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बढ़ते तापमान, बाढ़ और सूखे से कैसे निपटें शहर? कोच्चि से सीखिए

कोच्चि शहर का विहंगम दृश्य। जानकारों का कहना है कि कोच्चि और पंजिम जैसे छोटे शहरों में आने वाले सालों में बहुत तेज़ी से शहरीकरण देखने को मिलेगा। तस्वीर: गेयो जॉन/विकिमीडिया कॉमन्स।

कोच्चि शहर का विहंगम दृश्य। जानकारों का कहना है कि कोच्चि और पंजिम जैसे छोटे शहरों में आने वाले सालों में बहुत तेज़ी से शहरीकरण देखने को मिलेगा। तस्वीर: गेयो जॉन/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • तेजी से बढ़ते भारतीय शहरों पर जलवायु आपदाओं का असर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारकों के कारण अलग-अलग होता है।
  • कोच्चि नगर निगम का थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर हेरिटेज, एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (सी-एचईडी)’ पर्यावरण इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और पारिस्थितिकी विशेषज्ञों की टीम के साथ मिलकर शहर को सुरक्षित और टिकाऊ बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में जलवायु चुनौतियों से निपटने वाली संस्थाओं को भविष्य के लिए एक विजन स्टेटमेंट तैयार करने, नवाचार और योजनाएं बनाने पर विशेष ध्यान देना होगा।

शहर जलवायु संकट के सबसे बड़े केंद्र में हैं। एक तरफ वे सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें पैदा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ गर्मी बढ़ने, बाढ़, सूखा और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं जैसी चुनौतियां से भी जूझ रहे हैं। भारत की शहरी आबादी भी लगातार बढ़ रही है। 2013 में यह करीब 32% थी, जो 2023 तक बढ़कर 36.3% हो गई। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2050 तक भारत की आधी से ज्यादा यानी लगभग 53% आबादी शहरों में रहेगी। इसका मतलब है कि करीब 41.6 करोड़ नए लोग शहरों में आकर बस जाएंगे।

जलवायु संकट के अलावा, शहरी बस्तियों की एक बड़ी आबादी बुनियादी सेवाओं से भी अछूती है। 2019 तक, हर छह में से एक शहरी निवासी ऐसे झुग्गी-इलाकों में रहता था जिन्हें इंसानी जीवन के लिए अनुपयुक्त माना गया है। एशियन डेवलपमेंट बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि जिन शहरों में गरीब और वंचित समुदाय के लोग रहते हैं, वहां पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत और सुविधाजनक योजनाएं बनाई जानी जरूरी हैं।

2011 में अमेरिका में हुई एक रिसर्च में देखा गया कि अर्बन क्लाइमेट रेजिलेंस यानी ‘शहरी जलवायु से निपटने की क्षमता’ को कैसे समझा और मापा जाता है। इस रिसर्च में “सीखने और नए तरीके अपनाने की क्षमता” एक महत्वपूर्ण पहलू बनकर सामने आया था।

अगर साल 2000 पर नजर डालें, तो केरल के छोटे यानी टियर-टू के शहर कोच्चि में स्थानीय सरकार पहले ही इस ओर अपने कदम बढ़ा चुकी है। वहां न सिर्फ इसे समझने, बल्कि इससे निपटने के लिए ठोस योजनाएं बनाने पर भी विचार हो रहा है।

कोच्चि में स्थानीय सरकारी निकाय ने चुपचाप एक मिसाल कायम की

यूनेस्को और अन्य संगठनों के तकनीकी सहयोग से, कोच्चि नगर निगम (केएमसी) ने 2002 में सेंटर फॉर हेरिटेज, एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (सी-एचईडी) नामक थिंक टैंक की स्थापना की। हालांकि पहले भी कचरा प्रबंधन के लिए कुछ प्रयास किए गए थे, लेकिन केएमसी चाहता था कि तेजी से बढ़ते शहर की जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक और टिकाऊ योजना बनाई जाए।

इस साल की शुरुआत में आवसन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक पेपर में कहा गया, “केएमसी शायद शायद अकेली ऐसी शहरी संस्था है, जिसके पास इस तरह की चिंताओं से निपटने के लिए एक अनुसंधान और विकास केंद्र है।” पेपर में यह भी बताया गया कि शुरुआत से ही सी-एचईडी नगर निगम के कामकाज में जलवायु बदलाव से जुड़ी बातों को शामिल करने की पहल करता रहा है। 2020 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी आवास और शहरी विकास निगम (हुडको) ने सी-एचईडी को उसके अभिनव शहरी प्रशासन मॉडल के लिए सम्मानित किया था। संगठन ने उसी वर्ष विश्व शहरी मंच पर भी भी अपना काम प्रस्तुत किया था।

सी-एचईडी ने ग्रीन बिल्डिंग चेकलिस्ट बनाई, जो हाउसिंग सोसायटी के लिए एक महत्वपूर्ण और ओपन एक्सेस रिसोर्स है। इसका कुछ हिस्सा उनके ‘सस्टेनेबल नेबरहुड’ प्रोजेक्ट में लागू किया गया है। इस प्रोजेक्ट में नवीकरणीय ऊर्जा, प्रकृति-आधारित सीवेज (एनबीएस) ट्रीटमेंट और ठंडी व हरी छत जैसे ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया गया है। सी-एचइडी की वेबसाइट के अनुसार, एनबीएस एक विकेंद्रीकृत तरीका है जिसे शहरी इलाकों में आसानी से अपनाया जा सकता है। आमतौर पर, सेप्टिक टैंक से निकलने वाला पानी गड्ढों के जरिए जमीन में रिस जाता है और भूजल को दूषित करता है। लेकिन एनबीएस में पानी को पौधों और कंकड़-पत्थरों की परत के नीचे से गुजारा जाता है, जहां मौजूद बैक्टीरिया फिल्टर का काम करते हैं। इसके बाद निकलने वाले पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

शुरू से सी-एचईडी के निदेशक रहे राजन चेडांबथ ने कहा, “हम बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट लागू नहीं करते। हम ज्यादातर छोटे-छोटे पायलट प्रोजेक्ट बनाते हैं, ताकि दूसरी एजेंसियां उन्हें अपनाकर आगे बढ़ा सकें।” केएमसी की सोची गई व्यापक सोच सी-एचईडी के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में दिखती है, जैसे विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण की बहाली, जैव-विविधता की सूची बनाना और आपदा से निपटने की तैयारी। सी-एचईडी की टीम में 14 पूर्ण-कालिक कर्मचारी हैं, जिनमें पर्यावरण इंजीनियर, शोधकर्ता, बागवानी विशेषज्ञ और पारिस्थितिकी वैज्ञानिक शामिल हैं।

कोच्चि शहर में सी-एचईडी द्वारा स्थापित एक प्रकृति-आधारित सीवेज सिस्टम। एनबीएस अपशिष्ट जल के उपचार का एक विकेंद्रीकृत तरीका है, जिसमें सेप्टिक टैंक से निकलने वाला पानी भूजल को दूषित नहीं करता है। दरअसल इस पानी को पौधों और कंकड़-पत्थर की परत के नीचे से प्रवाहित किया जाता है, जहां बैक्टीरिया एक फिल्टर की तरह काम करते हैं। तस्वीर- सीएचईडी
कोच्चि शहर में सी-एचईडी द्वारा स्थापित एक प्रकृति-आधारित सीवेज सिस्टम। एनबीएस अपशिष्ट जल के उपचार का एक विकेंद्रीकृत तरीका है, जिसमें सेप्टिक टैंक से निकलने वाला पानी भूजल को दूषित नहीं करता है। दरअसल इस पानी को पौधों और कंकड़-पत्थर की परत के नीचे से प्रवाहित किया जाता है, जहां बैक्टीरिया एक फिल्टर की तरह काम करते हैं। तस्वीर- सीएचईडी

बढ़ते तापमान से निपटने के लिए कावाकी पहल

2024 में, कोच्चि में भीषण गर्मी पड़ी। पलक्कड़ में 41.8 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो 1901 के बाद दूसरा सबसे अधिक तापमान था और यह औसत से 5.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। इस साल भी, फरवरी के मध्य में ही तापमान तेजी से बढ़ना शुरू हो गया। कोच्चि में बढ़ते हीट आइलैंड इफेक्ट के जवाब में, केएमसी ने कावाकी पहल शुरू की, जो सार्वजनिक स्थानों पर 1,200 देशी प्रजातियों के पौधे लगाने का एक समुदाय-आधारित वैज्ञानिक प्रयास है।

कोच्चि के मंगलवनम पक्षी अभयारण्य के साथ-साथ इसकी तटरेखा, बैकवाटर, मैंग्रोव और शहरी हरित क्षेत्र पक्षियों, सरीसृपों और अन्य जीवों की विविधता की मेजबानी करते हैं, जैसा 2020 में सी-एचईडी द्वारा विकसित जैव विविधता सूचकांक में दर्ज किया गया है। इस सूचकांक में 45 औषधीय पौधों की प्रजातियां भी दर्ज की गईं हैं। कोच्चि में जलीय, खारे और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र प्रचुर मात्रा में होने के कारण नहरों का संरक्षण बेहद जरूरी हो गया है। चेदम्बथ ने कहा, “हमने नहरों के संरक्षण के लिए काम तब शुरू किया था जब लोग इसे जरूरी नहीं समझते थे। जब बाढ़ बार-बार आने लगी, तो नगर निगम को धीरे-धीरे नहरों का महत्व समझ में आने लगा।”

सी-एचईडीका एक महत्वपूर्ण काम 2021 में प्रकाशित उनकी ‘क्लाइमेट रिस्क एंड रेजिलेंस असेसमेंट’ रिपोर्ट है, जो कोच्चि शहर के जलवायु जोखिमों का एक व्यापक तस्वीर पेश करती है। इसमें समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय कटाव, वर्षा के पैटर्न और उसके बाद आने वाली बाढ़, पानी की कमी, तापमान में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में लोगों, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और निर्मित अवसंरचना पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का आकलन भी शामिल है। समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र पर्यटन उद्योग, कोच्चि बंदरगाह और मत्स्य उद्योग बताए गए हैं। सी-एचईडी के मुताबिक, पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव कृषि और मत्स्य पालन को भी प्रभावित करता है, इसलिए उन्होंने जोर देते हुए शहर के अधिकारियों से “जोखिम स्थितियों में खाद्य प्रणालियों की उपलब्धता और उसकी मेपिंग” करने का आग्रह किया है।

सी-एचईडी के चेदम्बथ ने बताया कि कई प्रोजेक्ट इसलिए लागू नहीं हो पाते क्योंकि जनता को उनके बारे में पूरी समझ नहीं होती। कोच्चि शहर के लिए दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए गए थे, लेकिन इन प्लांट्स की आवश्यकता को लोगों तक सही ढंग से नहीं पहुंचाया जा सका, जिससे लोग विरोध में खड़े हो गए। चेदम्बथ ने कहा, “एक शहर बिना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के वैसा है जैसे एक घर जिसमें एयर कंडीशनिंग तो है लेकिन शौचालय नहीं।”

मंगलावनम बर्ड सैंक्चुअरी में एक इंडियन फ्लाइंग फॉक्स। यह सैंक्चुअरी कोच्चि शहर के लिए एक जरूरी ग्रीन लंग्स की तरह काम करती है और सी-एचईडी द्वारा तैयार किए गए जैव विविधता सूचकांक में सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों में से एक है। तस्वीर- गणेश मोहन टी, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।
मंगलावनम बर्ड सैंक्चुअरी में एक इंडियन फ्लाइंग फॉक्स। यह सैंक्चुअरी कोच्चि शहर के लिए एक जरूरी ग्रीन लंग्स की तरह काम करती है और सी-एचईडी द्वारा तैयार किए गए जैव विविधता सूचकांक में सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों में से एक है। तस्वीर- गणेश मोहन टी, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।

शहरी भारत का जलवायु परिवर्तन का सफर

भारतीय शहर तेजी से बढ़ रहे हैं और साथ ही बढ़ते जलवायु खतरों का सामना भी कर रहे हैं। बढ़ता तापमान, अप्रत्याशित मौसम, समुद्र स्तर में वृद्धि, बाढ़ और सूखा शहरी आबादी के लिए बढ़ते खतरे पैदा कर रहे हैं। हालांकि, इन खतरों का असर सामाजिक आर्थिक असमानताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारकों के कारण अलग-अलग होता है। इन परिस्थितियों को देखते हुए विशेषज्ञ स्थानीय स्तर पर योजना बनाने और सी-एचईडी जैसे संगठनों की भूमिका पर जोर दे रहे हैं।

नई दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान के पूर्व निदेशक और स्वतंत्र शहरी सलाहकार चेतन वैद्य कहते हैं, “केवल अकेले सरकार या फिर निजी संस्था कार्रवाई करें, यह पर्याप्त नहीं है। लेकिन गैर-सरकारी संस्थाओं या निजी क्षेत्र के लिए जलवायु परिवर्तन या शहर विकास के मुद्दों पर सरकार के साथ मिलकर काम करना चुनौतीपूर्ण होता है।” वह भारत सरकार आवसन और शहरी कार्य मंत्रालय रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं, जिसने सी-एचईडी को एक अनोखा मॉडल बताया था।

उन्होंने कहा, “इसलिए सी-एचईडी जैसा मंच, जो नगर निगम या विकास प्राधिकरण द्वारा समर्थित है और इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी भी है, शहर की योजना और कार्रवाई के लिए एक बेहतर विकल्प है।”

वैद्य ने आगे कहा कि ऐसी संस्था सरकार की पहुंच, वित्त और मानव संसाधनों की ताकत से लाभ उठा सकती है। जहां नगरपालिका जैसी सरकारी संस्था सहयोग और नवाचार को अपनाने में हिचकिचाती हैं, वहां सी-एचईडी जैसा इंटरडिसिप्लिनरी थिंकटैंक वह कमी पूरी करता है। उनके अनुसार, जो संस्थाएं शहरी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काम करती हैं, उन्हें शहर के भविष्य के लिए एक विजन स्टेटमेंट तैयार करना चाहिए, जो सी-एचईडी मॉडल की तरह नवाचार और योजना पर ध्यान केंद्रित करे।

