरपूर तलछट वाले स्थलों (साइट 3-6) में पोर्टेरेसिया कोआर्कटाटा, सुएडा मैरिटिमा और एविसेनिया मरीना की प्राकृतिक वृद्धि देखी गई। सबसे अच्छी बढ़ोतरी मध्य वाले मुहाना के साइट 4-6 में देखी गई। साइट 1 पर सीपों (सैकोस्ट्रिया क्यूकुलाटा) की संख्या बढ़ी थी। साथ ही कुछ क्रैसोस्ट्रिया कटटैकेंसिस भी दिखे। साइट 2 और 7 में मैंग्रोव पौधों या सीपों में कोई बढ़ोतरी नहीं देखी गई। साइट 1 पर मुख्य रूप से सैकोस्ट्रिया क्यूकुलाटा और कुछ क्रैसोस्ट्रिया कटटैकेंसिस के साथ सीपों की संख्या मे अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई। साइट 2 और 7 में मैंग्रोव पौधों या सीपों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
हालांकि, सघन वृक्षारोपण और जगह के हिसाब से खास रणनीतियों के जरिए जर्जर हो चुके मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से संवारने की कोशिशों ने अच्छे नतीजे दिखाए हैं, फिर भी इस परियोजना के लिए पौधे लगाने की शुरुआती कोशिश विफल रही।
डांडा कहते हैं, “वाकई यह हमारे लिए सुखद आश्चर्य था, क्योंकि रिंगों में मैंग्रोव के पौधे लगाने की शुरुआती कोशिश विफल रही थी। उनमें से कोई भी किसी भी साइट पर जीवित नहीं बचा। इसलिए यह पैसा, समय और प्रयास था जो नासमझी में खर्च किया गया। अब हम जो भी वनस्पति देखते हैं वह प्राकृतिक रूप से उगी है।”

बाधाओं से सफलता
परियोजना के क्रियान्वयन में आने वाली समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर डांडा ने बताया कि तटबंध की सुरक्षा के लिए टेराकोटा के छल्ले का इस्तेमाल करने का विचार बिल्कुल नया है। इसलिए, परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
डांडा कहते हैं, “जब भी आप कुछ ऐसा करते हैं जो पहले नहीं किया गया है, तो आप गलतियां करेंगे और लगातार सीखते रहेंगे। सबसे पहली समस्या जो हमें मिली, वह टेराकोटा छल्लों को ले जाने में थी। वे बहुत कोमल होते हैं और उन्हें हावड़ा से सुंदरबन के द्वीपों तक लाना रसद संबंधी चुनौती थी।” फिर भी, इस चुनौती पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया गया और अब परिवहन में छल्लों के नुकसान को कम से कम किया गया है।
उन्होंने कहा, “एक और चुनौती मानवीय पहलू की थी। लोग इस विचार को लेकर बेहद संशय में थे और इन छल्लों को लगाने के लिए जरूरी अनुमति पान कठिन था।”
डांडा ने यह भी बताया कि यह सिर्फ पायलट अध्ययन है और अभी भी सत्यापन के शुरुआती चरणों में है। डांडा कहते हैं, “ये संरचनाएं ऊंचाई बढ़ाने वाला प्रयोग थीं। हम यह देखना चाहते थे कि क्या गाद को जमा करने से डेल्टा में द्वीपों के डूबने से बचाया जा सकता है, क्योंकि समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। क्या जमा हुई गाद मैंग्रोव के विकास को सहारा दे सकती है। हालांकि, हमारे नतीजे उत्साहजनक हैं, लेकिन इस मॉडल की व्यवहार्यता का परीक्षण करने के लिए अभी भी लंबी अवधि के ऑब्जर्वेशन की जरूरत है। साथ ही, इस मॉडल का वास्तव में चरम स्थितियों में परीक्षण नहीं किया गया है, क्योंकि रिंग स्थापित होने के बाद से हमारे यहां कोई बड़ा चक्रवात नहीं आया है। इसलिए, हम नहीं जानते कि चरम मौसम की घटना का सामना करने पर यह प्रणाली कितनी मज़बूत है।”
कलकत्ता विश्वविद्यालय के भूगोल के प्रोफेसर सुनंदो बंद्योपाध्याय कहते हैं, “अगर हम पेपर में दिए गए कॉर्डिनेट का इस्तेमाल करके गूगलअर्थ पर सात प्रयोग स्थलों पर जूम-इन करते हैं, तो वे सभी कीचड़ वाले क्षेत्रों में स्थित हैं, जिनमें तट या तटबंध के कटाव का कोई सबूत नहीं है। इसका मतलब है कि छल्ले की ये संरचनाएं तलछट में गाद को बढ़ावा देने के लिए मुहाने के स्थिर किनारों पर अच्छी तरह से काम करेंगी।” “ये संभवतः ज्वारीय द्वीपों के क्षरण और पीछे हटने वाले क्षेत्रों में काम नहीं करेंगे, जहां सीमांत तटबंध असल खतरे में हैं। इस तरीके कि यह सीमा कि छल्ले द्वारा मुहाने के किनारों के क्षरण वाले क्षेत्रों में गाद को बढ़ावा देने की संभावना नहीं है, जहां इसकी वास्तव में आवश्यकता है – आसानी से हल नहीं की जा सकती है। यह विचार स्थिर तटों पर ठीक काम करेगा, लेकिन अगर भविष्य में वह खास हिस्सा क्षरणकारी हो जाता है तो यह नष्ट हो जाएगा।”

इसके अलावा, ज्यादा ताकत वाली वाली समुद्री लहरों और ज्वार-भाटे के कारण निचले मुहाने में गाद के जमा होने और संरचना में बदलाव, तटबंधों के संरक्षण के उद्देश्य से किए जाने वाले किसी भी काम में अनिश्चितता बढ़ाती है।
खराब हो चुके मैंग्रोव को बहाल करने पर बड़े पैमाने पर काम करने वाली इकोलॉजिक रेस्टोरेशन अलायंस व पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग से संबद्ध कृष्णा रे इस बात से सहमत हैं। वह कहती हैं, “भारतीय सुंदरबन में, मैंने देखा है कि खराब हुए मैंग्रोव आवासों की पारिस्थितिकी बहाली से संबंधित इंजीनियरिंग और प्रकृति-आधारित तरीकों को शामिल करने वाला मिला-जुला दृष्टिकोण तटों की सुरक्षा में अच्छी तरह से काम करता है। उदाहरण के लिए, कंक्रीट के तटबंधों के सामने मौजूद प्राकृतिक मैंग्रोव बेल्ट सफल हैं। हालांकि, जब तटों के कटाव की बात आती है, तो सुंदरबन में अपनी अत्यंत गतिशील प्रकृति के कारण कई अपवाद हैं; किसी परियोजना की सफलता पूरी तरह से साइट के हिसाब से खास होती है। एक साइट पर काम करने वाली चीज हमेशा दूसरी साइट पर काम नहीं कर सकती है और इस क्षेत्र के लिए कोई निश्चित नियम नहीं है।”
लागत और भविष्य
फिलहाल, सिंचाई और जलमार्ग विभाग (आईडब्ल्यूडी) सुंदरबन में द्वीपों के कटाव वाले हिस्सों की रक्षा के लिए मिट्टी से भरे बोरों और नीलगिरी के खंभों का उपयोग करता है। आईडब्ल्यूडी कर्मियों का अनुमान है कि एक किलोमीटर लंबाई और दो से तीन मीटर चौड़ाई वाली ऐसी संरचनाओं को बनाने की लागत लगभग 1,00,000 डॉलर होगी, जिसमें सालाना रखरखाव के लिए अतिरिक्त 12% लागत शामिल है। लेकिन ये संरचनाएं गाद को बनाए रखने में मददगार नहीं होती हैं और मिट्टी से भरे बोरे अक्सर बह जाते हैं।
दूसरी ओर, एक किलोमीटर लंबे और 6.5 मीटर चौड़े टेराकोटा छल्ले पर आधारित गाद जाल बनाने में लगभग 50,000 डॉलर का खर्च आता है, जो तटबंधों की सुरक्षा पर खर्च किए जा रहे मौजूदा बजट का लगभग आधा है।
और पढ़ेंः मैंग्रोव रोपाई के लिए प्लास्टिक की जगह लेते ताड़ के पत्तों से बने नर्सरी बैग
“टेराकोटा से बने गाद जाल की लागत काफी कम है और इसके रख-रखाव की भी जरूरत नहीं है। स्थापना के बाद छल्लों के टूटने की दर 6-12% होने के बावजूद, इन छल्लों को बदलना जरूरी नहीं है, क्योंकि वे ठीक से काम करते हैं। अब यह देखना बाकी है कि क्या ये संरचनाएं मौजूदा तटबंधों की आयु बढ़ा सकती हैं, जो वर्तमान में औसतन 10 साल तक चलती हैं।” डांडा कहते हैं।
फिलहाल गाद जाल की निगरानी जारी रहेगी, लेकिन नई जगहों पर इन गाद जालों को इस्तेमाल करने पर खोजबीन जारी है।
डांडा कहते हैं, “जब हमने ऊंचाई बढ़ाने में अपनी संरचनाओं की सफलता के बारे में बात की, तो स्थानीय वनपालों में से एक ने हमसे पूछा कि इस विचार का इस्तेमाल जमीन के कटाव वाले हिस्से उस हिस्से को बचाने के लिए क्यों नहीं किया जा सकता? इसलिए, हमने बांस का एक ढांचा बनाया जिसके भीतर हमने ये छल्ले लगाए। यह कटाव-रोधी संरचना के रूप में काम कर सकता है। अभी हमारे पास बांस और टेराकोटा के छल्ले की दो ऐसी संरचनाएं हैं। एक निचले मुहाने में और दूसरी मध्य मुहाने में। इसका मकसद कटाव को रोकने या कम से कम धीमा करने का है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 29 अप्रैल, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: सुंदरबन में एक द्वीप जहां पहली कटाव-रोधी संरचना बनाई जा रही है। तस्वीर: सैफिस।