- शोधकर्ताओं और फिल्मकारों द्वारा हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की सियांग घाटी में किए गए खोज अभियान से हैरान करने वाले नतीजे सामने आए हैं। इससे विज्ञान के लिहाज से अहम कई नई प्रजातियों की पहचान भी शामिल है।
- सियांग नदी घाटी में अलग-अलग प्रकार के 12 वन हैं, जिनमें अलग-अलग तरह के आवास हैं। इनसे समृद्ध जैव-विविधता को बढ़ावा मिलता है।
- संरक्षणवादियों का कहना है कि वनों की कटाई और विकास के कारण आवासों का लुप्त होना जैव-विविधता के लिए सबसे बड़े खतरों में एक है।
ब्रिटिश सेना की ओर से 16 जुलाई, 1912 को प्रकाशित एक अधिसूचना में मौजूदा अरुणाचल प्रदेश के मध्य हिस्से में अपने खोज अभियान की सफलता की घोषणा की गई थी। इस क्षेत्र के ऊपरी इलाकों तक पहुंच तब तक औपनिवेशिक सेनाओं के लिए दूर की कौड़ी थी। इस कवायद के पूरा होने की घोषणा बहुत जश्न के साथ की गई थी। अधिसूचना में लिखा था, “हालांकि दिहांग (मौजूदा सियांग घाटी) घाटी का पता लगाना असंभव साबित हुआ, जहां यह तिब्बत की सीमाओं पर मुख्य पर्वत श्रृंखला से मिलती है… लेकिन बड़ी शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद अभियान के मुख्य उद्देश्य पूरे हो गए हैं।”
यह अभियान सजा देने वाला मिशन था, जिसे सियांग घाटी में रहने वाली जनजातियों द्वारा ब्रिटिश अधिकारी नोएल विलियमसन की हत्या ने प्रेरित किया था। इस जनजाति को “अबोर” (जिसका मतलब है “अनियंत्रित”) कहा जाता है। विलियमसन एक रात रुकने की उम्मीद में कोम्सिंग गांव पहुंचे, लेकिन एक अन्य अवसर पर गांव के मुखिया को अपमानित करने के लिए उन्हें मार दिया गया। विलियमसन की मौत का बदला लेने के लिए, ब्रिटिश सेना ने दो उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए घाटी पर आक्रमण करने का फैसला किया: क्षेत्र के बारे में यथासंभव ज्यादा जानकारी एकत्र करना और उनकी हत्या में दोषी लोगों को “दंडित” करना।
इस क्रूर मिशन की लगभग भूली हुई विरासत घाटी में पाए जाने वाले जानवरों, पौधों, कीड़ों और पक्षियों की असामान्य सूची थी। इस सूची के बारे में बहुत कम जानकारी थी, जो दशकों बाद सामने आई जब फिल्म निर्माता संदेश कदुर अपनी किताब, हिमालय: माउंटेन्स ऑफ लाइफ के लिए शोध कर रहे थे। उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “मैंने पाया कि 1911 और 1913 के आसपास कई प्रजातियों का नामकरण और खोज की गई थी और मैंने सोचा कि सौ साल पहले क्या चल रहा था?” “मैंने गहराई से खोजना शुरू किया और फिर मुझे यह एक हजार पन्नों की बड़ी रिपोर्ट मिली और मैंने खुद से सोचा ‘वाह, यह दिलचस्प है’।”
यह रिपोर्ट वैज्ञानिक रूप से जानकारियों की खान साबित हुई। समुद्री जीव-विज्ञानी स्टेनली कैंप की अगुवाई में, अभियान ने सियांग घाटी में 14 नई प्रजातियों की खोज की। खोजों में 244 उभयचर, पक्षी, कीड़े और दुनिया के सबसे पुराने जीवित जीवाश्मों में से एक ‘ओनिकोफोरा’ नामक मखमली कीड़े के बारे में बताया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इस अभियान को “भारत में किसी भी विशेष क्षेत्र के लिए अब तक एक बार में किए गए सबसे व्यापक जैविक, भौगोलिक और मानवशास्त्रीय दस्तावेजीकरणों में से एक” बताया।