2018 में, केरल में तबाही लाने वाली बाढ़ के दौरान व्हाइट गार्ड स्वयंसेवक बचाव अभियान चलाया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि जब कोई जलवायु आपदा आती है, तो स्थानीय स्तर पर विकास के लिए दिए गए वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा असरदार होता है, क्योंकि जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्थानीय अधिकारियों को पता होता है कि वास्तव में क्या जरूरी है। तस्वीर- Msp7com, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।
2018 में, केरल में तबाही लाने वाली बाढ़ के दौरान व्हाइट गार्ड स्वयंसेवक बचाव अभियान चलाया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि जब कोई जलवायु आपदा आती है, तो स्थानीय स्तर पर विकास के लिए दिए गए वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा असरदार होता है, क्योंकि जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्थानीय अधिकारियों को पता होता है कि वास्तव में क्या जरूरी है। तस्वीर- Msp7com, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के माध्यम से।

C40 के रीजन और मेयरल एंगेजमेंट की मैनेजिंग डायरेक्टर श्रुति नारायण कहती हैं कि शहरों की भूमिका जलवायु परिवर्तन के लिए तुरंत कदम उठाने में बेहद महत्वपूर्ण है। C40 दुनिया के बड़े शहरों के नेताओं का एक समूह है जो जलवायु परिवर्तन पर मिलकर काम करते हैं। उन्होंने बताया, “जब कोई जलवायु आपदा आती है, तो शहर हमेशा पहले प्रतिक्रिया देने वाले होते हैं। स्थानीय स्तर पर विकास के लिए दिए गए वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा असरदार होता है क्योंकि स्थानीय अधिकारी जानते हैं कि वास्तव में क्या जरूरी है। एक ऐसा तरीका होना चाहिए जिससे स्थानीय अधिकारी, पार्षद और वार्ड स्तर पर काम करने वाले नगर निगम के साथ मिलकर काम करें और फिर राज्य सरकार के साथ आगे बढ़ें। क्योंकि मुझे लगता है कि अभी सबसे बड़ी परेशानी इन सबके बीच तालमेल की कमी है।”


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नारायण ने आगे कहा कि आपदा की तैयारी में भी शहर उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। “स्थानीय अधिकारी भविष्य की प्लानिंग को बेहतर तरीके से समझते हैं, क्योंकि अगर कोई आपदा आती है, तो उन्हें पता होता है कि कौन से क्षेत्र और आबादी सबसे ज्यादा खतरे में हैं।”

वह कहती कि भारत में शासन प्रणालियों को जलवायु को मुख्यधारा में लाना चाहिए और शासन और जलवायु कार्रवाई को अलग अलग न देखकर एक साथ देखना चाहिए। उन्होंने कहा, “शहरों को जलवायु बजटिंग शुरू कर देनी चाहिए। शहरों के विकास प्राधिकरण, जो मास्टर प्लान बनाते हैं, उन्हें भी जलवायु कार्यों को अपने प्लान में शामिल करना होगा।”

उन्होंने यह भी जोर दिया कि देश भर के शहरी अधिकारियों को एक साथ आकर एक-दूसरे से सीखना चाहिए, खासकर सी-एचईडी जैसी संस्थाओं से, जिनके पास पहले से ही काफी अनुभव है।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के साथ काम करने वाली एक शहरी विकास पेशेवर और शोधकर्ता जया ढिंडाव ने मोंगाबे इंडिया को टेक्स्ट मैसेज पर लिखा, “सभी महानगरों के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इस तरह का एक विभाग/सेल या संस्थागत तंत्र होना चाहिए। ये तंत्र छोटे शहरों और शहरी क्षेत्रों में, आवश्यक कार्यान्वयन तंत्र प्रोटोकॉल और विशेषज्ञता के साथ जोनल या क्लस्टर स्तर पर मौजूद हो सकते हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि शहरी क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूत बनाने में सबसे बड़ी चुनौती अक्सर यह होती है कि जलवायु समाधान अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े होते हैं। उन्होंने लिखा, “अगर हम जमीनी स्तर पर असली बदलाव देखना चाहते हैं, तो हमें अलग-अलग क्षेत्रों और हितधारकों के साथ मिलकर काम करना होगा।”


यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 4 मार्च 2025 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: कोच्चि शहर का विहंगम दृश्य। जानकारों का कहना है कि कोच्चि और पंजिम जैसे छोटे शहरों में आने वाले सालों में बहुत तेज़ी से शहरीकरण देखने को मिलेगा। तस्वीर: गेयो जॉन/विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)

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