- पन्ना बाघ अभयारण्य में बड़े पैमाने पर शिकार की वजह से बाघ खत्म हो गए थे। साल 2009 में इस सबसे बड़े शिकारी को वहां फिर से बसाया गया। इसके बाद शोधकर्ताओं ने साझा आवासों में खुद को बचाए रखने और अन्य जीवों के साथ बाघों के संपर्क पर नजर रखनी शुरू की।
- दस सालों से ज्यादा की अवधि में, उन्होंने बाघों के 126 जोड़ों का दस्तावेजीकरण किया। इसमें पता चला कि जहां नर बाघ एक-दूसरे से बचते रहे, वहीं मादा बाघों ने अक्सर अपने आवास साझा किए। उनके संभोग के तरीके से पता चलता है वे इन-ब्रीडिंग (रिश्तेदारों के बीच प्रजनन) से बचती हैं।
- नतीजे बताते हैं कि ऐसी योजनाओं के लिए चरणबद्ध तरीके से बसाए जाने, मां और शावक के बीच संबंध और बारीक व्यवहारों से संबंधित डेटा बेहद जरूरी हैं।
बाघों को अक्सर अकेले में जीवन व्यतीत करने वाला जीव माना जाता है। ये पूरे जंगल में घूमते हैं और किसी भी कीमत पर अपने इलाके की रक्षा करते हैं। लेकिन, यह सवाल उठता है कि स्थानीय रूप से विलुप्त होने वाली जगह पर फिर से बसाए जाने पर उनका व्यवहार कैसा होता है? जब उन्हें किसी नई जगह पर दूसरों के साथ आवास साझा करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वे दूसरे जीवों के साथ संपर्क करने के लिए कौन-सा तरीका अपनाते हैं?
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) के रिसर्च स्कॉलर सुप्रतिम दत्ता कहते हैं, “बचपन से ही हमें सिखाया जाता रहा है कि बाघों का व्यवहार समूह में रहने लायक नहीं होता है। हालांकि, गुणों के आधार पर उनके आपसी संबंधों की आवृत्ति और प्रकृति का शायद ही कभी आकलन किया गया है। फिर भले ही यह सकारात्मक हो या विरोधी। इस बारे में सवाल बने हुए हैं कि क्या बाघों के पास अल्पविकसित सामाजिक नेटवर्क है या वे कमजोर, अस्थायी सामाजिक रिश्ते बनाते हैं।”
इस अंतर को पाटने के लिए दत्ता और डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक रमेश कृष्णमूर्ति ने मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में दशक भर लंबा अध्ययन किया। अध्ययन के नतीजों से उन लंबे समय से अनुत्तरित सवालों के जवाब मिलने लगे हैं, जो बताते हैं कि बाघों का समाज हमारी सोच से कहीं ज्यादा जटिल हो सकता है।
पन्ना अभयारण्य से मिले नतीजे
इस सदी की शुरुआत में पन्ना से बाघ गायब हो गए। बड़े पैमाने पर शिकार, ढीली सुरक्षा और बढ़ते मानवीय दबाव ने उन्हें पूरी तरह से खत्म कर दिया। 2009 तक यह स्पष्ट हो गया था कि पीटीआर को बड़े कदम उठाने की जरूरत है। इसके बाद बाघों को फिर से बसाने की परियोजना शुरू हुई। कान्हा और पेंच जैसे रिजर्व से बाघों को यहां फिर से बसाने के लिए लाया गया।

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के वरिष्ठ वैज्ञानिक यादवेंद्रदेव झाला कहते हैं, “पन्ना में बाघ सिर्फ कुछ सालों के लिए विलुप्त हुए थे, लेकिन शिकार का आधार बरकरार था। यह जान-बूझकर किया गया शिकार था जिसने बाघों को जंगल से खत्म कर दिया। ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र के खत्म होने से नहीं हुआ था। इसलिए, लापता तत्व [बाघ] को बस वापस बसा दिया गया। “
साल 2009 से 2019 तक, शोधकर्ताओं ने जीपीएस और वीएचएफ (वेरी हाई फ्रीक्वेंसी) कॉलर का एक साथ इस्तेमाल करके फिर से बसाए गए 13 बाघों को ट्रैक किया। इसका मकसद यह समझना था कि क्या बड़ी बिल्लियां संभोग करने के लिए दूसरी जगहों पर जाती हैं, शिकार को साझा करती हैं, ओवरलैपिंग क्षेत्रों में गश्त करती हैं या जानबूझकर एक-दूसरे से बचती हैं। इन आपसी व्यवहारों को खास अंतःक्रियाएं कहा जाता है और ये संभोग पैटर्न, बचे रहने की रणनीतियों और सामाजिक सहिष्णुता को समझने के लिए अहम हैं।
लेकिन पन्ना के घने, ऊबड़-खाबड़ इलाकों में एक दशक से ज्यादा समय तक कॉलर के जरिए इस तरह की टेलीमेट्री ट्रैकिंग को बनाए रखना कई तकनीकी और दूसरी चुनौतियां लेकर आया। दत्ता बताते हैं, “वीएचएफ कॉलर लंबे समय तक चलने वाली बैटरी के साथ किफायती हैं, जो उन्हें छोटी रेंज वाली बाघिन की निगरानी के लिए आदर्श बनाते हैं, लेकिन उन्हें लगातार फील्ड प्रयास की आवश्यकता होती है। लगातार नजर बनाए रखने के लिए समर्पित फील्ड टीम जरूरी होती है। नर बड़े क्षेत्र में घूमते हैं, जिससे घने इलाकों में उन पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है।” “जीपीएस कॉलर कम कोशिश के साथ ज्यादा जगहों के लिए व्यापक डेटा उपलब्ध कराते हैं, लेकिन उनकी बैटरी कम चलती है और कभी-कभी खासकर घने जंगलों या मानसून में सिग्नल नहीं मिलते हैं। इससे डेटा में अंतर आ जाता है।” दोनों प्रकार के कॉलर का इस्तेमाल करने से टीम को जानकारियों और अवधि को संतुलित करने में मदद मिली।
टीम ने दो तरह के संपर्कों को मापा: स्थिर संपर्क (जहां आवास आपस में मिलते हैं) और बदलने वाला संपर्क (जहां बाघ एक ही समय में एक ही जगह पर होते हैं)। व्यवहारिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने के लिए, टीम ने बेनहमौ के आईएबी (अलग-अलग जीवों के बीच आकर्षण या नजरअंदाज करने से जुड़ा सूचकांक) को भी लागू किया, जो समय और स्थान दोनों को ध्यान में रखता है।
इस सूचकांक का इस्तेमाल 100 मीटर और 500 मीटर की दूरी सीमा पर किया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या बाघ के जोड़े लगातार उम्मीदों से ज्यादा करीब या दूर हैं। इससे शोधकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद मिली कि क्या अलग-अलग बाघ आकर्षित होने या नजरअंदाज करने के संकेत दिखा रहे थे। इन व्यवहार के वर्षवार विश्लेषण से टीम को यह समझने में मदद मिली कि समय के साथ बाघों के रिश्ते किस तरह विकसित हुए।

डेटा से मिली जानकारी
शोधकर्ताओं ने नर-नर (18), मादा-मादा (35) और नर-मादा (73) संयोजनों में 126 अलग-अलग “युग्म” या बाघों के जोड़े की पहचान की। यह बाघ समाज की बारीक तस्वीर थी, जिसमें तीन हैरान करने वाले पैटर्न सामने आए।
बाघ एक-दूसरे से बचते थे। वे शायद ही कभी एक साथ घूमते थे। ऐसा तब भी नहीं होता था जब उनके इलाके आपस में मिलते थे। उनके रास्ते तो एक ही थे, लेकिन समय एक नहीं होता था। दत्ता कहते हैं, “अधीनस्थ नर आमतौर पर स्थानिक अलगाव बनाए रखते हुए प्रमुख व्यक्तियों से बचते थे। उनकी हरकतें एक-दूसरे से काफी हद तक स्वतंत्र दिखाई देती थीं।” यह परहेज संभवतः प्रत्यक्ष टकराव के जोखिम को कम करता है।
दूसरी ओर बाघिन, खास तौर पर माताओं और बेटियों या बहनों ने ज्यादा सामाजिक सहिष्णुता दिखाई। युवा बाघ व्यापक रूप से फैल गए, लेकिन युवा बाघिन अक्सर अपने जन्म के क्षेत्रों के पास ही रहती थीं, जिसे फिलोपेट्री कहा जाता है। ये बाघिन अपनी माताओं के साथ तब तक जगह साझा करती थीं जब तक कि वे अपना इलाका बनाने के लिए तैयार नहीं हो जातीं।
दत्ता कहते हैं, “अपनी मां के आसपास इलाका स्थापित करके, बाघिन लंबी दूरी तय करने के जोखिम से बचती हैं, जैसे कि अपरिचित इलाके या अन्य मांसाहारी जानवरों से होने वाले खतरे।” “उन्हें पानी, शिकार और आश्रय के स्थान को जानने से भी लाभ होता है।” यह व्यवहार रिश्तेदारों के बीच सहिष्णुता को बढ़ावा देता है, आक्रामकता को कम करता है और जीवित रहने की संभावना बढ़ाता है। वास्तव में, पन्ना के अध्ययनों में पाया गया कि फिलोपेट्रिक मादाओं की जीवित रहने की दर (~ 84%) उन मादाओं की तुलना में काफी ज्यादा थी जो दूर तक जाती थीं।
आखिर में, नर और मादा बाघों के घर अक्सर आपस में मिलने वाले क्षेत्र में होते थे, लेकिन संभोग अवधि के बाहर एक साथ वास्तविक गतिविधि दुर्लभ था। कुछ मादाओं को सालों से एक ही नर साथी के पास लौटते हुए देखा गया, जो चुनिंदा साथी को पसंद करने के बारे में बताता है। महत्वपूर्ण रूप से, शोधकर्ताओं को ट्रैक किए गए बाघों के बीच करीबी रिश्तेदारों के बीच संभोग का कोई सबूत नहीं मिला, जो अंतःप्रजनन से बचने के लिए सहज तंत्र का संकेत देता है। यह फिर से बसाई गई आबादी में आनुवंशिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी है।
संरक्षण के लिए उपयोगिता
पन्ना से मिले नतीजे दूसरी जगहों पर बाघों के संरक्षण और फिर से बसाने की कोशिशों के लिए महत्वपूर्ण सबक देते हैं।
उदाहरण के लिए, बाघों को समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से फिर से बसाया जाना चाहिए। झाला कहते हैं, “यह काम तब सबसे अच्छा होता है जब इसे पारिस्थितिकी तंत्र के खराब होने या इसमें बड़े बदलाव होने से पहले किया जाता है।” “पन्ना में, शिकार का आधार और आवास बरकरार रहा, इसलिए हम पारिस्थितिकी संतुलन को बदले बिना बाघों को फिर से बसा पाए।”

इसके अलावा, शोधकर्ता चरणबद्ध तरीके से बसाने का सुझाव देते हैं, जिसमें एक बार में कई बाघों के बजाय एक या दो बाघों को शामिल किया जाता है। दत्ता कहते हैं, “इससे प्रभुत्व-संबंधी आक्रामकता को रोका जा सकता है, साथी चुनने के लिए समय मिल सकता है और आनुवंशिक विविधता को संरक्षित किया जा सकता है।”
अध्ययन से पता चला कि मिलते-जुलते इलाकों का मतलब संपर्क नहीं है। आईएबी विश्लेषण के साथ स्थिर और बदलने वाले डेटा को जोड़ने पर यह इस सोच से आगे बढ़ गया और असल व्यवहार के पैटर्न की पुष्टि हुई। यह नजरिया संरक्षणवादियों को ना सिर्फ क्षेत्र पर बल्कि रिश्तों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मानचित्रों की व्याख्या करने में मदद कर सकता है।
इसमें यह भी पाया गया कि मां के साथ संबंध बहुत अहम हैं। मां और शावक के बीच लगभग दो साल का सीखने का समय जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है। शावक शिकार करना, इलाके में घूमना और खतरे से बचना सीखते हैं। दत्ता कहते हैं, “इन संबंधों के महत्व को पहचानना स्थानांतरण प्रोटोकॉल को बेहतर बना सकता है, यह पक्का करते हुए कि शावक समय से पहले अलग ना हों और परिवार समूहों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाए।”
भविष्य की रणनीति
अध्ययन की अपनी सीमाएं थीं। पन्ना में सभी बाघों को कॉलर नहीं पहनाया गया था, इसलिए खास तौर पर बिना निगरानी वाले बाघों के साथ कुछ संपर्क दस्तावेज में दर्ज नहीं किए गए। ऊबड़-खाबड़ इलाकों में जीपीएस सिग्नल भी बाधित हो सकते हैं, जिससे डेटा में फर्क आ सकता है।
इसके अलावा, बाघों को अक्सर अकेले देखा जाता है, लेकिन उनकी मौजूदगी पारिस्थितिकी संबंधों की जटिलता को प्रभावित करती है और उससे प्रभावित होती है। पन्ना में, जहां तेंदुए, भेड़िये, लकड़बग्घे, सियार और अन्य शिकारी भी घूमते हैं, बाघों की आवाजाही के पैटर्न अन्य पहलुओं जैसे शिकार के बंटे होने या शिकारी गतिविधि को प्रभावित कर सकते हैं। शोधकर्ताओं को यह भी पता चला कि तापमान, पानी की उपलब्धता और यहां तक कि चंद्रमा के चंद्र चक्र जैसे पर्यावरणीय कारक उनके संपर्क को तय कर सकते हैं।
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फिर भी, यह अध्ययन बाघों के व्यवहार को समझने में बड़ी छलांग है। भविष्य को देखते हुए, शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वे निगरानी का विस्तार करके कई प्रजातियों को शामिल करेंगे। उनकी स्थानीय गतिशीलता की तुलना करने से इस बारे में गहराई से जानकारी मिल सकती है कि कैसे फिर से बसाए गए सबसे बड़े शिकारी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नया रूप देते हैं।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 9 जून, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: शोधकर्ताओं ने इस बात पर नजर रखी कि क्या फिर से बसाए गए बाघ संभोग के लिए एक-दूसरे के इलाकों में जाते हैं, शिकार साझा करते हैं, एक-दूसरे से मिलने वाले क्षेत्रों में गश्त करते हैं या जानबूझकर एक-दूसरे से बचते हैं। तस्वीर- सुप्रतिम दत्ता।