- हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के लिए प्राकृतिक आपदा के जोखिम को कम करने के लिए DRR हब का उद्घाटन कुछ महीने पहले किया गया।
- इसका उद्देश्य समुदायों, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से सुरक्षित रखना है।
- इस वर्ष हब का एक प्रमुख फोकस क्षेत्र पूर्व चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) को लागू करना है।
“आपदाएं भौगोलिक सीमाओं पर नहीं रुकतीं। जो कुछ ऊपर की ओर (पर्वतीय क्षेत्रों में) होता है, उसका असर नीचे की ओर पड़ता है, और ठीक ऐसा ही इसकी उलट स्थिति में भी होता है। इसलिए हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में, जिसे कई देश साझा करते हैं, क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है,” ऐसा कहना है अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के महानिदेशक पेमा ग्यांत्शो का। वे काठमांडू में स्थित ICIMOD द्वारा स्थापित हिंदू कुश हिमालय डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (DRR) हब के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। इस हब का उद्देश्य हिमालयी पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती आपदाओं से निपटने के लिए समझ, जानकारी साझा करने और कार्रवाई को तेज करना है। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों में 3,500 किलोमीटर में फैला हुआ है।
हिंदू कुश हिमालय डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (DRR) हब का शुभारंभ 9-10 दिसंबर 2024 को काठमांडू में हुआ। इस कार्यक्रम में ICIMOD के क्षेत्रीय सदस्य देश और उनकी सरकारें, शिक्षाविद, क्षेत्रीय विशेषज्ञ, गैर-सरकारी संगठन, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां जैसे यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (UNDRR) और यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (UNESCAP) शामिल हुए।
यह हब, जिसका सचिवालय ICIMOD में स्थित है, का लक्ष्य पर्वतीय समुदायों, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बादल के फटने, बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियल झीलों के फटने (GLOFs), हिमस्खलन और सूखे जैसी आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि से सुरक्षा प्रदान करना है। हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्र के देशों में बीच कई ऐसे जोखिम और कमजोरियाँ हैं, जिन्हें जलवायु परिवर्तन और अन्य कारक और तीव्र बनाते हैं, और इसलिए इन देशों के बीच सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र, जो सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र सहित 10 प्रमुख नदियों का उद्गम क्षेत्र है, में अनुमानित 24.1 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। लेकिन यह क्षेत्र अत्यधिक गरीबी का भी सामना करता है — यहां 31% लोग अपने-अपने देशों की आधिकारिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करते हैं और खाद्य असुरक्षा से जूझते हैं। जलवायु सम्बंधित ये आपदाएं इन पहले से ही संवेदनशील पर्वतीय समुदायों को और हाशिये पर धकेल रही हैं।
“हिंदू कुश हिमालय, जिसे दुनिया का थर्ड पोल भी कहा जाता है, विश्व की एक चौथाई जनसंख्या को इसके पारिस्थितिक तंत्र से जुड़ी सेवाएं प्रदान करता है। लेकिन यह क्षेत्र आपदाओं का एक वैश्विक हॉटस्पॉट बन चुका है,” ICIMOD के महानिदेशक पेमा ग्यांत्शो ने दोहराया। इस क्षेत्र की खड़ी स्थलाकृति, नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र, तेजी से होते सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, बढ़ता जनसंख्या घनत्व और बदलती जलवायु—इन सभी ने आपदाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है। वैज्ञानिक पहले ही हिंदू कुश हिमालय को, जो पृथ्वी के सबसे ज़्यादा जैवविविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, ‘संकट की कगार पर पहुँच चुका जैवमंडल’ घोषित कर चुके हैं।
डायना पैट्रिशिया मोस्क्वेरा काये, UNDRR के क्षेत्रीय कार्यालय (एशिया-प्रशांत) की उप प्रमुख, ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की ‘अर्ली वार्निंग्स फॉर ऑल’ पहल का लक्ष्य सार्वभौमिक कवरेज सुनिश्चित करना है, लेकिन इस महत्वाकांक्षी और जरूरी वैश्विक अभियान के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देशों को एक साथ आना होगा। यही कारण है कि हम इस पहल का पूरा समर्थन करते हैं।” साल 2022 में शुरू की गई ‘अर्ली वार्निंग्स फॉर ऑल’ पहल का उद्देश्य 2027 के अंत तक पृथ्वी पर हर व्यक्ति को खतरनाक मौसम, जल या जलवायु घटनाओं से बचाने वाली प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से सुरक्षित करना है। यह हिंदू कुश हिमालय DRR हब का भी इस वर्ष का एक प्रमुख फोकस क्षेत्र है।

आपदाओं की प्रभावी चेतावनी
इस हब की योजना 2027 के अंत तक सभी लोगों की जान की हिफ़ाजत के लिए उन्हें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के ज़रिए खतरनाक मौसम, जल या जलवायु घटनाओं के बारे में आगाह करने की है। इसके लिए यह हब आपदाओं के जोखिम सम्बन्धी ज्ञान और उसके प्रबंधन, निगरानी, अवलोकन, विश्लेषण और पूर्वानुमान, चेतावनी प्रसारण और संचार, तथा तैयारियों और प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत करने पर काम करेगा।
अरुण भक्त श्रेष्ठ ICIMOD में वरिष्ठ जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ हैं और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन से नदियों के मार्ग में रूकावट से बने अस्थाई जलभराव से आई बाढ़, जिसे ‘लैंडस्लाइड डैम आउटबर्स्ट फ्लड’ (LDOF) कहा जाता है, की दो घटनाओं का जिक्र करते हुए बताते हैं कि कैसे समय पर जानकारी साझा करने से आपदाओं के दौरान जनहानि को रोका जा सकता है।
उन्होंने कहा, “वर्ष 2000 में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, चीन में यिगोंग में LDOF के दौरान जानकारी साझा न होने से जनहानि हुई। लेकिन 2004 में पारीचू LDOF के दौरान जानकारी साझा की गई और कोई जनहानि नहीं हुई, हालांकि नुकसान जरूर हुआ।” यिगोंग ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है, जबकि पारीचू नदी सतलुज की ऊपरी धारा में स्थित है।
यिगोंग LDOF के दौरान अचानक बढे तापमान के कारण भारी मात्रा में बर्फ पिघल गई, जिससे 9 अप्रैल 2000 को यिगोंग नदी के झामुलोंगबा वॉटरशेड के ऊपरी भाग में एक बड़ा भूस्खलन हुआ। केवल आठ मिनट में लगभग 30 करोड़ घन मीटर मलबा, मिट्टी और बर्फ नदी की तलहटी में जमा हो गए, जिससे करीब 100 मीटर ऊंचा एक भूस्खलन बांध बन गया। यह बांध नदी के किनारे 1.5 किलोमीटर चौड़ा और नदी के ऊपर 2.6 किलोमीटर लंबा था।
इस बांध से नदी का प्रवाह रुकने के कारण इसके पीछे एक झील बन गई। इस पानी को निकालने के लिए एक बड़ा ट्रेंच खोदने का प्रयास किया गया, लेकिन यह प्रयास असफल रहा।
दो महीने बाद, 10 जून 2000 को यह बांध टूट गया, जिससे नीचे की ओर एक भीषण बाढ़ आई। अचानक आई इस बाढ़ (फ्लैश फ्लड) में भारत के अरुणाचल प्रदेश में 30 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग लापता हो गए। यह जानकारी ICIMOD द्वारा प्रकाशित ‘रिसोर्स मैन्युअल ऑन फ्लैश फ्लड रिस्क मैनेजमेंट’ में दर्ज है।

समुदाय-आधारित चेतावनी प्रणाली
हब के शुभारम्भ में भाग लेने वालों ने अपने-अपने देशों की पूर्व चेतावनी प्रणालियों से जुड़ी परियोजनाएं और अनुभव साझा किए, जिन्हें अन्य देशों में भी दोहराया जा सकता है।
अंजु झा, जो मंडवी नामक एक गैर-लाभकारी संस्था की अध्यक्ष हैं, ने बताया कि उनका संगठन नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर पूर्व चेतावनी प्रणालियों के विकास पर काम करता है, जो अक्सर फ्लैश फ्लड से प्रभावित होता है। मंडवी ने नेपाल के रौताहाट जिले में लाल बकैया नदी बेसिन में एक समुदाय-आधारित बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली (CBFEWS) विकसित की है।
लाल बकैया नदी बेसिन में स्थापित पूर्व चेतावनी प्रणाली के तहत, सिंगौला के निजगढ़ में एक हाईवे पुल पर जल निगरानी प्रणाली और निजगढ़ में एक वर्षा मापक यंत्र (रेन गेज) लगाया गया है। इन दोनों उपकरणों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर, नदी के निचले हिस्से में बसे समुदायों को बाढ़ की पूर्व चेतावनी दी जाती है। इन समुदायों को कई कार्यशालाओं के माध्यम से आपात स्थितियों में सतर्क रहने और समय रहते प्रभावी कदम उठा सकने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।
“इस पहल की सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में लाल बकैया नदी के किनारे स्थित 13 बाढ़-प्रभावित नगर पालिकाओं ने इस पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक साझा कोष (बास्केट फंड) स्थापित करने के लिए समझौता किया है,” अंजु झा ने कहा। “हर नगर पालिका इस बास्केट फंड में योगदान देगी, जिससे इस पूर्व चेतावनी प्रणाली का संचालन और रखरखाव लगातार जारी रह सके।”
भारत के दो सबसे अधिक बाढ़-प्रवण राज्यों, बिहार (रतू नदी) और असम (जियाधल और रंगानदी नदियों), में भी इसी तरह की समुदाय-आधारित बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणालियों (CBFEWS) की परियोजनाएं लागू की गई हैं।
“जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठन और गैर-सरकारी संस्थाएं केवल ऐसे पूर्व चेतावनी प्रणाली के मॉडल दिखा सकते हैं जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं। लेकिन इन परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए सरकार को आगे आना होगा,” गुवाहाटी स्थित गैर-लाभकारी संस्था अरण्यक के जल, जलवायु एवं आपदा प्रभाग के प्रमुख पार्थ ज्योति दास ने मोंगाबे इंडिया को बताया।

पूर्व चेतावनी के लिए टेक्नोलॉजी
चीन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग (AI/ML) का उपयोग आपदाओं, विशेष रूप से भूस्खलनों के पूर्वानुमान के लिए किया जा रहा है। यह जानकारी चीन की चेंगदू यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की स्टेट लेबोरेटरी फॉर जियोहैज़र्ड प्रिवेंशन एंड जियोएनवायरनमेंट प्रोटेक्शन (SKLGP) की निदेशक शुआनमेई फैन ने दी।
“चीन में लगभग 3,00,000 भू-संबंधी आपदाएं (geo-hazards) हैं, जिनमें से अधिकांश देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में होती हैं। ये आपदाएं हर साल 700 से 1,000 लोगों की जान लेती हैं,” शुआनमेई फैन ने कहा। “हमने इन भू-आपदाओं की मैपिंग की है और हम वास्तविक समय में डेटा एकत्र करने के लिए कम लागत वाले सेंसर का उपयोग करते हैं। ये सेंसर हमें प्रतिदिन तीन अरब डेटा सेट भेजते हैं, जिनका मानवीय स्तर पर विश्लेषण करना संभव नहीं है, इसलिए हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करते हैं। इसी प्रक्रिया के माध्यम से हमने अब तक 400 भूस्खलनों का पूर्वानुमान लगाया है और कई जानें बचाई हैं,” उन्होंने समझाया।
ये सेंसर LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) तकनीक का हिस्सा हैं, जिसका उपयोग चीन उन स्थानों की पहचान के लिए करता है जहां भूस्खलन होने की संभावना है। LiDAR तकनीक वस्तुओं का पता लगाने के लिए तेज गति से लेज़र पल्स छोड़ती है (जैसे कि रेडार में रेडियो तरंगों का उपयोग होता है), और सतह से टकराकर वापस लौटने में लगे समय को सेंसर मापते हैं।
यह प्रक्रिया लाखों बार दोहराई जाती है, जिससे सर्वेक्षण किए गए क्षेत्र का एक जटिल थ्री डी या त्रि-आयामी (3D) नक्शा तैयार होता है। यह नक्शा दिखाता है कि पर्वतीय परिदृश्य और उसकी ढलानों में कोई बदलाव हुआ है या नहीं। चूंकि इस प्रक्रिया में अरबों डेटा सेट बनते हैं, इसलिए AI एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह डेटा विश्लेषण की प्रक्रियाओं को ऑटोमेट करके क्लाउड कंप्यूटिंग की क्षमता को बढ़ाता है और समग्र दक्षता में सुधार करता है।
फैन ने समझाया कि यदि किसी पहाड़ी ढलान पर कोई हलचल होती है, तो उसे LiDAR और AI क्लाउड कंप्यूटिंग से तैयार किए गए 3D नक्शों के जरिए पहचाना जा सकता है। उनके अनुसार, एक प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली का सबसे अच्छा मॉडल AI, फील्ड मॉनिटरिंग और रिमोट सेंसिंग पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा, “AI-आधारित चेतावनी प्रणाली के लिए डेटा की गुणवत्ता बेहद अहम होती है। और यही आज भी एक बड़ी चुनौती है।”
संजय श्रीवास्तव, UNESCAP में डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के प्रमुख, ने प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान (impact-based forecasting) के लिए डेटा-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में पूर्व चेतावनी प्रणालियों के विकास में AI/ML की भूमिका को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, “देश पहले से ही पूर्व चेतावनी और जोखिम संचार को डिजिटल रूप दे रहे हैं। क्लाउड कंप्यूटिंग AI के लिए एक वरदान है, और AI/ML की भूमिका संभावित आपदा का शीघ्र पता लगाने में बेहद अहम है।”
देशों के बीच डेटा का आदान-प्रदान
नेशनल सेंटर फॉर हाइड्रोलॉजी एंड मेटियोलॉजी के वरिष्ठ मौसम विज्ञान/जलविज्ञान अधिकारी जामयांग ज़ांगपो ने हिमालयी देश भूटान की चिंताओं को साझा किया। उन्होंने कहा, “सीमा पार डेटा साझा करना अत्यंत आवश्यक है, और एक ऊपरी प्रवाह क्षेत्र वाले देश (upper riparian country) के रूप में भूटान भारत के नामित स्टेशनों को नदी जल स्तर और जल संबंधी जानकारी रोजाना कई बार, और कभी-कभी प्रति घंटे के आधार पर साझा करता है।”
हालांकि, ज़ांगपो ने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तर में चीन के साथ भूटान की कोई डेटा साझाकरण व्यवस्था नहीं है, जो आपदा पूर्व चेतावनी के लिए एक बड़ी चुनौती है।
ज़ांगपो ने यह भी बताया कि भूटान में कुल 567 ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से 17 को संभावित रूप से खतरनाक माना गया है। भूटान सरकार उन क्षेत्रों में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर काम कर रही है, जहां ऐसी संभावित खतरनाक झीलें स्थित हैं। उदाहरण के तौर पर, पुनात्सांगछू बेसिन में इन 17 में से 11 ग्लेशियल झीलें हैं। यहां स्थापित पूर्व चेतावनी प्रणाली में 10 स्वचालित जल स्तर मापन केंद्र (automatic water level stations), 18 सायरन टावर, और वांगदुए में स्थित एक बेसिन नियंत्रण कक्ष शामिल हैं।
निचले प्रवाह क्षेत्र वाला देश बांग्लादेश भी सीमा पार डेटा साझा करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। जीवन कुमार सरकार, अतिरिक्त मुख्य अभियंता, बांग्लादेश जल विकास बोर्ड ने हब के लॉन्च कार्यक्रम में कहा, “गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी बेसिन का 93 प्रतिशत हिस्सा बांग्लादेश के बाहर स्थित है, इसलिए हमारे लिए सीमापार डेटा साझा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।”
उन्होंने आगे बताया, “मानसून के दौरान बांग्लादेश का 20–25 प्रतिशत हिस्सा नदी की बाढ़ से प्रभावित होता है। देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्से फ्लैश फ्लड के लिए संवेदनशील हैं। भारत और चीन के साथ इन-सिचु डेटा साझा करने के लिए संचार तंत्र पहले से मौजूद हैं। नेपाल के साथ यह प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 14 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: हिंदू कुश हिमालय डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (DRR) हब का उद्देश्य इन पर्वत श्रृंखलाओं में बढ़ती आपदाओं की संख्या से निपटने के लिए समझ, जानकारी साझा करने और कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है। यह क्षेत्र, जिसे पृथ्वी का ‘थर्ड पोल’ कहा जाता है, बार-बार बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन और सूखे जैसी आपदाओं का सामना करता है। तस्वीर: निधि जामवाल द्वारा।