- यूएनईपी (UNEP) की क्लाइमेट टेक्नोलॉजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2025 में जैव अर्थव्यवस्था को जलवायु और विकास लक्ष्यों को हासिल करने का अहम माध्यम बताया गया है।
- रिपोर्ट में भारत का उल्लेख प्राकृतिक खेती, बायो-इनपुट केंद्र, एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड और ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम जैसी पहलों के लिए किया गया है।
- रिपोर्ट का कहना है कि जैव अर्थव्यवस्था की वृद्धि खाद्य सुरक्षा के साथ तालमेल में रहनी चाहिए और छोटे किसानों की आजीविका की रक्षा करनी चाहिए।
- यूएनईपी ने बेहतर प्रशासन, रियायती वित्त (concessional finance) और साझेदारियों पर ज़ोर दिया है ताकि विकासशील देशों में जैव-आधारित तकनीकें ज़्यादा सुलभ हो सकें।
“भारत वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था परिवर्तन में अग्रणी है। यहां नवाचार, ग्रामीण आजीविका और जलवायु कार्रवाई एक साथ जुड़े हैं, जिससे यह अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक उदाहरण बन सकता है,” क्लाइमेट टेक्नोलॉजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2025 की प्रमुख लेखिका सारा ट्रैरप ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा।
23 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से निपटने और इसके समाधान के रूप में उभरने वाली टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकियों) के विकास और उन्हें इस्तेमाल में लाने की प्रक्रिया का विश्व स्तर पर आकलन किया गया है।
इस साल की रिपोर्ट का केंद्र जैव अर्थव्यवस्था (bioeconomy) है, यानी ऊर्जा और भोजन के लिए जैविक संसाधनों का सतत उपयोग, और यह कैसे जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन दोनों में योगदान दे सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जैव आधारित नवाचार तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन वित्त, नीति और पहुंच की कमी जैसी चुनौतियां अभी भी कई विकासशील देशों को इसका पूरा लाभ उठाने से रोक रही हैं।
रिपोर्ट में भारत को उन देशों में शामिल किया गया है जो जलवायु तकनीकों को स्थानीय आजीविका से जोड़ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, “भारत का एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड और ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम, जैविक इनपुट, अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्योजी (regenerative) प्रथाओं में निवेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिससे यह दिखता है कि नीति और वित्त किस तरह समावेशी जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा दे सकते हैं।”
भारत के लिए इन निष्कर्षों का क्या अर्थ है और देश नवाचार और समावेशन के बीच संतुलन कैसे बना सकता है, इसे समझने के लिए मोंगाबे हिंदी ने क्लाइमेट टेक्नोलॉजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2025 की प्रमुख लेखिका सारा ट्रैरप से बातचीत की। ट्रैरप यूएनईपी डेनमार्क टेक्निकल यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्चर हैं और उनके पास जलवायु परिवर्तन के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर पीएचडी है।
इस बातचीत में उन्होंने बताया कि भारत की जैव आधारित तकनीकें जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा की रक्षा करने और अन्य विकासशील देशों के लिए सीख प्रदान करने में कैसे मदद कर सकती हैं, खासकर जब दुनिया सीओपी 30 (COP30) की ओर बढ़ रही है।

मोंगाबे हिन्दी : रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से निपटने में जैव अर्थव्यवस्था की बढ़ती भूमिका पर ज़ोर दिया गया है। आपके अनुसार भारत के पास इस क्षेत्र में अग्रणी बनने या जैव आधारित जलवायु तकनीकों को विकसित और विस्तारित करने के कौन से अवसर हैं?
सारा ट्रैरप: भारत इस क्षेत्र में नेतृत्व करने और जैव आधारित जलवायु तकनीकों को आगे बढ़ाने की अच्छी स्थिति में है। यह अपने मज़बूत पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप्स और लक्षित राष्ट्रीय पहलों पर आधारित है। रिपोर्ट में कुछ उदाहरण दिए गए हैं जैसे धान के पुआल से बनने वाले एथेनॉल संयंत्र, जो दिखाते हैं कि वेस्ट-टू-एनर्जी के रास्ते ग्रामीण रोजगार पैदा कर सकते हैं और उत्सर्जन घटा सकते हैं। इसी तरह नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग और बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर्स स्थानीय स्तर पर जैविक इनपुट और पुनर्योजी समाधान प्रदान कर रहे हैं, जो मिट्टी की सेहत को मजबूत करते हैं और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करते हैं। वहीं एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड और ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम जैविक इनपुट, अपशिष्ट प्रबंधन और सर्कुलर प्रथाओं में निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं। ये सभी पहलें यह दिखाती हैं कि भारत नवाचार, ग्रामीण आजीविका और जलवायु कार्रवाई को जोड़ते हुए वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था परिवर्तन के अग्रिम मोर्चे पर है, और अन्य विकासशील देशों के लिए एक उपयोगी उदाहरण पेश कर सकता है।
मोंगाबे हिंदी : भारत की जैव अर्थव्यवस्था किस तरह जलवायु लक्ष्यों और खाद्य सुरक्षा दोनों को आगे बढ़ा सकती है ताकि जैव आधारित उद्योग खाद्य उत्पादन या छोटे किसानों के हितों से प्रतिस्पर्धा न करें?
सारा ट्रैरप: रिपोर्ट ने यह रेखांकित किया है कि मज़बूत संस्थागत शासन (governance frameworks) की भूमिका बेहद अहम है। स्पष्ट भूमि अधिकार, पारदर्शी नियम और ऐसे एक्सटेंशन सर्विसेज जो छोटे किसानों को जैव आधारित वैल्यू चेन में जोड़ें, यह सुनिश्चित करते हैं कि फीडस्टॉक उत्पादन खाद्य फसलों के पूरक के रूप में काम करे, प्रतिस्थापन के रूप में नहीं। जब इसे सर्कुलर तरीकों से प्रबंधित किया जाता है, जैसे कि फसल अवशेषों या अपशिष्ट बायोमास का उपयोग ऊर्जा या बायो-फर्टिलाइज़र बनाने में किया जाए, तो जैव अर्थव्यवस्था उत्सर्जन घटाने, मिट्टी की सेहत सुधारने और ग्रामीण आजीविकाओं में विविधता लाने में मदद कर सकती है। अंततः भारत की जैव अर्थव्यवस्था की समावेशिता और स्थिरता इस बात पर निर्भर करेगी कि कार्यक्रम छोटे किसानों को कितनी प्रभावी रूप से जोड़ते हैं और औद्योगिक विकास को स्थानीय खाद्य सुरक्षा प्राथमिकताओं के साथ कैसे तालमेल में रखते हैं।
मोंगाबे हिंदी : जैव अर्थव्यवस्था में ऐसे कौन से नवाचार हैं जो सीधे ग्रामीण आजीविका में सुधार ला सकते हैं, जैसे स्थानीय रोजगार के अवसर या किसानों और छोटे उद्यमियों के लिए नई आमदनी के स्रोत?
सारा ट्रैरप: जैव आधारित नवाचार ग्रामीण आजीविका को मज़बूत बना सकते हैं क्योंकि ये स्थानीय संसाधनों और ज्ञान पर आधारित होते हैं और इससे स्थानीय स्तर पर उद्यमिता को बढ़ावा मिलता है। ये पारंपरिक औद्योगिक केंद्रों से बाहर भी उत्पादन प्रणालियों को विकसित होने का अवसर देते हैं। उदाहरण के तौर पर, छोटे स्तर के बायोगैस और बायोफर्टिलाइज़र सिस्टम जो कृषि अवशेषों को ऊर्जा और मिट्टी के पोषक तत्वों में बदलते हैं, या बायोरिफाइनरी जो छोटे उद्यमियों को गन्ने की खोई, धान की भूसी और कपास के डंठलों जैसे कृषि उपोत्पादों को बायोप्लास्टिक और जैव आधारित रसायनों में बदलने की क्षमता देती हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नई आजीविकाओं के अवसर बनते हैं। इस तरह के नवाचार फीडस्टॉक आपूर्ति, प्रोसेसिंग और रखरखाव के कामों में स्थानीय रोजगार उत्पन्न करते हैं और किसानों तथा ग्रामीण सहकारी समितियों के लिए नई आमदनी के रास्ते खोलते हैं। स्थानीय संसाधनों के उपयोग को सर्कुलर उत्पादन से जोड़कर, जैव आधारित तकनीकें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाती हैं, अपशिष्ट घटाती हैं और अधिक समावेशी, कम-कार्बन विकास की दिशा में मदद करती हैं।

मोंगाबे हिंदी: भारत जैसे देशों को जलवायु तकनीकों को सुलभ, सस्ती और समान रूप से उपलब्ध कराने में मुख्य चुनौतियां क्या हैं, और वैश्विक वित्त या साझेदारियां इन खाइयों को कैसे पाट सकती हैं?
सारा ट्रैरप: भारत सहित कई देशों को जलवायु और जैव आधारित तकनीकों को सुलभ और समान रूप से उपलब्ध कराने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी मुख्य वजह ऊंची शुरुआती लागत, सीमित तकनीकी क्षमता और असमान संस्थागत सहयोग है। इन बाधाओं को अक्सर बिखरे हुए शासन और वित्तीय ढांचे और तंत्र और भी गहरा कर देते हैं, जिससे छोटे उत्पादकों और ग्रामीण समुदायों तक पहुंच मुश्किल हो जाती है। इसलिए तकनीक को लागू करते समय सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है ताकि नवाचार स्थानीय ज्ञान, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामुदायिक ज़रूरतों को ध्यान में रखे। वैश्विक जलवायु वित्त और साझेदारियां इन खाइयों को पाटने में मदद कर सकती हैं, जैसे कि रियायती वित्त उपलब्ध कराना, तकनीक के सह-विकास का समर्थन करना और समावेशी नवाचार प्रणालियों के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण करना। इस तरह का सहयोग सुनिश्चित करता है कि तकनीकें केवल लागू न हों बल्कि स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलें और उनका स्वामित्व भी स्थानीय स्तर पर हो। इससे समानता और स्थिरता दोनों को बढ़ावा मिलता है।
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मोंगाबे हिंदी: भारत से आगे बढ़कर, आप चाहेंगी कि इस साल की रिपोर्ट से नीति-निर्माता और हितधारक कौन से वैश्विक संदेश लें, खासकर जब दुनिया सीओपी 30 (COP30) की ओर बढ़ रही है?
सारा ट्रैरप: जब दुनिया ब्राज़ील में होने वाले सीओपी 30 की तैयारी कर रही है, एक प्रमुख संदेश यह है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को तेज़ करने के लिए ऐसे समेकित दृष्टिकोणों की ज़रूरत है जो जलवायु कार्रवाई, जैव विविधता और भूमि उपयोग के उद्देश्यों को एक साथ जोड़ें। क्लाइमेट टेक्नोलॉजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2025 बताती है कि जब तकनीक को सतत जैव आधारित समाधानों के साथ जोड़ा जाता है, तो यह बड़े पैमाने पर, कम लागत वाले और समावेशी परिणाम दे सकती है। नीति-निर्माताओं को इस अवसर का उपयोग वैश्विक सहयोग को नए सिरे से डिज़ाइन करने में करना चाहिए, ताकि नवाचार, वित्त और स्थानीय कार्रवाई को जोड़कर एक न्यायपूर्ण और प्रकृति-सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
मोंगाबे हिंदी: क्या आप कुछ और जोड़ना चाहेंगी, खासकर नवाचार और समानता के भविष्य को लेकर, जो वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है?
सारा ट्रैरप: आगे की दिशा में, वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि नवाचार कितना समावेशी, समान और सुलभ बनता है। इसके लिए विविध ज्ञान प्रणालियों का उपयोग ज़रूरी है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों और सेक्टरों में सतत समाधान विकसित किए जा सकें।
बैनर तस्वीरः इथेनॉल एक जैव ईंधन है और जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प है। इसे चीनी और स्टार्च युक्त कृषि सह-उत्पादों से प्राप्त किया जाता है। इसकी मदद से इन उत्पादों का अतिरिक्त इस्तेमाल किया जाता है और यह किसानों की आय को भी बढ़ाता है। तस्वीर- सुप्रिया वोहरा/मोंगाबे