- एक अध्ययन में पाया गया है कि स्पीति में सोलर पार्क की सभी प्रस्तावित साइट हिम तेंदुओं के रहने के लिए उपयुक्त मानी जाने वाली जगहों पर हैं।
- अध्ययन में इन सभी जगहों पर निर्माण न करने की वकालत की गई है। उनका कहना है कि सोलर प्लांट को ऐसी जगहों पर लगाना जाना चाहिए जहां हिम तेंदुओं के पाए जाने की संभावना कम हो।
- शोधकर्ताओं के मुताबिक हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के नियमों में ढील देना स्थानीय लोगों को शामिल करने के विचार के खिलाफ होगा।
अक्टूबर में भारत ने 200 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता को पार कर लिया, जो देश के बिजली उत्पादन का 46.3% है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देश है। इस लिहाज से यह एक बड़ी कामयाबी है, जिसने देश को 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावाट बिजली पैदा करने के अपने लक्ष्य के करीब पहुंचा दिया है।
भारत की अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने में सौर ऊर्जा का बहुत बड़ा हाथ है। 2011 में बिजली उत्पादन महज 0.5 गीगावाट था, जो 2024 में बढ़कर 90 गीगावाट से भी अधिक हो गई। यह वृद्धि भारत के अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लगातार प्रयासों का परिणाम है। हालांकि इसके लिए सरकार को हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में ढील देनी पड़ी है।
यह एक अच्छी बात है कि भारत तेजी से गैर-नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन तथाकथित “स्वच्छ” और “हरित” भविष्य की ओर इस दौड़ में बहुत कुछ दांव पर भी लगा है। नवीकरणीय ऊर्जा कम कार्बन उत्सर्जन का दावा तो करती है मगर इसके लिए बहुत अधिक जमीन की जरूरत होती है और यह जरूरत हरित ऊर्जा को संरक्षण लक्ष्यों के साथ टकराव का एक बड़ा कारण बना देती है।
एक पीयर रिव्यूड जर्नल ‘बायोलॉजिकल कंजर्वेशन’ में छपे एक नए रिसर्च पेपर में हिमाचल प्रदेश के स्पीति में प्रस्तावित 880 मेगावाट के सोलर पार्क की केस स्टडी को लिया गया। नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (एनसीएफ) के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि प्रस्तावित सोलर प्रोजेक्ट के लिए किए जा रहे काम से क्षेत्र के हिम तेंदुओं के आवासों को नुकसान पहुंचेगा।” शोध के मुताबिक, हरित ऊर्जा बनाते समय हमें जैव विविधता को बचाने के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना होगा।

भारी लागत पर सोलर पावर
प्रस्तावित सोलर पार्क स्पीति के छह गांवों में 31 वर्ग किलोमीटर में बनाया जाएगा, जिसमें कई सबस्टेशन होंगे। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार की उस बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसकी घोषणा 2014 में की गई थी और इसके अंतर्गत पूरे देश में 25 सोलर पार्क और अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट बनाए जाने की बात कही गई। फिलहाल भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार के एक संयुक्त स्वामित्व में ‘सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड’ इस सोलर पावर पार्क को बनाने का काम कर रही है।
यह प्रोजेक्ट कई बार शुरू करने के प्रयासों के बावजूद अटकता रहा है। 2017 में वर्ल्ड बैंक ने इसे समर्थन दिया था, जिससे इसके शुरू होने की उम्मीदें बढ़ गई। पर बिजली को दूर तक पहुंचाने का खर्च अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है जिसकी वजह से यह प्रोजेक्ट अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।
दूसरी ओर, ऊपरी स्पीति क्षेत्र उन 20 क्षेत्रों में से एक है जिन्हें ग्लोबल स्नो लेपर्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम (जीएसएलईपी) ने 2017 की बिश्केक घोषणा के अनुसार संरक्षण के लिए चुना है। यह घोषणा 12 देशों द्वारा हिम तेंदुओं और उनके आवासों को बचाने का एक वादा है। जीएसएलईपी हिम तेंदुओं के निवास स्थान वाले देशों का एक गठबंधन है।
