- तमिलनाडु के वलपराई में लॉयन-टेल्ड मेकाक सिकुड़ते जंगलों और बढ़ती मानव बस्तियों के चलते मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
- लॉयन-टेल्ड मेकाक मादा अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने व्यवहार में बदलाव कर रही हैं, जो प्रजाति की अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है।
- हालाकि, अपने व्यवहार की इस विशेषता के चलते उनके सामने दुर्घटनाओं, स्वास्थ्य समस्याओं और मानवीय संघर्ष का खतरा बढ रहा है।
- उनके दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए, विशेषज्ञों ने गलियारों को बहाल करने, कैनेपी कनेक्टिविटी को बेहतर करने और खराब हो चुके वन क्षेत्रों को फिर से हरा-भरा करने का सुझाव दिया है।
जीव विज्ञान में परोपकारिता यानी एक दूसरे की मदद या भलाई लंबे समय से बहस का एक बड़ा मुद्दा रहा है। आमतौर पर माना जाता है कि लगभग सभी तरह की मदद आपस में जुड़ी होती है। वन्यजीव विज्ञानी आशिनी कुमार धवले कहती हैं, “या तो आप अपने रिश्तेदारों की मदद करते हो, या फिर ऐसे दोस्त की जो भविष्य में आपकी मदद कर सकता है।” लेकिन उन्होंने तमिलनाडु के वालपराई, पुथुतोत्तम में लुप्तप्राय लॉयन-टेल्ड मेकाक (मकाका सिलनेस) के व्यवहार में कुछ ऐसा देखा, जो इस आम सोच से बिल्कुल अलग था। मादा लॉयन-टेल्ड मेकाक बिना किसी रिश्तेदारी या दोस्ती के, एक अंजान मेकाक के बच्चों की देखभाल कर रही थी, बिल्कुल वैसे ही जैसे उसकी मां करती है। इसे एलोपैरेंटिंग या एलोमदरिंग कहते हैं। धवले के लिए ये अध्ययन का सबसे यादगार अनुभव रहा।
धवले बताती हैं कि उन्होंने जुड़वां बच्चों वाली दो मादाओं और उनके बच्चे के एक साल का होने तक उनकी देखभाल के व्यवहार का अध्ययन किया। यह अध्ययन दो कारणों से खास था: पहला, प्राइमेट्स, खासकर लॉयन-टेल्ड मेकाक में जुड़वां बच्चों का होना एक दुर्लभ घटना है; दूसरा, बच्चे के जीवित बने रहने के लिए उनका पहला साल बहुत महत्वपूर्ण होता है और एक मां अक्सर तब तक उनकी देखभाल में बहुत मेहनत करती है जब तक वो इस मुश्किल पड़ाव को पार नहीं कर लेते हैं।
अब तक इस प्रजाति में एलोपैरेंटिंग नहीं देखी गई थी। धवले कहती हैं, “इनके बीच बच्चों के जन्म के बीच का समय तीन साल का होता है, इसलिए माताएं अपने बच्चों पर बहुत ध्यान देती हैं।” वह आगे बताती हैं, “यह उनके देखभाल के तरीके से साफ जाहिर होता है – वे बच्चो को लेकर घूमती हैं और एक साल तक उन्हें दूध पिलाती हैं। इस इस आकार के स्तनधारियों में यह आम बात नहीं है और यहां तक कि अन्य प्राइमेट्स में भी नहीं।”

सबका साथ
पुथुतोत्तम में जुड़वां बच्चों के मामले में, जब एक मां को अपने जुड़वां बच्चों के साथ एक खतरनाक रास्ता पार करना था, तो उसने एक बड़ी उम्र की मादा मेकाक को अपने एक बच्चे को ले जाने को कहा, दूसरे बच्चे को वह अपने साथ ले जा रही थी। बच्चे तब तक एक साल के हो चुके थे और शायद मां के लिए दोनों को एक साथ गोद में उठाकर ले जाना मुश्किल था। धवले बताती हैं कि ये सब एक बातचीत के बाद हुआ, जिसमें उस मेकाक ने बच्चों की मां को भरोसा दिलाने के लिए “दोस्ताना व्यवहार” किया – जैसे खुशी जाहिर करना और प्यार से छूना – जिससे मां को लगे कि बच्चा उसके साथ सुरक्षित रहेगा। आखिर में मां मान गई। जैसे ही चारों मेकाक ने मुश्किल रास्ता पार किया, मां ने झट से अपना बच्चा वापस ले लिया।
धवले का मानना है कि यह व्यवहार दिखाता है कि लॉयन-टेल्ड मेकाक कितने समझदार होते हैं और उनके दिमाग में क्या चल रहा होता है। वह कहती है, “इस मदद के कार्य से दूसरी मादा मेकाक को कुछ हासिल नहीं होने वाला था। बल्कि उसे बच्चे की मां के गुस्से या हमला किए जाने का भी जोखिम था। फिर भी वो आगे बढ़ी और मां को मनाया कि बच्चे को उसके साथ जाने दे। आखिर में, दोनों बच्चे सुरक्षित थे।”

शोधकर्ता दो दशकों से अधिक समय से वालपराई में लॉयन-टेल्ड मेकाक की आबादी और इंसानों के बनाए गए माहौल में वो खुद को कैसे ढालते हैं, इस पर अध्ययन कर रहे हैं। पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित इस क्षेत्र का जंगल छोट-छोटे टुकड़ों में बंटा हुआ है। रिसर्च के मुताबिक, पुथुथोट्टम वन खंड में अभी भी लगभग 190 लॉयन-टेल्ड मेकाक रहते हैं, जो पांच अलग-अलग समूहों में बंटे हुए हैं। जंगल का यह टुकड़ा एक वर्ग किलोमीटर से भी कम आकार का है और चाय के बागानों से घिरा हुआ है और साथ ही एक शहर से सटा हुआ भी है। मेकाक की बढ़ती आबादी को खाने की तलाश में जंगल से बाहर निकलना पड़ता है और इंसानों के बीच जाना पड़ता है। यहां वे मानवजनित खाद्य पदार्थों (खासकर बाहर फैले कचरे और घरों में घुसकर उनके खाने) पर निर्भर रहते हैं।
अध्ययन में मादा के व्यवहार में कई बदलाव देखे गए। उन्होंने अपने जुड़वा बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने कार्यों में बदलाव किया। उदाहरण के लिए, मादा मेकाक आराम करते और खाने की तलाश करते समय अपने बच्चों के करीब रहीं, बजाय मानव बस्तियों के करीब जाने के। जैसे-जैसे बच्चे बढ़ने लगे, मादा मैकाक जमीन पर ज्यादा समय बिताने लगीं और इस दौरान अन्य वयस्क और किशोर मेकाक के साथ भी खूब घुलना-मिलना शुरू कर दिया।
अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया कि लॉयन-टेल्ड मेकाक में जुड़वां बच्चों के पैदा होने की बढ़ती दर शायद इंसानों के कारण उनके खानपान की आदतों में बदलाव से जुड़ी हो सकती है। अच्छी बात यह है कि ये प्रजाति इन बदलावों के अनुसार खुद को ढाल रही है।

एक नई दुनिया के अनुकूल होना
धवले और उनकी टीम द्वारा किए गए पिछले अध्ययनों में, तेजी से बदलते परिदृश्य के प्रति प्रजातियों की अनुकूलन क्षमता स्पष्ट रूप से दिखाई दी। इन अध्ययनों में से एक में, धवले और उनकी टीम ने लॉयन-टेल्ड मेकाक में “सिनर्बनाइजेशन” की अवधारणा का पता लगाया, जहां शहरीकरण प्रक्रियाएं प्रजातियों के व्यवहार और पारिस्थितिक निर्भरताओं को प्रभावित करती हैं। इसका मतलब है कि या तो मेकाक शहरीकरण के कारण होने वाले बदलावों और बुनियादी ढांचों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं, या फिर अपने रहने की जगह में बदलाव के कारण अपने व्यवहार को बदल लेते हैं – या फिर दोनों ही करते हैं।
धवले कहते हैं, “उदाहरण के लिए, सड़कें शहरीकरण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लॉयन-टेल्ड मेकाक के लिए सिनबर्नाइजेशन की प्रक्रिया तब होती है जब वे जंगल के बीच से होकर जाने वाली सड़कों का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं। वे समझते हैं कि ये सड़कें न सिर्फ उन्हें वन के अलग-अलग हिस्सों में जाने में मदद करती हैं, बल्कि मनुष्यों और उनकी चीजों (जैसे खाने) आदि से मिलने का मौका भी देती हैं।”
पुथुतोत्तम जंगल के बीच से गुजरने वाली सड़क, मेकाक के आवास का एक जरूरी हिस्सा बन गई है, क्योंकि उन्हें अपने इलाके में जाने के लिए अक्सर इसका इस्तेमाल करना पड़ता है। सिनर्बनाइजेशन का मतलब था कि मेकाक सड़क पर और उसके आस-पास ज्यादा समय बिताने लगे हैं। धवले बताती हैं, “शुरू में तो वे इसका इस्तेमाल सिर्फ सड़क पार करने के लिए करते थे, लेकिन धीरे-धीरे वे वहां रुकने लगे, सड़क पर या उसके पास ज्यादा समय बिताने लगे।”
अब जब यह रास्ते उनके आवास का हिस्सा बन गए हैं, तो क्या मेकाक जानबूझकर इनका इस्तेमाल कर रहे हैं या उनसे बच रहे हैं? जब रिसर्च टीम ने इसकी जांच की, तो उन्होंने पाया कि उनमें से ज्यादातर इसे पसंद करते हैं और इसका सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं। धवले कहती हैं, ” हमने उनकी खान-पान की आदतों पर ध्यान दिया और पाया कि मेकाक ने अपने आहार में इंसानों द्वारा दिए गए खाने को भी शामिल करना शुरू कर दिया। इनमें इंसानों का छोड़ा हुआ खाना, सड़क के किनारे का कचरा या डस्टबिन में फेंका गया खाना शामिल है। उदाहरण के लिए, कुछ समूहों के लिए तो इंसानी भोजन उनके आहार का एक बड़ा हिस्सा बन गया – जैसे एक समूह तो तकरीबन 80% खाने के लिए मानव खाद्य पदार्थों पर निर्भर है।”

वन खंडों में पेड़ों की आपस में अच्छी कनेक्टिविटी नहीं है, जो उन जानवरों के लिए आदर्श नहीं है जो हमेशा पेड़ों पर रहते हैं। ये वन चाय के बागानों से भी घिरे हैं, जिनसे मेकाक बचते हैं क्योंकि वहां तेंदुए जैसे शिकारी छिपे हो सकते हैं। इन हालात को देखते हुए, मेकाक का एक पूरा समूह जंगल के टुकड़े को पूरी तरह से छोड़ने के लिए इन सड़कों का इस्तेमाल करने लगा। धवले समझाती हैं, “ये पलायन, जिसके बारे में हमने पेपर में चर्चा की है, समूह को पास की एक बस्ती में ले गया, जहां उनके पास भोजन तक आसान पहुंच थी। उन्हें वहां एक बबूल का पेड़ भी मिला। हालांकि बबूल उस जगह का मूल पेड़ नहीं है, लेकिन उसने मेकाक को पेड़ों पर रहने की कुछ जगह दी।”
सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री के प्रमुख वैज्ञानिक होन्नावल्ली एन. कुमारा 2000 के दशक की शुरुआत से इस प्रजाति का अध्ययन कर रहे हैं। वह कहते हैं कि मैकाक ने 90 के दशक के अंत में ही मानवजनित दबावों के अनुकूल होने के संकेत दिखाने शुरू कर दिए थे, जब उनके आवास में बदलाव शुरू हुआ था। 2001 में कुमारा द्वारा सह-लिखित एक रिसर्च पेपर इस प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हुए बताता है कि वर्षावन में कैनेपी का कम होना और वनस्पति में बदलाव आना, ऐसे बड़े कारक थे, जिन्होंने लगभग पूरी तरह से पेड़ों पर रहने वाले लॉयन-टेल्ड मेकाक को इस क्षेत्र में जमीन पर अधिक समय बिताने के लिए मजबूर किया। रिसर्च पेपर प्रजातियों के आहार, रेंजिंग पैटर्न और अन्य व्यवहारों में बड़े बदलावों की ओर भी इशारा करता है।
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उन्होंने कहा, “1995 में, लॉयन-टेल्ड मेकाक का केवल एक समूह था, जिनकी संख्या लगभग 33 थी। 2000-2002 तक, समूह दो हिस्सों में विभाजित हो गया। तीन साल बाद, लगभग तीन समूह हो गए और 2015 तक, 120 से अधिक की आबादी के साथ इनके चार समूह थे।” वह आगे बताते हैं, “जगह की कमी इतनी बढ गई कि उन्हें शहरों और अन्य मानव बस्तियों की ओर जाना पड़ा। इससे उनके खान-पान की आदतों पर काफी असर पड़ा।”
कम होते आवास और बढ़ती संख्या के कारण, मैकाक समूह अक्सर एक-दूसरे से टकराते हैं, उन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है और सीमित स्थान के अनुरूप ढलना पड़ता है।
जैसा आपका खान-पान, वैसे आप
हालांकि अनुकूलन क्षमता ने लॉयन-टेल्ड मेकाक की आबादी को बढ़ने में मदद की है, लेकिन इससे कई खतरे भी हैं। धवले सड़कों को पार करते समय या कचरे के डिब्बे और खुले जगहों में भोजन की तलाश करने की वजह से उनके अंगों, मसलन हाथ-पैर और पूंछ में लगने वाली चोटों पर प्रकाश डालती हैं। वह बताती हैं, “ये चोटें इसलिए लगती हैं क्योंकि मेकाक मानव-निर्मित वस्तुओं, जैसे धातु के किनारों वाले कचरे के डिब्बे, घरों की खिड़कियां, छतें, आदि से टकराते हैं।”
इससे उन्हें इंसानों के गुस्से, दुश्मनी या हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। कुमारा कहते हैं, “वन विभाग पर कुछ आबादी को दूसरी जगह पर ले जाने का दबाव है, लेकिन हम संघर्ष के विवरण को पूरी तरह समझे बिना, प्रबंधन रणनीतियों के साथ नहीं आ सकते हैं।” जितना अधिक वे इंसानी बस्तियों के पास रहेंगे, इंसानों से संघर्ष या दुश्मनी की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
धवले कहती हैं कि लगातार इंसानों का खाना खाने से उनकी सेहत पर भी असर पड़ सकता है, हालांकि शरीर की जांच किए बिना ये साबित करना मुश्किल है। इंसानों के खाने में कार्बोहाइड्रेट, वसा और शर्करा की मात्रा अधिक होती है, जिससे मेकाक को पेट जल्दी भर जाता है, जबकि उनके असली खाने (फल, मेवे, कीड़े, छिपकली) से ऐसा नहीं होता। वह कहती हैं, “हो सकता है कि मेकाक को जल्दी पेट भर जाए, लेकिन उनके पुराने तरीके नहीं बदलते। वो अब भी दिन का ज्यादातर समय खाने की तलाश में बिताते हैं, क्योंकि उन्हें हमेशा खाने की तलाश करने की आदत है – करीब 80% समय वो खाने की तलाश में बिताते हैं।”

2013 के एक अध्ययन में क्षेत्र के नौ वन खंडों में 91 लॉयन-टेल्ड मेकाक की आंतों में मौजूद परजीवियों की जांच की गई। अध्ययन में नौ गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परजीवी टैक्सोनॉमी की पहचान की गई, जिसमें 75.8% नमूनों में कम से कम एक मेकाक में परजीवी देखा गया। रिसर्च में पाया गया कि विशेष रूप से मानव गतिविधियों के पास वाले छोटे वन खंडों में, परजीवी विविधता और व्यापकता अधिक थी। यह दर्शाता है कि आवास विखंडन परजीवी संक्रमण को बढ़ा रहा है।
कुमारा का कहना है कि अधिकारियों को इस लुप्तप्राय प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए गलियारा कनेक्टिविटी पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और वन के उन हिस्सों को बहाल करना चाहिए। संभावित समाधानों पर वर्ष 2013 का एक अन्य अध्ययन सुझाव देता है कि वलपराई में लॉयन-टेल्ड मेकाक की तीन अलग-अलग आबादियों को जोड़ने के लिए, कम से कम 1.56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की आवश्यकता है, जिसमें मौसमी जलधारा और खेती वाले क्षेत्रों जैसे विभिन्न भूमि-उपयोग प्रकार शामिल हों।
कुमारा ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा, “कर्नाटक में भी, लॉयन-टेल्ड मेकाक की आबादी बंट रही है और बढ़ रही है। सरकार ने शरावती, शिमोगा में लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर को लॉयन-टेल्ड मेकाक अभयारण्य के रूप में नामित किया है, जो प्रजातियों को बढ़ने और विस्तार करने के लिए पर्याप्त जगह मुहैया कराता है। वालपराई को भी इसी तरह के समाधान पर विचार करना चाहिए।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 11 दिसंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: तमिलनाडु के वलपराई में एक मानव बस्ती में देखे गए कुछ लॉयन-टेल्ड मेकाक। मेकाक की अनुकूलनीय प्रकृति ने उन्हें मानवीय-परिवर्तित क्षेत्रों में भी जिंदा रहने में मदद की है। तस्वीर- होन्नावल्ली एन. कुमारा