- नई रिसर्च में गोवा के काणकोण तालुका के तटीय गांवों को जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी संवेदनशीलता के आधार पर रैंक किया गया है।
- पर्यटन केंद्र अगोंडा और पलोलेम को सामाजिक और भौतिक दोनों स्तरों पर सबसे अधिक संवेदनशील गांवों में स्थान मिला है।
- यह शोध योजना और नीति-निर्माण में सहायक हो सकता है और गोवा के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जा सकता है।
गोवा के दक्षिणी सिरे पर स्थित तालुका काणकोण में 1990 के दशक के बाद से पर्यटन में जबरदस्त उछाल देखा गया है, जिसका एक प्रमुख कारण उत्तरी गोवा में भीड़भाड़ बढ़ना है। पहले अपेक्षाकृत शांत और कम प्रभावित रहे इस तालुका में पलोलेम, अगोंडा, पटनेम और गलगिबागा जैसे विश्वप्रसिद्ध व साफ बीच हैं। साथ ही यह कई कम प्रसिद्ध लेकिन शांत और सुन्दर तटों का भी घर है।
हाल के दशकों में इस क्षेत्र में तेजी से और बिना किसी रोक-टोक के विकास हुआ है, समुद्र तटों के किनारे कई अवैध और अनधिकृत निर्माण हो चुके हैं। साथ ही, लोगों ने समुद्र तटों तक पहुंचने वाली सड़कों पर भीड़भाड़ की शिकायतें भी की हैं। यह स्थिति ऐसे समय में उत्पन्न हुई है जब जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का तापमान (SST) और समुद्र स्तर (SLR) दोनों में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय इलाकों में चक्रवात, बाढ़ और जलभराव का खतरा बढ़ गया है।
काणकोण के पांच तटीय गांवों की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता का आकलन करने के लिए एक नए अध्ययन में संशोधित कोस्टल वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (CVI) फ्रेमवर्क का उपयोग किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि अगोंडा और नगर केम-चौड़ी गांव जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। ये दोनों गांव प्रमुख पर्यटन स्थल हैं और क्रमशः अगोंडा, पलोलेम और पटनेम जैसे प्रसिद्ध समुद्र तटों का घर हैं।
यह अध्ययन काणकोण के पांच गांवों, कोला, अगोंडा, नागेर्चेम-चौड़ी, पोइनगुइणिम और लोलियम, पर केंद्रित है। इनमें से पहले चार गांवों में हाल के वर्षों में पर्यटन का तेज विस्तार देखा गया है।
जहां 2014 के एक अध्ययन ने काणकोण को उसकी चट्टानी तटरेखा, पठारी संरचना (मेसा), कम जनसंख्या घनत्व और कम पर्यटकों की संख्या के कारण ‘कम संवेदनशील’ (low vulnerability) श्रेणी में रखा था, वहीं वर्तमान अध्ययन ने विशेष रूप से दो गांवों — अगोंडा और नगर केम-चौड़ी — में बढ़ी हुई संवेदनशीलता (heightened vulnerability) को उजागर किया है।
इस बढ़ी हुई संवेदनशीलता का मुख्य कारण इन क्षेत्रों की समतल और नीची भूमि, रेतीले समुद्र तटों की अधिकता, और पिछले दो दशकों में पर्यटन गतिविधियों में वृद्धि के चलते भूमि उपयोग में आया बदलाव है।

कैसे हुई जलवायु संवेदनशीलता की गणना
“रिसर्च पेपर्स की समीक्षा के बाद, हमने पाया कि मौजूदा मॉडल गांव के स्तर पर तटीय संवेदनशीलता का आकलन करने के लिए अपर्याप्त हैं,” अध्ययन के प्रमुख लेखक ऋत्विक निगम ने बताया। “दुनियाभर में कई कोस्टल वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (CVI) मॉडल मौजूद हैं (सबसे पहला 1992 में विकसित हुआ था), लेकिन ये आमतौर पर केवल 4–8 वेरिएबल का उपयोग करते हैं और सामाजिक कारकों को या तो नजरअंदाज करते हैं या बहुत कम शामिल करते हैं। इस अध्ययन में 21 भौतिक और सामाजिक-आर्थिक वेरिएबल शामिल किए गए हैं, जो गांव के स्तर पर तटीय संवेदनशीलता का समग्र मूल्यांकन कर सकते हैं। इन वेरिएबल का चयन बहुत बारीकी से किया गया है और इनमें से कई को पहले कभी किसी CVI मूल्यांकन में उपयोग नहीं किया गया था।”
रिसर्च टीम में प्रमुख लेखक निगम, गोवा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ अर्थ, ओशन एंड एटमॉस्फेरिक साइंसेज़ (SEAOS) के महेंद्र कोठा, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च, गोवा के अल्वारिन्हो जे. लुइस और अन्य अंतरराष्ट्रीय सहयोगी शामिल थे।
अध्ययन में 10 भौतिक वेरिएबल और 11 सामाजिक-आर्थिक वेरिएबल शामिल किए गए। प्रत्येक वेरिएबल को 0 से 1 के बीच एक स्कोर दिया गया, जिसमें अधिक स्कोर का अर्थ अधिक संवेदनशीलता है। इन स्कोरों को एक फार्मूला के अनुसार उपयोग करके भौतिक संवेदनशीलता सूचकांक (Physical Vulnerability Index – PVI) और सामाजिक संवेदनशीलता सूचकांक (Social Vulnerability Index – SVI) की गणना की गई। इसके बाद, PVI और SVI को जोड़कर कुल तटीय संवेदनशीलता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index – CVI) प्राप्त किया गया।
यह प्रक्रिया हर गांव के लिए अलग-अलग अपनाई गई।

निगम बताते हैं कि भारत में पहली बार तटीय संवेदनशीलता सूचकांक (CVI) की गणना के लिए रेतीले समुद्र तट का प्रतिशत, टिब्बों की घनता, समुद्र तट के पीछे की वनस्पति, और संभावित तूफानी ज्वार (storm surge) की ऊंचाई जैसे कारकों को शामिल किया गया है। यह अध्ययन CVI में सामाजिक वेरिएबल को व्यापक रूप से शामिल करने वाले पहले अध्ययनों में से एक है।
“सामाजिक वेरिएबल को शामिल करना आपदा जोखिम में कमी (disaster risk reduction) की प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए आवश्यक है,” निगम कहते हैं। “जनसांख्यिकी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सामाजिक नेटवर्क जैसे कारक कमजोर समूहों की पहचान करने और खास गांवों के लिए हस्तक्षेप को अनुकूलित करने में मदद करते हैं।” “यह दृष्टिकोण समुदाय के लचीलेपन (resilience) को बढ़ावा देता है, जिससे लोगों की जानें बचती हैं और आर्थिक नुकसान कम होता है,” उन्होंने कहा।
सामाजिक और भौतिक कारक
नागेर केम-चौड़ी की संवेदनशीलता में योगदान देने वाले प्रमुख कारणों में रेत के क्षतिग्रस्त टिब्बों (sand dunes) की घनता और वनस्पति की कमी शामिल है। यह गांव एक प्रशासनिक मुख्यालय भी है, जहां जनसंख्या घनत्व, हाई टाइड लाइन से 500 मीटर के भीतर बस्तियों की अधिकता और पर्यटकों की भारी संख्या देखी जाती है। गांव का अव्यवस्थित विकास और निचली कृषि भूमि के बीच स्थित होना इसे तट से दूर तक भी जलभराव और बाढ़ के प्रति संवेदनशील बनाता है।
अगोंदा, जो दूसरा सबसे संवेदनशील गांव पाया गया, में भी इसी तरह के लक्षण देखे गए।
“काणकोण, जो पहले सुनसान हुआ करता था, अब खासकर चौड़ी और अगोंदा में बहुत भीड़भाड़ वाला इलाका बन गया है,” तल्लुला डी’सिल्वा, गोवा की एक संरक्षण वास्तुकार और Plan for Goa नामक समूह की सह-संस्थापक, जो इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थीं, कहती हैं। “बीच पर बनी झोपड़ियां और हट्स ने वहां की प्राकृतिक वनस्पति को खत्म कर दिया है, पहाड़ियों की ढलानों को अस्थिर बना दिया है, और गांवों को समुद्र से बचाने वाले प्राकृतिक अवरोध को लगभग नष्ट कर दिया है।”
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पॉइनगिनिम, जिसे तीसरा सबसे अधिक संवेदनशील गांव बताया गया है, में राजबाग और गालगिबागा बीच स्थित हैं। हालांकि यहां पर्यटकों की संख्या अगोंदा और चौड़ी की तुलना में कम है, लेकिन अध्ययन में कहा गया है कि एक नए गोल्फ कोर्स के निर्माण ने समुद्र तट की प्राकृतिक बनावट (morphology) को बदल दिया है।
कोला गांव, जहां तटीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा चट्टानी (cliffed) है, अध्ययन क्षेत्र में दूसरे सबसे कम संवेदनशील गांव के रूप में सामने आया है। हालांकि, यहां हाल ही में कई नए हॉलिडे रिसॉर्ट समुद्र के किनारे बने हैं, जिससे संभावित खतरे बढ़ सकते हैं। लोलीयेम, काणकोण तालुका का सबसे कम संवेदनशील गांव पाया गया है।
