- उन्नाव जिले के 27 किसानों ने 2009 में अपनी 26 हेक्टेयर बंजर जमीन एक सहकारी संस्था को लीज पर देकर इस पर वन तैयार करने का करार किया।
- अब ये किसान और सहकारी संस्था इन पेड़ों के माध्यम से कार्बन क्रेडिट इकट्ठा करके उससे पैसा कमा रहे हैं।
- एक कार्बन क्रेडिट का मतलब है कि आपने एक टन कार्बन डाइऑक्साइड या दूसरी ग्रीन हाउस गैसों को पर्यावरण में जाने से रोका है।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में बीघापुर ब्लॉक के किसान अपनी बंजर और ऊबड़-खाबड़ जमीन को लेकर चिंतित थे। इस जमीन पर सिंचाई के लिए पानी की अनुपलब्धता के चलते यहां खेती करना लगभग नामुमकिन था।
इस समस्या से निपटने और इस जमीन को किसी हद तक उपयोग में लाने के लिए ब्लॉक के झगरपुर, बारा और बीरपुर के 27 किसानों ने वर्ष 2009-10 में इफको की सहयोगी संस्था इंडियन फार्म फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFDC) को अपनी 26 हेक्टेयर जमीन लीज पर देकर इस पर वन तैयार करने का करार किया। लीज की शर्त थी कि जमीन किसानों की होगी और पेड़ संस्था तैयार करेगी, जब पेड़ बड़े हो जाएंगे तो इन्हें बेचकर मुनाफे को IFFDC और किसानों के बीच आधा-आधा बांट लिया जायेगा।
इस बंजर और परती जमीन पर यूकेलिप्टस,सागौन,शीशम और नीम जैसे लगभग 9522 पेड़ लगाकर एक वन क्षेत्र तैयार किया गया। लेकिन इन पेड़ों के बड़े होने के बाद इन किसानों ने इनको ना काटने का फैसला लिया है।
कारण? जिन पेड़ों को काटकर ये किसान पैसा कमाने वाले थे, अब ये उनसे निकलने वाली ऑक्सीजन से कार्बन क्रेडिट को बेच कर कमा रहे हैं।

अरुण कुमार सिंह बारा गाँव के एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हैं। अरुण कुमार के पास लगभग 10 हेक्टेयर जमीन है, जिसमे से पांच हेक्टेयर जमीन उबड़ खाबड़ और सिंचाई साधनों से दूर थी। ऐसे में उन्होंने सात बीघा (एक हेक्टेयर में करीब चार बीघा होता है) जमीन को बारा झगरपुर कृषि वानिकी सहकारी समिति लिमिटेड को पेड़ लगाने के लिए लीज पर दे दिया। जिस पर संस्था ने यूकेलिप्टस, शीशम, सागौन और चिलवल के 988 पेड़ लगाए।
अरुण कुमार बताते हैं कि खेत घर से काफी दूर होने के कारण देखरेख मुश्किल हो रही थी। जमीन भी ऐसी अनुपजाऊ थी कि गेहूं, धान उड़द मूंग जैसी फसलें नही हो पाती थी। जलस्तर इतना नीचे था कि सात बीघा जमीन की सिंचाई करने में लगभग 50 घण्टे का समय लगता था। इस स्थिति में अरुण किसी तरह इस जमीन पर जौ, चना और राई जैसी फसलें ही पैदा कर पा रहे थे।
“जितना फसल से मिलता नहीं था उससे ज्यादा लागत में लग जाता था। थक हार कर हमने जमीन बारा झगरपुर कृषि वानिकी सहकारी समिति को दे दी। संस्था ने हमारी जमीन पर पेड़ लगाकर अपने संसाधनों से तैयार करने का करार किया। जब पेड़ बड़े हो जाएंगे तो इनको संस्था के एक लिखित प्रस्ताव पर बेच दिया जाएगा। पेड़ बेचने से जो भी पैसा मिलेगा वह संस्था और हमारा आधा-आधा होगा,” अरुण ने बताया।
कार्बन क्रेडिट व्यवस्था के बारे में बताते हुए अरुण मोंगाबे हिंदी से कहते हैं, “संस्था के अध्यक्ष अंकित सिंह परिहार ने एक साल पहले बताया कि आप अपने पेड़ो को बिना काटे पेड़ों का कार्बन क्रेडिट बेच कर भी पैसा कमा सकते हैं। यह हमारे लिए एक लाभकारी विकल्प था। क्योंकि पेड़ो से पर्यावरण संरक्षण के साथ आमदनी होने की बात थी।”
अरूण को इस कार्बन क्रेडिट योजना के तहत इस साल अप्रैल में 1,46,000 रुपए का भुगतान हुआ और उन्हें 2038 तक हर तीसरे साल संस्था के ऑडिट के आधार पर पेड़ों के कार्बन क्रेडिट के सापेक्ष में पैसा दिया जाएगा।
अरुण कुमार की तरह ही बीरपुर निवासी 40 वर्षीय दिलीप कुमार भी अपनी अनुपजाऊ जमीन को लेकर परेशान रहते थे। वहां खेती करना एक चुनौती थी। “सिंचाई करने के लिए 200 रुपए घंटे से किराए पर पानी मिलता था। कई सौ फीट पाइप लाइन डालकर खेत तक पानी पहुँचता था। एक हेक्टेयर सिंचाई करने में 12 से 14 घंटे लगते थे। फसल तैयार करने में उत्पादन से ज्यादा लागत आ जाती थी,” दिलीप ने बताया।

खेती के इस संघर्ष से परेशान दिलीप ने वर्ष 2008-09 में अपनी दो हेक्टेयर जमीन बारा झगरपुर वानिकी समिति को दे दी। जिस पर समिति ने 750 सागौन के पेड़ लगा दिए। पेड़ तैयार हो रहे थे कि समिति के द्वारा कार्बन क्रेडिट योजना से जुड़ने के बारे में बताते हुए कहा कि इससे आपको आमदनी भी होगी और पेड़ भी नही कटेंगे।
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“समिति ने कंपनी के साथ समझौता किया। हम लोगों से जमीन की खतौनी, आधार कार्ड, बैंक पासबुक और फ़ोटो ली गयी। इसके बाद समिति के साथ मिलकर कंपनी ने पेड़ों का ऑडिट किया,” उन्होंने आगे बताया। ऑडिट किस आधार पर और क्या हुआ यह दिलीप कुमार नहीं जानते, लेकिन वह कहते हैं, “समिति ने हमें हमारे पेडों के कार्बन क्रेडिट का 1,10,000 रुपए दिया है। वास्तव में बिना किसी लागत और मेहनत के यह धनराशि बहुत बड़ी है। जबकि पेड़ अभी भी हमारे पास हैं।”
कार्बन क्रेडिट क्या है?
कार्बन क्रेडिट एक तरह का सर्टिफिकेट है जो कार्बन उत्सर्जन के लिए दिया जाता है। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लिए इसे तैयार किया गया है। आप जितना कार्बन उत्सर्जन करेंगे, उतना ही ज्यादा आपको ऐसी चीजों पर खर्च करना होगा जो उत्सर्जन घटाएं।
कार्बन क्रेडिट एक तरह से आपके कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करते हैं। एक कार्बन क्रेडिट का मतलब है कि आपने एक टन कार्बन डाइऑक्साइड या दूसरी ग्रीन हाउस गैसों को पर्यावरण में जाने से रोका है।
इंडियन फर्म फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कॉपरेटिव लिमिटेड (IFFDC) के एरिया मैनेजर अरुण यादव ने मोंगबे हिंदी से बात करते हुए बताया, “हमारी संस्था देश की सबसे बड़ी कॉपरेटिव संस्था है। IFFDC लंबे समय से वृक्षारोपण का कार्य करती आ रही है। वर्ष 2008 में Emergent Venture of India (EVI) ने हमारी संस्था को अमेरिका की Verra (जो कार्बन क्रेडिट के लिए काम करती है) के साथ जोड़ने में सहयोग किया। Verra ने हमारे पेड़ों को 2038 तक के लिए अनुबंधित किया है। इसी के तहत पिछले माह किसानों को कार्बन क्रेडिट का पैसा वितरित किया गया।”

कंपनी किसानों के बंजर/परती जमीन पर लगे पेड़ों की उम्र और लंबाई/मोटाई के आधार पर कार्बन उत्सर्जन तय करती है और इसी माप के आधार पर किसानों को क्रेडिट का पैसा दिया जाता है।
अंकित सिंह परिहार उन्नाव जिले की बारा झगरपुर वानिकी सहकारी संस्था के अध्यक्ष हैं। अंकित कहते हैं, “हमारी समिति किसानों के लिए कई तरह से फायदेमंद है। किसानों की परती/बंजर जमीन पर पेड़ लगाने में सहयोग करती है। किसान को सिर्फ अपनी जमीन (लीज़ पर) देनी होती है उसके बाद पेड़ों को लगाकर उन्हें तैयार करना हमारी समिति अपने संसाधनों से करती है। हमारी समिति ने किसानों के पेड़ों को कटने से रोकने के साथ आमदनी बढ़ाने के लिए कार्बन क्रेडिट योजना से जोड़ा है। जिसमें किसानों को वर्ष 2038 तक नियमित आमदनी होती रहेगी। पेड़ पर्यावरण संरक्षण के साथ आमदनी का माध्यम भी बनेंगे।”
बैनर तस्वीरः कृषि वानिकी समिति क्षेत्र में अपने पेड़ो को दिखाते हुए किसान। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे