- भारत के करिश्माई वन्यजीवों, विशेष रूप से बाघों के संरक्षण के लिए जीवन समर्पित करने वाले प्रख्यात प्रकृतिवादी वाल्मिक थापर का 31 मई 2025 को 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
- थापर बाघों पर विशेषज्ञता रखने वाली देश की प्रमुख आवाज थे। वे न केवल एक सजग प्रकृति प्रेमी थे, बल्कि दर्जनों पुस्तकों के लेखक और कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माता भी रहे।
- उनके द्वारा निर्मित बीबीसी की 1997 की चर्चित डॉक्यूमेंट्री ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ को आज भी बाघों पर बनी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों में गिना जाता है।
प्रसिद्ध संरक्षणवादी, प्रकृतिवादी, टेलीविजन निर्माता और लेखक वाल्मिक थापर का 31 मई 2025 को नई दिल्ली में 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पांच दशकों तक वे भारत में बाघों की स्थिति को लेकर एक सम्मानित और विश्वसनीय आवाज बने रहे, और उनकी प्रेरणा से अनेक लोग वन्यजीव संरक्षण के मार्ग पर चले।
साल 1952 में प्रसिद्ध राजनीतिक पत्रकारों के परिवार में जन्मे थापर ने अपनी शिक्षा नई दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पूरी की। उनके संरक्षण जीवन की शुरुआत रणथंभौर टाइगर रिजर्व में पहली बार बाघ को देखने से हुई। तत्कालीन पार्क के निदेशक फतेह सिंह राठौर के मार्गदर्शन ने उन्हें यह दिशा दी। भले ही उन्होंने संरक्षण या जीवविज्ञान में औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन उन्होंने मैदान में रहकर गहन अवलोकन और अनुभव के जरिए ज्ञान अर्जित किया। इतना कि वे नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ जैसे सरकारी निकायों में अहम भूमिका निभा सके। इन पदों के माध्यम से उन्होंने टाइगर रिजर्व और अन्य जैव विविधता क्षेत्रों की सुरक्षा को मजबूती प्रदान की।
राठौर के सहयोग से थापर ने 1987 में रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की, जिससे समुदाय-आधारित संरक्षण कार्यों को बल मिला और विस्थापित लोगों की आजीविका को सुरक्षित रखने के प्रयास हुए। राठौर की अथक मेहनत के कारण रणथंभौर विश्व स्तर पर बाघों के आवास स्थल के रूप में चर्चित हुआ और भारत में वन्यजीव पर्यटन को प्रेरित करने वाले पहले संरक्षित क्षेत्रों में एक बना। साल 2011 में राठौर के निधन तक, थापर और वे मिलकर संरक्षण और विकास परियोजनाओं पर साहसिक और कभी-कभी विवादास्पद राय रखने वाले निर्भीक चेहरों के रूप में जाने जाते रहे। इन दोनों की साझेदारी ने भारत की वन्यजीव नीतियों पर अमिट प्रभाव छोड़ा और थापर ने इस विरासत को अंतिम समय तक आगे बढ़ाया।


“अधिकतर लोग वाल्मिक थापर को सही मायनों में नहीं समझ पाए,” सैंचुरी एशिया के संपादक और थापर के करीबी मित्र बिट्टू सहगल कहते हैं।
“उनके कठोर लहजे के चलते लोगों ने उन्हें पहले ही खारिज कर दिया, लेकिन वास्तव में वे एक विलक्षण प्रतिभा थे, जो सत्ता से सच बोलने का साहस रखते थे। फतेह सिंह राठौर ने जहाँ 1981 में सैंचुरी एशिया की नींव रखने की प्रेरणा दी, वहीं वाल्मिक ने इसके लिए अनगिनत रास्ते खोले, रणनीति बनाई और अपनी अंतिम सांस तक सैंचुरी के मिशन से जुड़े रहे।”
उन्होंने यह भी याद किया कि थापर की मदद से सैंचुरी ने भारत की पहली 16-एपिसोड वाली डॉक्यूमेंट्री श्रृंखला ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ का निर्माण किया। यह श्रंखला जो 1980 के दशक के मध्य में दूरदर्शन पर प्रसारित हुई और इसे 3 करोड़ दर्शकों ने देखा। “वो हमेशा सैंचुरी की आत्मा का हिस्सा बने रहेंगे,” सहगल कहते हैं।
वाल्मिक थापर ने नेशनल जियोग्राफिक, बीबीसी, एनिमल प्लैनेट और डिस्कवरी चैनल के लिए कई वन्यजीव डॉक्यूमेट्रीज का निर्माण और नैरेशन भी किया।
उनकी शुरुआती और सबसे चर्चित सीरीज़ में से एक बीबीसी की 1997 की ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ थी, जिसमें वे भारत के मैंग्रोव, जंगलों, बर्फीले पर्वतों और रेगिस्तानों की यात्रा करते हुए दो सीज़नों तक दर्शकों को प्राकृतिक इतिहास के अद्भुत रहस्यों से रूबरू कराते हैं।
थापर ने बाघों की पारिस्थितिकी और व्यवहार पर केंद्रित 32 पुस्तकें और दर्जनों लेख लिखे — जिनमें ‘द लैंड ऑफ द टाइगर: ए नैचुरल हिस्ट्री ऑफ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट’ और ‘द सीक्रेट लाइफ ऑफ टाइगर्स’ प्रमुख हैं। उन्होंने पक्षियों पर भी लेखन किया, जैसे ‘विंग्ड फायर: ए सेलिब्रेशन ऑफ इंडियन बर्ड्स’, साथ ही अन्य जीव-जंतुओं और अफ्रीकी सेरेनगेटी की अपनी यात्राओं का भी गहन विवरण प्रस्तुत किया।
बिट्टू सहगल ने सोशल मीडिया पर थापर की प्रभावशाली वकालत की क्षमता को याद करते हुए सितंबर 1996 में लिखे गए एक लेख ‘1000 डेज़ टू सेव द टाइगर’ का उल्लेख किया। उस दौर में जब राजनीतिक इच्छाशक्ति बाघों के पक्ष में क्षीण हो चुकी थी और विकास के नाम पर उनका शिकार तेजी से बढ़ रहा था, उन्होंने लिखा: “जैसे-जैसे हम स्वतंत्रता की अर्धशताब्दी की ओर बढ़ रहे हैं, यह दर्ज करना ज़रूरी है कि हमारी सरकार ने किस तरह बाघों और अन्य वन्य जीवों को विलुप्ति की कगार पर पहुँचा दिया है।”
साल 2024 में थापर को पाचन तंत्र में कैंसर का पता चला था, जो उनकी मृत्यु का कारण बना।
वे अपने दिल्ली स्थित आवास में अपनी पत्नी संजना कपूर और पुत्र हमीर के साथ रहते थे, वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली।
यह श्रद्धांजलि मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा लिखी गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 जून, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: वाल्मिक थापर मुंबई में आयोजित सैंचुरी वाइल्डलाइफ अवॉर्ड्स को संबोधित करते हुए। तस्वीर- सैंचुरी नेचर फाउंडेशन के सौजन्य से।