- राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के तीन प्रमुख मल्टीमॉडल टर्मिनल में एक का निर्माण झारखंड के साहिबगंज में हुआ है। साढ़े पांच साल पहले इसके उदघाटन के बावजूद भी इसे नियमित परिचालन का इंतजार है।
- साहिबगंज मल्टी मॉडल टर्मिनल के विस्थापितों का उचित पुनर्वास नहीं हो पाया है। उनके लिए बनाए गए क्वार्टर में संरचनागत दोष है और कुछ विस्थापितों का मुआवजा आज भी बकाया है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग-1 में नौवहन व परिवहन में देरी का एक कारण साहिबगंज जिले से सटे भागलपुर में स्थित विक्रमशीला गंगेटिक डॉल्फिन अभ्यारण्य का होना भी है। जल परिवहन से अभ्यारण्य क्षेत्र में डॉल्फिन व जलीय जीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से जुड़ी चिंता को वन विभाग ने उठाया है।
झारखंड के उत्तर पूर्व में स्थित साहिबगंज शहर से राजमहल की ओर उबड़-खाबड़ व टूटी सड़कों पर हर वक्त धूल का गुबार उठता रहता है। वजह है जर्जर सड़क और पत्थर की अनेकों खदानें। इस मार्ग के दक्षिण दिशा में राजमहल की पहाड़ियां हैं और उत्तर दिशा में गंगा नदी। सड़क मार्ग के समानंतर रेलवे लाइन भी है। इसी रास्ते पर करीब 10 किमी की दूरी स्थित ‘सकरी गली’ नाम के रेलवे स्टेशन से करीब एक किमी की दूरी पर गंगा के तट पर जल परिवहन के लिए बनाया गया है साहिबगंज मल्टीमॉडल टर्मिनल।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2017 में इसकी आधारशीला रखी और लगभग ढाई साल बाद सितंबर 2019 में इस टर्मिनल का उदघाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा था कि यह टर्मिनल रोजगार के नए अवसर सृजित करेगा, झारखंड के उत्पादों की पहुंच देश भर में हो सकेगी और पूर्वोत्तर से आसान कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।
हालांकि, उद्घाटन से पांच साल से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी यह टर्मिनल शुरू नहीं हो सका है। ऐसे में इस टर्मिनल से यातायात शुरू नहीं होने के पीछे नदियों की कठिन प्राकृतिकी बनावट, लगातार बेहतर होता सड़क और रेल नेटवर्क, और जलमार्गों के प्रति निजी क्षेत्र की उदासीनता जैसे कई कारण हैं। साथ ही इस परियोजना के लिए अपनी जमीन देने वाले स्थानीय लोगों को मुआवजा ना मिलने और उनके उचित पुनर्वास से सम्बंधित मुद्दे भी सामने आए हैं।

महत्वाकांक्षी परियोजना व परिचालन का लंबा इंतजार
इस टर्मिनल के डीपीआर के अनुसार, तीन फेज के इस प्रोजेक्ट में पहले फेज में वर्ष 2018-19 में 2.24 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) माल परिवहन का लक्ष्य रखा गया था। जबकि दूसरे फेज में वर्ष 2030-31 तक 4.39 मिलियन टन प्रति वर्ष व मास्टर प्लान पूरा होने के बाद वर्ष 2045-46 में नौ मिलियन टन प्रति वर्ष परिवहन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
हल्दिया से प्रयागराज (इलाहाबाद) के बीच के गंगा-भगीरथी-हुगली स्ट्रेच को जल परिवहन के विस्तार के उद्देश्यों से 1986 में ही केंद्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग-1 घोषित किया गया था। हालांकि, 2014 में राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 बनाया गया और जलमार्गों के विकास पर नए सिरे से जोर दिया गया। माल परिवहन के लिए इसे सड़क व रेल परिवहन की तुलना में अधिक सस्ता, सुलभ और कम प्रदूषकारी बताया गया।
