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गर्मियों में गंगा के प्रवाह के लिए ग्लेशियर से ज्यादा जरूरी है भूजल

वाराणसी में गंगा नदी, जहां भूजल का प्रवाह लगभग 52% से 58% है। गंगा के पूरे रास्ते में भूजल महत्वपूर्ण स्रोत है। तस्वीर: एंटोनी टैवेनॉक्स\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 3.0)।

वाराणसी में गंगा नदी, जहां भूजल का प्रवाह लगभग 52% से 58% है। गंगा के पूरे रास्ते में भूजल महत्वपूर्ण स्रोत है। तस्वीर: एंटोनी टैवेनॉक्स\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 3.0)।

  • एक नया अध्ययन बताता है कि गंगा नदी के लिए ग्लेशियर से ज्यादा भूजल जरूरी है।
  • नदी के उद्गम स्थल की तुलना में गंगा के मैदानी इलाकों में भूजल से इसका प्रवाह 120% बढ़ जाता है।
  • शोधकर्ताओं और जानकारों का मानना ​​है कि गंगा के पुनरुद्धार और संरक्षण कार्यक्रमों में भूजल को बनाए रखने और उसकी सहायक नदियों में बहाव को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

गंगा नदी में पानी का प्रवाह बनाए रखने वाले ग्लेशियर सहित हिमालय के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। इससे नदी के प्रवाह को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। हालांकि, एक नए अध्ययन से पता चला है कि ग्लेशियर नहीं, बल्कि भूजल ही इस नदी की जीवन रेखा है।

अध्ययन के लेखक अभयानंद सिंह मौर्य ने बताया कि यह पहला व्यापक आइसोटोप अध्ययन है जो हाइड्रोलॉजिकल प्रोसेसेस में प्रकाशित हुआ है। इससे पता चलता है कि गंगा नदी में गर्मी में प्रवाह बनाए रखने के लिए भूजल मुख्य स्रोत है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुड़की के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मौर्य ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हालांकि ऊपरी क्षेत्र में ग्लेशियर और बर्फ के पिघलने से नदी के प्रवाह को बनाए रखने में अहम मदद मिलती है, लेकिन हिमालय की तलहटी से आगे के क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता है।”

मौर्य को इस अध्ययन का विचार साल 2011 में आया था, जब उन्होंने ऋषिकेश में गंगा नदी पर अपने शोध कार्य के दौरान पाया कि नदी में ग्लेशियरों के पिघलने का योगदान कुल प्रवाह का महज 32% ही था। इससे उन्हें मैदानी इलाकों में बचे हुए पानी के स्रोत के बारे में सोचने पर मजबूर किया, जहां ऋषिकेश के मुकाबले कई गुना ज्यादा पानी बहता है।

भूजल प्राथमिक स्त्रोत

गंगा नदी पश्चिमी हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है। यह भारत और बांग्लादेश के सिंधु-गंगा के मैदानों से होकर बहती है। इसलिए इसे आर्द्रभूमि और मछलियों जैसे पारिस्थितिक तंत्र के लिए अहम माना जाता है।

आईआईटी इंदौर और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों द्वारा हाल ही में किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में गंगोत्री ग्लेशियर में बर्फ पिघलने से होने वाला बहाव 10% कम हो चुका है। दुनिया भर के ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभाव से इनसे निकलने वाली नदियों को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही है।

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर पिछले चार दशकों में बर्फ पिघलने के प्रवाह का 10% खो चुका है। हालांकि, ग्लेशियर कम बारिश वाले समय में गंगा नदी के बहाव को बनाए रखते हैं, लेकिन गर्मियों में इसका मुख्य स्रोत भूजल है। तस्वीर - अर्पित रावत\विकिमीडिया कॉमन्स (CC0 1.0)।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर पिछले चार दशकों में बर्फ पिघलने के प्रवाह का 10% खो चुका है। हालांकि, ग्लेशियर कम बारिश वाले समय में गंगा नदी के बहाव को बनाए रखते हैं, लेकिन गर्मियों में इसका मुख्य स्रोत भूजल है। तस्वीर – अर्पित रावत\विकिमीडिया कॉमन्स (CC0 1.0)।

हालांकि, मौर्य और उनकी टीम के नए अध्ययन से पता चलता है कि नदियों के प्रवाह के लिए भूजल का रिचार्ज होना भी जरूरी है। शोधकर्ताओं ने पाया कि गंगा के उद्गम स्थल के मुकाबले इसके मैदानी क्षेत्र में भूजल रिचार्ज नदी में पानी के स्तर को लगभग 120% बढ़ा देता है।

इस अध्ययन के लिए मौर्य और उनकी टीम ने 2019 में ग्रीष्मकालीन मानसून की शुरुआत से पहले 32 जगहों से पानी के नमूने इकट्ठे किए। ये नमूने देवप्रयाग से एकत्र किए गए थे, जहां अलकनंदा नदी और भागीरथी मिलकर गंगा बनती हैं। इसके अलावा, नदी के मुहाने (हावड़ा) के पास से और इसकी मुख्य सहायक नदियों से भी नमूने जमा किए गए। फिर, उन्होंने इन नमूनों में ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के आइसोटॉपिक अनुपात का अध्ययन किया और नदी के पानी में इसके प्रवाह के साथ अनुपात में बदलाव का पता लगाया। यह बदलाव सहायक नदियों मे पानी के वाष्पीकरण व मिश्रण और एक्वाफायर से प्रवाह के कारण हुआ। चूंकि, भूजल के आइसोटोपिक वैल्यू आमतौर पर नदी के पानी से अलग होती हैं, इसलिए आइसोटोपिक अनुपात में बदलाव यह दिखा सकता है कि नदी में भूजल कहां से आता है।

मौर्य कहते हैं, “जब गंगा मैदानी इलाकों में पहुंचती है, तो वहां से लेकर आगे के 1,200 किलोमीटर के उस हिस्से तक जहां यह घाघरा और गंडक जैसी मुख्य सहायक नदियों से मिलती है, नदी का ज्यादातर भाग भूजल पर निर्भर है।” अध्ययन में कहा गया है कि नदी का यह मध्य मैदानी भाग खेती और उद्योग के लिए अहम क्षेत्र है और “40 करोड़ से ज्यादा लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला नदी मैदान” है।

‘महत्वपूर्ण खोज लेकिन जानकारी नई नहीं’

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर में पर्यावरण विज्ञान एवं इंजीनियरिंग स्कूल में भूविज्ञान के प्रोफेसर अभिजीत मुखर्जी कहते हैं कि अध्ययन के नतीजे महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन यह कोई नई जानकारी नहीं है। मुखर्जी साल 2000 से गंगा के प्रवाह में भूजल की भूमिका पर शोध कर रहे हैं। वे कहते हैं, “साल 2006 से कई अध्ययन प्रकाशित हुए हैं जिनसे पता चला है कि गंगा में पानी मुख्य रूप से भूजल से आता है, ग्लेशियरों से नहीं।”

मुखर्जी बताते हैं कि गंगा के पूरे रास्ते में भूजल अहम स्रोत है। वे कहते हैं, “वाराणसी में भूजल का प्रवाह लगभग 52% से 58% है, जो पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जैसे कुछ हिस्सों में बढ़कर लगभग 75% हो जाता है। निचले इलाकों में कुछ जगहों पर तो गर्मियों में यह 100% तक पहुंच जाता है।”

मुखर्जी कहते हैं कि सामान्य सोच यह है कि ग्लेशियरों के पिघलने से गंगा में पानी बना रहता है। यह इस सामान्य वजह से जुड़ा हुआ है कि “ग्लेशियर दिखाई देते हैं”। वे आगे कहते हैं, “ऊंचाई वाले इलाकों में हरिद्वार तक, जब नदी ज्यादातर पहाड़ी इलाकों से होकर बह रही होती है, तो आप ग्लेशियरों के पिघलने से पानी को आते हुए देख सकते हैं। लेकिन भूजल का प्रवाह ज्यादातर दिखाई नहीं देता।”

गंगा नदी ऊपर से  लिया गया विहंगम दृश्य। तस्वीर - ला फेसी\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)।
गंगा नदी ऊपर से  लिया गया विहंगम दृश्य। तस्वीर – ला फेसी\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)।

पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा बताते हैं कि ग्लेशियर गंगा नदी को सूखे मौसम में तो सहारा देते हैं, लेकिन वे इतने बड़े नहीं हैं कि 2,525 किलोमीटर के पूरे रास्ते में गंगा में पानी का मुख्य स्रोत बन सकें। वे बताते हैं, “लेकिन ग्लेशियरों की अहमियत यह है कि वे नदी को सदानीरा बनाते हैं।”

चोपड़ा के मुताबिक नवंबर से मार्च के आखिर तक ग्लेशियरों का पिघलना कम हो जाता है, क्योंकि पहाड़ों पर बहुत ठंड होती है और सर्दियों में बर्फ के पिघलने की मात्रा कम हो जाती है। लेकिन, गर्मियों के दौरान ग्लेशियर पिघलने लगते हैं और स्थानीय प्रवाह कम हो जाता है, जिससे ग्लेशियरों का पिघलना फिर से बढ़ जाता है। चोपड़ा कहते हैं, “तो मूल रूप से, यह बारिश का पानी है जो जलग्रहण क्षेत्र में गिरता है और आसपास की पहाड़ियों की ढलानों और गंगा जलग्रहण क्षेत्र के ऊपरी इलाकों से होकर आता है, जो गंगा में मुख्य प्रवाह है।”

वाइल्डलाइफ ट्रस्ट इंडिया (WII) की डीन और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (WII) कार्यक्रम की प्रमुख अन्वेषक रुचि बडोला कहती हैं कि उनकी कार्ययोजनाओं में भूजल पर विशेष ध्यान दिया गया है। वह बताती हैं, “हमारा एक मुख्य काम स्थानीय लोगों, गंगा प्रहरियों (स्थानीय समुदायों के प्रशिक्षित स्वयंसेवक जो गंगा नदी के संरक्षण और स्वच्छता के लिए काम करते हैं) को जलग्रहण क्षेत्रों के संरक्षण में सहयोग देना रहा है, क्योंकि इसी से भूजल रिचार्ज होता है और नदियों में बहाव बना रहता है।” हालांकि, बडोला कहती हैं कि भूजल ना सिर्फ गंगा के लिए, बल्कि उसकी सहायक नदियों के लिए भी अहम है। सहायक नदियों में भूजल की स्थिति और उनके योगदान को भी देखना जरूरी है।”

वह यमुना का उदाहरण देती हैं। “हथनीकुंड बैराज से लेकर इटावा जिले में चंबल-यमुना संगम तक, यमुना का प्रवाह बहुत कम है, जिसके चलते फ्लशिंग तंत्र में बाधा आती है। चंबल के कारण, यमुना को पारिस्थितिकी प्रवाह बनाए रखने के लिए जरूरी पूरा पानी मिलता है,” वह बताती हैं।

गंगा और दूसरी नदियों का संरक्षण

मौर्य का अध्ययन एक अनदेखे मुद्दे की ओर भी इशारा करता है: वाष्पीकरण के कारण पानी का नुकसान। आंकड़ों से पता चला है कि गंगा अपने मध्य मैदानी क्षेत्र में वाष्पीकरण के कारण अपना आधे से ज्यादा पानी खो देती है। यह खास तौर पर चिंताजनक है, क्योंकि हाल के शोधों ने गंगा के प्रवाह में कमी को दिखाया है। शोधकर्ताओं ने पिछले 1,300 सालों के गंगा के प्रवाह को फिर से बनाया और पाया कि नदी बेसिन ने पिछले कुछ दशकों में अपने सबसे बुरे सूखे का सामना किया है। उन्होंने यह भी पाया कि “1991 से 2020 तक का सूखापन पिछली सदी में सबसे ज्यादा है।”

बडोला कहती हैं, “हालांकि मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकती कि गंगा सूख रही है या नहीं, लेकिन चंबल जैसी सहायक नदियों में पानी पक्के तौर पर कम हो गया है।”

गंडक नदी। जानकारों का कहना है कि गंडक जैसी मुख्य सहायक नदियों से मिलने से पहले गंगा के मैदानों का 1,200 किलोमीटर का क्षेत्र मुख्य रूप से भूजल पर निर्भर है। यह क्षेत्र कृषि और उद्योग के लिए अहम है और लगभग 40 करोड़ लोगों का भरण-पोषण करता है। तस्वीर - ए.जे.टी. जॉनसिंह, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और एनसीएफ\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।
गंडक नदी। जानकारों का कहना है कि गंडक जैसी मुख्य सहायक नदियों से मिलने से पहले गंगा के मैदानों का 1,200 किलोमीटर का क्षेत्र मुख्य रूप से भूजल पर निर्भर है। यह क्षेत्र कृषि और उद्योग के लिए अहम है और लगभग 40 करोड़ लोगों का भरण-पोषण करता है। तस्वीर – ए.जे.टी. जॉनसिंह, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और एनसीएफ\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।

मौर्य का कहना है कि भूजल का बहुत ज्यादा दोहन, हिमनदों सिकुड़ना और कई चरणों में नदी के प्रवाह को अत्यधिक मोड़ना नदी के बहाव में बाधा डालने वाले कुछ बड़ी वजहें हैं। अध्ययन में छोटी सहायक नदियों से जल प्रवाह में कमी, सहायक नदियों के किनारे बढ़ते मानवीय अतिक्रमण और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी सामग्री और दाह संस्कार की राख को नदी में बड़ी मात्रा में डालने के कारण पानी के प्रवाह में बाधा भी इसके प्रमुख कारणों में से एक बताया गया है।

“कस्बों, शहरों, गांवों और मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में पानी की आपूर्ति के लिए गंगा नदी से अत्यधिक पानी का दोहन समस्या है। किसी भी अवरोध, बांध या बैराज को नदी के प्राकृतिक प्रवाह के आधे से ज्यादा हिस्से को नहीं रोकना चाहिए,” चोपड़ा कहते हैं। वे कहते हैं कि बिजनौर में नदी का बहुत सारा पानी मोड़ दिया जाता है। गंगा नदी में लगभग कोई शुद्ध प्रवाह नहीं बचा है। “थोड़ा आगे, रामगंगा मुरादाबाद के सभी उद्योगों के गंदे पानी के साथ कन्नौज में इसमें मिल जाती है।”

गंगा को बचाए रखने के लिए, भूजल पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना होगा। मौर्य बताते हैं, “हमें यह समझने की जरूरत है कि गंगा के मैदानी इलाकों में एक्वाफायर किस तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिसमें भूजल भंडारण क्षमता और पानी के स्तर में गिरावट की दर भी शामिल है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए, एक्वाफायर नदी को पानी देते हैं और इसलिए ये अहम जरिया हैं।” वे यह भी कहते हैं कि गंगा से जुड़े पुनर्जीवन और संरक्षण कार्यक्रमों में भूजल रिचार्ज को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

हालांकि, इन कार्यक्रमों में भूजल पर खासा जोर रहा है। बडोला बताती हैं कि भूजल रिचार्ज, खास तौर पर बारिश के पानी को बचाने से जुड़ी संरचनाएं और गावों में पानी की पर्याप्त आपूर्ति इसका मुख्य हिस्सा रहे हैं। वह आगे कहती हैं, “बारिश के पानी के संरक्षण के लिए भी कार्यक्रम चल रहे हैं, इसलिए इसका ज्यादातर हिस्सा भूजल को रिचार्ज करने में ही लगना चाहिए।”

उनकी बातों से सहमति जताते हुए मौर्य कहते हैं कि प्रवाह बनाए रखने के लिए, सहायक नदियों का स्वस्थ रहना ज़रूरी है। गंगा बेसिन में द्वितीयक, तृतीयक और उच्च-क्रम की सहायक नदियों को बनाए रखने पर ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि ये खेतों से पानी इकट्ठा करके प्राथमिक सहायक नदियों में छोड़ती हैं, जो फिर गंगा में मिल जाती हैं। वे विस्तार से बताते हैं, “अगर ये सहायक नदियां ठीक से काम नहीं करतीं हैं, तो यह गंगा की अविरल धारा के लिए बहुत ही गंभीर समस्या बन जाती है।”

हालांकि, चोपड़ा का कहना है कि बड़े स्तर पर बदलाव की बात करने वाले नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम सिर्फ नदी की सफाई पर ही ध्यान देते हैं। वे कहते हैं, “वे नदी के प्रवाह पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर नदी में पानी ही नहीं बहेगा, तो नदी क्या है?”


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मौर्य बताते हैं कि भारत में सिर्फ गंगा ही नहीं, बल्कि कई नदियां भूजल पर निर्भर हैं। “उदाहरण के लिए, गोमती नदी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले से निकलती है। गोमती ताल नामक झील को गोमती नदी का उद्गम माना जाता है। यह नदी मानसून के दौरान पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहती है और साल के बाकी समय भूजल पर निर्भर रहती है,” वे बताते हैं। मौर्य जोर देते हैं कि बड़ी नदियां ज्यादातर भूजल पर निर्भर हैं। इसलिए जब तक भूजल का बेहतर प्रबंधन नहीं होगा, इन नदियों को जीवित नहीं रखा जा सकता।”

गंगा नदी में लगातार प्रवाह पक्का करने के लिए अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि प्रमुख स्थानों पर बांधों और अवरोधों से पानी की निकासी को 20%-25% तक बढ़ाया जाना चाहिए, साफ नहीं किए गए सीवेज को नदी में जाने से रोका जाना चाहिए और पारंपरिक सामग्रियों को बहाने पर रोक लगाई जानी चाहिए।

इस बीच, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने आइसोटोप अध्ययन के आधार पर खुद से संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की है और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को नतीजों पर जवाब देने का निर्देश दिया है।


यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर  9 अक्टूबर, 2025 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: वाराणसी में गंगा नदी, जहां भूजल का प्रवाह लगभग 52% से 58% है। गंगा के पूरे रास्ते में भूजल महत्वपूर्ण स्रोत है। तस्वीर: एंटोनी टैवेनॉक्स\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 3.0)।

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