Site icon Mongabay हिन्दी

मध्य भारत के शहरी माहौल में ढल रहे हैं तेंदुए

मध्य प्रदेश में कैमरे ट्रैप में कैद एक तेंदुआ। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार

मध्य प्रदेश में कैमरे ट्रैप में कैद एक तेंदुआ। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार

  • एक अध्ययन में पाया गया है कि इंदौर और जबलपुर के तेजी से बदलती शहरी परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए तेंदुए अपने खान-पान और रहन सहन की आदतों में बदलाव कर रहे हैं।
  • अब तेंदुओं के प्राकृतिक शिकार में मवेशी और पालतू कुत्ते भी शामिल हो गए हैं।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए तेंदुओं के मुख्य आवासों और गलियारों की पहचान और उनका संरक्षण करना जरूरी हो गया है।

जैसे-जैसे शहर बढ़ते जा रहे हैं और कंक्रीट के जंगल प्राकृतिक आवासों की जगह ले रहे हैं, वन्यजीवों को इंसानी दुनिया के अनुकूल ढलने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सबसे रहस्यमय लेकिन बड़ी आसानी से नए माहौल में ढलने वाली ऐसी ही एक प्रजाति तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस) है।

मध्य भारत में हुए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि कैसे तेंदुए इस क्षेत्र के तेजी से बदलती शहरी परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए खुद को ढाल रहे हैं। अध्ययन के लेखकों में से एक, जबलपुर स्थित राज्य वन अनुसंधान संस्थान के पशु पारिस्थितिकी प्रभाग के प्रभारी और वैज्ञानिक अनिरुद्ध मजूमदार कहते हैं, “संरक्षण के लिए तेंदुओं की सही संख्या का अनुमान जरूरी है, लेकिन गलत डेटा अक्सर शोधकर्ताओं को विशेषज्ञों की राय या गलत तरीकों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है। इससे तेंदुओं के व्यवहार, उनके रहन-सहन के तरीके और आपसी संबंधों को समझने में मुश्किल होती है। शहरी तेंदुओं पर बहुत कम अध्ययन हुए हैं, इसलिए शहरों में उनकी मौजूदगी का पता लगाना जरूरी हो गया है।”

मध्य प्रदेश के एक शहरी इलाके में घूमता हुआ तेंदुआ। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार
मध्य प्रदेश के एक शहरी इलाके में घूमता हुआ तेंदुआ। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार

रोल मॉडल

भारत में लगभग 13,874 तेंदुए हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 3,907 मध्य प्रदेश में हैं। इन बड़ी बिल्लियों (तेंदुओं) के शहर में रहने के तरीके को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने सितंबर 2021 से मई 2022 के बीच इंदौर और जबलपुर जैसे दो प्रमुख शहरी इलाकों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक अध्ययन किया था।

उनकी संख्या का अनुमान लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने कैमरा ट्रैप मार्क-रिकैप्चर तरीके का इस्तेमाल किया, जो इस दुर्लभ प्रजातियों के लिए प्रभावी साबित हुई। वितरण मॉडल तैयार करने के लिए कैमरा ट्रैप और साइन सर्वेक्षणों से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल किया गया।

शहरी क्षेत्रों में तेंदुओं के रहने के लिए सही जगहों का पता लगाने के लिए एक मशीन लर्निंग टूल ‘मैक्सेंट’ का भी इस्तेमाल किया गया। मजूमदार बताते हैं, “इस मॉडल ने ऊंचाई, ढलान, भूमि उपयोग, जल निकासी और जल निकायों जैसे पर्यावरणीय कारकों पर विचार किया। प्रजातियों की मौजूदगी का डेटा पूरे अध्ययन क्षेत्र में फैला हुआ था। फिर इस डेटा को मैक्सेंट सॉफ्टवेयर के लिए तैयार किया गया। मॉडल का मुख्य हिस्सा एक एल्गोरिदम था जो जो उनकी उपस्थिति के रिकॉर्ड और तापमान, वर्षा और मानवीय गतिविधि जैसे पर्यावरणीय कारकों के आधार पर प्रजातियों के वितरण की भविष्यवाणी करता है। आसान शब्दों मे कहें, तो ये बताता है कि तेंदुए शहर में कहां रह सकते हैं।”

इसका नतीजा क्या रहा? इन शहरी इलाकों में तेंदुओं के जीवन जीने की एक विस्तृत और सटीक तस्वीर सामने आई।

तेंदुओं के शहरी जीवन जीने के तरीकों को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के दो मुख्य शहरी क्षेत्रों,-इंदौर और जबलपुर में एक विस्तृत अध्ययन किया। तस्वीर- अनिरुद्ध मजूमदार
तेंदुओं के शहरी जीवन जीने के तरीकों को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के दो मुख्य शहरी क्षेत्रों,-इंदौर और जबलपुर में एक विस्तृत अध्ययन किया। तस्वीर- अनिरुद्ध मजूमदार

शहरी जीवन की चुनौतियों के बीच

शहरी जीवन की चुनौतियों के बावजूद, तेंदुओं ने मनुष्यों के साथ रहने की एक प्रभावशाली क्षमता दिखाई। अध्ययन में इंदौर में 23 तेंदुए (लगभग 4.8 तेंदुओं की भिन्नता के साथ) और जबलपुर में 17.6 तेंदुए (5.4 की भिन्नता के साथ) होने का अनुमान लगाया गया है, जो दोनों शहरों में मानव बस्तियों की उच्च घनत्व को देखते हुए एक बड़ी संख्या है।

अध्ययन से पता चला कि इंदौर में तेंदुओं को रहने के लिए सबसे अच्छी जगहें दक्षिण में थीं, जबकि जबलपुर में सबसे अच्छी जगहें केंद्रीय-पूर्वी भाग तक सीमित थीं। इन अच्छी जगहों के आसपास, कुछ मध्यम जगहें भी थीं जहां तेंदुए रह सकते थे।

इस अध्ययन में तेंदुओं के रहने की जगहों को प्रभावित करने वाले मुख्य पर्यावरणीय कारकों की भी पहचान की गई। इंदौर में, भूमि उपयोग, बारिश, दैनिक तापमान में उतार-चढ़ाव और मानवीय गतिविधियां महत्वपूर्ण कारक थे। जबलपुर में, आवास की उपयुक्तता मौसमी बारिश, ऊंचाई और तापमान की चरम सीमाओं से प्रभावित थी।

हालांकि, दोनों शहरों में तेंदुओं के वितरण में स्पष्ट अंतर देखने को मिले। मजूमदार कहते हैं, “इंदौर में, तेंदुए मुख्य रूप से शहर की सीमाओं के बाहर देखे गए, जहां वे शहरी इलाकों से दूरी बनाए रखते थे। दूसरी ओर, जबलपुर में तेंदुए नगरपालिका की सीमाओं के भीतर निजी भूमि पर निवास करते देखे गए। दोनों शहरों में संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन वन विभाग द्वारा किया जाता है, लेकिन जंगल का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सेना के अधिकार क्षेत्र में है।”

शहरी वातावरण में तेंदुओं के जीवित रहने का एक मुख्य कारण उनकी भोजन में बदलाव करने की क्षमता था। अध्ययन में पाया गया कि अपने प्राकृतिक शिकार के अलावा, तेंदुए पालतू जानवरों और घरेलू कुत्तों को भी खा रहे हैं। इससे पता चलता है कि इंसानों के इलाकों में भी वो खाने का जुगाड़ ढूंढ लेते हैं।

अध्ययन में वन्यजीव गलियारों के महत्व पर भी जोर दिया गया, जो वन क्षेत्रों और मानव बस्तियों के बीच तेंदुओं की आवाजाही में मदद करते हैं। ये गलियारे महत्वपूर्ण जीवनरेखा के रूप में कार्य करते हैं, जिससे तेंदुओं को शहरी क्षेत्रों में आवागमन में मदद मिलती है और मनुष्य के साथ सीधे टकराव को कम किया जा सकता है।

शहरी वातावरण में तेंदुओं के जीवित रहने का एक मुख्य कारण उनके भोजन में बदलाव करने की क्षमता था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, शिकार की आबादी की नियमित निगरानी भी जरूरी है। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार
शहरी वातावरण में तेंदुओं के जीवित रहने का एक मुख्य कारण उनके भोजन में बदलाव करने की क्षमता था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, शिकार की आबादी की नियमित निगरानी भी जरूरी है। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार

आगे की राह

जैसे-जैसे शहर बढ़ते जा रहे हैं, बुनियादी ढांचे और व्यावसायिक गतिविधियों का विस्तार वन्यजीवों के लिए बढ़ते खतरे पैदा कर रहा है। इस संबंध में, शोधकर्ता मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिए तेंदुओं के प्रमुख आवासों और गलियारों की पहचान करने और उन्हें संरक्षित करने के महत्व पर जोर देते हैं। शहरी तेंदुए के इलाकों में संरक्षित क्षेत्रों और पूरक आवासों के नेटवर्क को मजबूत करना दीर्घकालिक संरक्षण के लिए जरूरी है।

अध्ययन में, इंसानों और वन्यजीवों के बीच टकराव को कम करने के लिए, कुछ उपाय सुझाए गए हैं। मजूमदार कहते हैं, “मवेशियों को सुरक्षित रखने के तरीके, जैसे शिकारियों से बचाने वाले बाड़े लगाना, तेंदुए से होने वाले नुकसान के लिए समय पर मुआवजा देना, और बेहतर पशुपालन तकनीक, तेंदुए और लोगों की आजीविका दोनों की रक्षा कर सकते हैं। शिकार की आबादी पर नजर रखना भी ज़रूरी है, क्योंकि बड़े जंगलों में शिकार करने से तेंदुओं के लंबे समय तक जीवित रहने में मदद मिलती है। इसके लिए आवास का रखरखाव, जाल लगाने वालों पर नजर रखना और इंसानों की दखलअंदाजी को कम करना है।”


और पढ़ेंः घने जंगलों और इंसानी बस्तियों के पास तेंदुए के शिकार का अलग-अलग पैटर्न


इसके अलावा, वन्यजीव गलियारों को सुरक्षित रखने के लिए उन रास्तों को बनाए रखना और उनकी निगरानी करना जरूरी है जिनसे तेंदुए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं – जैसे कि सूखे या पानी वाले झरने। तेंदुओं की गतिविधियों और उनकी संख्या पर नजर रखने के लिए बेहतर तरीके अपनाए जा सकते हैं। इनमें हर साल कैमरा ट्रैप लगाकर सर्वे करना, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी रखना और रेडियो-टेलीमेट्री अध्ययन शामिल हैं। इससे तेंदुओं की गतिविधियों और उनकी आबादी के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकती है।

शहरी तेंदुओं की आबादी की निरंतर निगरानी संरक्षण प्रयासों और शहरी विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। मजूमदार कहते हैं, “जबलपुर और इंदौर में, जहां तेंदुए रहते हैं, उन जगहों को सबसे ज्यादा सुरक्षा मिलनी चाहिए।” संरक्षण के तरीकों को वैज्ञानिक तरीके से निगरानी के साथ मिलाकर ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि तेंदुए शहरों में भी फलते-फूलते रहें और आवास साझा करने वाले लोगों के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व बनाए रखें।


यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 18 फरवरी 2025 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: मध्य प्रदेश में कैमरे ट्रैप में कैद एक तेंदुआ। तस्वीर-अनिरुद्ध मजूमदार

Exit mobile version