- शोधकर्ताओं ने बिना डंक वाली मधुमक्खियों की पहचान की है जिनकी परागण (पोलीनेशन) क्षमता ज्यादा है। यह पॉलीहाउस खेती की पैदावार में सुधार के लिए टिकाऊ समाधान है।
- भारत में पोलीनेटर की संख्या और खेती लायक जमीन में तेजी से कमी आ रही है। इस अध्ययन में खाद्य सुरक्षा और छोटे स्तर पर खेती में मदद के लिए बिना डंक वाली मधुमक्खियों की क्षमता के बारे में बताया गया है।
- बिना डंक वाली मधुमक्खियां औषधीय शहद और प्रोपोलिस (रालयुक्त पदार्थ जो मधुमक्खियों द्वारा कलियों से एकत्र किया जाता है) भी देती हैं। शोधकर्ताओं ने किसानों को इनका फायदा दिलाने के लिए अभिनव ब्रूड बॉक्स भी विकसित किए हैं।
नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बिना डंक वाली मधुमक्खी की ऐसी प्रजातियों की पहचान की है जो कृषि उपज बढ़ाने के लिए कुशलतापूर्वक परागण कर सकती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस खोज से देश में पॉलीहाउस खेती बहुत ज्यादा तरक्की कर सकती है।
अध्ययन में पाया गया कि जब बिना डंक वाली मधुमक्खी की प्रजातियां (टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस स्मिथ और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा कॉकरेल) ग्रीनहाउस वाली स्थितियों में लाई गईं, तो उन्होंने लगभग 10 फसलों को पोलीनेट किया। इनमें मिर्च, ककड़ी, तरबूज और कद्दू जैसी किस्में शामिल थीं।
नागालैंड विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान संकाय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक और प्रधान अन्वेषक (एआईसीआरपी हनीबीज और पोलिनेटर्स) अविनाश चौहान इस जानकारी की पुष्टि करते हैं। “बिना डंक वाली मधुमक्खियों 50 से 100 मीटर तक ही आती-जाती हैं। वे 40 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान झेल सकती हैं। इसके विपरीत खुले वातावरण की अहम पोलीनेटर रॉक मधुमक्खी एपिस डोरसाटा की रेंज बहुत बड़ी होती है और उसे पॉलीहाउस के भीतर नहीं रखा जा सकता,” वे बताते हैं।
बिना डंक वाली मधुमक्खियों को सीमित स्थानों में परागण के लिए आदर्श बनाने वाले दूसरे गुणों में फूलों के प्रति उनका प्रेम और बिना डंक वाला स्वभाव है। “ये मधुमक्खियां तब तक उसी फूल पर लौटती हैं जब तक कि वे पूरी तरह से पराग का दोहन नहीं कर लेतीं। फूलों के प्रति उनका यही प्रेम उन्हें बेहतरीन परागणकर्ता बनाता है। वे डंक भी नहीं मारतीं, जिससे किसानों को परेशानी नहीं होती,” चौहान कहते हैं।

पॉलीहाउस में पोलीनेशन
भारत में इन्वर्टब्रैट (बिना मेरुदंड वाली) पोलीनेटर प्रजातियों में तेजी से गिरावट देखी जा रही है और हम इसे महसूस करने लगे हैं।
परागणकों की तादाद में कमी से देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। 2023 के एक शोधपत्र में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुल फसल उपज में अकेले मधुमक्खियों का योगदान लगभग 20% है। अध्ययन में कहा गया है कि सभी फसलों की आधी से ज्यादा पैदावार कीट परागणकों पर निर्भर करती है, जबकि 34% तिलहन और लगभग 15% फल उत्पादन काफी हद तक उन पर निर्भर करता है। यह खास तौर पर उल्लेखनीय है, क्योंकि 2023-2024 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि कृषि क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 18.2% हिस्सा है और इससे लगभग 42.3% आबादी की आजीविका चलती है।
दूसरी तरफ, आंकड़े यह भी बताते हैं कि शहरीकरण सहित दूसरी वजहों से कृषि भूमि में कमी आई है। यहीं पर ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस खेती की अहमियत बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें काफी कम जगह में ज्यादा फसलें पैदा करने की क्षमता होती है।
डंक रहित मधुमक्खियां या एपिडे परिवार में मेलिपोनिनी को पहले उष्णकटिबंधीय मधुमक्खियां माना जाता था, लेकिन कुछ प्रजातियां समशीतोष्ण और उप-समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। भारत में पहचानी गई बिना डंक वाली मधुमक्खियों की 27 प्रजातियों में से नागालैंड में छह प्रजातियां पाई जाती हैं।

इस अध्ययन के कुछ अहम नतीजों में बिना डंक वाली मधुमक्खियों द्वारा परागण किए जाने पर मिर्च की किस्मों में उपज में उल्लेखनीय बढ़ोतरी शामिल है। विश्वविद्यालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “राजा मिर्च में गैर-परागण वाली फसलों (21.00%) की तुलना में फल लगने का प्रतिशत 29.46% तक बढ़ गया। इसी तरह, मिर्च (कैप्सिकम एनुअम) में गैर-परागण वाली फसलों की तुलना में फल लगने और स्वस्थ फलों में क्रमशः 7.42% और 7.92% की बढ़ोतरी हुई। इसी तरह, बिना डंक वाली मधुमक्खियों द्वारा परागण किए जाने पर बीज का वजन (व्यवहार्यता या अंकुरण का संकेतक) 60.74% बढ़ गया।”
हालांकि, अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एटीआरईई) की सीनियर फेलो सौबद्रा देवी का मानना है कि स्वस्थ फसलों के लिए परागण को अलग-अलग परागणकर्ताओं द्वारा किया जाना चाहिए। “पॉलीहाउस वातावरण में बीमारियां भी हो सकती हैं; यह फसल परागण के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। यह मोनोकल्चर की तरह है,” वह कहती हैं।
वह शहर (बेंगलुरु) में बहुत ज्यादा बारिश और भीषण सूखे के दौरान परागण का आकलन करने के लिए किए गए एक अध्ययन की ओर इशारा करती हैं। शोधकर्ताओं ने सूखे के दौरान शायद कम मादा फूलों और परागणकर्ता समुदाय में बदलाव के कारण उपज में स्पष्ट गिरावट देखी। यह खास तौर पर अहम परागणकर्ता ट्राइगोना प्रजाति या बिना डंक वाली मधुमक्खी की आबादी में तेज गिरावट थी। गर्मियों के दौरान पॉलीहाउस की गर्मी में डंक रहित मधुमक्खी प्रजातियों के जीवित रहने के बारे में अपनी आशंकाओं पर जोर देते हुए डेवी कहती हैं, “हमने पाया कि बिना डंक वाली मधुमक्खियां बहुत ज्यादा गर्मी में जीवित नहीं रह पाती हैं; सूखे के दौरान परागण मुख्य रूप से ए. डोर्सटा द्वारा किया जाता है।”

फायदों पर चर्चा
नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी बिना डंक वाली मधुमक्खियों की शहद उत्पादन की क्षमता को सामने रखते हैं, जो मधुमक्खी पालक किसानों के लिए अतिरिक्त फायदा है। चौहान कहते हैं कि बिना डंक वाली मधुमक्खियां अक्सर औषधीय पौधों सहित छोटे वनस्पतियों का परागण करती हैं और उनका शहद अपने जीवाणुरोधी और एंटीफंगल गुणों के लिए जाना जाता है। “प्रोपोलिस भी औषधीय प्रकृति का है और बाजार में इसकी अच्छी मांग है।”
शोधकर्ताओं ने डंक रहित मधुमक्खी पालन के लिए खास ब्रूड बॉक्स विकसित किए हैं, ताकि किसान इन छोटी मधुमक्खियों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें। “बिना डंक वाली मधुमक्खियां अपने छत्तों को मजबूत प्रोपोलिस का इस्तेमाल करके बहुत अच्छी तरह से सील कर देती हैं। उनके छत्तों की संरचना ऐसी होती है कि ब्रूड, शहद और पराग सभी एक ही चेंबर में एक साथ जमा होते हैं। इस शहद को इकट्ठा करने वाले किसान अक्सर इन चेंबर को तोड़ने के लिए हथौड़ों और छेनी का उपयोग करते हैं, जिससे ब्रूड और पराग शहद के साथ मिल जाते हैं, जिससे किण्वन होता है,” वे बताते हैं। उन्होंने कहा कि समाधान के रूप में ब्रूड बॉक्स को शहद के लिए अलग चेंबर के साथ डिजाइन किया गया है और मधुमक्खियों के व्यवहार में बदलाव किया गया है, ताकि मधुमक्खियां ब्रूड और पराग से अलग शहद जमा करें।
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शोध के अगले चरणों के बारे में चौहान कहते हैं कि अब उन फसलों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जिनकी दुनिया भर में ज्यादा मांग है। साथ ही, बिना डंक वाली मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित शहद को निकालने के लिए बेहतर तकनीक विकसित करने पर भी ध्यान दिया जाएगा। वे कहते हैं, “शहद के औषधीय गुणों का उचित परीक्षण और मेलिसोपेलिनोलोजिकल अध्ययनों (वनस्पति और भौगोलिक उत्पत्ति तय करने के लिए पराग विश्लेषण) के जरिए भी विश्लेषण किया जाएगा।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 6 जून, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के दौरान टमाटर के फूल का परागण करती हुई बिना डंक वाली मधुमक्खी। तस्वीर नागालैंड विश्वविद्यालय के सौजन्य से।