- यह खबर मार्च 2025 में लिखी गई थी, जब डीपीएस फ्लेमिंगो झील को कंजर्वेशन रिजर्व बनाने की कोशिशें चल रही थीं। कुछ समय बाद, 17 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र राज्य वन्यजीव बोर्ड ने इस झील को आधिकारिक रूप से ‘कंजर्वेशन रिजर्व’ घोषित करने की मंजूरी दी।
- स्थानीय निवासी और पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं इस झील को “कंजर्वेशन रिजर्व” के रूप में मान्यता दिलाने के लिए अभियान चला रहे थे।
- हालांकि महाराष्ट्र के वन विभाग और स्थानीय अधिकारियों ने उनकी इस मांग को स्वीकार कर लिया है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि शहर और औद्योगिक विकास निगम की विकास योजनाएं इस झील के संरक्षण के लिए खतरा हैं।
मार्च का महीना खत्म होने को है। प्रवासी पक्षी अगले साल फिर से लौटकर आने के वादे के साथ, धीरे-धीरे भारत की झीलों और वेटलैंड को अलविदा कह रहे हैं। नवी मुंबई के नेरुल में दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) के पीछे भी 30 एकड़ में फैली एक ऐसी ही झील है, जहां हर साल प्रवासी पक्षी आते हैं। पानी के जमाव के कारण यह झील थोड़ी सूख गई है और इसकी आधी सतह पर काई की परत नजर आने लगी है। यह झील, ठाणे क्रीक (एक रामसर साइट) का ही हिस्सा है और यह बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी, खासकर फ्लेमिंगो को आकर्षित करती रही है।
लेकिन पिछले दस सालों से इसकी देखभाल और संरक्षण पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। इस साल, महाराष्ट्र वन विभाग ने झील को “कंजर्वेशन रिजर्व” घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की है। नागरिक भी इस झील की रक्षा के लिए अभियान चला रहे हैं और ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान के जरिए अब तक 3,000 से ज्यादा लोग इससे जुड़ चुके हैं।
ठाणे क्रीक के पास सीवुड्स में रहने वालीं 53 साल की रेखा सांखला कहती हैं, “नवी मुंबई के लोगों के लिए शहर के बीचों बीच एक झील का होना किसी खुशी से कम नहीं है। इसके आसपास के मैंग्रोव पेड़ हमें बाढ़ से बचाते हैं और हवा को स्वच्छ रखते हैं।” रेखा 2003 से नवी मुंबई में रह रही हैं।
2 फरवरी 2025 को, विश्व आर्द्रभूमि दिवस के मौके पर स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने झील के चारों ओर एक शांत मानव श्रृंखला बनाई, जिसमें “आर्द्रभूमि बंजर भूमि नहीं हैं,” “गुलाबी झील को लाल मत बनाओ,” और “फ्लेमिंगो के घरों को बचाओ – हमारी आर्द्रभूमि” जैसी तख्तियां पकड़ी थीं। यह विरोध अंतर्ज्वारीय जल प्रवाह को जानबूझकर रोकने और आर्द्रभूमि के लगातार हो रहे क्षरण के खिलाफ था।
एनआरआई कॉम्प्लेक्स के 62 वर्षीय निवासी सुनील अग्रवाल ने बताया, “अगर ऐसी झीलें और जलाशय सुरक्षित नहीं रहे, तो नवी मुंबई ‘फ्लेमिंगो शहर’ के रूप में अपनी पहचान खो देगा। यह भी किसी आम शहर की तरह ऊंची-ऊंची इमारतों वाला शहर बन जाएगा। जिन अधिकारियों को सरकारी नीति लागू करनी है, वे इसके खिलाफ काम कर रहे हैं। हमें, आम नागरिकों को, अपना काम छोड़कर उनसे लड़ना पड़ रहा है ताकि हम उसे बचा सकें। असल में यह काम उन्हें करना चाहिए था।”

फ्लेमिंगो की मौत और उच्च-स्तरीय हस्तक्षेप
2024 की शुरुआत में इस झील क्षेत्र में कई फ्लेमिंगो की मौत ने चिंता बढ़ा दी थी। रिपोर्टों के अनुसार, जनवरी 2024 में सात फ्लेमिंगो एक साइन बोर्ड से टकराकर मर गए और मई में पानी के बहाव में बाधा आने से 10 और फ्लेमिंगो की मौत हो गई।
नाटकनेक्ट फाउंडेशन के निदेशक बी. एन. कुमार बताते हैं, “फ्लेमिंगो अपने ठहरने वाली जगह से गहरी वफादारी रखते हैं। वे हर साल उसी जगह लौटते हैं। अगर उन्हें वहां पर अपना पसंदीदा पर्यावरण नहीं मिलता, तो वे दिशाहीन हो सकते हैं और सड़क, बोर्ड आदि से टकराकर उनकी मौत हो सकती है।”
जनता की नाराजगी के बाद राज्य सरकार ने हस्तक्षेप किया। उस समय मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे ने फ्लेमिंगो की मौत की जांच के आदेश भी दिए थे। जुलाई 2024 में राज्य सरकार ने वन विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई, जिसमें झील को प्राकृतिक फ्लेमिंगो आवास के रूप में संरक्षित रखने के तरीके तलाशने का काम सौंपा गया। समिति ने सर्वे किया और 23 सितंबर को झील को “कंजर्वेशन रिजर्व” घोषित करने की सिफारिश की, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। नाटकनेक्ट फाउंडेशन ने आरटीआई के जरिए समिति की सिफारिशों का विवरण मांगा है।
महाराष्ट्र सरकार का शहर और औद्योगिक विकास निगम (सिडको) भी इस समिति का हिस्सा था। सिडको पर नवी मुंबई के विकास और प्रबंधन की जिम्मेदारी है, इसमें शहरी ढांचा तैयार करना और आर्द्रभूमियों के संरक्षण जैसे पर्यावरणीय कार्य शामिल हैं। समिति की बैठक में समूह ने तर्क दिया कि डीपीएस फ्लेमिंगो झील से जुड़ा मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। लेकिन समिति ने सिडको को निर्देश दिया कि जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता, तब तक झील के पानी के इनलेट पॉइंट 3 और 4 खुले रखे जाएं ताकि अंतर ज्वारीय जल का प्राकृतिक बहाव बना रहे।
दिसंबर 2024 में, मीडिया में झील में पानी रुकने की खबरें आने के बाद महाराष्ट्र वन विभाग की मैंग्रोव सेल ने स्थल का निरीक्षण किया। जांच में पाया गया कि सिडको ने समिति के आदेशों का पालन नहीं किया। झील में पानी आने-जाने वाले दो पाइपों में से एक पाइप का मुहाना प्लास्टिक शीट और लकड़ी के टुकड़ों से बंद कर दिया गया था, जबकि दूसरा पाइप झील के जलस्तर से ऊंचा था। इससे पानी का बहाव रुक गया। मैंग्रोव सेल ने सिडको को फिर निर्देश दिया कि पाइप से सभी रुकावटें हटाई जाएं ताकि झील में पानी का आवागमन सामान्य रूप से बना रहे। चूंकि डीपीएस झील अंतर ज्वारीय आर्द्रभूमि है, इसलिए झील का जलस्तर केवल ठाणे क्रीक में ज्वार आने के समय ही बढ़ता है।
नेटकनेक्ट फाउंडेशन ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से शिकायत की, जिसके बाद दिसंबर में मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप करते हुए वन विभाग को कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
लेकिन इतने उच्चस्तरीय निर्देशों के बावजूद जमीनी हालात में खास सुधार नहीं हुआ है। स्थानीय लोग अब भी झील के संरक्षण के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। 2025 में राज्य के पर्यावरण विभाग ने झील की बिगड़ती हालत की जांच के लिए फिर से आदेश दिए हैं।

संरक्षण बनाम विकास
डीपीएस फ्लेमिंगो झील को बचाने की लड़ाई 2010-11 से शुरू हुई थी, जब स्थानीय निवासी झील में मलबा डालने के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे क्योंकि इससे इस वेटलैंड को खतरा था। नवी मुंबई पर्यावरण संरक्षण सोसायटी (एमएमईपीएस) और विनोद कुमार पुंशी ने 2013 में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसके बाद झील के पारिस्थितिकीय मुद्दे ध्यान में आने लगे। इस याचिका ने नवी मुंबई में आर्द्रभूमि और मैंग्रोव के विनाश से संबंधित मुद्दों को उठाया, जिसमें DPS फ्लेमिंगो झील से संबंधित चिंताएं भी शामिल थीं। नवंबर 2018 में हाई कोर्ट ने सिडको को यह निर्देश दिया कि वह झील को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने वाली विकास परियोजनाओं पर काम न करें। साथ ही, सिडको को मलबा हटाने और झील में पानी के प्राकृतिक बहाव को सुनिश्चित करने का आदेश भी दिया गया।
2022 में, नवी मुंबई नगर निगम (एनएमसी) ने ‘फ्लेमिंगो शहर’ की पहचान को अपनाया और शहर में गुलाबी पक्षियों की म्यूरल पेंटिंग की। हालांकि, सिडको की विकास योजनाओं के साथ-साथ झील के संरक्षण की लड़ाई अभी भी जारी है।
उदाहरण के लिए, सिडको ने मैंग्रोव क्षेत्र और आर्द्रभूमि के बीच 600 मीटर लंबी सड़क और यात्री जल परिवहन टर्मिनल (नेरुल जेट्टी) के लिए एक पहुंच मार्ग का निर्माण किया है। इस निर्माण कार्य ने ज्वारीय जल प्रवाह की स्वाभाविक आवाजाही को रोक दिया, जिससे झील सूख गई और फ्लेमिंगो के आवास को खतरा पैदा हो गया।
नेटकनेक्ट फाउंडेशन के निदेशक बी एन कुमार कहते हैं, “नेरुल जेट्टी तक पहुंचने वाले मार्ग ने झील के दक्षिणी किनारे पर क्रीक से मुख्य इनलेट को अवरुद्ध कर दिया क्योंकि यह सड़क के नीचे दब गया था और पूर्वी किनारे पर तीन और इनलेट भी बंद हो गए, जिसके वजह से झील सूख गई।”
यह तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड-I) के उन नियमों का उल्लंघन था, जो जल प्रवाह को बाधित करने वाले निर्माण पर रोक लगाकर ज्वारीय आर्द्रभूमि और मैंग्रोव की रक्षा करते हैं। सिडको ने अक्टूबर 2017 में यह आश्वासन दिया था कि वह झील के ज्वारीय पानी के बहाव को रोकेंगे नहीं। फिर भी, नेरुल जेट्टी तक बांध और एक्सेस रोड बनाने से इस आश्वासन का और 2018 के हाई कोर्ट के आदेश, दोनों का उल्लंघन हुआ है।
इतना ही नहीं, जब एनएमएमसी ने मौजूदा 300 मिमी पाइप को 600 मिमी पाइप से बदल दिया और मई 2024 में झील के पूरी तरह सूखने के बाद क्रीक से पानी निकाला, तो सिडको ने पुलिस विभाग को एक पत्र भी लिखा। यह तब हुआ जब, भारतीय जनता पार्टी के विधायक और अब राज्य के वन मंत्री गणेश नाइक ने सिडको, एनएमएमसी और वन विभाग के अधिकारियों को अवरुद्ध चैनलों को खोलने की चेतावनी दी थी। रेखा सांखला के अनुसार, सिडको का पुलिस विभाग को पत्र भेजना झील के संरक्षण के प्रति उसकी लापरवाही का संकेत है।
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सिडको की कार्रवाई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को दिए गए उसके आश्वासन के विपरीत है कि वह हवाई अड्डा क्षेत्र में जैव विविधता की सुरक्षा के लिए बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) की सिफारिशों का पालन करेगा। सिडको ने अडानी ग्रुप के साथ मिलकर नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (एनएमआईए) तैयार किया, जो डीपीएस झील से लगभग 5-7 किलोमीटर दूर है। बीएनएचएस ने मुख्य पारिस्थितिक आवासों जैसे कि नॉन-रेजिडेंशियल इंडियन कॉम्प्लेक्स, दिल्ली पब्लिक स्कूल का क्षेत्र, टी एस चाणक्य क्षेत्र, पंजे, नाव शेवा पुलिस स्टेशन क्षेत्र और जासई को संरक्षित करने की सिफारिश की थी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि इन जगहों के विनाश से फ्लेमिंगो पक्षी एमएमआईए की ओर बढ़ सकते हैं, जिससे उनके हवाई जहाज से टकराने का खतरा बढ़ जाएगा और हवाई सुरक्षा को भी खतरा होगा।
उसके बावजूद, सिडको ने कोई उचित कार्रवाई नहीं की और डीपीएस झील में पानी रुक जाने की वजह से झील फ्लेमिंगो के लिए असहज हो गई। इस कारण मई 2024 में कई फ्लेमिंगो की मौत हो गई।

कुमार कहते हैं, “सिडको ने संपत्तियां सौंपते समय 25 झीलें एनएमएमसी को सौंप दी, लेकिन डीपीएस फ्लेमिंगो झील, एनआरआई और टीएस चाणक्य वेटलैंड्स जैसे बड़े भूखंडों और महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि अपने पास रोक लीं। जाहिर तौर पर वह उन्हें रियल एस्टेट विकास के लिए दफनाने की योजना बना रहा है।” बीएनएचएस वेटलैंड्स एंड फ्लाईवेज प्रोग्राम के उप निदेशक और प्रमुख पी. साथियासेल्वम कहते हैं, “सिडको इस झील को एक निचला इलाका मानता है, जहां मानसून के मौसम में पानी जमा हो जाता है और बाद में सूख जाता है। उनकी चिंता अपनी जमीन को लेकर है।”
सांखला नाराजगी जताते हुए कहती हैं कि सिडको झील को नष्ट करना चाहता है और किसी को भी उसकी सुरक्षा के लिए कदम उठाने से रोकता है। एमएमएमसी कुछ नहीं कर पा रहा है क्योंकि अगर वे कार्रवाई करेंगे तो उनके खिलाफ केस दर्ज हो जाएगा। वन अधिकारी मददगार हैं लेकिन सिडको के विरोध के सामने उनकी ताकत कम है। उन्होंने कहा, “अब स्थानीय निवासी खुद झील बचाने के लिए आगे आ गए हैं। लोगों का यह आंदोलन इतना बड़ा हो गया है कि सरकार भी अब इससे डरने लगी है।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 अप्रैल को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: इस साल फरवरी में, स्थानीय लोगों ने झील की लगातार बिगड़ती हालत के खिलाफ प्रदर्शन किया। आर्द्रभूमि में ज्वारीय पानी के बहाव को जानबूझकर रोके जाने से यह नुकसान हो रहा है। तस्वीर- ईशा लोहिया, मोंगाबे