कदुर के अनुसार इससे भी ज्यादा उल्लेखनीय बात यह है कि एक सदी से भी अधिक समय बाद, राज्य में अभी भी कैंप के सर्वेक्षण वाली कई प्रजातियां मौजूद हैं। 2022 की शुरुआत में, अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (ATREE) के शोधकर्ताओं ने नेशनल जियोग्राफिक और कदुर की फिल्म निर्माण कंपनी फेलिस क्रिएशंस के साथ मिलकर 1912 के अभियान के रास्ते का पता लगाया और घाटी में और भी गहराई तक जाकर पहले से कहीं ज्यादा प्रजातियों का रिकॉर्ड बनाया।
अंग्रेजों के सियांग घाटी छोड़ने के एक सदी बाद भी यह अभयारण्य बना हुआ है। हालांकि, यहां पर बड़ी बांध परियोजना और भूमि उपयोग में अन्य बदलाव हमेशा के लिए लैंडस्केप को बदलने सकते हैं।
सियांग घाटी
असम से ऊपर की ओर बहने वाली सियांग नदी वहां ब्रह्मपुत्र बन जाती है। यह दोनों अभियानों के लिए दिशा बताने का काम करती है। यह अरुणाचल प्रदेश की सात प्रमुख नदियों में सबसे बड़ी है और इसके पूरे 293.9 किलोमीटर क्षेत्र में अपने हिसाब से बहती है। यह नदी आदि जनजाति (जिसे अंग्रेज अबोर कहते थे) के लिए महत्वपूर्ण प्रवासी मार्ग थी, जो कई पीढ़ियों पहले तिब्बत से आए थे और नदी घाटी के किनारे बस गए थे।

प्रकृतिवादी और संरक्षण एनजीओ तितली ट्रस्ट के संस्थापक संजय सोंधी ने कहा, “पूर्वोत्तर भारत के अन्य स्थानों के विपरीत अरुणाचल प्रदेश में ब्रिटिश की धमक कम थी। अबोर अभियान के अलावा, इस क्षेत्र में वस्तुतः जैव विविधता का लगातार कोई आकलन नहीं हुआ है।” उन्होंने पतंगों और तितलियों पर नए अभियान के नतीजों में मदद की है।
सियांग में 2022 का अभियान ना सिर्फ औपनिवेशिक इतिहास को फिर से हासिल करने का अवसर था, बल्कि उस खोए हुए समय की भरपाई करने का भी मौका था जिसमें जैव-विविधता पर व्यवस्थित अनुसंधान गैर-मौजूद रहा। सियांग नदी प्रणाली खास तौर पर दिलचस्प है। नदी 100 मीटर से लेकर 5,800 मीटर तक की ऊंचाई से होकर गुजरती है और नदी घाटी में अलग-अलग प्रकार के 12 वन हैं, जिनमें उष्णकटिबंधीय अर्ध-सदाबहार वन, अल्पाइन झाड़ीदार वन, आर्द्र शीतोष्ण वन और अल्पाइन चरागाह शामिल हैं।
आवासों की इस विविधता के कारण ही सियांग घाटी समृद्ध जैव-विविधता को बढ़ावा देती है। 2022 और 2024 के बीच की गई कई यात्राओं में नवीनतम अभियान ने ऊपरी सियांग, सियांग और पूर्वी सियांग जिलों को कवर करते हुए बड़े क्षेत्र में 1,500 से ज्यादा प्रजातियों की चौंका देने वाली संख्या दर्ज की। इन प्रजातियों में स्तनधारी, सरीसृप, पक्षी, पौधे, कीड़े, मोलस्क और मछलियां शामिल थीं जिन्हें 25 शोधकर्ताओं, कैमरामैन और क्षेत्र सहायकों की टीम द्वारा रिकॉर्ड किया गया था।
अभियान से प्राप्त ज्यादातर शोध अभी प्रकाशित होने बाकी हैं। हालांकि, अभी तक जो अध्ययन सामने आए हैं, वे प्रजातियों के व्यवहार, आवासों और सियांग नदी की पारिस्थितिकी सेवाओं के बारे में नए तथ्य सामने रखते हैं। उदाहरण के लिए, पैरापैराट्रेचिना नीला को लें। यह छोटी, दो मिलीमीटर लंबी चींटी है जो पेड़ के तने के छेद में पाई जाती है। इसका बाहरी कंकाल चमकीली नीले रंग जैसा चमकता है। धातु जैसी नीली चींटियां दुनिया में कहीं भी दुर्लभ हैं और यह अनोखी शारीरिक बनावट संभवतः शिकार को दूर रखने के लिए विकासवादी विशेषता है। अभियान ने विज्ञान के लिए नई प्रजातियों की खोज भी की, जैसे कि डार्विन ततैया उपपरिवार (माइक्रोलेप्टीना) की चार नई प्रजातियां।