हल्दिया से प्रयागराज तक 1,620 किमी लंबा राष्ट्रीय जलमार्ग-1 सरकार के महत्वाकांक्षी जलमार्ग विकास परियोजना की सबसे अहम कड़ी है। इसके तहत तीन शहरों पश्चिम बंगाल के हल्दिया, झारखंड के साहिबगंज और उत्तरप्रदेश में वाराणसी में भी मल्टीमॉडल टर्मिनल का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही वर्ल्ड बैंक से वित्तीय सहायता प्राप्त 5369.18 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में विभिन्न जगहों पर जेटी, चैनल सहित अन्य आधारभूत संरचनाओं का निर्माण व फरक्का में पुराने नेविगेशन लॉक का नवीनीकरण किया जा रहा है। इन मल्टीमॉडल टर्मिनलों के विकास के अगले चरण की प्रक्रिया भी चल रही है।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने इस संवाददाता के एक आरटीआई आवेदन के जवाब में बताया कि साहिबगंज मल्टीमॉडल टर्मिनल का निर्माण पूरा हो चुका है। जुलाई 2024 की आखिरी उपलब्ध प्रगति रिपोर्ट से भी यह पता चलता है कि 276.05 करोड़ रुपए की लागत वाले इस टर्मिनल का निर्माण (पहले चरण का) पूरा हो चुका है। साहिबगंज एमएमटी के दूसरे चरण में 803 करोड़ व मास्टर प्लान फेज में 410 करोड़ रुपये का खर्च आने का आकलन किया गया है।

टर्मिनल के सीनियर हाइड्रोग्राफिक सर्वेयर अनुपम सिन्हा ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “साहिबगंज में मालवाहक जलयान के परिवहन के लिए पहले चरण का काम पूरा हो चुका है और पत्थरों की ढुलाई और परिवहन के लिए आधारभूत संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) तैयार है। अब दूसरे चरण का काम होना है जिसमें कोयला और लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) के परिवहन के लिए संरचना तैयार की जाएगी।” “यहां गंगा में पानी पर्याप्त मात्रा में है, पिछले साल अक्टूबर में यहां से मालवाहक जहाज का परिचालन भी हुआ है। टेंडर की जरूरी प्रक्रिया पूरी होने के बाद परिचालन शुरू किया जा सकता है,” उन्होंने बताया।
निजी क्षेत्र का उदासीन रवैय्या
जलमार्गाें की रिसर्चर व मंथन अध्ययन केंद्र से संबद्ध अवली वर्मा कहती हैं, “जब 2019 मेें साहिबगंज मल्टीमॉडल टर्मिनल का उदघाटन हुआ था उसी दौरान तत्कालीन केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्री मनसुख मंडाविया ने संसद को बताया था कि वर्ष 2020-21 तक यह टर्मिनल सालाना 2.24 मिलियन टन कार्गाें सक्षम होगा, जिसमें स्टोन चिप्स, कोयला, सीमेंट, खाद्यान्न, उर्वरक व चीनी शामिल होंगे। हालांकि यह जमीनी हकीकत से बहुत दूर है और वर्ष 2024-25 में इस टर्मिनल का सिर्फ एक बार पश्चिम बंगाल के कुचुबेरिया में 180 टन माल परिवहन के लिए उपयोग हुआ।”
अवली कहती हैं, “विश्व बैंक से वित्त पोषित जल मार्ग विकास परियोजना दिसंबर 2025 में पूरी होने वाली है। टर्मिनल को निजी ऑपरेटरों को सौंपने के पांच असफल प्रयासों के बाद साहिबगंज एमएमटी एक चेतावनी की तरह है जो यह संकेत देता है कि राष्ट्रीय जलमार्ग-1 उस परिवर्तनकारी मालवाहक गलियारे के रूप में सामने नहीं आ सकता, जिसके बारे में कभी प्रचार किया गया था।” दिसंबर 2024 में राज्यसभा में पेश की गई संसद की स्टैडिंग कमेटी की रिपोर्ट के पेज 20-21 में विभागीय मंत्री की ओर से इस बात का जिक्र है कि प्राइवेट पब्लिक पार्टनशिप (PPP) के ऑपरेशन मेंटेनेंस और ट्रांसफर (OMT) मॉडल पर चार बार निविदाएं पूर्व में आमंत्रित की गई हैं और पांचवीं की प्रक्रिया जारी है।
टर्मिनल के वर्ष 2019 के डीपीआर के अनुसार, पत्थर और कोयला दो प्रमुख कमोडिटी हैं, जिनका परिवहन साहिबगंज एमएमटी के द्वारा किया जाना है। इसके अलावा सीमेंट, अनाज, उर्वरक और चीनी का भी यहां से परिवहन किया जाना है। हालांकि 90 प्रतिशत से अधिक मात्रा में सिर्फ स्टोन चिप्स (पत्थर) व कोयले का परिवहन साहिबगंज एमएमटी के द्वारा किया जाना है। साहिबगंज और उसके पड़ोस का जिला पाकुड़ पूर्वी भारत में पत्थर खनन का एक प्रमुख केंद्र है।
जबकि पाकुड़ व गोड्डा जिले में कोयला की खदानें हैं और यह जगह कई दूसरी कोयला खदानों से अपेक्षाकृत नजदीक है। हल्दिया से वाराणसी तक जलमार्ग – 1 के आसपास कम से कम 11 थर्मल पॉवर प्लांट हैं, जिनकी क्षमता 10,745 मेगावाट बिजली उत्पादन की है। ऐसे में एक प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य से जलमार्ग के जरिये इन थर्मल पॉवर प्लांट के लिए कोयला परिवहन करना इस एमएमटी के निर्माण की एक प्रमुख वजह रही है।

जलमार्ग के समक्ष चुनौतियां
हालांकि जलमार्ग के विस्तार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के समक्ष कई चुनौतियां हैं। संसद की परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नदियों की सीमित गहराई, कटाव व घुमावदार रास्ते प्राकृतिक शक्तियों से नियंत्रित होते हैं और उन्हें आसानी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। टर्मिनलों पर लोडिंग, अनलोडिंग सुविधाओं का विकास, ऑपरेशनल जलमार्गाें के लिए कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि, रेल व सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसी बाधाएं हैं।
खुद केंद्रीय जहाजरानी, पोत एवं पत्तन मंत्री ने स्टैडिंग कमेटी की अनुशंसा व टिप्पणियों के जवाब में कहा है कि जलमार्गाें पर पुलों के साथ सड़क और रेल के विकास में तेजी से हुई वृद्धि ने जलमार्ग परिवहन की संभावनाओं को कम कर दिया है। ऐसे में साहिबगंज व मनिहारी के बीच गंगा पर निर्माणाधीन पुल के पूरा होने का साहिबगंज एमएमटी के परिचालन पर पड़ने वाला प्रभाव महत्वपूर्ण होगा।
प्रभावितों के उचित पुनर्वास का मुद्दा
टर्मिनल के डीपीआर में इस टर्मिनल को बनाने के लिए 183 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने का उल्लेख है। इसमें 152.06 एकड़ जमीन (लगभग 83%) निजी स्वामित्व वाली है। इस परियोजना के लिए सरकारी जमीन मात्र 7.15 एकड़ है, जबकि 23.92 एकड़ ऐसी जमीन ली गई है, जिसका अबतक सर्वे नहीं हुआ है।
इसी तरह रोड कॉरिडोर के लिए अधिग्रहित की गई कुल 8.70 एकड़ जमीन में 7.095 एकड़ व आरओबी (रेलवे ओवरब्रिज) के लिए ली जाने वाली 13.61 एकड़ जमीन में 11.145 एकड़ जमीन निजी है। रेल कॉरिडोर के लिए सात अलग-अलग मौजा में अधिग्रहित की जाने वाली कुल 20.307 एकड़ जमीन में 19.284 एकड़ जमीन निजी प्रकृति की है।
मोंगाबे हिंदी को मिली जानकारी के अनुसार, वर्तमान में रेल कॉरिडोर के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है, जबकि अन्य काम के लिए जमीन पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी है।
टर्मिनल निर्माण के लिए 485 परिवारों की जमीन अधिग्रहित की गई, जिसमें 56 परिवारों का मुआवजा भुगतान बाकी है। परियोजना से विस्थापित हुए लोग जहां खुद के लिए बनाए गए सरकारी क्वार्टर के ढांचे से असंतुष्ट हैं, वहीं आसपास के कई दूसरे लोगों की शिकायत है कि इस परियोजना से उनकी खुली चरवाही की जमीन खत्म हो गई और पशुओं को चराने का दायरा सीमित हो गया।
सुलोचना देवी का परिवार साहिबगंज एमएमटी से विस्थापित है। उनके पति बीरबल सिंह एक प्रवासी मजदूर के रूप में बाहर काम करते हैं। सुलोचना का परिवार पलटनगंज मौजा से विस्थापित होकर टर्मिनल के पश्चिम दिशा या अपस्ट्रीम में विस्थापितों के लिए समदा नाला में बनायी गई कॉलोनी में रहता है। वे कहती हैं, “कॉलोनी में बनाए गए घर जमीन की सतह नीचे हैं इसलिए तेज बारिश होने पर पहाड़ी की ओर से तेज गति से आने वाला पानी घरों में भर जाता है और एक बार मेरी आठ साल की बेटी उस पानी में डूबते-डूबते बची है।”
सुलोचना देवी जैसी ही परेशानी 80 साल के बुजुर्ग राधेश्याम सिंह दोहराते हैं। वे कहते हैं, “आश्रम (जगह का नाम) में हमारी तीन कट्ठा जमीन थी, जो बंदरगाह (मल्टीमॉडल टर्मिनल) बनाने के लिए अधिग्रहित की गई और उसके ऐवज में करीब 75 हजार रुपए का मुआवजा मिला और हमें यहां समदा नाला में विस्थापितों की कॉलोनी में घर मिला, जिसमें बारिश में पहाड़ का पानी आकर जमा हो जाता है और कोई इसमें रहना नहीं चाहता है।” वे इस संवाददाता को अपने साथ विस्थापित कॉलोनी के कई दूसरे परिवारों का घर दिखाते हैं।
संबंधित प्राधिकारियों ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में यह स्वीकार किया कि विस्थापितों के लिए बनाए गए आवासों की संरचना में त्रुटि है, जिससे वहां पानी का जमाव होता है। ऐसे में जिला प्रशासन आसपास ऐसी नालियां बनवा सकता है, जिससे बारिश के दिनों में घरों में पानी का प्रवेश कम से कम हो।
सिर्फ विस्थापित ही नहीं वे लोग भी जिनकी जमीन इस परियोजना के लिए नहीं ली गई है, वे भी अपने दिक्कतें इस संवाददाता को बताते हैं।
समदा नाला बस्ती की सविता देवी कहती हैं, “इस बंदरगाह के बनने के बाद हमारी चरवाही की जमीन खत्म हो गई। पहले खुली जगह थी तो घास होता था, अब हमारे पशुओं की चराई में दिक्कत होती है”। सविता देवी का घर विस्थापित कॉलोनी से करीब 150 मीटर की दूरी पर स्थित है।

डॉल्फिन के संरक्षण का सवाल
बिहार एवं झारखंड में जलमार्ग-1 पर परिचालन में होने वाली देरी का एक कारण अपस्ट्रीम में स्थित बिहार के भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशीला गंगेटिक डॉल्फिन अभ्यारण्य भी है। साहिबगंज से सटे भागलपुर जिले में सुलतानगंज से कहलगांव तक के गंगा के 60 किमी प्रवाह (स्ट्रेच) को विक्रमशीला गंगेटिक डॉल्फिन अभ्यारण्य घोषित किया गया है जो भारत का एकमात्र डॉल्फिन अभ्यारण्य है।
देश के राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिक डॉल्फिन (Platanista gangetica) पर जल परिवहन की अधिकता से पड़ने वाले प्रभावों का मुद्दा संरक्षणवादी लगातार उठाते रहे हैं। उनके अनुसार यह दुर्लभ नेत्रहीन जलीय स्तनधारी जो पहले से संकट में है, आने वाले समय में इसके अस्तित्व पर खतरा और बढ जाएगा।
मोंगाबे हिंदी को मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने अब तक जैव विविधता के दृष्टिकोण से समृद्ध भागलपुर में बायोडायवर्सिटी इंपेक्ट एसेसमेंट (जैव विविधता प्रभाव आकलन) नहीं कराया है। हालांकि अब उन्होंने इसे करवाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है और आईडब्ल्यूएआई ऐसा इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाली किसी संस्था के माध्यम से करवा सकता है।
मई 2025 में राष्ट्रीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण ने वन विभाग (भागलपुर) के समक्ष ड्रेजिंग के लिए नया डीपीआर पेश किया है। ड्रेजिंग ऑपरेशन से कटाव की आशंका है और इससे वन्य जीवों के आवास (हैविटेट) को व्यवधान उत्पन्न होगा। भागलपुर की डीएफओ श्वेता कुमारी ने राष्ट्रीय जलमार्ग विकास से जुड़ी गतिविधियों से भागलपुर के सेंचुरी एरिया में वन्य जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन को मई 2025 में परिवेश पोर्टल के माध्यम से अपनी चिंताओं से अवगत कराया है।
जलमार्ग-1 के विकास को लेकर उपलब्ध आखिरी प्रगति रिपोर्ट में बिहार-झारखंड स्ट्रेच सहित पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश में जेटी निर्माण व जलमार्ग – 1के अन्य विकासात्मक कार्यों व आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी का जिक्र है। इस रिपोर्ट में यह जिक्र किया गया है कि 12 जून 2017 को काशी कछुआ अभ्यारण्य, वाराणसी से होकर जहाजों के आवागमन की मंजूरी ले ली गई है। लेकिन, भागलपुर स्थित विक्रमशीला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी से परिचालन गतिविधियों के स्वीकृति का जिक्र नहीं है। स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में भी इस मार्ग पर स्थित दो महत्वपूर्ण अभ्यारण्य में से सिर्फ कछुआ सेंचुरी में मालवाहक जलयान के परिचालन की स्वीकृति का जिक्र है।

मोंगाबे हिंदी ने जलमार्गों की अपनी इस सीरीज की पहली कड़ी में रिपोर्ट किया है कि अंतरदेशीय जलमार्ग, टर्मिनल, जेटी इनवायरमेंट इंपेक्ट एसेसमेंट नोटिफिकेशन – 2006 के तहत शामिल नहीं हैं, इसलिए इन्हें पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है।
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भागलपुर की डीएफओ श्वेता कुमारी ने मोंगाबे हिंदी के जलमार्गों को हासिल ‘छूट’ के सवाल पर कहा, “यह अलग बात है कि उन्हें (आईडब्ल्यूएआई) कुछ मानकों पर इआइए (पर्यावरण प्रभाव आकलन) से छूट हासिल है, लेकिन अभ्यारण्य क्षेत्र (सेंचुरी एरिया) में सरकार के बहुत सारे कानून प्रभावी होते हैं और यहां वन्यजीव (संरक्षण) कानून 1972 लागू है और यह हमारी चिंता व जिम्मेवारी है कि अभ्यारण्य क्षेत्र में किसी भी वन्यजीव को किसी भी तरह से नुकसान नहीं होना चाहिए।”
वहीं दूसरी तरफ साहिबगंज में भी गंगा में अच्छी संख्या में गंगेटिक डॉल्फिन हैं। आइयूसीएन ने इसे संकटग्रस्त श्रेणी में सूचीबद्ध किया है और यह भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) कानून 1972 के तहत शिड्यूल – 1 का जीव है। भारतीय वन्य जीव संस्थान के 2023 के सर्वे के अनुसार, झारखंड में गंगा के करीब 80 किमी स्ट्रेच में 162 डॉल्फिन हैं।
झारखंड में गंगा में रहने वाली डॉल्फिन और अन्य जलीय जीवों के समक्ष आने वाली चुनौतियों से जुड़े मोंगाबे हिंदी के सवाल पर साहिबगंज के डीएफओ प्रबल गर्ग ने कहा, “जलमार्ग से जब व्यापक रूप से परिवहन शुरू होगा तब वाइल्ड लाइफ प्लान बनाया जाएगा और उसे लागू किया जाएगा, उसमें हम मेन चैनल व साइड चैनल तय करेंगे। यह तय किया जाएगा कि मालवाहक जलयान किधर से गुजरें। हम जलयान गुजरने का समय निर्धारित करेंगे और यह भी तय करेंगे कि उससे ध्वनि प्रदूषण कम से कम हो।”
यह रिपोर्ट देश के विभिन्न राष्ट्रीय जलमार्गों पर मोंगाबे हिंदी की सीरीज का तीसरा भाग है। पहला भाग और दूसरा भाग यहां पढ़ें।
बैनर तस्वीरः भागलपुर के बाबूपुर गांव में रजन्दीपुर घाट पर खड़ा पर्यटक क्रूज। स्थानीय लोगों का कहना है कि हम पहले से नदी के कटाव का सामना कर रहे हैं और इस क्रूज के परिचालन से कटाव का खतरा और बढ गया है। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे