- कोयला राजधानी धनबाद में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, लेकिन पुराने कुओं और स्थानीय प्रयासों से जल सुरक्षा की एक नई राह बन रही है।
- धनबाद में भूजल दोहन दर झारखंड में सबसे अधिक 73% से ऊपर पहुंच चुकी है और लगातार गिरते जलस्तर ने जल संकट को गहरा दिया है। लेकिन शहर में पुराने कुओं के पुनर्जीवन और वर्षा जल संचयन से हालात सुधरने लगे हैं।
- मेघ पाईन अभियान और नगर निगम के सहयोग से चल रहे शैलो एक्विफर प्रबंधन पायलट प्रोजेक्ट से इन कुओं का जलस्तर साल भर बना रहता है और लोगों की जरूरतें पूरी हो रही हैं।
धनबाद के झरिया क्षेत्र के नीचा मोहल्ला में रहने वाली कुसुम देवी कुछ साल पहले मोहल्ले में आए जल संकट को याद करती हैं। कुओं में पानी नहीं था तो कुसुम दूसरी बस्तियों में पानी लेने जाती थीं। “अपना कुआं क्यों नहीं बना लेतीं?” कुसुम ने उन तानों को याद किया जो पानी भरने के दौरान उन्हें और उनके मोहल्ले की बाकी महिलाओं को दिए जाते थे।
हालांकि, अब स्थिति बदल चुकी है। कुसुम गर्व से उस कुएं की ओर इशारा करती हैं, जिसे उन्होंने अपने हाथों से खोदकर जिंदा किया। वर्ष 2017 में, कुसुम देवी और उनकी साथियों ने ठान लिया कि अपमान झेलने से बेहतर है अपने पुराने कुएं को फिर से जीवित करना। उन्होंने बिना किसी मदद के मलबा हटाया, पत्थर तोड़े और कुएं को नया जीवन दिया। कुसुम कहती हैं, “पहले मार्च में ही कुआं सूख जाता था, अब गर्मियों में भी पानी बना रहता है।”
नीचा मोहल्ला की महिलाओं की कहानी धनबाद के जल संकट के बीच उम्मीद की एक मिसाल है। कभी उपेक्षित और कूड़े से भरे उस कुएं को उन्होंने अपने हाथों से साफ किया और फिर से जिंदा किया, जो आज भी सैकड़ों लोगों की प्यास बुझा रहा है। यह बदलाव केवल एक मोहल्ले तक सीमित नहीं रहा बल्कि बैरा कॉलोनी, भगतडीह, जीवन ज्योति स्कूल और लक्ष्मी कॉलोनी जैसे इलाकों में भी पुराने कुओं का पुनर्जीवन हुआ और लोगों को साल भर पानी मिलने लगा।
धनबाद नगर निगम क्षेत्र की बैरा कॉलोनी में 34 फीट गहरा सामुदायिक कुआं 1,000 से अधिक लोगों की प्यास बुझाता है। स्थानीय निवासी भोला कुमार बताते हैं, “पहले मार्च आते-आते कुआं सूख जाता था, हमें रात डेढ़ बजे पानी खींचना पड़ता था। बोरिंग भी कराई, लेकिन 300 फीट बाद भी पानी नहीं मिला।” अब मरम्मत के बाद गर्मियों में भी कुएं में पानी बना रहता है, भले जलस्तर नीचे चला जाए।
झरिया क्षेत्र का भगतडीह भी इसी तरह का उदाहरण है, जहां करीब 100 साल पुराना ब्रिटिश कालीन कुआं आज भी 500 परिवारों की प्यास बुझा रहा है। स्थानीय निवासी मो. सतार मियां कहते हैं, “गर्मी में पानी का स्तर नीचे चला जाता है, लेकिन यह कुआं कभी सूखा नहीं।” हाल ही में इसकी मरम्मत ने इसे और मजबूत बना दिया है। यह कुआं न केवल जल स्रोत है, बल्कि समुदाय की साझा स्मृति भी है।

इसी तरह, जीवन ज्योति स्कूल फॉर स्पेशल चिल्ड्रन का कुआं पहले गर्मियों में सूख जाता था, लेकिन रेनवॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक लगने के बाद अब वर्षा जल सीधे भूजल में जाता है और स्कूल को साल भर पानी मिलता है। धनबाद नगर निगम के सिंदरी सर्कल स्थित लक्ष्मी कॉलोनी में भी 37 परिवारों का एकमात्र कुआं, जो हर साल मार्च तक सूख जाता था, अब पूरे साल पानी उपलब्ध कराता है और रोजाना 185 लोगों की जरूरतें पूरी करता है।
इन पांच बस्तियों का यह बदलाव कुओं के पुनर्जीवन और शैलो एक्वीफर मैनेजमेंट के पायलट प्रोजेक्ट से आया है, जिसने समुदाय को पानी की स्थायी राह दिखाई।
शैलो एक्विफर प्रबंधन और कुओं का पुनर्जीवन
धनबाद को AMRUT 2.0 के तहत 10 शहरों में से एक पायलट साइट चुना गया। 2022 की रिपोर्ट में पाया गया कि शहर की 52% जलापूर्ति सतही स्रोतों से और 48% भूजल पर निर्भर है। धनबाद में 69 कुएं और 34 तालाब है, जिनमें से पाँच कुओं को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। जिसका मुख्य उद्देश्य भूजल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करना है। धनबाद इस कार्यक्रम में सबसे छोटा शहर है।
नगर आयुक्त, धनबाद रविराज शर्मा ने बताया कि वर्षा जल संचयन नगर निगम की प्राथमिकता है। गिरते भूजल स्तर को देखते हुए डीप बोरिंग पर रोक लगाई गई है और भवन निर्माताओं को रेनवॉटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत पुनर्जीवित कुओं का मेघ पाईन अभियान साप्ताहिक जलस्तर मॉनिटर करता है ताकि यह मॉडल अन्य कुओं में भी लागू हो सके।
नगर निगम को इसे कार्यान्वित करने में मेघ पाईन अभियान संस्था ने सहयोग किया। “हमने 69 कुओं में से पाँच को पायलट के लिए चुना, जिन पर सबसे ज्यादा निर्भरता थी। दो साल की मेहनत से ये कुएं पुनर्जीवित हुए और जलस्तर भी बढ़ा। इस पहल का उद्देश्य लोगों में भूजल के प्रति जागरूकता लाना है।” मेघ पाईन अभियान संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी एकलव्य प्रसाद ने मोंगाबे हिन्दी को कहा।
“इसके लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग, रिचार्ज वेल, पिट और तालाबों के पुनर्जीवन जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया। कुओं की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों ने खुद उठाई और सतत जल उपयोग की परंपरा विकसित की,” वह आगे कहते हैं।
इसके साथ उन्होंने इन पाँच कुओं का एक साल का डाटा प्रस्तुत किया। इन पाँच कुओं का एक साल का डाटा दर्शाता है कि इनमें पानी की कमी नहीं हुई। बल्कि, पिछले जून से इस जून तक जलस्तर 10 से 20 फीट तक बढ़ा है और यह कभी भी पहले जितना नीचे नहीं गया।
क्यों जरूरी है ये पहल
झारखंड का औद्योगिक केंद्र धनबाद, जिसे भारत की कोयला राजधानी कहा जाता है, आज गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ की जमीन के नीचे भरा पानी (भूजल) खनन और घटती बारिश के कारण साल दर साल घट रहा है। डायनेमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज ऑफ झारखंड 2024रिपोर्ट बताती है कि राज्य की औसत भूजल निष्कर्षण दर 31.43% है, लेकिन धनबाद में यह 73.24% तक पहुँच चुकी है, जो इसे गंभीर श्रेणी में रखती है। 2009 में यह दर केवल 52% थी।
धनबाद के कई ब्लॉक बेहद नाजुक स्थिति में हैं। धनबाद सदर और तोपचांची में भूजल दोहन की दर क्रमशः 95.65% और 93.46% दर्ज हुई है। बाघमारा में यह पिछले वर्ष की तुलना में बढ़कर 72.87% पहुँच गया है, जबकि बलियापुर ब्लॉक की दर 110.03% है, जो इसे “ओवर एक्सप्लोइटेड” श्रेणी में रखता है, यानी जितना रिचार्ज हो रहा है, उससे ज्यादा पानी निकाला जा रहा है।
वर्षा की कमी ने भी संकट को और गहरा किया है। ग्राउंड वाटर इंफॉर्मेशन बुकलेट (2013) के अनुसार धनबाद में औसतन 1306 मिमी वर्षा दर्ज होती थी, जो घटकर 2024 में सिर्फ 1074 मिमी रह गई। इसका सीधा असर भूजल पुनर्भरण पर पड़ा है।
ग्राउंड वाटर ईयर बुक 2022-23 और भी चिंताजनक तस्वीर दिखाती है, धनबाद के 71.34% कुओं में पिछले एक दशक में जलस्तर की गिरावट हुई है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 700 मिलियन लोग भूजल पर निर्भर हैं, जिनमें 85% ग्रामीण और 45% शहरी आबादी शामिल है। धनबाद में स्थिति और भी गंभीर है, सिर्फ दो साल में भूजल स्तर 20 फीट नीचे चला गया। इसके साथ ही, पानी की खपत का पैटर्न भी असंतुलित है। डायनेमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ झारखंड 2024 के मुताबिक, धनबाद में रोजाना करीब 19 मिलियन गैलन पानी निकाला जा रहा है। इसमें से 10 मिलियन गैलन से अधिक उद्योगों द्वारा, 6 मिलियन गैलन घरेलू उपयोग में और 3 मिलियन गैलन कृषि में खपत हो रहा है। यानी सबसे अधिक दबाव उद्योगों से है।
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आईआईटी (ISM) धनबाद के प्रोफेसर बिस्वजीत पॉल बताते हैं कि झरिया-धनसार क्षेत्र का सेडिमेंट्री रॉक पानी का बड़ा भंडार है, लेकिन गहरी कोयला खदानों के कारण इसका प्राकृतिक पुनर्भरण बाधित होता है। खदानों में जमा पानी को लगातार पंप कर बाहर निकालना पड़ता है, जिससे भूजल स्तर और भी प्रभावित होता है।
इसके बीच, जहां भूमि धंसान नहीं हुआ है, वहां मौजूद शैलो एक्विफर आज भी पानी रोककर समुदाय की प्यास बुझा रहे हैं। यही परतें धनबाद की जल आत्मनिर्भरता का सबसे अहम आधार बन रही हैं। पॉल मानते हैं कि रोजाना उद्योगों से निकलने वाले लगभग 10 मिलियन गैलन पानी को ट्रीट कर सप्लाई में जोड़ना चाहिए, लेकिन शैलो एक्विफर ही असली और टिकाऊ समाधान हैं।
बैनर तस्वीरः पुनर्जीवित कुएं के पास खड़ी कुसुम देवी और अन्य महिलाएं। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे