- असम-मेघालय सीमा पर स्थित औद्योगिक शहर बरनीहाट को 2024 IQAir विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में दुनिया का सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्र घोषित किया गया है।
- बरनीहाट में सालाना औसत पीएम 2.5 का जमाव 128.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के दिशानिर्देश से बहुत ज्यादा है।
- प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करने वाले उद्योग मुख्य रूप से हवा की खराब गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन इसमें कुछ हद तक वाहनों और पहाड़ियों की कटाई का भी हाथ माना जाता है।
“भले ही हम अपनी सभी खिड़कियां, दरवाजे और वेंटिलेटर बंद कर दें, धूल अंदर आ ही जाती है। हम अपने कपड़े बाहर नहीं सुखा सकते, बच्चे बाहर नहीं खेल सकते। हम अपने घर को कितना भी साफ कर लें, धूल से राहत नहीं मिलती।” गृहिणी एलिन सिंग्कली बरनीहाट के राजाबागान इलाके में अपने निर्माणाधीन घर की सीढ़ियों पर बैठी प्रदूषण के प्रभावों के बारे में बात कर रही थीं।
असम और मेघालय की सीमा पर बसा छोटा-सा औद्योगिक शहर बरनीहाट ने इस साल सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसे 2024 IQAir वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट में ‘दुनिया का सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्र’ घोषित किया गया है। इस साल मार्च की शुरुआत में, स्विट्जरलैंड के स्टीनैच से स्विस फर्म IQAir द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि बरनीहाट में सालाना औसत PM2.5 सांद्रता 128.2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के दिशानिर्देश से कहीं अधिक है। PM2.5 और PM10 महीन कण होते हैं। PM2.5 ढाई माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण होते हैं। ये इतने महीन होते हैं कि फेफड़ों और रक्तप्रवाह में अंदर तक प्रवेश कर सकते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं।
हालांकि, हवा की गुणवत्ता के बारे में राज्य सरकार के अनुमान अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से अलग हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री और वन व पर्यावरण विभाग के प्रभारी कोनराड संगमा ने मार्च में मेघालय राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दौरान इस मुद्दे पर बयान दिया था। उन्होंने कहा कि मेघालय राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमएसपीसीबी) द्वारा बरनीहाट में संचालित चार परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के डेटा से पता चलता है कि साल 2024 के लिए सालाना औसत PM2.5 का जमाव 50.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। यह IQAir द्वारा बताए गए सालाना औसत के आधे से भी कम है। उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड के डेटा ने संकेत दिया कि 2025 में जनवरी और मार्च के पहले हफ्ते के बीच वायु गुणवत्ता “संतोषजनक” दर्ज की गई थी।

भौगोलिक रूप से दो राज्यों में फैला बरनीहाट असम के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी से सिर्फ 20 किलोमीटर और मेघालय की राजधानी शिलांग से 65 किलोमीटर दूर है। यह इस क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों में से एक है। यहां असम में 39 और मेघालय में 41 औद्योगिक इकाइयां हैं। मेघालय में उद्योग री-भोई जिले में एक्सपोर्ट प्रमोशन औद्योगिक पार्क (ईपीआईपी) नामक क्षेत्र में स्थित हैं। वहीं असम में वे मुख्य रूप से कामरूप (मेट्रोपॉलिटन) जिले के तामुलकुची में हैं। नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (NEHU) के स्कूल ऑफ ह्यूमन एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज के डीन देवेश वालिया ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि बरनीहाट में औद्योगिक इकाइयां क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मदार हैं। “यह स्थान कनेक्टिविटी लाभ के साथ-साथ पास में उमट्रू नदी की होने से औद्योगिक केंद्र बन गया। दोनों तरफ पहाड़ियां, नदी की रुकी हुई धारा और कम दबाव वाले क्षेत्र जैसी विशेषताएं प्रदूषकों को बांधे रखती हैं। इसने भी यहां प्रदूषण बढ़ाया है। सीमेंट फैक्ट्रियां, कोक फैक्ट्रियां और डिस्टिलरी सभी छोटे-से क्षेत्र में स्थित हैं। पर्यावरण उल्लंघनों की वजह से यहां प्रदूषण बढ़ना तय है।”
बरनीहाट में आने वाले जिरांग निर्वाचन क्षेत्र के विधायक सोस्थनीस सोहटम नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) से हैं। यही दल मेघालय में सत्ता में है। बरनीहाट के लुम नोंग्थिम्मल इलाके में रहने वाले सोहटम ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि इलाके में प्रदूषण का संकट असली है। “मैं खुद अपने घर में, अपने बच्चों के स्कूल में, सड़कों पर, खेतों में हर जगह प्रदूषण देख रहा हूं। हमारी सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में कुछ बड़े कदम उठाए हैं।”
सीमावर्ती शहर होने से बरनीहाट के लिए चीजें जटिल हो जाती हैं, क्योंकि यह दो राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दायरे में आता है।
एमएसपीसीबी के अध्यक्ष आर. नैनामालाई ने शिलांग में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए प्रदूषण के लिए असम को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि मेघालय की तरफ 41 उद्योगों में से सिर्फ दो उद्योग लाल श्रेणी में आते हैं, जो कि सबसे अधिक प्रदूषण करने वाली श्रेणी है। लेकिन असम की तरफ 39 उद्योगों में से 20 लाल श्रेणी में हैं, जिनसे प्रदूषण ज्यादा होता है और इससे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। एमएसपीसीबी प्रमुख ने यह भी कहा कि असम में, साल की शुरुआत में 26 जनवरी को एक्यूआई रीडिंग 341 (बहुत खराब) थी, जैसा कि केंद्रीय राज्य वन सेवा अकादमी में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन पर दर्ज किया गया था। लेकिन मेघालय की तरफ, औद्योगिक पार्क ईपीआईपी, 15वें माइल, 17वें माइल और खासी किलिंग में स्थित चार निगरानी स्टेशनों पर वायु गुणवत्ता का स्तर ‘संतोषजनक’ दर्ज किया गया।
मोंगाबे इंडिया ने उनका पक्ष जानने के लिए नैनामालाई से संपर्क किया, लेकिन खबर के छपने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

मेघालय प्रदूषण बोर्ड ने इस साल की शुरुआत में ईपीआईपी में औद्योगिक इकाइयों का औचक निरीक्षण किया और प्रदूषण मानदंडों का व्यापक उल्लंघन पाया। इसमें प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का संचालन नहीं करना, काम नहीं करने वाले प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों और पाइपलाइन उत्सर्जन डेटा को ट्रांसमिट नहीं करने के कारण चिमनियों से भारी उत्सर्जन शामिल है। इसके बाद, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने छह कारखानों को बंद कर दिया और दो पर जुर्माना लगाया।
एमएसपीसीबी ने वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-नीरी), कोलकाता को बरनीहाट के लिए उत्सर्जन सूची और स्रोत को अलग-अलग करने से जुड़ा करने का काम सौंपा है। इससे प्रदूषण के स्रोतों की पहचान और मात्रा तय होगी। हालांकि आखिरी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है, लेकिन मसौदा कहता है कि पीएम10 प्रदूषकों (5676.82 मीट्रिक टन) को बढ़ाने में सड़क की धूल का सबसे बड़ा हाथ है। वहीं उद्योगों के चलते पीएम2.5 (1575.21 मीट्रिक टन) सबसे ज्यादा बढ़ता है। परिवहन (टेलपाइप उत्सर्जन) ने भी सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के रूप में क्षेत्र में प्रदूषण में भारी योगदान दिया है।
इस बीच, असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अरूप कुमार मिश्रा ने बरनीहाट में प्रदूषण की स्थिति के बारे में मोंगाबे इंडिया से कहा, “हमारे (असम) क्षेत्र के 39 उद्योगों में से कम से कम 10 ने बार-बार चेतावनी के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण उपकरण नहीं लगाए हैं। हमने हाल ही में उद्योगपतियों के साथ बैठक की और उनसे कहा कि अगली बार हमें उनकी फैक्ट्रियां बंद करनी होंगी।”
मिश्रा ने बताया कि बरनीहाट में प्रदूषण से निपटने के लिए दोनों राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संयुक्त समिति बनाएंगे। “यह समिति बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के काम करेगी और इसका लक्ष्य बरनीहाट में प्रदूषण को कम करना होगा।” मेघालय के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर गणेश चंद्र धाल ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि बरनीहाट की खराब वायु गुणवत्ता के पीछे वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी बड़ी वजह है।
बरनीहाट के वायु प्रदूषण पर अध्ययन कर रहे धल ने कहा, “बरनीहाट ट्रांजिट प्वाइंट के रूप में काम करता है, क्योंकि एनएच-40 यहां से गुजरता है। इस क्षेत्र से भारी वाणिज्यिक वाहन लगातार गुजरते रहते हैं और इनमें से कई वाहन बहुत पुराने हैं और मॉडल उत्सर्जन नियंत्रण की कमी है। सड़कें कच्ची होने से धूल वाला प्रदूषण बढ़ता है।”
मिश्रा ने यह भी कहा कि औद्योगिक और वाहन प्रदूषण के अलावा, मेघालय में पहाड़ियों की कटाई की भी प्रदूषण बढ़ाने में मुख्य भूमिका है।

प्रदूषण का खेती और पशुओं पर दुष्प्रभाव
बरनीहाट में गुलजार हुसैन अपना सामान एक टेम्पो में चढा रहे हैं और जाने की तैयारी कर रह हैं। यहां खेती के लिए 15 बीघा ज़मीन बटाई पर लेने वाले हुसैन ने कहा कि वे असम के मोरीगांव जिले में अपने पैतृक गांव डोकन खैती वापस जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं यहां इसलिए आया, क्योंकि असम में बाढ़ के कारण मेरी जमीन चली गई थी। लेकिन यहां, प्रदूषण ने मेरी सारी फ़सलें खराब कर दीं। मुझे तीस हजार रुपए उधार लेने पड़े। मुझे उम्मीद नहीं है कि यहां स्थिति सुधरेगी और इसलिए मैं अपने गांव वापस जा रहा हूं।”
असम के नौगांव जिले के जुरिया उपखंड के बारालीमारी गांव से तीन साल पहले आए मोहम्मद नजमुल हक की भी यही कहानी है। लेकिन गुलजार के विपरीत, वह यहीं रहना चाहते हैं।
ढाई बीघा जमीन पर फूलगोभी उगाने वाले हक ने बताया कि आस-पास के कारखानों से निकलने वाले प्रदूषक फसलों में समा जाते हैं और उन्हें खत्म कर देते हैं। उन्होंने कहा, “जब हम अपनी सब्जियां बाजार ले गए, तो किसी ने उन्हें नहीं खरीदा। प्रदूषण की वजह से उनका रंग काला हो गया था। इसलिए, गुवाहाटी के व्यापारियों ने कहा कि अगर लोग इसे खाएंगे तो बीमार हो जाएंगे। हम उन्हें भी दोष नहीं दे सकते। दरअसल, मेरा परिवार उन सब्ज़ियों को खा नहीं सकता था और हमें अपनी सब्ज़ियां कहीं और से खरीदनी पड़ती थीं। सब्जियों से लेकर सुपारी तक हर फसल प्रभावित हो रही है।”
प्रदूषण का असर सिर्फ पौधों पर ही नहीं बल्कि जानवरों पर भी पड़ा है। हुसैन कहते हैं, “मेरे पास छह बकरियां हैं, लेकिन उन्होंने घास खाना बंद कर दिया है। अगर वे घास खाती हैं, तो उन्हें दस्त लगती है।”
एक अन्य किसान, बीरेंद्र नाथ तीन दशक से भी ज्यादा पहले त्रिपुरा के धर्मनगर से खेती करने के लिए बरनीहाट चले आए थे। तब यह औद्योगिक केंद्र नहीं बना था।
नाथ ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि बरनीहाट में प्रदूषण तो है, लेकिन पिछले सात से नौ महीनों में इसकी गंभीरता और बढ़ गई है। उन्होंने दो कारखानों, एक डिस्टिलरी और एक बीयर निर्माण संयंत्र को मुख्य दोषी बताया।

बढ़ता स्वास्थ्य जोखिम
बरनीहाट में नॉन्गकिल्लाह कबीले के प्रतिनिधि या पारंपरिक कबीले के प्रमुख लिंगदोह रैड का पद संभालने वाले फ्रांगसिंगख सिंग्कली ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि बरनीहाट के स्थानीय लोग कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और वे इसके लिए प्रदूषण को जिम्मेदार मानते हैं।
उन्होंने कहा, “यहां कई लोग सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। इसके अलावा, फैक्ट्रियां औद्योगिक कचरे को बरनीहाट (असम की तरफ इसे दिगारू के नाम से जाना जाता है) में उमट्रू नदी में डाल रही हैं, जिससे पानी दूषित हो रहा है, जो यहां के लोगों के लिए पीने के पानी का स्रोत था।”
पिछले पच्चीस सालों से बरनीहाट में शिक्षक केजे पीटर कहते हैं कि प्रदूषण से युवाओं के फेफड़े प्रभावित हो रहे हैं। “हमारे छात्रों ने सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत और त्वचा पर चकत्ते की शिकायत की है। यहां तक कि कारखानों से आने वाली गंध और तेज आवाज भी भयानक है। गंध और आवाज की वजह से छात्रों को सिर दर्द की शिकायत होती है। कक्षाएं लेना बहुत मुश्किल हो जाता है,” उन्होंने मोंगाबे इंडिया से कहा और सभी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया।
गुवाहाटी में बी. बरुआ कैंसर संस्थान के पूर्व निदेशक और जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अमल कोटोकी ने कहा कि औद्योगिक प्रदूषण से कैंसर हो सकता है। उन्होंने मोंगाबे इंडिया से कहा, “उद्योगों और ऑटोमोबाइल से निकलने वाले धूल के कणों में सीसा, कार्बन मोनोऑक्साइड, एथेलिन होता है और इनके लंबे समय तक संपर्क में रहने से त्वचा रोग, हृदय रोग और कैंसर हो सकता है।”

बरनीहाट में मेघालय की ओर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) है जो पूरे क्षेत्र की सेवा करता है। मोंगाबे इंडिया ने वहां के डॉक्टरों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया क्योंकि वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं थे। मोंगाबे इंडिया ने डॉक्टरों से बात करने की अनुमति के लिए मेघालय के स्वास्थ्य सचिव संपत कुमार से संपर्क किया है, लेकिन प्रकाशन के समय तक अनुमति नहीं मिली थी।
लेकिन प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्ज किया गया है। रॉयटर्स में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बरनीहाट में सांस नली में संक्रमण के मामलों की संख्या 2022 में 2,082 से बढ़कर 2024 में 3,681 हो गई है।
हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध कराई जाने वाली देखभाल अच्छी है, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी बढ़ती समस्या से निपटने के लिए सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं।
पीएचसी में काम करने वाले एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर मोंगाबे इंडिया से कहा, “फिलहाल हमारे पास छह बिस्तरों वाली सुविधा है – तीन प्रसूति और तीन सामान्य। अभी पीएचसी को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में अपग्रेड करने के लिए निर्माण का काम चल रहा है। जब यह सीएचसी बन जाएगा, तो बिस्तरों की संख्या बढ़कर 30 हो जाएगी। हम प्रसूति, बाल रोग, बुढ़ापे की बीमारियों, दुर्घटनाओं, चोटों आदि से जुड़े हर मामले को देखते हैं। अगर कोई मामला गंभीर होता है, तो हम उसे नोंगपोह में जिला मुख्यालय के सिविल अस्पताल में भेजते हैं।”
लिंगदोह रेड सिंगकली ने कहा कि पीएचसी की डिस्पेंसरी में दवाओं का पर्याप्त स्टॉक नहीं है और लोगों को निजी दुकानों से दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। साथ ही, पीएचसी में एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड आदि जैसी डायग्नोस्टिक सुविधाएं नहीं हैं और मरीज आम तौर पर असम की तरफ नज़दीकी नॉर्थ ईस्ट कैंसर अस्पताल और रिसर्च इंस्टीट्यूट में जाते हैं।
बरनीहाट में पॉली मेडिकल के मालिक एम. अहमद ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि कस्बे में करीब 10-12 निजी फार्मेसी हैं। “लोग मुख्य रूप से डायरिया, खांसी, बुखार, गैस, एसिडिटी आदि की दवाएं खरीदते हैं। हालांकि फेस मास्क निश्चित रूप से प्रदूषण से राहत देते हैं, लेकिन यहां के लोग आम तौर पर मास्क नहीं खरीदते हैं।”
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असम वाले बरनीहाट के हिस्से में एक सरकारी डिस्पेंसरी है और गुवाहाटी से नजदीक होने के कारण लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है।
एलिन सिंग्कली कहती हैं, “बरनीहाट में उद्योगों ने यहां के लोगों के जीवन को बेहतर नहीं किया है। वास्तव में, प्रदूषण के कारण यह खराब हो गया है। बहुत से स्थानीय लोग कारखानों में काम करने जाते हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ मामूली काम दिया जाता है। बरनीहाट में शिक्षित लोग अच्छे पदों पर आसीन हो सकते हैं, लेकिन उन्हें कभी वे अवसर नहीं दिए गए।”
जब उनसे पूछा गया कि अगर भविष्य में हालात और खराब हुए तो क्या वह इस जगह को छोड़ने के बारे में सोच रही हैं, तो उन्होंने कहा, “हम सभी लोग वहां जाने का जोखिम नहीं उठा सकते। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि सरकार इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कुछ करे। क्योंकि यह बरनीहाट वह नहीं है जिसे मैं अपने बच्चों को देना चाहती हूं।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 13 मई, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: बरनीहाट में एक घर। दोनों तरफ पहाड़ियां, नदी की बंद धाराएं और कम दबाव वाले क्षेत्र से यहां प्रदूषण बढ़ता है। सीमेंट और कोक कारखाने और डिस्टिलरी पर्यावरण उल्लंघन के साथ-साथ प्रदूषण के असर को बढ़ाते हैं।