- महाराष्ट्र में ठाणे जिले का गांव बहाडोली जामुन के पेड़ों की बहुलता के कारण जांभुलगांव के नाम से मशहूर है।
- पिछले साल बिना मौसम के भारी बारिश से इस फल के लिए फूल आने में देरी हुई। इससे जामुन की पैदावार पर असर पड़ा। इस फल को आम तौर पर गर्मियों में तोड़ा और बेचा जाता है।
- जामुन की खेती करने वाले किसानों, विक्रेताओं और व्यापारियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है, क्योंकि उनकी आजीविका इसी फल पर निर्भर है।
हर साल गर्मियों में महाराष्ट्र के फल बाजारों में ताजे, चमकीले, गहरे बैंगनी जामुन दिखाई देते हैं। अपने खट्टे-मीठे स्वाद के कारण इस फल की दुनिया भर में मांग है। भारत जामुन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इसमें भी महाराष्ट्र देश में जामुन उत्पादक राज्यों में सबसे ऊपर है।
प्रकाश किनी पेड़ों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “क्या आप इन जामुन के पेड़ों को देख रहे हैं? ये 1885 से खड़े हैं और हमारे पूर्वजों के समय से हैं।” किनी महाराष्ट्र के ठाणे जिले के पालघर तहसील के एक गांव बहाडोली के जामुन उत्पादक हैं। बहाडोली को जांभुलगांव या जामुन के पेड़ों के गांव के नाम से भी जाना जाता है। यह समृद्ध गांव है, जिसके हर कोने पर पुराने, जामुन (सिजीजियम क्यूमिनी) के विशालकाय पेड़ हैं।
जामुन की खेती करने वाले एक और किसान प्रभाकर पाटिल ने इस गांव में कई मौसम और उनमें होने वाले बदलाव देखे हैं। “आपने यह पेड़ देखा? इसे मेरे परदादा ने लगाया था।” वे पेड़ के पास जाते हुए कहते हैं। “यह उनके समय से ही यहां है। और यह कोई अनोखी बात नहीं है। आपको इस गांव में हमारे पूर्वजों द्वारा लगाए गए ऐसे कई पेड़ दिखेंगे।
बहाडोली 297 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें से 106 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। इस पर आम, इमली और बड़ी मात्रा में जामुन उगाए जाते हैं।
सूर्या और वैतरणा नदियों के संगम पर स्थित बहाडोली अपनी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के लिए जाना जाता है। यही मिट्टी इसकी उपज को खास बनाती है। बहाडोली के जामुन आकार में बड़े और स्वाद में मीठे होते हैं, जिनमें छोटे बीज होते हैं और हर फल में गूदा अधिक होता है। वे एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन और खनिजों से भरपूर माने जाते हैं।

यहां के ज्यादातर किसान जामुन की खेती करते हैं। नए पेड़ में फल लगने में पांच से छह साल लगते हैं। वे अपनी आमदनी के लिए जामुन पर निर्भर हैं। गर्मियों में जामुन की रिकॉर्डतोड़ पैदावार होती है और किसान नियमित रूप से भारी मुनाफा कमाते हैं।
हालांकि, पिछले साल भारी बारिश के चलते फूल देर से आए और किसान व स्थानीय निवासी जामुन की फसल को लेकर चिंतित हो गए।
पिछले मानसून में बहाडोली के पास संकरी पक्की सड़क पर खड़ी प्रमिलाबाई कहती हैं, “हम [महिलाएं] फल तोड़ती हैं और यहां सड़क किनारे बेचने की कोशिश करती हैं।” वह अपने हाथ में एक बड़ा छाता पकड़े हुए हैं, जो भारी बारिश से उनके जामुन को बचा रहा है। “भारी बारिश के कारण हम बहुत ज़्यादा जामुन नहीं तोड़ पाते। फिर हम इसे कम मात्रा में तोड़ते हैं और यहां बेचने आते हैं। राहगीर आमतौर पर इन्हें खरीद लेते हैं।” वह कहती हैं कि पिछला साल गांव के लिए बेहद मुश्किल रहा।
वह आगे कहती हैं, “हमने 2023 में गर्मियों के आसपास जामुन तोड़े थे। लेकिन पिछले साल वे सीधे मानसून में आए और हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा।” फूल देर से आने से प्रमिलाबाई के साथ-साथ कई लोग चिंतित हैं।
जामुन का गांव
ऐसा कहा जाता है कि जामुन के पेड़ों की बहुतायत ने भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल भूभाग को उसका प्राचीन नाम जम्बूद्वीप दिया। संस्कृत में जम्बू का मतलब जामुन और द्वीप का मतलब भूमि होता है, जिसका अनुवाद ‘जामुनों की भूमि’ होता है।
बहाडोली के जामुन खास हैं। 2023 में बहाडोली के जामुनों के साथ-साथ पड़ोसी गांवों खामलोली, धुक्तन और पोचड़े के जामुनों को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग मिला है। यह ऐसा संकेत है जो उन उत्पादों को दिया जाता है जिनकी खास भौगोलिक उत्पत्ति होती है और उनमें उस उत्पत्ति के कारण खास गुण होते हैं। जीआई टैग इन उत्पादों को दुनिया भर में पहचान दिलाने में मदद करता है।
बहाडोली में जामुन के पेड़ आमतौर पर गर्मियों में फल देते हैं, जो इस फसल के लिए पारंपरिक पैटर्न है। नदियों के कारण जलोढ़ मिट्टी इसकी उपज को बेहतर बनाती है।

अन्य जामुनों की तुलना में इन जामुनों की मांग अधिक है। इसलिए, इसकी उपज पर बदलते मौसम का दुष्प्रभाव चिंताजनक है।
प्रभाकर पाटिल उन पेड़ों से खुश और संतुष्ट हैं जिन्हें उन्होंने कई सालों तक पाला है। ये पेड़ अब उनकी आजीविका का साधन बन रहे हैं। वे कहते हैं, “हम पहले वसई रेलवे स्टेशन तक पैदल जाते थे और ये जामुन बेचते थे।” “अब हमारे पास सड़क है, इसलिए हम इसे सड़क के किनारे भी बेचते हैं।”
बहाडोली जामुन आस-पास के इलाके में काफी मशहूर हैं, लेकिन पहले इसे राष्ट्रीय पहचान नहीं मिली थी। इस किस्म की मांग मुख्य रूप से स्थानीय स्तर पर थी। जामुन की खेती करने वाले एक अन्य किसान मंदार पाटिल कहते हैं, “कई पीढ़ियों से मेरा परिवार जामुन के कारोबार में लगा हुआ है।” “आज आप हमारे खेत में जो पेड़ देखते हैं, वे मेरे जन्म से भी पहले लगाए गए थे।”
मंदार अपने खेत में हमसे बात कर रहे थे, जामुन को साफ कर रहे थे और बक्सों में पैक कर रहे थे। वे कहते हैं, “हमारे जामुन की खासियतें काफी मशहूर हैं।” “एक बार राज्य कृषि विभाग के कुछ अधिकारी इन जामुनों की प्रदर्शनी आयोजित करने के विचार के साथ हमारे पास आए। हमने 2004 में अपनी पहली प्रदर्शनी आयोजित की थी। इससे धीरे-धीरे कई लोगों को बहाडोली जामुन के बारे में पता चला और अब हमारे पास जीआई टैग है।”
जीआई टैग हासिल करना
जैसे-जैसे बहाडोली के किसानों को यह अहसास होने लगा कि यहां के जामुन खास हैं और इससे उन्हें अच्छी आमदनी हो सकती है, ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती करने लगे। उन्होंने अपने धान के खेतों में भी जामुन के पेड़े लगाए। आज, इनमें से कई पेड़ बड़े हो गए हैं। कृषि विभाग के सहयोग से पैदावार बढ़ी और जीआई टैग के लिए आवेदन करने में भी मदद मिली। इस तरह गांव के किसानों ने जामुन उत्पादक समूह की स्थापना की।
इस समूह के अध्यक्ष किनी ने हमें बताया कि समूह ने कृषि विभाग के सहयोग से कई बैठकें कीं। वे कहते हैं, “हमने जामुन की गुणवत्ता की जांच की और विश्लेषण किया कि वे विशेष रूप से इस क्षेत्र में क्यों उगाए जाते हैं।” “हमने मिट्टी की भी जांच की और इस बात पर शोध किया कि फल में क्या-क्या है। दापोली में कोंकण कृषि विद्यापीठ के वैज्ञानिकों ने पाया कि जामुन के छिलके के पाउडर सहित ये जामुन मधुमेह के इलाज में मदद कर सकते हैं।”
इसके अलावा, कृषि विभाग ने बहाडोली गांव में कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, ताकि स्थानीय किसानों को ‘जो बिकता है, वही बोएं’ के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक बैठकें की और स्वस्थ और स्वादिष्ट जामुन फल उगाने के गुर सिखाए।
महाराष्ट्र के कृषि विभाग के जगदीश पाटिल ने हमें बताया, “हमने 2022 में बहाडोली जामुन के लिए जीआई टैग के लिए आवेदन किया था। और फिर, हमें 5 सितंबर, 2023 को जीआई टैग मिला।”
भारी बारिश से जामुन चुनने में दिक्कत
बहाडोली और उसके आस-पास के ज्यादातर किसान जामुन की खेती करते हैं। जामुन के अलावा, वे धान उगाते है। हालांकि, जब हम पिछले मानसून में यहां आए थे, तो हमने पेड़ पर लगे जामुन की तुलना में कीचड़ में सड़ते हुए ज्यादा जामुन देखे थे। उन फलों को देखते हुए मंदार कहते हैं, “यह सब बारिश की वजह से है। हमारे यहां आम तौर पर गर्मी का मौसम होता है। लेकिन इस साल…” वे अपनी बात खत्म करते हैं।

पिछले कुछ सालों में गांव वालों ने ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए जामुन की खेती का दायरा बढ़ाया है। हमने उनमें से कई लोगों को, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं, सड़क किनारे जामुन बेचते हुए देखा। कुछ लोगों ने जामुन को डिब्बों में पैक किया हुआ था, तो कुछ टोकरियों में भरकर ले जा रहे थे। वे सभी संभावित ग्राहकों पर नजर गड़ाए हुए थे।
इन महिलाओं में से एक गीता किनी ने हमसे बात की। वे कहती हैं, “हमारे जामुन बहुत मशहूर हैं और उनकी मांग भी है।” “हर साल, आप कम से कम 50 महिलाओं को सड़क किनारे जामुन बेचते हुए देखेंगे। हालांकि, इस साल, हमारी संख्या बहुत कम हैं, क्योंकि हमारी ज्यादातर फसल बर्बाद हो गई है।”
उसके बगल में बैठी रोहिणी कहती हैं, “देखिए, इस साल मानसून और जामुन के फूल आने का मौसम एक साथ आया है।” “इसलिए, हम जामुन तोड़ने नहीं जा सके, क्योंकि हमेशा भारी बारिश होती थी। साथ ही, बारिश के कारण बहुत सारे जामुन गिर गए।”
हमने सड़क किनारे जामुन बेचने वालों जिन लोगों से बात की, उन सभी की एक ही राय थी कि शुरू में बेचने के लिए जामुन पर्याप्त मात्रा में नहीं थे।
किनी ने हमें टोकरी में रखे जामुन दिखाते हुए इस बारे में विस्तार से बताया: “करीब तीन साल पहले तक, सभी जामुन के पेड़ अप्रैल तक फल दे देते थे। फिर मौसम में देरी हो गई और मई में फल आने लगी। फिर 2023 में यह समय जून तक आगे बढ़ गया और पिछले साल जुलाई में फल लगे। लेकिन, इसका मतलब यह भी है कि जामुन मानसून की भारी बारिश के साथ आए। इस वजह से हमारी लगभग 90 प्रतिशत उपज बर्बाद हो गई। जो थोड़ा बहुत बचा है, हम उसे तोड़कर बेचा।”
बारिश के साथ घटती जामुन की मांग
हर साल, बहाडोली और पड़ोसी गांवों खामलोली, धुक्तन और पोचडे में जामुन की रिकॉर्ड तोड़ पैदावार होती है। मंदार कहते हैं, “एक पेड़ से आपको कम से कम 5,000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है।” “अगर जामुन की खेती पहले की तरह ही की जाए, तो शुरुआती कीमत प्रति किलो 1,000 से 1,200 रुपये तक होती है। लेकिन अब यह दर गिरकर 200 से 300 रुपये रह गई है।”
स्थानीय किसानों का कहना है कि बारिश शुरू होते ही जामुन की मांग धीरे-धीरे कम हो जाती है। जामुन में कीड़े होने की आशंका से ग्राहक आमतौर पर जामुन नहीं खरीदते हैं। गांव की रहने वाली प्रभावती पाटिल पूछती हैं, “लेकिन पिछले साल जामुन का मौसम बारिश के बीच ही शुरू हो गया है। अब हम क्या करें?”
वह कहती हैं कि धान और अन्य सब्जियां उगाना उनकी आमदनी का दूसरा स्रोत है, “इन बीजों को खरीदने और अन्य प्रक्रियाओं के लिए ज़रूरी पैसे हमारे जामुन के व्यापार से आते हैं। इस साल, चूंकि हम लागत भी नहीं निकाल पाए, इसलिए हमारी पूरी योजनाएं गड़बड़ा गईं हैं।”
मनोज गुप्ता जामुन के व्यापारी हैं और इस साल जामुन के मौसम में देरी के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं, “हर साल 100 किलो की तुलना में पिछले साल हमें सिर्फ 20 किलो जामुन मिले।” “हर साल, हमें मई में जामुन मिलते हैं। पिछले साल वे जून के आखिर में आए और बारिश के संपर्क में आने से जामुन का स्वाद खराब हो गया।”
हालांकि, अन्य जगहों से भी जामुन बाजार में आते हैं, लेकिन बहाडोली जामुन की मांग सबसे अधिक है।

इन जामुनों का आगे क्या होगा?
वसई रेलवे स्टेशन पर जामुन बेचने वाली संगीता ने हमें बताया कि अब उनका कारोबार ठीक से नहीं चल रहा है। वह कहती हैं, “अब हमारी उपज [जो हम खरीदते हैं] अधिक महंगी है और मात्रा भी कम है।”
“यह लगातार बारिश ही है जिसकी वजह से सारे फल गिर गए हैं। क्योंकि उपज बहुत कम है, इसलिए इसे महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। मैं इसे खरीद नहीं सकता और वैसे भी इसमें ज़्यादा मार्जिन नहीं है।”
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2021 में जब चक्रवात तौकते भारत के पश्चिमी तट से टकराया, तो इसने जामुन के पेड़ों को बुरी तरह प्रभावित किया था और उनमें से 100 से ज़्यादा पेड़ उखड़ गए थे। स्थानीय किसानों को नुकसान की भरपाई करनी पड़ी थी और उन्हें अधिकारियों से पर्याप्त मदद भी मिली थी। हालांकि, तीन साल बाद, ऐसा लगता है कि उन्हें इस मौसम में भी इसी तरह का नुकसान झेलना पड़ा है।
महाराष्ट्र के कृषि विभाग के जगदीश कहते हैं, “हम कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से सलाह ले रहे हैं और निश्चित रूप से अगले सीजन में नुकसान को कम करने की कोशिश करेंगे।” “हम जामुन की गुणवत्ता और उन्हें ज्यादा दिन तक बचाए रखने के लिए सभी जरूरी संसाधन भी उपलब्ध करा रहे हैं। जामुन के लिए फसल बीमा की सुविधा के लिए सरकारी स्तर पर भी कोशिश की जा रही हैं।”

जीआई टैग के कारण मांग में बढ़ोतरी के ठीक बाद, आपूर्ति में इतनी भारी गिरावट दुर्भाग्यपूर्ण है। वे कहते हैं, “पिछले साल किसानों को बेमौसम बारिश के साथ-साथ औसत तापमान में बढ़ोतरी के कारण नुकसान उठाना पड़ा।” “इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पेड़ सही मौसम में फूल दें। हमें बताया गया है कि सूक्ष्म पोषक तत्वों के खास इस्तेमाल से पौधों को लाभ होगा और नुकसान कम होगा। हम इस बारे में विश्वविद्यालय से मार्गदर्शन लेने की योजना बना रहे हैं।”
जामुन की अर्थव्यवस्था बेहद खास है। जब हर साल मांग बढ़ रही है, तो इस साल आपूर्ति में कमी चिंताजनक है, खासकर उन किसानों और स्थानीय लोगों के लिए जो जामुन की बिक्री पर निर्भर हैं। इसके लिए संभावित समाधानों के बारे में व्यापक बातचीत की भी जरूरत है। जलवायु परिवर्तन जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है, इसलिए सभी कारकों पर विचार करने के बाद स्थायी समाधान तैयार करने की आवश्यकता है।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 18 मार्च, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
यह स्टोरी असर और बाईमानुस के संयुक्त उपक्रम प्रोजेक्ट धरित्री के तहत तैयार की गई है। मोंगाबे इंडिया जलवायु और लैंगिक मुद्दों को सामने लाने के लिए इस प्रोजेक्ट के साथ मिलकर काम कर रहा है।
बैनर तस्वीर: पंकज पाटिल ऊंचे पेड़ों से जामुन तोड़ने के लिए बांस से बनी संरचना का इस्तेमाल करते हैं। बहाडोली के जामुन मीठे होते हैं, जिनमें छोटे बीज और गूदा ज्यादा होता है। वे एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन और खनिजों से भरपूर माने जाते हैं। तस्वीर – ऋषिकेश मोरे।