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गुफा में मिला करोड़ों साल पुराना जीवाश्म चोरी हुआ, अवैध व्यापार पर उठे सवाल

प्राधिकारियों को इस जीवाश्म के बारे में सूचित किए जाने के कई महीनों बाद कथित तौर पर जीवाश्म के कुछ हिस्से चोरी हो गए। माना जा रहा है कि यह जीवाश्म विलुप्त हो चुके रोडोसेटस या एम्बुलोसेटस वंश का है। तस्वीर- ग्रेग वारजरी, कोर जियो एक्सपीडिशन्स 

प्राधिकारियों को इस जीवाश्म के बारे में सूचित किए जाने के कई महीनों बाद कथित तौर पर जीवाश्म के कुछ हिस्से चोरी हो गए। माना जा रहा है कि यह जीवाश्म विलुप्त हो चुके रोडोसेटस या एम्बुलोसेटस वंश का है। तस्वीर- ग्रेग वारजरी, कोर जियो एक्सपीडिशन्स 

  • मेघालय में 2024 में खोजे गए एक प्रागैतिहासिक व्हेल के जीवाश्म जबड़े के कुछ हिस्से कथित तौर पर चोरी हो गए हैं।
  • माना जा रहा है कि यह जीवाश्म विलुप्त हो चुके रोडोसेटस या एम्बुलोसेटस वंश से संबंधित है। ये आधुनिक व्हेल के पूर्वज थे, जो कभी जमीन पर रहते थे और बाद में समुद्री स्तनधारियों के रूप में विकसित हो गए।
  • इसे एक बड़ा वैज्ञानिक नुकसान माना जा रहा है क्योंकि गहन अध्ययन और विश्लेषण से पहले ही यह नमूना चोरी हो गया।

मार्च 2024 में, रोमानियाई स्पेलोलॉजिस्ट ट्यूडर एल. टॉमस स्थानीय गाइड मिल्टन एम. संगमा और सालबन एम. संगमा के साथ मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले के तोलेग्रे गांव के पास स्थित गुफाओं का अध्ययन रहे थे। गोंगडाप कोल सिंकहोल की इन्हीं गुफाओं में से एक में, टीम को चूना पत्थर में उभरे काले नुकीले दांतो वाला एक बड़ा जबड़ा मिला।

गैर-लाभकारी संगठन कोर जियो एक्सपेडिशन्स के लिए काम कर रही टीम ने इस खोज के बारे में तुरंत अधिकारियों को सूचित किया। इसके बाद भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने स्थल का निरीक्षण किया और अनुमान लगाया कि यह जीवाश्म मध्य इओसीन काल (39-47 मिलियन वर्ष पूर्व) के एक प्रागैतिहासिक व्हेल का है।

लेकिन इस अद्वितीय खोज को महज दस महीने बाद ही झटका लग गया। 27 जनवरी 2025 को खबर आई कि इस ऐतिहासिक जीवाश्म के कुछ हिस्से गुफा से चोरी हो गए हैं। पुलिस के अनुसार चोरों ने गुफा के प्रवेश द्वार पर लगी लोहे की जाली काटकर अंदर घुसपैठ की और जीवाश्म को नुकसान पहुंचाया।

साउथ गारो हिल्स जिले के पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र बामनिया ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “टोलग्रे गांव के लोग इस जीवाश्म की सुरक्षा कर रहे थे। इस सुरक्षित रखने के लिए गुफा के प्रवेश द्वार पर एक लोहे की जाली भी लगाई गई थी। लेकिन चोर उस जाली को काटकर अंदर घुस गए और जीवाश्म के कुछ हिस्से चोरी कर ले गए।” उन्होंने आगे कहा, “28 जनवरी को सिजू थाने में एफआईआर दर्ज की गई। हम जांच कर रहे हैं और स्थानीय लोगों के बयान ले लिए गए हैं।” मामले में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 329(3) (आपराधिक अतिक्रमण) और 305(ई) (चोरी) के तहत दो केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है।

मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले में एक गुफा का अध्ययन करते समय, कोर जियो एक्सपेडिशंस के सदस्यों को एक प्रागैतिहासिक जीवाश्म के जबड़े के हिस्से मिले। ये जीवाश्म टोलेग्रे गांव के स्थानीय लोगों द्वारा संरक्षित थे। तस्वीर- ग्रेग वारजरी, कोर जियो एक्सपेडिशंस
मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले में एक गुफा का अध्ययन करते समय, कोर जियो एक्सपेडिशंस के सदस्यों को एक प्रागैतिहासिक जीवाश्म के जबड़े के हिस्से मिले। ये जीवाश्म टोलेग्रे गांव के स्थानीय लोगों द्वारा संरक्षित थे। तस्वीर- ग्रेग वारजरी, कोर जियो एक्सपेडिशंस

बमानिया और उनकी टीम ने घटना के बाद 27 जनवरी को गुफा की छानबीन की। उन्होंने कहा, “वहां पहुंचना काफी मुश्किल है। रास्ता बहुत संकरा है और हमें उस जगह तक पहुंचने के लिए 300 फीट से अधिक दूरी तक रेंगना पड़ा था।”

मेघालय के शिक्षा मंत्री, राक्कम ए. संगमा, जो इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले रोंगारा सिजू निर्वाचन क्षेत्र के विधायक भी हैं, ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया से कहा, “यह राज्य और देश दोनों के लिए एक गंभीर नुकसान है। ग्रामीणों की ओर से जीवाश्म को बचाने के सभी प्रयासों के बावजूद, किसी ने घने जंगल से घुसकर चोरी की होगी।”

उन्होंने आगे बताया कि सरकार जीवाश्म को प्रदर्शित करने के लिए साइट पर एक संग्रहालय बनाने पर विचार कर रही थी। लेकिन चोरी के बाद योजना पर विराम लग गया है।

मोंगबे इंडिया ने इस घटना के संबंध में जीएसआई से संपर्क किया था, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

प्राचीन व्हेल के पूर्वज

मार्च 2024 में इसकी खोज के बाद, जीएसआई ने स्थल की जांच की और कुछ नमूने भी इकट्ठा किए। हालांकि, स्थानीय निवासियों ने स्थल की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली और जीएसआई सहित बाहरी लोगों के वहां जाने पर रोक लगा दी।

इस चोरी को एक बड़ा वैज्ञानिक नुकसान माना जा रहा है क्योंकि नमूना गहन अध्ययन और विश्लेषण से पहले चोरी हो गया, जो भूवैज्ञानिकों को उस क्षेत्र के प्राचीन जीवाश्म महत्व का आकलन करने में मदद करता।

माना जा रहा है कि यह जीवाश्म अब विलुप्त हो चुके वंश रोडोसेटस या एम्बुलोसेटस का है – जो आधुनिक व्हेल के पूर्वज हैं। व्हेल लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले स्थलीय स्तनधारियों से विकसित हुई थीं। देश के अन्य स्थानों, जैसे कच्छ, गुजरात और कालाकोट, जम्मू और कश्मीर में आदिम व्हेल के पूर्वजों के जीवाश्म पाए गए हैं। अब, मेघालय में दक्षिण गारो हिल्स इस सूची में शामिल हो गया है।

आईआईटी-रुड़की में पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रमुख, जीवाश्म विज्ञानी सुनील बाजपेयी ने मोंगाबे इंडिया को समझाते हुए बताया, “व्हेल के पूर्वज आधुनिक समय में दरियाई घोड़े और हिरण के समान ही समूह से संबंधित थे। ये प्राचीन व्हेल शाकाहारी हुआ करते थे, लेकिन बाद में समुद्री स्तनधारियों के रूप में, वे मांसाहारी आहार, जैसे मछली, के अनुकूल हो गए।” उन्होंने जीवाश्म चोरी की हालिया घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की।

मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले में स्थित एक गुफा। प्रतिकात्मक तस्वीर- टिमोथी ए. गोंसाल्वेस, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।
मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले में स्थित एक गुफा। प्रतिकात्मक तस्वीर- टिमोथी ए. गोंसाल्वेस, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।

एक भूविज्ञानी ने कहा, “व्हेल के जीवाश्म की खोज का बहुत बड़ा वैज्ञानिक महत्व था। लेकिन इस चोरी के बाद इसे एक झटका लगा है। यह एक बड़ा नुकसान है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस देश में कोई भी इस वस्तु को कहीं बेच सकता है या इसे एंटीक के तौर पर रख सकता है। इसलिए, एक तरह से, चोर इस जीवाश्म से किसी भी तरह का कोई फायदा नहीं उठा सकते हैं। दरअसल, इतने सालों में यह बस एक चट्टान की तरह पड़ा था।” उन्होंने अपना नाम न छापने की इच्छा जताई क्योंकि उन्हें आधिकारिक तौर पर मीडिया से बात करने का अधिकार नहीं है।

यह पहली बार नहीं है जब मेघालय से जीवाश्म खोजा गया है। 2021 में, जीएसआई को पश्चिमी खासी पहाड़ियों में सॉरोपोड्स के 10 करोड़ साल पुराने अस्थि नमूने मिले थे। टाइटेनोसॉरियन सॉरोपोड्स बड़े शरीर वाले स्थलीय डायनासोर थे। मेघालय, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद टाइटेनोसॉरियन से मिलते-जुलते सॉरोपोड्स के नमूने खोजने वाला पांचवां भारतीय राज्य था।

अवैध व्यापार पर उठते सवाल

संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कई देशों में जीवाश्मों का व्यापार वैध है। वहां कई निजी संग्रहकर्ता अपने संग्रह के लिए जीवाश्म प्राप्त करने के लिए लाखों डॉलर खर्च करने को तैयार रहते हैं।

हालांकि, भारत में, जीवाश्मों का संग्रह और निजी स्वामित्व अवैध है। पुरावशेष और कला निधि अधिनियम, 1972, जीवाश्मों सहित पुरावशेषों की खुदाई, संरक्षण और व्यापार को नियंत्रित करता है। जीवाश्मों का अनधिकृत संग्रह, उत्खनन या व्यापार प्रतिबंधित है और इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं।

पिछले साल दिल्ली में आयोजित भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में जीएसआई के एक स्टॉल से 5 करोड़ साल पुराने जीवाश्म के चोरी हो गया था। बाद में अपराधी को नोएडा से गिरफ्तार किया गया। उसने इसे ऑनलाइन बेचने की अपनी योजना कबूल की। इससे जीवाश्मों की कालाबाजारी का संकेत मिलता है।

हालांकि, भारत में जीवाश्म व्यापार के बारे में ज्यादा आंकड़े या जानकारी उपलब्ध नहीं है। वन्यजीव अपराध से निपटने वाले अधिकारियों का कहना है कि वे जीवाश्म संबंधी मामलों से नहीं निपटते और उन्हें इस मुद्दे की कोई जानकारी नहीं है।

रोमानियाई स्पेलोलॉजिस्ट ट्यूडर एल. टॉमस के साथ स्थानीय गाइड मिल्टन संगमा और सालबन संगमा। तस्वीर: मिल्टन संगमा।
रोमानियाई स्पेलोलॉजिस्ट ट्यूडर एल. टॉमस के साथ स्थानीय गाइड मिल्टन संगमा और सालबन संगमा। तस्वीर: मिल्टन संगमा।

स्थानीय साझेदारी

किसान और प्रवक्ता अल्तार आर. मारक के अनुसार, चोरी के बाद, तोलेग्रे सहित सात गारो गांवों के नोकमास (ग्राम प्रधान) ने एक आपात बैठक बुलाई और जीएसआई को आगे की खोजों से प्रतिबंधित कर दिया गया। उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हमारा मानना ​​है कि बिना इजाजत की खोजबीन की वजह से ही चोरों का ध्यान इस तरफ गया और चोरी हो गई। जब तक चोर पकड़े नहीं जाते, तब तक हमारे इलाके की गुफाओं में कोई भी खोजबीन नहीं की जा सकेगी।”

उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में खोजबीन करने वाली टीमों को संबंधित नोकमास से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा और एक स्थानीय गाइड के साथ जाना होगा। टीमों को गुफाओं में प्रवेश और निकास के दौरान अपने औजारों की भी जानकारी देनी होगी।


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मेघालय की गारो हिल्स में, नोकमास पारंपरिक रूप से कर वसूलने और अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार रहे हैं। हालांकि 1947 के बाद व्यवस्था बदल गई है, लेकिन गारो हिलेस में भूमि अभी भी नोकमास के अधिकार क्षेत्र में आती है और राज्य भूमि संबंधी मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडियाकर्मियों को बताया था, “यह एक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हमें शुरुआती चरण में चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि यह क्षेत्र नोकमास के अधीन है। अगर हमने जबरदस्ती जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की होती, तो यह एक जटिल मुद्दा बन जाता। हम देखेंगे कि स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कैसे काम किया जाए और उम्मीद है कि जीएसआई को इन बहुत महत्वपूर्ण स्थानों की खुदाई की प्रक्रिया जारी रखने के लिए मना लिया जाएगा।”

जीएसआई के महानिदेशक असित साहा ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए मेघालय में भू-स्थलों के प्रबंधन और विकास के लिए समुदाय आधारित वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह नजरिया इन स्थलों की भूवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के अलावा, सामाजिक-आर्थिक अवसरों के जरिए आस-पास के गांवों को सशक्त भी बनाता है।


यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 5 मार्च 2025 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: प्राधिकारियों को इस जीवाश्म के बारे में सूचित किए जाने के कई महीनों बाद कथित तौर पर जीवाश्म के कुछ हिस्से चोरी हो गए। माना जा रहा है कि यह जीवाश्म विलुप्त हो चुके रोडोसेटस या एम्बुलोसेटस वंश का है। तस्वीर- ग्रेग वारजरी, कोर जियो एक्सपीडिशन्स

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