- एक हालिया विश्लेषण के मुताबिक, थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में कई गुना अधिक पीएम 2.5 और सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं।
- मौजूदा आदेशों के बावजूद, सल्फर उत्सर्जन को कम करने के लिए तकनीक लगाने का काम धीमा है।
- ऊर्जा मंत्रालय ने उत्सर्जन अनुपालन की समय सीमा को तीसरी बार बढ़ाने की मांग की है।
कुछ समय पहले, उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की खबर दुनिया भर की सुर्खियों में थी। हवा इतनी जहरीली हो गई कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 1,500 से ऊपर चला गया। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह असामान्य स्थिति थी, यहां तक कि उस क्षेत्र के लिए भी, जो दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है। हालांकि इस मौसम में पराली (फसल अवशेषों) जलाने को प्रदूषण का एक बड़ा कारण माना जाता रहा है, लेकिन थर्मल पावर प्लांट एक ऐसा स्थायी प्रदूषण स्रोत है, जो पराली से कई गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार है।
पराली जलाने का समय, ठीक तभी आता है, जब तापमान में कमी आ रही होती है और हवाएं स्थिर होती हैं। इसके चलते सर्दियों में गंगा के मैदानों में बड़ी मात्रा में प्रदूषकों जमा हो जाते हैं। धुएं का यह गुबार ज्यादातर पीएम 2.5 कणों (बहुत महीन जहरीले प्रदूषक, जो ईंधन के दहन या बायोमास के जलने पर निकलते हैं) से बना होता है। लेकिन थर्मल पावर प्लांट से होने वाला प्रदूषण हमेशा बना रहता है। यह सालभर बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में 10 गुना ज्यादा पीएम 2.5 और 200 गुना ज्यादा सल्फर डाइऑक्साइड (एक अन्य हानिकारक प्रदूषक है) छोड़ते हैं। अकेले एनसीआर में, थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में 16 गुना ज्यादा सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ रहे हैं। रिपोर्ट बताती है, “कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव के बावजूद, इन पावर प्लांट पर सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है, जबकि पराली जलाने पर सख्ती कहीं अधिक है।”
थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम की जरूरत होती है, जो पीएम 2.5 के एक बड़े कारण सल्फर डाइऑक्साइड को फिल्टर करने का काम करता है। एफजीडी तकनीकों की कारगरता पर वैज्ञानिक सहमति और उन्हें लगाने के आदेशों के बावजूद सरकार का रवैया साफ नहीं है। सरकार की तरफ से एफजीडी को लागू करने के मामलों में अलग-अलग तरह की बाते सामने आ रही हैं।
19 नवंबर को ऊर्जा मंत्रालय ने थर्मल पावर प्लांट में एफजीडी सिस्टम लगाने की समय सीमा को बढ़ाने की मांग की। तो वहीं, नवंबर में ही सरकार के सबसे बड़े थिंक टैंक नीति आयोग ने सुझाव दिया कि थर्मल पावर प्लांट को एफजीडी लगाने की जरूरत नहीं है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में औद्योगिक प्रदूषण की कार्यक्रम प्रबंधक श्रेया वर्मा ने कहा, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि एफजीडी जरूरी है या नहीं, हितधारकों को इसकी समझ ही नहीं है। अगर एफजीडी की जरूरत पर ही सवाल उठाए जाएंगे, तो उद्योग भी इसे लेकर गंभीर नहीं होंगे और अनुपालन के मामले में ढिलाई बरतते रहेंगे।”
दिल्ली एनसीआर के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले पावर प्लांट्स के लिए एफजीडी लगाने की पिछली समय सीमा 31 दिसंबर, 2024 थी। लेकिन सीआरईए के विश्लेषण से पता चलता है कि, इस कैटेगरी में आने वाले चार पावर प्लांट्स में से केवल एक ने पूरी तरह से नियमों का पालन किया है, जबकि एक ने आंशिक रूप से इस पर काम किया।

सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि
भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 47% हिस्सा कोयला आधारित पावर प्लांट से आता है, लेकिन ये देश की 70% से अधिक बिजली की मांग को भी पूरा करते हैं। भले ही सरकार अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही हो, लेकिन कोयला अभी भी देश की अधिकांश बिजली और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक के रूप में, भारत सल्फर डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक भी है। 2022 में दुनिया के सल्फर डाइऑक्साइड का 16% हिस्सा भारत ने ही उत्सर्जित किया और इसी के साथ यह दुनिया में इस गैस का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन गया।
सीआरईए के उपग्रह चित्रों के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2019 से बढ़ता जा रहा है। जून 2022 और मई 2023 के बीच, थर्मल पावर प्लांट ने लगभग 4,327 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ा। अकेले दिल्ली-एनसीआर में, थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा 281 किलोटन रही। इसी समय में, पंजाब और हरियाणा में 8.9 मिलियन टन धान की पराली जलाने से 26.7 किलोटन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) और 17.8 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड निकला। विश्लेषण में कहा गया है कि थर्मल पावर प्लांट से उत्सर्जन पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन से “10 गुना और 240 गुना अधिक” है।
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सीआरईए के विश्लेषक और इस पेपर के मुख्य लेखक मनोज कुमार ने कहा, “समस्या सिर्फ केंद्र सरकार के पावर प्लांट्स तक सीमित नहीं है। निजी और राज्य द्वारा संचालित पावर प्लांट्स में भी एफजीडी लगाने का काम धीमा चल रहा है, जबकि इन प्लांट्स में प्रदूषण को कम करने की सबसे अधिक गुंजाइश है।” सल्फर डाइऑक्साइड की सबसे अधिक मात्रा मध्य और पूर्वी राज्यों में पाई गई, जहां बड़ी संख्या में थर्मल पावर प्लांट मौजूद है- महानदी बेसिन (छत्तीसगढ़ और ओडिशा को कवर करते हुए), बिश्वनाथपुर (ओडिशा) के आसपास और जी ओविंद बल्लभ पंत सागर (उत्तर प्रदेश)।
सीआरईए के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट में एफजीडी लगाने से सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 4,327 किलोटन से घटकर 1,547 किलोटन हो सकता है। रिपोर्ट बताती है, “इससे प्रदूषण में लगभग 64% की कमी आएगी। यह दर्शाता है कि एफजीडी तकनीक कितनी कारगर है और कोयला आधारित पावर प्लांट से होने वाले प्रदूषण को कम करने में कितनी मदद कर सकती है।”

नियमों के पालन में ढिलाई
एफजीडी तकनीकें सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करती हैं, इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण है और अधिकांश विशेषज्ञ इससे सहमत हैं। सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को हटाने से सेकेंडरी पार्टिकल्स का बनना रुक सकता है। अगर सल्फर डाइऑक्साइड हवा में मिल जाए, तो वह पीएम 2.5 बनाने वाले कणों में बदल सकता है।
2022 में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने पाया कि 67 कोयला पावर प्लांट्स में एफजीडी लगाने से 60 से 80 किलोमीटर के दायरे में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रदूषण 55% तक और सल्फेट एरोसोल की मात्रा लगभग 30% तक कम हो सकती है। प्रदूषण कम होने का ये प्रभाव, उत्सर्जन स्रोत से 100 किलोमीटर के दायरे में अपना असर दिखाएगा।
भारत ने दुनिया में एफजीडी जैसी तकनीकों का समर्थन किया है और बिना किसी नियंत्रण तकनीक के कोयला बिजली से होने वाले प्रदूषण को धीरे-धीरे कम करने पर अपनी सहमति जताई। लेकिन भारत में, एफजीडी लगाने में देरी हो रही है और नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि भारत के स्वच्छ वायु कार्यक्रमों के बजट का 1% से भी कम हिस्सा थर्मल पावर प्लांट और अन्य फैक्ट्रियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए खर्च किया जाता है।
भारत ने 2015 में थर्मल पावर प्लांट से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए, जिसमें सबसे पहले यह तय किया गया कि सभी थर्मल पावर प्लांट को दिसंबर 2017 तक एफजीडी लगाना होगा। बाद में, ऊर्जा मंत्रालय और पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के कहने पर, एफजीडी लगाने की इस समय सीमा को दो बार बदला गया और फिर इंस्टॉलेशन में आसानी के लिए अलग-अलग समय सीमाएं पेश की गईं।
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2022 में जारी एक नई अधिसूचना के अनुसार, दिल्ली एनसीआर या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले बिजली संयंत्रों को 31 दिसंबर, 2024 तक नियमों का पालन करना होगा। ये ए कैटेगरी के प्लांट हैं। कैटेगरी बी के प्लांट, जो “गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों” के 10 किलोमीटर के दायरे में हैं, इन्हें 31 दिसंबर, 2025 तक नियमों का पालन करना होगा। बाकी सभी पावर प्लांट को 31 दिसंबर 2026 तक की समय सीमा दी गई है। अगर इस समय सीमा को पार किया, तो पावर प्लांट को बिजली बनाने पर प्रति यूनिट 0.2 से 0.4 रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा।
एफजीडी स्थापित करने में तीन साल तक का समय लग सकता है। 600 थर्मल पावर प्लांट्स में से केवल 44 ने एफजीडी सिस्टम लगाए हैं, जबकि अन्य 233 यूनिट के लिए इंस्टॉलेशन के ठेके दिए गए हैं।
ऊर्जा मंत्रालय ने 19 नवंबर को एक अपने एक पत्र में, समय पर पूरा करने में आने वाली “प्रमुख बाधाओं” का हवाला देते हुए प्रत्येक कैटेगरी की समय सीमा को 36 महीने तक बढ़ाने का अनुरोध किया। मोंगाबे इंडिया द्वारा देखे गए पत्र में कहा गया है, “ये बाधाएं मुख्य रूप से सीमित घरेलू विनिर्माण क्षमता, सीमित विक्रेता आधार, आयात पर निर्भरता और निर्धारित समय सीमा को पूरा करने की मांग में अचानक वृद्धि की वजह से हैं।”
सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस में ऊर्जा विशेषज्ञ और विजिटिंग फेलो अश्विनी चिटनिस का कहना है कि सरकार जिस वजह से एफजीडी लगाने की समय सीमा बढ़ाना चाहती है, वो पिछले दस सालों से वही हैं। उन्होंने कहा, “एफजीडी कोई नई तकनीक नहीं है। दुनिया में इसे बनाने और बेचने वाली अच्छी खासी कंपनियां हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों और चीन में एफजीडी लगाना जरूरी है। जब हम सोलर पैनलों जैसे ऊर्जा क्षेत्र के दूसरे जरूरी उपकरण को आयात करते हैं, तो एफजीडी क्यों नहीं। ऐसा भी नहीं है कि एफजीडी लगाने की कोशिशें की जा रही हो, और किसी वजह से देरी हो रही हो। समय सीमा चूकने के लिए बार-बार ऐसे अस्पष्ट कारण देना सही नहीं है।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 5 दिसंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: दिल्ली की एक सड़क। 2022 में, भारत ने दुनिया के 16% सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया, जिससे यह इस गैस का दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन गया। तस्वीर-सैकत घोष, Pexels (CC0 1.0)