लेकिन सबसे उल्लेखनीय मखमली कृमि (वर्म) ओनिकोफोरा की फिर से खोज है। “यह प्राचीन प्रजाति 170 मिलियन साल पुरानी है। यह भारत में इस छोटे से कोने को छोड़कर कहीं और नहीं पाई जाती है।” कदुर ने कहा, “यह भारत को जैविक और जैव-भौगोलिक रूप से दुनिया के बाकी हिस्सों से जोड़ता है, क्योंकि यह प्राचीन पैंजिया का हिस्सा था। हैरान करने वाली बात यह है कि उस समय से यह वास्तव में बहुत विकसित नहीं हुआ है।”
टीम को सियांग नदी के सारस (कॉमन क्रेन) जैसी पक्षियों के लिए प्रवासी गलियारे के रूप में काम करने के सबूत भी मिले, जिन्हें पहले कभी 300 के बड़े समूह में नदी पार करते नहीं देखा गया था। एटीआरईई के जैव विविधता और संरक्षण केंद्र में फेलो इन रेजिडेंस राजकमल गोस्वामी ने कहा, “हमने ज्यादातर क्रौंच की वापसी यात्राएं रिकॉर्ड कीं, जो तब होती हैं जब वे उत्तरी आर्कटिक सर्कल में वापस जा रहे होते हैं। इन पक्षियों को पहले कभी सियांग घाटी में नहीं देखा गया था और यह सियांग घाटी को अहम प्रवासी गलियारा बनाता है।” गोस्वामी उस अभियान दल का हिस्सा थे जिसने इस पर ध्यान केंद्रित किया कि किस तरह मानवीय संपर्क ने घाटी में जैव-विविधता को पनपने दिया।
ऐसे समय में जब पिछले 40 सालों में दुनिया भर में कीटों की आबादी में 45% की गिरावट आई है और भारत में ज्यादातर पक्षियों की आबादी घट रही है, सियांग अभियान के नतीजे अहम हैं। गोस्वामी ने कहा, “सियांग अभियान और उसके बाद की यात्राओं के दौरान, हमने पक्षियों की लगभग 400 अलग-अलग प्रजातियों को रिकॉर्ड किया है।” उन्होंने आगे कहा, “परिप्रेक्ष्य के लिए, मेघालय राज्य में 600 प्रकार के पक्षी हैं। भारत में लगभग 1,300 प्रजातियों की पक्षियां पाई जाती है। देश की लगभग 30% पक्षी आबादी इस एक घाटी में पाई जा सकती है।”

संकटग्रस्त परिदृश्य
2011 की जनगणना के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश भारत का सबसे कम घनी आबादी वाला राज्य है। यहां हर वर्ग किलोमीटर में सिर्फ 17 लोग रहते हैं। अपनी छोटी आबादी के बावजूद भूमि उपयोग में बदलाव और बड़ी विकास परियोजनाएं सियांग के परिदृश्य को स्थायी रूप से बदल सकती हैं।
ऐतिहासिक रूप से, इन क्षेत्रों में झूम खेती की जाती रही है, खास तौर पर ऊंचे इलाकों में। 1970 के दशक से, राज्य सरकार ने झूम खेती को हतोत्साहित करने के लिए स्थायी खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं शुरू की हैं। झूम नियंत्रण योजना और केंद्र प्रायोजित कृषि प्रौद्योगिकी मिशन और राष्ट्रीय बागवानी मिशन जैसी योजनाओं ने भी घरेलू उद्यानों और फलों, सुगंधित पदार्थों, फूलों और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया। एक कृषि सर्वेक्षण के अनुसार, 1970 और 1990 के दशक के बीच स्थायी खेती क्षेत्र में तीन गुना बढ़ गई।
वैसे नदी के किनारे धान की खेती आम है, लेकिन पहाड़ी ढलानों पर मिली-जुली खेती और संतरे जैसे फलों के बाग आम होते जा रहे हैं। दो साल पर आने वाली भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट भी सियांग नदी के किनारे के जिलों में वनों की बड़ी कटाई को दिखाती है। 2019 में, पूर्वी, पश्चिमी और ऊपरी सियांग जिलों में 2017 की तुलना में संयुक्त वनों की 75% कटाई देखी गई। 2021 और 2023 के बीच पूर्वी सियांग, निचले सियांग और पश्चिमी सियांग में वनों की कटाई में 32% की कमी आई, जबकि ऊपरी सियांग जिले में इसी अवधि में वन क्षेत्र में 2.45% की बढ़ोतरी देखी गई।
गोस्वामी ने कहा, “इस समय सबसे बड़ा खतरा आवासों का लुप्त होना है।” “जब तक आवास मौजूद है, जानवर शिकार जैसे अन्य खतरों से उबर सकते हैं, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में जनसंख्या घनत्व अपेक्षाकृत बहुत कम है। अगर आवासों को नकदी फसल, कृषि या बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में नहीं बदला जाता है, तो जानवर और अन्य प्रजातियां फिर से उभर सकती हैं।”

यहां पर मंडराता एक और खतरा 11,200 मेगावाट (MW) अपर सियांग बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसके निर्माण से यिंगकिओंग का जिला मुख्यालय डूब जाएगा और नदी की धारा की गति हमेशा के लिए बदल जाएगी। सियांग नदी के किनारे प्रस्तावित 44 बांधों के एक पुराने संचयी प्रभाव मूल्यांकन में कहा गया है कि बांधों के जलाशयों में जमी गाद “सियांग नदी के निचले हिस्से के पारिस्थितिकी तंत्र को रखरखाव सामग्री और पोषक तत्वों से वंचित कर देगी जो सियांग और सियोम नदी पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को बनाए रखने में मदद करते हैं।”
संचयी प्रभाव आकलन के अनुसार, सुनहरी महासीर जैसी महत्वपूर्ण प्रवासी मछली प्रजातियों की आबादी में काफी कमी आने का खतरा है। यह लुप्तप्राय मछली है जिसका रंग सुनहरा होता है और जो 2.74 मीटर तक बड़ी हो सकती है। सुनहरी महासीर अप्रैल और मई में सियांग नदी के साथ ऊपर की ओर तैरती है और प्रजनन, भोजन और छिपने के लिए नदी की सहायक नदियों का उपयोग करती है।
उभरते सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र
सियांग घाटी में मानवजनित दबावों का सामना करते हुए, ऊपरी सियांग जिले के गोबुक के निवासी आगे की योजना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 2022 से गांव के निवासियों की अगुवाई में तितली ट्रस्ट के साथ मिलकर गैर सरकारी संगठन एपम सिरम वेलफेयर सोसाइटी (ईएसडब्ल्यूएस) क्षेत्र के वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए समुदाय-आधारित संरक्षण का मॉडल बना रहा है।
साल 1912 के खोज अभियान में तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां दर्ज की गईं थी। इनमें 1915 में डार्क फ़्रीक (कैलिनागा एबोरिका) नामक एक प्रजाति भी शामिल थी। यह तितली भूरे और सफेद पैटर्न वाले पंखों और लाल शरीर वाली स्थानीय तितली थी। 2015 में तितली ट्रस्ट के सोंधी द्वारा पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश में एक बार देखे जाने के अलावा एक सदी में इस प्रजाति को कहीं नहीं देखा गया था।

गोबुक के निवासी अनजाने में अपने अहाते में सैकड़ों डार्क फ्रीक तितलियों के बीच रह रहे थे। गोबुक के निवासी और ईएसडब्ल्यूएस के सदस्य और नदी गाइड के तौर पर काम करने वाले आनंद टेक्सेंग ने कहा, “पहले हमने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया कि ये तितलियां कितनी दुर्लभ हैं।” सोंधी के साथ कार्यशालाओं के जरिए लोगों को इन तितलियों और क्षेत्र के अन्य वन्यजीवों की अहमियत के बारे में जागरूक किया गया। सोंधी ने कहा, “2022 में हम सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र परियोजना शुरू करने के अवसरों की तलाश कर रहे थे। जब हम गोबुक पहुंचे, तो हमें पता चला कि एपम सिरम इसी तरह के काम में लगे हुए हैं और ज्यादा मदद की तलाश कर रहे हैं। वे शानदार भागीदार रहे हैं।”
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आदि शिकारी जनजाति है, जहां शिकार के बिना अनुष्ठान अधूरे माने जाते हैं। लेकिन ढाई साल की अवधि में, निवासियों का कहना है कि शिकार में काफी कमी आई है। एक अन्य निवासी डेंगवान मियो ने कहा, “हम बड़े पैमाने पर शिकार करते थे, चाहे वह गिलहरी हो, भालू हो, हिरण हो या पक्षी।” उन्होंने कहा, “हम अब सिर्फ कुछ त्योहारों के लिए ही शिकार करते हैं। बहुत से लोगों ने इसे छोड़ दिया है। यह हमारे लिए गर्व की बात बन गई है कि लोग इतनी दूर से हमारे गांव की चीजें देखने आते हैं।” डेंगवान एनजीओ के सदस्य नहीं हैं।
डार्क फ्रीक (कैलिनेगा अबोरिका) अब गांव का प्रमुख जीव है और निवासी इस प्रजाति तथा वहां पाए जाने वाले दर्जनों अन्य जीवों, जैसे लाल लेसविंग (सेथोसिया बिब्लिस), नीला मोर (पैपिलियो आर्कटुरस) और महान नवाब (पॉल्यूरा यूडामिप्पस) को देखने के लिए इकोटूरिज्म के अवसर बना रहे हैं।
रॉयल एनफील्ड के सहयोग से गोबुक ने पिछले साल अपनी पहली जैव-विविधता मीट आयोजित की, जिसमें गांव में आने वाले और तितलियों को देखने के लिए नए बनाए गए होमस्टे में रहने वाले पेइंग गेस्ट से लगभग 10 लाख रुपये की कमाई हुई। संरक्षण के प्रति अपने नजरिए के लिए गोबुक की मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने तारीफ की। निवासियों और तितली ट्रस्ट द्वारा साथ मिलकर ली गई पतंगों और तितलियों की तस्वीरों वाले पर्चे आगंतुकों के बीच बांटे गए और गांव की लाइब्रेरी में लगाए गए।

ऊपरी सियांग में मौलिंग नेशनल पार्क के पास एटीआरईई भी समुदाय की अगुवाई वाले संरक्षण क्षेत्रों के निर्माण के लिए गांवों के साथ सहयोग कर रहा है। पार्क अपर सियांग जिले में स्थित है, जहां सभी मौसम में काम आने वाली कोई सड़क नहीं है, जिससे मानसून के दौरान यह क्षेत्र कट जाता है। राजकमल ने कहा, “हमारा लक्ष्य भविष्य में जैव-विविधता के नुकसान को रोकना है, जब क्षेत्र बेहतर तरीके से जुड़ जाएगा।” एटीआरईई के शोधकर्ता पार्क के पास के गांवों को कम कर्मचारियों वाले वन विभाग के साथ काम करने और पार्क की सीमाओं पर गश्त करने और इसके प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
सोंधी ने कहा, “अभी भी इस बात पर कोई फैसला नहीं लिया गया है कि समुदाय द्वारा संरक्षित क्षेत्र प्रभावी हैं या नहीं, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में ऐसे क्षेत्र बहुत कम हैं।” “लेकिन विकल्प क्या हैं? सरकार को भूमि सौंपना, जिसके वन विभाग में कर्मचारियों की कमी है, हमेशा प्रभावी नहीं होता। बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं समुदायों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। हम अभी भी सियांग परिदृश्य के बारे में बहुत कुछ सीख रहे हैं। समुदायों को इस सबक में हिस्सा लेने के लिए मजबूत बनाने से बेहतर क्या हो सकता है?”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 3 अप्रैल, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: खोज अभियान के सदस्य पतंगों और अन्य कीटों के नमूने एकत्र करते हुए। संदेश कदुर/फेलिस इमेजेज (CC BY-ND 4.0) द्वारा ली गई तस्वीर।