“जो बाहरी लोग पहले पालेलेम और अगोंदा में बसे थे, अब उन्हें ये जगहें भीड़भाड़ वाली और अधिक आबादी वाली लगने लगी हैं और वे अब शांत स्थानों जैसे पोइनगिनिम की ओर पलायन कर रहे हैं,” डीसिल्वा ने बताया। उन्होंने आशंका जताई कि ये शांत इलाके भी भविष्य में पालेलेम और अगोंदा की तरह भीड़भाड़ वाले बन सकते हैं।
“कोला की बात करें तो, चूंकि यह ऊँचाई पर स्थित है, यह तभी सुरक्षित रहेगा जब इसकी प्राकृतिक स्थिति बरकरार रहे,” डीसिल्वा कहती हैं। “भूमि उपयोग में बदलाव और निर्माण गतिविधियां पहाड़ी ढलानों को अस्थिर कर देती हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते अब एक ही दिन में अत्यधिक वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगी, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है। पूरे काणकोण तट पर पहाड़ियां सीधे समुद्र तक ढलान बनाती हैं, जो इसे एक अलग तरह की संवेदनशीलता की ओर ले जाती हैं।”

नीतिगत सिफारिशें
“यह अध्ययन लोगों को जागरूक करने वाला है, लेकिन इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाना उतना ही जरूरी है,” डीसिल्वा कहती हैं। “इसके निष्कर्षों को गांववालों, मछुआरा समुदायों और निचले इलाकों में रहने वाले किसानों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए, उसके बाद पंचायतों और विभिन्न सरकारी विभागों को शामिल किया जाना चाहिए। तभी हम नीति बदलाव की दिशा में कदम उठा सकते हैं,” उन्होंने कहा।
नीति बदलावों में ज़मीन के उपयोग में परिवर्तन पर रोक लगाना, नो-डेवलपमेंट ज़ोन बनाना, निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देना, आपदा की स्थिति के लिए जमीन का आवंटन करना, तटीय क्षेत्रों और संबंधित नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना और पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाओं को शामिल किया जाना चाहिए, डीसिल्वा ने कहा।
“इन क्षेत्रों की योजना बनाते समय कई कारकों को ध्यान में रखना ज़रूरी है,” अध्ययन के लेखक निगम कहते हैं। निगम ने गोवा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ अर्थ, ओशन और एटमॉस्फेरिक साइंसेज़ (SEOAS) से पीएच.डी. पूरी की है और अब एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। “इनमें क्षेत्र के प्राकृतिक आवास की रक्षा करना, विकास को तटीय कानूनों और भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप सुनिश्चित करना, मज़बूत सड़क और जल संरचना तैयार करना ताकि निकासी संभव हो सके, अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम से बचना, और क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से पहले उसकी वहन क्षमता (carrying capacity) का आकलन करना शामिल है,” उन्होंने बताया।
अध्ययन के अनुसार, भविष्य के शोध में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारकों को अधिक समग्र रूप में शामिल किया जा सकता है। डीसिल्वा कहती हैं, “हमें संवेदनशील समुदायों की पहचान करनी होगी और वैकल्पिक आजीविका के विकल्प तलाशने होंगे। समुदायों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और उसके लिए उपयुक्त शमन (mitigation) उपाय क्या हो सकते हैं, यह तय करना ज़रूरी है,” उन्होंने कहा।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 15 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: काबो डी रामा, काणकोण तालुका के उन क्षेत्रों की तरह है जहां पर्यटन में बढ़ोतरी देखी गई है। यह इलाका आमतौर पर ऊँचाई पर स्थित है, जहां पहाड़ियां सीधे समुद्र में उतरती हैं। ऐसी ढलानें उन आधारभूत संरचनाओं से अस्थिर हो सकती हैं, जिन्होंने पहले से मौजूद वनस्पति को हटा दिया है। तस्वीर: दिव्या किलिकर/मोंगाबे।