- बिहार में हर साल बाढ़ से जूझने वाले कोशी के इलाके में 2018 में लगे सोलर मिनी ग्रिड से लोगों को बिजली मिलने की उम्मीद थी, लेकिन रख-रखाव के आभाव में इनमें से कई ग्रिड बंद पड़े हैं।
- बाढ़ की चपेट में आने के बाद इनमें से कई ग्रिड बह गए हैं और जो बचे हैं उसमें भी कई बेकार हो गई बैटरी के चलते सिर्फ दिन में ही बिजली दे पाते हैं।
- अधिकारिओं के अनुसार, इन इलाकों में बिजली की सीधी सप्लाई 2026 तक हो जाएगी, ऐसे में कोशी नदी के बीच बसे गांवों में लोग अपने घरों में खुद के सोलर पैनल लगाने या फिर बिजली के इंतज़ार में अँधेरे में रहने को मजबूर हैं।
बिहार में अपनी प्रलंयकारी बाढ़ के लिए जानी जाने वाली कोशी नदी के दो तटबंध व विभिन्न धाराओं के बीच एक टापू पर बसे पचगछिया गांव में 25-वर्षीया लीला देवी का घर है। लीला देवी के पति सुरेंद्र मंडल एक प्रवासी श्रमिक हैं और वे घर पर परिवार की जिम्मेदारी संभालती हैं। सुपौल जिले की मोजहा पंचायत के इस गांव में सरकार अबतक ग्रिड से परंपरागत बिजली नहीं पहुंचा पाई है। यहां बारिश के चार महीनों में डूब और बाढ़ के खतरे के बीच उनके लिए एक छोटी राहत उनके घर के ठीक सामने स्थित एक सोलर मिनी ग्रिड है। यह मिनी ग्रिड उन्हें भले ही कम लेकिन निर्बाध बिजली की उपलब्धता प्रदान करती है जिससे उन्हें घर में रौशनी और मोबाइल चार्ज करने जैसे बुनियादी सुविधा प्राप्त होती है।
इस गांव के 65-वर्षीय अब्दुल रउफ बताते हैं, “यहां पहले 150 परिवार थे और अब करीब 50 परिवार बचे हैं, बाढ़ व कटाव की वजह से वर्ष 2016 से 2024 तक बहुत लोग दूसरी जगह बसने चले गए। यहां सरकारी पोल (ग्रिड) से बिजली भी नहीं पहुंची है, ऐसे में सोलर मिनी ग्रिड से थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन उसका रख-रखाव सही से नहीं होता।”
कई धाराओं और विस्तृत क्षेत्र में बहने वाली कोशी नदी के दोनों तटों पर बाढ़ के खतरे को कम करने सहित अन्य उद्देश्य से तटबंध का निर्माण आजादी के बाद 1950-1960 के दशक में किया गया था। हालांकि तटबंध के बीच के गांव के लोगों का कहना है कि इससे बाढ़ व डूब का खतरा बढ़ गया और वे इन सवालों को लेकर आंदोलन भी करते रहे हैं। इस वजह से दशकों से कोशी के अंदर के इलाके से लोगों का पलायन जारी है।

इसी गांव के 30-वर्षीय मोहम्मद मुमताज ने सोलर मिनी ग्रिड दिखाते हुए बताया कि इस ग्रिड की दो यूनिट का काम साल 2016-17 में शुरू हुआ और 2018 से इनसे बिजली मिलना शुरू हो गई थी। ये दोनों यूनिट 15-15 किलोवाट क्षमता की हैं और 100-120 घरों (50-60 घर प्रति यूनिट) में बिजली पहुंचाती हैं। “यहां अपने निजी सोलर प्लेट या यह सोलर मिनी ग्रिड ही बिजली का एकमात्र जरिया हैं। पर, अफसोस कि इस परिसर में मिनी ग्रिड की दो यूनिट लगी हैं, जिसमें एक बैटरी व अन्य तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से खराब है।”
पचगछिया से लगे बगहा गांव में भी इस सोलर मिनी ग्रिड से बिजली की आपूर्ति की जाती है। इस गांव के 23-वर्षीय मोहम्मद इरफान का फूस व टाट का घर कोशी की एक धारा के बहुत करीब है। इरफान कहते हैं, “हमारे यहां 75 वाट का सोलर प्लेट है जो छः साल से लगा हुआ है और धूप से इससे बैटरी चार्ज होती है, इससे हम दो छोटे पंखे चलाते हैं जो खासतौर पर गर्मी में हमारे काम आता है और एक बल्ब जलाते हैं, जबकि सोलर मिनी प्लांट की बिजली से सिर्फ बल्ब जलता है।” वे कहते हैं, “सोलर मिनी प्लांट की बैटरी खराब हो गई है और उसे बदला नहीं गया है, इसलिए अच्छी धूप होने पर ही सोलर ग्रिड से बिजली की आपूर्ति हो पाती है।”
बिहार ने अविद्युतीकृत गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए मिनी ग्रिड नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन एवं आपूर्ति ढांचा, विनियम 2016 बनाया। इसका उद्देश्य पृथक रूप से संचालित किए जाने वाले मिनी ग्रिड के डिजाइन, विकास व प्रबंधन को सुगम बनाना है, ताकि राज्य के वैसे गांव जिनका विद्युतीकरण न हो पाया या जिनका आसानी से विद्युतीकरण करना संभव नहीं है, वहां सौर बिजली उत्पादन इकइयां लगाकर बिजली पहुंचाई जाए।
हालांकि बिहार सरकार अब ऐसे गांवों में सीधे ग्रिड से बिजली पहुंचाने की योजना पर काम कर रही है और जिन क्षेत्रों में इसके लिए काम शुरू किया गया है, वहां सोलर मिनी ग्रिड काफी हद तक उपेक्षित हैं।
बिहार सरकार राज्य के उत्तरी हिस्से में अपनी कंपनी नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (NBPDCL) के जरिये बिजली आपूर्ति करती है और ये सभी मिनी ग्रिड इसके अंतर्गत आते हैं।
मिनी ग्रिड और प्राकृतिक आपदा
कोशी के बाढ़ प्लावित क्षेत्र में सोलर मिनी ग्रिड का संचालन ग्रामीणों के लिए काफी फायदेमंद है। लेकिन, इनके संचालन और रख-रखाव में सबसे बड़ी चुनौती बाढ़ व डूब का खतरा है। जैसे, 2024 के सितंबर महीने के आखिरी दिनों में आयी बाढ़ में सुपौल जिले के किशनपुर ब्लॉक की दुबियाही पंचायत के बेलागोठ गांव में लगे सोलर मिनी ग्रिड का एक एक हिस्सा कोशी के कटाव में समा गया था। उसके बाद से इस गांव में बिजली का कोई साधन नहीं है।
बेलागोठ गांव के राजेश मंडल कहते हैं, “बाढ़ में हमारे गांव का मिनी ग्रिड कटाव में समा गया, उसके बाद गांव में बिजली का कोई साधन नहीं है, जिनके पास निजी सोलर प्लेट है, सिर्फ उन्हें ही कुछ जरूरी काम के लिए रोशनी मिल पाती है। अंधेरा होने के बाद बच्चे पढाई नहीं कर पाते हैं और महिलाओं को काफी दिक्कतें होती हैं, क्योंकि यहां से पुरुषों का पलायन बहुत अधिक है और इस वजह से अधिकतर घरेलू काम की जिम्मेदारी उन पर होती है।” राजेश ये भी बताते हैं कि बाढ़ का पानी आने की वजह से इस इलाके में सर्पदंश के मामले भी घटित होते हैं और रोशनी के आभाव में ये खतरा और भी बढ़ जाता है।
इस क्षेत्र में मिनी ग्रिड के संचालन का काम देखने वाले रामचंद्र साह ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “2024 की बाढ़ अत्यंत तीव्र थी और उस वजह से बेलागोठ के अलावा सितुहर, जोबहा गांव में भी मिनी ग्रिड बाढ़ के कटाव का शिकार हो गया।”

“राज्य सरकार के लिए एल एंड टी कंपनी ने सुपौल जिले में कोशी के तटबंध के बीच स्थित कई गांवों में मिनी ग्रिड बनवाया था और इसके मेंटनेंस का काम एस बाबा कंपनी को पांच साल के लिए मिला, पांच साल का करार पूरा हो जाने के बाद वह कंपनी मेंटेनेंस से हट गई,” उन्होंने आगे बताया।
रामचंद्र साह इस क्षेत्र में इस सिस्टम से जुड़े अकेले व्यक्ति मिले जो कोशी तटबंध के बीच स्थित सोलर मिनी ग्रिड से जुड़े सवालों का जवाब जिम्मेदारी के साथ दे पाने में सक्षम थे। यहां तक कि जिला मुख्यालय के बिजली विभाग के डिवीजन कार्यालय में भी कोई अधिकारी इस संबंध में पूरी जिम्मेदारी के साथ बात करने के लिए तैयार नहीं था।
साह ने कहा, “जिस सोलर मिनी ग्रिड के सिस्टम में बाढ़ या अन्य वजह से गड़बड़ियां आ गईं उनकी मशीनों को हमने बिजली विभाग के कार्यालय में जमा कर दिया है।”
एस बाबा कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि सुमन झा ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “पांच साल का मेंटेनेंस का सरकार से हमारा कॉन्ट्रेक्ट समाप्त हो गया है और हमारा उन सोलर ग्रिड के रखरखाव में कोई हस्तक्षेप नहीं है, अब सरकार उसके लिए नए मेंटेनेंस ऑपरेटर नियुक्त करने का काम करने के लिए जिम्मेदार है।”
सुपौल में बिजली विभाग के एसडीओ एके शर्मा ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “2024 की बाढ़ की वजह से बहुत सारे सोलर मिनी ग्रिड क्षतिग्रस्त हो गए थे और जिस समय तटबंध के बीच के गांवों में सोलर मिनी ग्रिड से बिजली दी गई उस समय बिजली विभाग के पास इसके लिए और कोई जरिया नहीं था। वह मु्फ्त बिजली आपूर्ति थी, जिसका कोई शुल्क नहीं लिया जाता था, हमलोग अब तटबंध के अंदर के गांवों में ग्रिड से बिजली पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे हैं।”
सुपौल डिवीजन के बिजली विभाग के कार्यपालक अभियंता धनंजय कुमार ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “ट्रांस कोशी इलाके में धरती आबा जनजातीय उत्कर्ष योजना के तहत परंपरागत ग्रिड से बिजली पहुंचाई जाएगी, इसके लिए टेंडर हो गया है और 2026 तक हम इस योजना को पूरा कर लेंगे।”
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या इन सभी ग्रामीणों को बिजली के लिए दो साल (2024 से 2026) तक इंतज़ार करना पड़ेगा?
एक सवाल के जवाब में कार्यपालक अभियंता ने कहा कि सोलर मिनी ग्रिड अभी भी हैं, हालांकि बाढ़ की वजह से कई मिनी ग्रिड क्षतिग्रस्त हुए और उसकी बैटरी को नुकसान हुआ है, उसकी मरम्मत नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा कि सरकार खुद सौर ऊर्जा को बढावा दे रही है तो उस व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा रहा है, लेकिन लोगों को बिजली की बेहतर सुविधा देने के लिए यह नई पहल की गई है।
सुपौल जिले में स्थित बिजली विभाग के सुपौल और राघोपुर डिवीजन के अधिकारियों ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में यह स्वीकार किया कि कई मिनी ग्रिड की बैटरी खराब है और उसमें तकनीकी दिक्कत है।

संवाददाता ने कोशी तटबंध के बीच के गांवों के मिनी ग्रिड के बारे में जानकारी के लिए जुलाई के महीने में पटना में नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (NBPDCL) और बिहार रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (BREDA) के कार्यालय का दौरा किया, लेकिन वहां मौजूद अधिकारियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। संवाददाता ने इस संबंध में बिहार सरकार के बिजली विभाग को एक आरटीआई आवेदन दाखिल किया है, जिसके जवाब मिलने पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा।
ग्रिड की संरचना और वहनीयता
मिनी ग्रिड के जानकार और बिहार में लंबे समय तक सौर ऊर्जा प्रणालियों पर काम का अनुभव रखने वाले सेंटर फॉर सस्टेनेबल ट्रांजिशन एंड रेजिल्यंस (CSTR) से संबद्ध मनोहर पाठक ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों को डिज़ाइन करते समय लचीलेपन पर विचार किया जाना चाहिए। ग्रिड को दो से तीन फीट ऊंचा किया जाना चाहिए या गाँव के ऊंचे इलाकों में लगाया जाना चाहिए। इन्वर्टर, बैटरी और जनरेटर को ज़मीन से पाँच से दस फीट ऊपर प्लेटफार्मों पर स्थापित किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “बाढ़ के दौरान होने वाले नुकसान के जोखिम को कम करने के लिए कुछ रक्षात्मक उपाय किए जा सकते हैं, जैसे करोशन रेसिस्टेंट सपोर्ट, हिट स्रिंक केबल सीलिंग, वाटर प्रूफ कंटेनर और कवर एमसी4 कंटेनर। सार्वजनिक ट्रांसफार्मर के पुनर्निर्माण का इंतजार करने के बजाय एक कुशल तकनीकी टीम होने से 30 से 40 किलोवाट के मिनी ग्रिड को एक से दो दिन में फिर से बहाल किया जा सकता है।”
वे कहते हैं, मिनी ग्रिड स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है और आपात स्थिति के दौरान छोटे सौर किट घरेलू प्रकाश व्यवस्था और मोबाइल फ़ोन चार्जिंग के लिए महत्वपूर्ण बैकअप स्रोत के रूप में काम करते हैं। इससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रिचार्ज करने का सिस्टम भी विकसित किया जा सकता है। स्थानीय युवाओं को घरेलू सौर उपकरणों के रखरखाव और मिनी ग्रिड के तकनीकी प्रबंधन का प्रशिक्षण देने से सिस्टम की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। यह दोहरा दृष्टिकोण बाढ़ की घटनाओं के दौरान और उसके बाद दोनों प्रणालियों की कार्यक्षमता को बनाए रखते हुए ग्रामीण ऊर्जा बुनियादी ढांचे की लचीलापन को मजबूत करता है।
सौर ऊर्जा नीति और मिनी ग्रिड का भविष्य
वर्ष 2017 में बिहार सरकार द्वारा जारी की गई सौर ऊर्जा नीति में यह संकल्प व्यक्त किया गया था कि वित्त वर्ष 2018-19 तक सभी को 24 घंटे भरोसेमंद बिजली पहुंचाने के लक्ष्य को हासिल करने में मिनी ग्रिड जैसा विकेंद्रीकृत समाधान अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कोशी तटबंध के बीच के गांव का मौजूदा हाल सरकार के इस संकल्प की कोशिशों की तो पुष्टि करता है, लेकिन उसकी वहनीयता पर सवाल खड़े करता है।
बिहार सरकार ने वर्ष 2025 में एक नई सौर ऊर्जा नीति पेश की। इसमें सौर ऊर्जा चालित मिनी व माइक्रो ग्रिड का जिक्र किया गया है। नई नीति में कहा गया है कि वितरण दक्षता लाने के लिए सौर ऊर्जा चलित मिनी-माइक्रो ग्रिड को प्राथमिकता के साथ कम बिजली या बिजली रहित क्षेत्रों में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सौरीकरण और सौर बिजली उत्पादक उपयोग को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। राज्य इन परियोजनाओं के सुचारू कार्यान्वयन के लिए एक अलग मिनी व माइक्रो ग्रिड नीति या दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
मनोहर पाठक कहते हैं, सरकार ग्रिड से बाढ़ प्रभावित इलाकों में बिजली देना चाहती है, लेकिन जलमग्न होने की स्थिति में उसका इन्फ्रास्ट्रक्चर विफल हो जाता है, इसलिए मिनी ग्रिड को एक बैकअप प्रणाली के रूप में उपयोग किया जा सकता है और उसे प्रतिस्पर्धी बनाने के बजाय पूरक बनाना चाहिए।
यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के रिन्यूएबल एनर्जी फेलोशिप – 2025 के सहयोग से रिपोर्ट की गई है।
बैनर तस्वीरः 2024 की बाढ़ के दौरान पचगछिया के मिनी ग्रिड का दृश्य। यह दृश्य बाढ़ का पानी उतरने के बाद का है। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे