- दिल्ली के महरौली में प्राचीन जलाशय हौज़-ए-शम्सी को प्राकृतिक समाधानों की मदद से फिर से साफ-सुथरा बनाया गया है।
- शहरी झीलों की अपनी बारीक जलवायु होती हैं। अगर उन्हें शहरों का तापमान कम करने की योजनाओं में शामिल कर लिया जाए, तो वे अर्बन हीट आइलैंड के दुष्प्रभाव से निपटने में मदद कर सकते हैं।
- जल शक्ति मंत्रालय की जल निकायों की 2021 में पहली गिनती के अनुसार, दिल्ली में 893 तालाब या झील हैं। इनमें से करीब एक-चौथाई पर अतिक्रमण है।
- नीले (तालाब, झील) और हरे (पेड़, बगीचे) बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने से शहर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
दिल्ली के इतिहास को समेटे हुए महरौली इलाके में स्थित हौज़-ए-शम्सी तालाब को 1230 ईस्वी में बनाया गया था। इसका निर्माण दिल्ली सल्तनत के तीसरे सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने कराया था, जिसे गुलाम वंश के नाम से जाना जाता है।
हर साल यह प्राचीन तालाब पास के जहाज महल में फूल वालों की सैर उत्सव का मूक गवाह बनता है, जिसे गंगा-जमुनी तहजीब (हिंदू-मुस्लिम संस्कृति का समन्वय) के तौर पर ताजे फूलों से सजाया जाता है। साल के बाकी दिनों में यह दक्षिण दिल्ली के महरौली की संकरी, सर्पीली गलियों में एक-दूसरे से सटे घरों में रहने वाले कई लोगों के लिए खुशी लेकर आता है।
“हर सुबह जब मैं उठती हूं और अपने घर की बालकनी में जाती हूं, तो मुझे हमारे शम्सी तालाब का झिलमिलता पानी दिखाई देता है। सूरज की किरणें उस पर नृत्य करती हैं। यह नजारा खूबसूरत होता है,” ज़ैदा ज़ेहरा ने मोंगाबे इंडिया को बताया।
ज़ैदा का घर वार्ड 8 में झील के किनारे है। यहां वह अपने पति और स्कूल जाने वाली दो बेटियों के साथ रहती है। वह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से हैं और 18 साल पहले शादी के बाद महरौली आ गई थीं।
लेकिन जैदा ने कहा कि इस तालाब के नजारे हमेशा आंखों को सुकून देने वाले नहीं थे।
हौज़-ए-शम्सी (धूप वाला पानी का टैंक) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का संरक्षित स्थल है। इसका निर्माण बारिश के पानी को इकट्ठा करने और पीने का पानी उपलब्ध कराने तथा मध्यकालीन महरौली के बाशिंदों को चिलचिलाती गर्मी से राहत दिलाने के लिए किया गया था। लेकिन समय के साथ, यह कचरे और गंदे पानी से लबालब गंदा, बदबूदार नाला बन गया।
जैदा ने कहा, “करीब दो साल पहले तक हमारे तालाब पर मच्छरों की हुकूमत थी। इसमें खरपतवार उग गए थे। हमारे इलाके के लोग इसमें गंदा पानी डालते थे। लोग अपने मवेशियों को यहीं नहलाते थे। हमें इसकी जीर्ण-शीर्ण दशा देखकर दुख हुआ, लेकिन हमें नहीं पता था कि तालाब को किस तरह साफ किया जाए और यह पहले जैसा कैसे बन पाएगा।”
हालांकि, महरौली के वार्ड 8 और 6 के अन्य निवासियों के साथ ज़ैदा ने हौज़-ए-शम्सी को उसका पुराना वैभव लौटाने का सपना छोड़ा नहीं। ये सभी जल्द ही तालाब को साफ बनाने के लिए बहु-हितधारक प्रोजेक्ट में शामिल हो गए।
यह सब साल 2023 की शुरुआत में हुआ। उस साल एएसआई ने तालाब और उसके आसपास के शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने के लिए नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था सीड्स (सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी) इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
इस पहल के तहत, सीड्स ने यहां के बाशिंदों से संपर्क किया, जिसके चलते प्राइड ऑफ शम्सी नामक सक्रिय सामुदायिक सदस्यों का समूह अस्तित्व में आया। यह समूह तब से तालाब के जीर्णोद्धार और रखरखाव में शामिल है। ज़ैदा इस समूह की सक्रिय सदस्य हैं।
पांच एकड़ में फैला यह तालाब अब साफ पानी से लबालब है। यहां सौर ऊर्जा से चलने वाले छह एरेटर लगे हैं जो इसके पानी को फैलाते हैं और ऑक्सीजन देते हैं। यहां तैरते हुए बायो-आइलैंड हैं, जिनमें रीड्स (reeds) हैं, जिनकी जड़ें पानी को साफ रखती हैं। हौज़-ए-शम्सी की चौहद्दी भी तय कर दी गई है और यहां बाड़ लगा दी गई है। यह तालाब आज देशी और प्रवासी पक्षियों का आश्रय स्थल बन गया है।
ऐसे प्रोजेक्ट में नागरिकों की भागीदारी अहम हो सकती है। सीड्स इंडिया के सह-संस्थापक मनु गुप्ता ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “बदलती जलवायु में नागरिक प्रमुख हितधारक हैं और वे लंबे समय तक इन शहरी कॉमन्स को बनाए और बचाए रखने में मदद कर सकते हैं।”

ऐसे आबाद हुआ शम्सी तालाब
मोहम्मद आरिफ़ को वे पुराने दिन याद हैं जब वह अपनी दादी से मिलने आया करते थे। उनकी दादी तालाब के पास ही रहती थीं। आरिफ याद करते हुए कहते हैं, “बचपन में मैंने गर्मी की कई दुपहरी शम्सी तालाब पर बिताईं, ठंडी हवा का आनंद लिया और इसके पानी में मछलियों को अठखेलियां करते देखा। 2010 तक तालाब की हालत ठीक-ठाक थी। पहले यह काफी बड़ा भी था।”
ज़ैदा की तरह आरिफ़ भी अब हौज-ए-शम्सी के पास महरौली के वार्ड नंबर 8 में रहते हैं। उनके अनुसार, जब इसके आसपास निर्माण का काम शुरू हुआ तो तालाब सिकुड़ने लगा। आरिफ ने कहा, “इसके आसपास बहुत सारे घर बन गए और कंक्रीट वाले निर्माण से बारिश के पानी का बहाव प्रभावित हुआ। गंदा पानी और सीवेज तालाब में बहने लगा।”
गंदे पानी और बिना साफ किए सीवेज को झील में बहने से रोकना सबसे बड़ी चुनौती थी। एएसआई के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से दो साल पहले 2021 में सीड्स ने अलग-अलग हितधारकों – दिल्ली नगर निगम (MCD), दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA), एएसआई, पार्षद, जल जीवन मिशन, दिल्ली जल बोर्ड और ज़ैदा जैसी स्थानीय निवासियों से संपर्क किया। इसमें शामिल लोगों ने जीर्णोद्धार के लिए योजना बनाने के मकसद से जमीनी स्तर पर आकलन शुरू किया, जिसके चलते आखिरकार समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया।
सीड्स इंडिया SURGE इनीशिएटिव (SEEDS Urban Resilience, Governance, and Enablement) भी चलाती है, जो पूरे भारत में शहरी झीलों और तालाबों को उनके पुराने स्वरूप में लाने के लिए समुदाय के सहयोग से हस्तक्षेप और अभिनव समाधानों के आधार पर काम करता है।
सीड्स इंडिया की संरक्षण वास्तुकार मिताली वर्वे ने कहा, ” SURGE के हिस्से के तौर पर, हमने क्षेत्र का आधारभूत सर्वेक्षण किया और शम्सी तालाब के जीर्णोद्धार से जुड़ी चुनौतियों की पहचान के लिए समुदाय के सदस्यों के साथ कई चर्चाएं कीं।”
“इसके बाद, हमने तालाब का हाइड्रो-जियोफिजिकल मूल्यांकन किया और इसके जलग्रहण क्षेत्र का नक्शा तैयार किया। घुले हुए ऑक्सीजन के स्तर और अन्य प्रमुख मापदंडों का पता लगाने के लिए पानी की गुणवत्ता परखी गई। हमें तालाब में बहुत सारे आक्रामक पौधों की प्रजातियां मिलीं। एक साल की अवधि में, झील में बहने वाले बिना साफ किए गए अपशिष्टों के लिए दूसरा रास्ता तैयार किया गया,” वावरे ने बताया।
सीड्स इंडिया की परियोजना प्रबंधक रुचि भट्ट के अनुसार, “चूंकि हौज़-ए-शम्सी विरासत स्थल है, इसलिए वहां की जाने वाली गतिविधियों के बारे में नियम हैं। झील से कचरे और आक्रामक पौधों को मशीन से निकालने की अनुमति नहीं है और कुशल सफाईकर्मियों की मदद से इसे हाथों से निकालना पड़ता है। झील क्षेत्र की चौहद्दी तय की गई और बाड़ लगाई गई,” उन्होंने कहा।
इसके बाद झील को साफ करने के लिए बायोरेमेडिएशन उपायों की शुरुआत की गई। “इनमें फ्लोटिंग बायो-आइलैंड शामिल हैं, जो पानी को प्राकृतिक रूप से साफ करने के लिए खास जलीय पौधों की परतों के साथ निर्मित आर्द्रभूमि हैं। पानी के बहाव को बढ़ाने और घुले हुए ऑक्सीजन के स्तर को बेहतर बनाने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले छह एरेटर लगाए गए हैं, जो स्वस्थ पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं,” वावरे ने समझाया।
ज़ैदा की 15 साल की बेटी रोजीस ने मोंगाबे इंडिया को बताया, ” हमारे माता-पिता ने प्राइड ऑफ शम्सी समूह बनाया, हम बच्चे एक साथ आए और हर सप्ताहांत में अपने तालाब के इर्द-गिर्द चित्रकारी, मेहंदी और रंगोली प्रतियोगिता जैसी गतिविधियां आयोजित कीं।” उन्होंने कहा, “हमने नुक्कड़ नाटक भी खेले और महरौली के व्यस्त बाजार में बच्चों का मार्च निकाला, जिसमें हमारे तालाब की रक्षा के लिए नारे लगाए गए।”

ठंडक देने वाला समाधान
शहरी योजनाकार और बेंगलुरु स्थित बायोम एनवायरनमेंटल सॉल्यूशंस के संस्थापक निदेशक एस. विश्वनाथ के अनुसार, जल निकायों को शहरों को ठंडा रखने के लिए प्रमुख प्राकृतिक बुनियादी ढांचे के रूप में तेजी से मान्यता मिल रही है। बायोम एनवायरनमेंटल सॉल्यूशंस ने कर्नाटक में कई शहरी और ग्रामीण झीलों को उनका पुराना वैभव लौटाया है।
उन्होंने कहा, “शहरी झीलों में वाष्पीकरण से ठंडक बढती है और इससे उनके आसपास का तापमान 2-4 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में मदद मिल सकती है।” “लेकिन दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए – हवा की दिशा, जिसे रोका नहीं जाना चाहिए और तापमान को और कम करने के लिए जलाशय के चारों ओर देसी पेड़ लगाए जाने चाहिए।”
शहरी योजनाकार शहरी जल संरचनाओं और पेड़ों/बगीचों से मिलकर बने नीले और हरे बुनियादी ढांचे (बीजीआई) की भूमिका पर तेजी से जोर दे रहे हैं। भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रकाशित जल निकायों और खुले क्षेत्रों के कायाकल्प और संरक्षण नामक प्रशिक्षण मैनुअल में जलवायु परिवर्तन से पा पाने और उसके हिसाब से ढलने में शहरी जल निकायों की भूमिका भी दर्ज की गई है। इसमें कहा गया है कि शहरी जल निकाय अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) दुष्प्रभाव से निपटने और शहर के तापमान को कम करने में मदद करते हैं।
शहरी योजनाकार के तौर पर प्रशिक्षित गुप्ता ने कहा, “शहरी झीलें अपना खुद का माइक्रोक्लाइमेट बनाती हैं और हमारे शहरों को ठंडा रखने में मदद कर सकती हैं। उन्हें हमारे शहर के क्लाइमेट ऐक्शन और हीट ऐक्शन योजनाओं का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।”
दिल्ली में कई झीलें और तालाब हैं जिन्हें शहर के हीट ऐक्शन प्लान में शामिल किया जा सकता है। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2021 में की गई जल निकायों की पहली गिनती के अनुसार, दिल्ली में 893 जल निकाय हैं। 525 तालाब, 14 झीलें, चार टैंक और 350 जल निकाय हैं जिन्हें ‘अन्य’ के रूप में गिना जाता है। गिनती में यह भी पाया गया कि इनमें से लगभग एक-चौथाई जल निकायों (24.19%) पर अतिक्रमण किया गया था, जो सभी राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है।
दिल्ली हीट एक्शन प्लान 2024-25 में “ब्लू कवर बढ़ाने” और “दिल्ली में जल निकायों की बहाली” का उल्लेख किया गया है। लेकिन इसके लिए व्यापक योजना की जरूरत है, क्योंकि दुनिया भर में बढ़ते वैज्ञानिक प्रमाण इसके फायदे दिखाते हैं।
जलवायु को रेगुलेट करने में जल निकायों की भूमिका पर 2024 के एक पेपर में इस पर प्रकाश डाला गया है कि शहर में जलाशय जैसी चीजें और हरी-भरी जगहें शहरी वातावरण को काफी हद तक ठंडा कर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “पानी वाली जगहों को शहर की अन्य कूलिंग रणनीतियों, जैसे कि वृक्षारोपण और बढ़ाई गई हरियाली के साथ जोड़कर, शहर असरदार तरीके से अर्बन हीट इफेक्ट के दुष्प्रभावों का मुकाबला कर सकते हैं, जिससे शहर ज्यादा टिकाऊ और वहां का वातावरण बेहतर बन सकता है।”
अप्रैल 2023 में सस्टेनेबल सिटीज एंड सोसाइटी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में यह भी बताया गया है कि शहर में नीले और हरे बुनियादी ढांचे को लागू करने से शहरी तापमान को नियंत्रित करने में किस तरह मदद मिल सकती है। लेखकों ने नोट किया कि शहरी क्षेत्रों में झीलों और आर्द्रभूमि जैसी जल संरचनाएं, दिन के समय अपने मजबूत वाष्पीकरण और उच्च ताप क्षमता के कारण तापमान को कम करते हैं। पानी की गर्मी को सोखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। यह गर्म होने से पहले बहुत अधिक गर्मी को अवशोषित कर लेता है।

यूनाइटेड किंगडम के बाथ विश्वविद्यालय और इटली के बोलोग्ना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि किसी बड़ी जल संरचना के मुकाबले छोटे जलाशयों का नेटवर्क ज्यादा असरदार ढंग से क्षेत्रों को ठंडा कर सकता है। साथ ही, ज्यादा दूरी पर वसंत और गर्मियों की शुरुआत में दिन के चरम तापमान को कम कर सकता है।
वर्वे के अनुसार, सीड्स इंडिया पहले से ही हौज़-ए-शम्सी में पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करने के लिए पानी का पर्याप्त स्टॉक पक्का करने के समाधान पर काम कर रहा है। “हमें साफ नहीं किए गए पानी को जलाशय में बहने से रोकना पड़ा, क्योंकि यह टैंक को नष्ट कर रहा था। लेकिन झीलों को जीवित रखने के लिए पानी की जरूरत होती है। हम अधिकारियों के साथ चर्चा कर रहे हैं, ताकि साफ किया गया सीवेज झील में डाला जा सके,” उन्होंने कहा।
विश्वनाथ झीलों को पुनर्जीवित करने के लिए साफ किए गए शहरी पानी का इस्तेमाल करने के विचार का समर्थन करते हैं। “अगर हम सीवेज को साफ करते हैं और पानी को और ज्यादा साफ करने के लिए बनाई गई आर्द्रभूमि का इस्तेमाल करते हैं, तो इसे झीलों में बहाया जा सकता है। यह ना सिर्फ शहरों के गंदे पानी का प्रबंधन करने में मदद करेगा, बल्कि शहरी केंद्रों में ठंडा माइक्रोक्लाइमेट भी बनाएगा,” उन्होंने कहा। वह कहते हैं कि बेंगलुरु में 27 झीलों को पहले से ही साफ किया गया पानी मिल रहा है और शहर में 40 ऐसी झीलों को इस दायरे में लाने का लक्ष्य है।
इस खबर के लिए प्रॉमिस ऑफ कॉमन्स मीडिया फेलोशिप 2024 से सहायता मिली है, जो कॉमन्स की अहमियत और इसके सामुदायिक प्रबंधन पर केंद्रित है।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 3 जून, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: हौज़-ए-शम्सी का निर्माण 1230 ई. में दिल्ली सल्तनत के तीसरे सुल्तान के शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने करवाया था। वह गुलाम वंश से ताल्लुक रखते थे। तस्वीर – निधि जामवाल।