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लद्दाख: सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी पर लोगों की बढ़ती नाराजगी

लद्दाख के नाजुक पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अभियान के तहत सोनम वांगचुक ने जून 2023 में क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास) रखा। तस्वीर- सोनम वांगचुक/ट्विटर

लद्दाख के नाजुक पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अभियान के तहत सोनम वांगचुक ने जून 2023 में क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास) रखा। तस्वीर- सोनम वांगचुक/ट्विटर

  • पर्यावरणविद सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और उन पर कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने से देशभर में नाराज़गी है। इसे भारत में पर्यावरणीय आंदोलनों और लोकतांत्रिक तरीकों से किये गए विरोध को दबाने की बड़ी प्रवृत्ति का हिस्सा माना जा रहा है।
  • लद्दाख में प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उन्हें संवैधानिक अधिकार और राज्य का दर्जा मिले, ताकि वे अपनी ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा कर सकें।
  • लेकिन 24 सितंबर को यह आंदोलन तब हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के दफ्तर में आग लगा दी जिसके जवाब में पुलिस ने गोलियां चलाईं।

लियाक़त अली, 27, ने कभी नहीं सोचा था कि उनका शहर एक साल के अंदर हिंसा और अशांति का शिकार हो जाएगा।

पिछले साल, अली उन दर्जनों लोगों में से एक थे जिन्होंने लद्दाख से दिल्ली तक 800 किलोमीटर की यात्रा की थी, ताकि लद्दाख के राज्य के दर्जे और अन्य संवैधानिक सुरक्षा की मांग को अधिक ध्यान में लाया जा सके। यह शांतिपूर्ण यात्रा पर्यावरणविद और वैज्ञानिक सोनम वांगचुक के नेतृत्व में हुई थी, जो लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करने के पक्षधर रहे हैं। यह यात्रा महात्मा गांधी की जयंती पर समाप्त की गई थी, जो एक सोच-समझकर लिया गया फैसला था।

अपनी उन्हीं मांगों को लेकर, वांगचुक ने इस साल फिर से भूख हड़ताल शुरू की। हालांकि इस बार कुछ प्रदर्शनकारियों ने हिंसक हो गया जिसके बाद पुलिस की फायरिंग में चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद वांगचुक पर कार्यवाही का दौर चला और उन्हें भारत के सबसे कठोर कानूनों में से एक, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, जो आतंकवादियों पर लगाया जाता है, के तहत गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उनके संगठन का विदेशी फंडिंग का लाइसेंस भी अचानक रद्द कर दिया गया। प्रशासन का आरोप है कि वांगचुक ने “राज्य के खिलाफ और शांति के लिए हानिकारक गतिविधियां कीं।” 24 सितंबर को अज्ञात लोगों ने बीजेपी के दफ्तर को आग लगा दी, जिसके बाद पुलिस ने गोलियां चलाईं जिसमें चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। प्रदर्शन के हिंसक होते ही वांगचुक ने अपना अनशन समाप्त किया और शांति की अपील की।

“यह सोचना ही दुखद है कि हालात यहां तक पहुंचे,” अली ने मोंगाबे इंडिया से कारगिल जिले से बातचीत करते हुए कहा। “हां, कुछ प्रदर्शनकारी निराशा में थे, लेकिन पुलिस की प्रतिक्रिया अमानवीय थी,” उन्होंने कहा। 24 सितंबर की घटना लद्दाख में राज्य के दर्जे के लिए हो रहे आंदोलन का पहला हिंसक मोड़ था।

लद्दाख में वांगचुक द्वारा सह-स्थापित हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के छात्र अपने आइस स्तूप परियोजना के सामने खड़े हैं। तस्वीर साभार- Crb43, विकीमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।
लद्दाख में वांगचुक द्वारा सह-स्थापित हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के छात्र अपने आइस स्तूप परियोजना के सामने खड़े हैं। तस्वीर साभार- Crb43, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।

वांगचुक की गिरफ्तारी और पुलिस फायरिंग की देशभर में आलोचना हो रही है। वांगचुक को 2018 में सामुदायिक शिक्षा और नवाचार के लिए रैमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था। “उनकी गिरफ्तारी यह साफ संदेश देती है कि आप चाहे जो भी कर लें या कितने भी विश्वसनीय क्यों न हों, अगर आप राजनीतिक अधिकार मांगते हैं या सरकार से सवाल पूछते हैं, तो आप निशाना बन सकते हैं,” हिमधारा कलेक्टिव की सह-संस्थापक मानशी आषेर ने कहा।

लंबे समय से चल रही वार्ता

राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग के पीछे यह इच्छा है कि लद्दाख के लोग अपने प्राकृतिक संसाधनों पर फैसले लेने की शक्ति प्राप्त कर सकें। साल 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद से यह केंद्र सरकार के नियंत्रण में है, जिससे अनियंत्रित विकास और पर्यावरणीय क्षति को लेकर चिंता बढ़ी है।

लद्दाख की स्वायत्त हिल काउंसिलों को बुनियादी ढांचे के प्रबंधन और कुछ विकास कार्यों की योजना बनाने का अधिकार है, लेकिन वे कानून नहीं बना सकतीं और न ही अदालतें स्थापित कर सकतीं। राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची लागू होने से लद्दाख के लोगों को भूमि, जंगल, सांस्कृतिक परंपराओं और उत्तराधिकार पर अधिकार मिलेगा।

साल 2023 में केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति (एचपीसी) बनाई थी और लद्दाख के नेताओं से कई मुद्दों पर बातचीत करने पर सहमति जताई थी। छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे के अलावा, प्रतिनिधियों ने लद्दाख के दो जिलों (लेह और कारगिल) के लिए संसद में अलग सीटें और सरकारी नौकरियों की भी मांग की थी।

सोनम वांगचुक ने 2017 में बीआईटीएस गोवा में TEDx वार्ता दी। तस्वीर: TEDxBITSGoa, विकीमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)।
सोनम वांगचुक ने 2017 में बीआईटीएस गोवा में TEDx वार्ता दी। तस्वीर: TEDxBITSGoa, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)।

हाल ही में हुई हिंसक घटना के कुछ दिनों बाद गृह मंत्रालय, जिसके तहत एचपीसी बनी थी, ने बयान जारी कर कहा कि “संवाद की प्रक्रिया… ने अच्छे परिणाम दिए हैं।” मंत्रालय ने अनुसूचित जनजातियों के लिए बढ़ा हुआ आरक्षण, महिलाओं के लिए अधिक आरक्षण, और स्थानीय भाषाओं की सुरक्षा को बातचीत की उपलब्धियों में गिनाया। मंत्रालय ने यह भी कहा कि “लद्दाख में 1800 सरकारी पदों की भर्ती प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। हमें विश्वास है कि निरंतर संवाद जल्द ही वांछित परिणाम देगा।”

लेकिन राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की सबसे बड़ी मांगों पर प्रगति बेहद धीमी रही है। “यह मुद्दा तब तक हल नहीं होगा जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं,” लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के अध्यक्ष थुप्स्तन छेवांग ने प्रेस से कहा। एलएबी लद्दाख के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली दो संगठनों में से एक है। “अगर सरकार समय पर वार्ता करती, तो यह घटना नहीं होती,” उन्होंने कहा। सरकार ने अगली वार्ता 6 अक्टूबर को तय की है, जबकि प्रदर्शनकारियों ने जल्दी बैठक की मांग की थी।

लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल विकास संघ ने कहा है कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, वांगचुक को रिहा नहीं किया जाता और पुलिस फायरिंग पर न्यायिक जांच नहीं होती, तब तक वे और बातचीत नहीं करेंगे। 2 अक्टूबर को गोलीबारी की जांच के लिए मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया।

ज़मीन पर अधिकार और संवैधानिक सुरक्षा

फिलहाल छठी अनुसूची सिर्फ भारत के कुछ पूर्वोत्तर राज्यों पर लागू होती है। लद्दाख को इसमें शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, जो राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर हरिहर भट्टाचार्य के अनुसार बड़ी संवैधानिक प्रक्रिया है। “यह मांग जायज़ है क्योंकि लद्दाख छठी अनुसूची की शर्तों को पूरा करता है, लेकिन इसके लिए बड़े संवैधानिक सुधार की आवश्यकता है,” उन्होंने कहा। “शायद सरकार इस कारण संकोच कर रही है क्योंकि यह अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की मांगें ला सकता है।”

लद्दाख की 90% आबादी आदिवासी है, और यह छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए एक मजबूत मामला प्रस्तुत करता है, भट्टाचार्य ने कहा। लद्दाख का ठंडा रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र भी अद्वितीय वनस्पति और जीव-जंतुओं का घर है, जिसे चांगपा जैसी जनजातियां बचाकर रखती हैं।


और पढ़ेंः [साक्षात्कार] छठवीं अनुसूची में संरक्षण मिलने से कैसे बचेगी नाजुक लद्दाख की आबोहवा, समझा रहे हैं पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक


केंद्र सरकार लद्दाख में औद्योगिक निवेश लाना चाहती है। इस साल फरवरी में उद्योगों के लिए ज़मीन आवंटन नीति बनाई गई थी, जो लद्दाख की स्वायत्त काउंसिलों को ज़मीन आवंटन के फैसलों में शामिल करती है। लेकिन विरोध का मुख्य कारण यही है कि लद्दाख के लोग ज़मीन उपयोग संबंधी क़ानूनों पर ज्यादा नियंत्रण चाहते हैं। कई सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ज़मीन पट्टे पर दी गई है, जो बिना जनता से परामर्श के की गई हैं।

हिमधारा की मानशी आषेर कहती हैं, “बिना संवैधानिक सुरक्षा के संसाधनों का दोहन इस तरीके से और इतनी तेज़ी से होगा कि इससे स्थानीय आजीविका पर खतरा पैदा हो सकता है। पिछले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में बर्फ की जगह अधिक बारिश हो रही है, जिससे बाढ़ और अन्य खतरों की संभावना बढ़ी है। इन समस्याओं से निपटने के लिए अच्छे और विचारशील शासन की आवश्यकता है।”

पर्यावरणविदों पर आरोप

जिला प्रशासन, जिसमें पुलिस महानिदेशक भी शामिल हैं, ने वांगचुक पर आरोप लगाया है कि वह भारत में अशांति फैलाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक साजिश में शामिल हैं, जिसे कई लोगों ने अजीब करार दिया है। राजनीतिक टिप्पणीकार योगेंद्र यादव ने कहा, “एक भी सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि सोनम वांगचुक ने हिंसा भड़काई। यही कारण है कि सरकार एक बड़ी साजिश की कहानी गढ़ रही है। उन्हें ऐसे कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है जिसमें किसी भी सबूत की आवश्यकता नहीं होती।”

वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत 26 सितंबर को गिरफ्तार किया गया और जोधपुर केंद्रीय जेल भेज दिया गया। वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद से उन्हें अपने पति से कोई खबर नहीं मिली और न ही उन्हें अपने अधिकारों के बारे में कोई जानकारी दी गई।

पिछले साल सोनम वांगचुक के दिल्ली आने से पहले विभिन्न बलों के सैकड़ों पुलिस अधिकारी तैनात किए गए थे। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।
पिछले साल सोनम वांगचुक के दिल्ली आने से पहले विभिन्न बलों के सैकड़ों पुलिस अधिकारी तैनात किए गए थे। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।

“क्या जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर, शिक्षा सुधार और स्थानीय नवाचार पर बात करना अपराध है? क्या पिछले चार वर्षों से एक पारिस्थितिक रूप से नाजुक आदिवासी क्षेत्र के उत्थान के लिए गांधीवादी तरीके से आवाज़ उठाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है? इसे निश्चित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं कहा जा सकता,” उन्होंने 1 अक्टूबर को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा।

भारत में कई पर्यावरण संगठनों, आंदोलनों और कार्यकर्ताओं को इसी तरह के अंतरराष्ट्रीय आपराधिक साजिश के आरोपों का सामना करना पड़ा है। साल 2021 में, जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली पुलिस ने किसान आंदोलन के समर्थन में एक सामाजिक न्याय टूलकिट साझा करने के लिए गिरफ्तार किया था, जिसे पुलिस ने यह दावा किया था कि यह उनके इरादे का सबूत है कि वह “भारत के खिलाफ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय युद्ध छेड़ने की योजना बना रही थीं।” बाद में एक न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे, जिस कारण उन्हें जमानत दी गई। पिछले साल, पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाले कई संगठनों की विदेशी फंडिंग के अधिकार को यह कहते हुए निलंबित कर दिया गया कि इन पर विदेशी प्रभाव पड़ रहा है जो भारतीय नीतियों पर असर डाल रहा है।

“हम पढ़े-लिखे लोग हैं, हम अपने लोकतांत्रिक अधिकार मांग रहे हैं, लेकिन हमें जेल में डाल दिया गया और देशद्रोही कहा गया। सोनम वांगचुक को रिहा किया जाना चाहिए। हम चाहते हैं कि लद्दाख में हालात सामान्य हों,” अली ने कहा।

 

बैनर तस्वीरः लद्दाख के नाजुक पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अभियान के तहत सोनम वांगचुक ने जून 2023 में क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास) रखा। तस्वीर- सोनम वांगचुक/X

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