स्पीति 2009 में प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड के तहत पहचाने गए पहले क्षेत्रों में से भी एक है। जब स्पीति में काम कर रहे हिम तेंदुए के शोधकर्ताओं को प्रस्तावित मेगा सोलर पार्क के बारे में पता चला, तो वे इस बड़े शिकारी और उसके आवास पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों को समझने के लिए आगे आए। एनसीएफ के हाई एल्टीट्यूड प्रोग्राम में प्रोग्राम मैनेजर और अध्ययन के लेखकों में से एक मुनीब खानयारी ने कहा, “हमने अपने शोध में साफ तौर पर बताया है कि यह प्रोजेक्ट पर हमला नहीं है। हम जानते हैं कि हम एक घनी आबादी वाले देश में रहते हैं जिसकी ऊर्जा की मांग बहुत अधिक है। साथ ही हमें ये भी समझते हैं कि जीवाश्म ईंधन से दूर जाना जरूरी है। मगर इस सबके बावजूद यह कहना भी नासमझी होगा कि ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट को कहीं भी बना देना पारिस्थितिक और सामाजिक रूप से सही होता है।”
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने हिमाचल प्रदेश और स्पीति में हिम तेंदुओं के कैमरा ट्रैप डेटा का इस्तेमाल किया। इसे 13 प्रस्तावित साइटों पर रखा गया, ताकि यह दिखाया जा सके कि ये सभी जगहें हिम तेंदुए के आवासों के भीतर आती हैं। खानयारी बताते हैं, ‘डेटा देखकर, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना ठीक नहीं है। हमें इसे कहीं और ले जाना होगा ताकि हिम तेंदुए के आवास का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।”
प्रजाति वितरण मॉडल के नतीजों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने हिम तेंदुए के आवास पर विकास गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए क्रमिक शमन उपाय नामक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि साइट पर किसी भी निर्माण से “बचा” जाना चाहिए।
“क्रमिक शमन उपाय क्या है? खानयारी समझाते हैं: “क्रमिक शमन उपाय, मोटे तौर पर विकास के लक्ष्यों को जैव विविधता के लक्ष्यों के साथ जोड़ने के लिए बनाए गए हैं। यह एक चरणबद्ध क्रमिक फ्रमवर्क है – बचाओ, कम करो, सुधारो, और क्षतिपूर्ति करो। दरअसल ये एक ऐसा तरीका है जो विकास करते समय जैव विविधता (यानी पेड़ पौधे और जानवरों) को भी ध्यान में रखता है। इस मामले में जब हमने अपना विश्लेषण किया तो पाया कि सभी 13 जगहें हिम तेंदुए के प्रमुख आवासों में हैं। इसलिए हम पहले ही चरण यानी ‘बचाओ’ पर रुक जाना चाहिए।”

“हम हार नहीं मानेंगे!”
हालांकि, शोधकर्ता स्थानीय समुदाय की विकास संबंधी जरूरतों को समझते हैं और मानते हैं कि हरित ऊर्जा परियोजनाओं में क्षेत्रीय नजरिए को भी शामिल करना चाहिए। खानयारी कहते हैं, “हम स्थानीय लोगों की सहमति के बिना स्पीति जैसे भूभाग पर किसी भी परियोजना को थोपने का विरोध करते हैं।” स्थानीय लोग अभी भी इस परियोजना के खिलाफ हैं।
किब्बर के 38 वर्षीय किसान, रिनचेन तोगबे को वह दिन याद है जब सौर ऊर्जा पार्क डेवलपर के प्रतिनिधि पंचायत के नेताओं से मिलने उनके गांव आए थे। तोगबे बताते हैं, “जब उन्होंने हमें बताया कि हमारी जमीन इस परियोजना के लिए चली जाएगी, तो हमने तुरंत इसे अस्वीकार कर दिया। पंचायत ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की कि हमें ऐसा नहीं होने देना चाहिए, यह हमारे लिए अच्छा नहीं है।”
उसके बाद भी उनके प्रतिनिधि कई बार उनसे मिलने आए। तोगबे कहते हैं, “इससे पहले, जब वे परियोजना को शुरू करने की कोशिश कर रहे थे, तो नौकरियों और आजीविका के मामले में बहुत सारे वादे किए गए थे।” वह सवाल उठाते हैं, “लेकिन कब तक? शायद चार-पांच साल। उसके बाद क्या होगा?”
तोगबे के अनुसार, जिन जगहों पर विचार किया जा रहा है, उनमें से अधिकांश चरागाह भूमि हैं। यहां उनके याक चरते हैं और वहां वे सर्दियों में खुद को गर्म रखने के लिए गोबर इकट्ठा करते हैं। किब्बर के लोगों के लिए यह बहुत बड़ा बलिदान होगा। वह कहते हैं, ‘अगर यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ता है, तो यह उस जमीन को बर्बाद कर देगा जहां हमारे जानवर चरते हैं। इसके साथ ही एक बारहमासी जल स्रोत भी नष्ट हो जाएगा!”
उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा, “भविष्य में, चाहे कुछ भी हो जाए, हम, किब्बर के लोग, अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। अब, भले ही हमें सरकार से लड़ना पड़े।”

क्या कोई और रास्ता है?
रिसर्च पेपर में कहा गया है कि हरित ऊर्जा के विकास का तरीका बदलना होगा। सौर ऊर्जा बनाने और हिम तेंदुओं को बचाने के लिए, सभी हितधारकों को शामिल करने और डेटा का इस्तेमाल करने वाले दृष्टिकोण को अपनाने की सिफारिश की गई है।
खानयारी का कहना है कि हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन को हटाना ही सबसे बड़ा मसला है। उन्होंने कहा, “ईआईए में ढील देना, स्थानीय लोगों को शामिल करने के दृष्टिकोण के खिलाफ है। यह सहयोगी योजना की भावना के खिलाफ है। यह वहां के लोगों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है।”
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में सौर ऊर्जा विकास के पारिस्थितिक परिणामों का अध्ययन कर रहे पोस्टडॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट मैथ्यू स्टर्चियो इस बात से सहमत हैं कि ईआईए जैसी उचित जांच-पड़ताल की प्रक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। स्टर्चियो बताते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि अक्षय ऊर्जा के साथ कोई अलग व्यवहार किया जाना चाहिए। यह कोई मुश्किल कदम नहीं है, लेकिन कुछ कारणों से, ऐसी प्रक्रियाओं को अक्षय ऊर्जा के विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। हमें प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश करने और अगले 30 सालों में कोई पारिस्थितिक आपदा लाने के बजाय, इन जगहों को इस तरह डिजाइन करने पर विचार करना चाहिए, जिससे ये पारिस्थितिकी तंत्र को फायदा पहुंचाएं।”
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2023 में, स्टर्चियो और एलन नैप ने इकोवोल्टाइक की अवधारणा पेश की। ये सोलर एनर्जी बनाने का एक ऐसा तरीका है जिसमें पर्यावरण को भी ध्यान में रखा जाता है। ये तरीका नवीकरणीय ऊर्जा के लिए एक बेहतर और टिकाऊ भविष्य बनाएगा। स्टर्चियो बताते हैं, ‘अभी ज्यादातर [सोलर] साइट सिर्फ ज्यादा से ज्यादा बिजली बनाने के लिए बनाई जाती हैं। इसके उलट, इकोवोल्टिक्स में सोलर प्लांट बनाते समय बिजली बनाने और पर्यावरण को फायदा पहुंचाने, दोनों को ही बराबर महत्व दिया जाता है।”
इकोवोल्टाइक्स हमें ये सोचने के लिए मजबूर करता है कि सौर विकास के फैसले कैसे किए जाते हैं। अगर हम किसी जगह के भूमि उपयोग को बदलने जा रहे हैं, तो हमें सक्रिय होने की जरूरत है। हमें पहले से ही सोच-विचार करना होगा कि हम भविष्य में उसे कैसा देखना चाहते हैं।
वह समझाते हुए कहते हैं, मुझे लगता है कि जिन चीजों को पहचानना आसान है, उनमें से एक यह है कि ये बड़े भूभाग हैं। इतनी बड़ी भूमि तक पहुंच को ऐसी चीज के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जिसे बेकार जाने दिया जाए। चूंकि अब साइट का प्रबंधन किया जा रहा है, हम इसे बदल सकते हैं और कुछ ऐसे तरीके अपना सकते हैं जिससे वो ज्यादा टिकाऊ बन सकें।”
स्टर्चियो स्वीकार करते हैं कि इकोवोल्टिक्स को लागू करने के लिए नीति स्तर पर बदलाव की जरूरत है। वह बताते हैं, “अभी, सौर ऊर्जा डेवलपर्स के लिए पारिस्थितिकी तंत्र सबसे बाद की चीज है; उनका ध्यान सिर्फ सोलर पैनल और ऊर्जा उत्पादन पर होता है। इसके लिए नीति स्तर पर कुछ ऐसे नियम बनाने की जरूरत है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को फायदा होना सुनिश्चित हो सके।”
खानयारी इस बात से सहमत हैं कि ग्रीन एनर्जी डेवलपमेंट के प्रति नजरिए में बदलाव के लिए सरकार की इच्छा जरूरी है। हालांकि वह उन राज्य वन अधिकारियों के रवैये को लेकर खासे उत्साहित हैं जिनसे उन्होंने बातचीत की है। खानयारी कहते हैं, “अधिकारी दूरदर्शी हैं और डेटा के आधार पर निर्णय लेने में रुचि रखते हैं। मुझे लगता है कि वो इस अध्ययन से मिली जानकारी, जैसे प्रजाति वितरण मॉडल यानी जानवरों के आवास, को अपने साथियों को समझाने में इस्तेमाल करेंगे।’ सबसे जरूरी बात ये है कि वह चाहते हैं कि निर्णय लेने वाले ग्रीन एनर्जी डेवलपमेंट के साथ-साथ वन्यजीव संरक्षण के बारे में भी सोचें और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता हो।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 9 दिसंबर 2024 प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: किब्बर के कैमरा ट्रैपिंग विशेषज्ञ तंजिन थुक्तान हिमाचल प्रदेश के ऊपरी किन्नौर क्षेत्र में कैमरा लगाते हुए। तस्वीर- मुनीब खानयारी