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मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जंगल से सटे गांव के खेत। ऐसे गांव में किसान पुश्तों से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन वनाधिकार कानून के ठीक से लागू न होने की वजह से उनके अधिकार छिनने का खतरा है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

[कॉमेंट्री] बीते सदी में वन अधिकार को लेकर बदलता नजरिया और उससे जूझते लोग

कोविड-19 के दौरान न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया था कि जब तक कोरोना है तब तक लोगों उनके रहवास से बेदखल नहीं किया जाए। उदाहरण के लिए जबलपुर उच्च न्यायालय…
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जंगल से सटे गांव के खेत। ऐसे गांव में किसान पुश्तों से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन वनाधिकार कानून के ठीक से लागू न होने की वजह से उनके अधिकार छिनने का खतरा है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
खारे पानी को पंप के माध्यम से पाटा पर इकट्ठा किया जा रहा है। यहां वाष्पीकरण के बाद नमक बनने की प्रक्रिया शुरू होगी। आजकल अगरिया सोलर पंप का इस्तेमाल भी करते हैं। तस्वीर- ध्वनित पांड्या/एएचआरएम

नमक की जरूरत सबको पर हाशिए पर है नमक बनाने वाला समुदाय

मानसून ढलान पर है। इस मानसून के आखिरी महीने या कहें सितंबर के आखिरी सोमवार का दिन था। 48-वर्षीय गुणवंत रामजी कोली कच्छ के पूर्वी रण के एक पोखर में…
खारे पानी को पंप के माध्यम से पाटा पर इकट्ठा किया जा रहा है। यहां वाष्पीकरण के बाद नमक बनने की प्रक्रिया शुरू होगी। आजकल अगरिया सोलर पंप का इस्तेमाल भी करते हैं। तस्वीर- ध्वनित पांड्या/एएचआरएम
भारत सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में फरवरी, 2021 तक वनाधिकार को लेकर सिर्फ 8022 दावे पेश किये गये थे, दिलचस्प है कि इनमें से बिहार सरकार ने सिर्फ 121 दावों को स्वीकृत किया है। तस्वीर- जगदरी/फ्लिकर

[वीडियो] 13 साल बाद भी बिहार में सिर्फ 121 परिवार हासिल कर पाये वनाधिकार

दीपनारायण प्रसाद कहते हैं, हमारे इलाके से सात से आठ हजार के करीब लोगों ने वनाधिकार पट्टे के लिए आवेदन दिया था। मगर मेरी जानकारी में वाल्मिकीनगर के जंगल में…
भारत सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में फरवरी, 2021 तक वनाधिकार को लेकर सिर्फ 8022 दावे पेश किये गये थे, दिलचस्प है कि इनमें से बिहार सरकार ने सिर्फ 121 दावों को स्वीकृत किया है। तस्वीर- जगदरी/फ्लिकर
[कॉमेंट्री] मार्फत कामोद सिंह गोंड, मध्य प्रदेश में वन अधिकारों की जमीनी सच्चाई

[कॉमेंट्री] मार्फत कामोद सिंह गोंड, मध्य प्रदेश में वन अधिकारों की जमीनी सच्चाई

50 वर्षीय कामोद सिंह गोंड अब हताश हो चुके हैं। दमोह जिले की तेंदूखेड़ा तहसील के गुबरा गांव के रहने वाले कामोद सिंह का दसियों साल का संघर्ष दाव पर…
[कॉमेंट्री] मार्फत कामोद सिंह गोंड, मध्य प्रदेश में वन अधिकारों की जमीनी सच्चाई
रोजी-रोटी के लिए वन गुज्जर मवेशियों पर निर्भर है। वन विभाग की सख्ती की वजह से वे मवेशी चराने के लिए जंगल नहीं जा सकते। तस्वीर- निशांत सैनी

जंगल की रक्षा करने वाले शिवालिक के टोंगिया और वन गुर्जरों का वनाधिकार अधर में

अप्रैल की अलसाई दोपहरी में उत्तराखंड के हरिद्वार के हरिपुर टोंगिया गांव की महिला पाल्लो देवी (52) बैठी जूट की रस्सियां बुन रही थीं। बदन पर गुलाबी सलवार-कुर्ती और चेहरे…
रोजी-रोटी के लिए वन गुज्जर मवेशियों पर निर्भर है। वन विभाग की सख्ती की वजह से वे मवेशी चराने के लिए जंगल नहीं जा सकते। तस्वीर- निशांत सैनी
जंगल के बारे में इन महिलाओं की समझ पहले से ही काफी अच्छी थी। ट्रेनिंग के बाद उनका ज्ञान और भी बढ़ा जिससे पर्यटकों को वह आसानी से जंगल के बारे में बता पाती हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी

अचानकमार टाइगर रिजर्वः जिस जंगल में बचपन बीता वहीं फॉरेस्ट गाइड बन गईं ये महिलाएं

“हम इस जंगल के चप्पे-चप्पे की खबर रखते हैं। जंगली जानवरों के साथ हमारा बचपन बीता है,” यह कहते हुए 19 वर्ष की परमेश्वरी आत्मविश्वास से भर उठती है। परमेश्वरी…
जंगल के बारे में इन महिलाओं की समझ पहले से ही काफी अच्छी थी। ट्रेनिंग के बाद उनका ज्ञान और भी बढ़ा जिससे पर्यटकों को वह आसानी से जंगल के बारे में बता पाती हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी
सुन्दरलाल बहुगुणा: भारतीय पर्यावरणवाद के एक युग का अंत

[श्रद्धांजलि] सुन्दरलाल बहुगुणा: भारतीय पर्यावरणवाद के एक युग का अंत

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। यह नारा सत्तर के दशक से हिमालय की वादियों में गूंज रहा है।…
सुन्दरलाल बहुगुणा: भारतीय पर्यावरणवाद के एक युग का अंत

लघु वनोपज संग्रहण का मॉडल राज्य छत्तीसगढ़ में कितनी सुधरी आदिवासियों की स्थिति?

छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के पतुरियाडांड के सरपंच उमेश्वर सिंह आर्मो को उम्मीद नहीं है कि इस साल वनोपज संग्रहण का कोई लाभ गांव के लोगों को मिल पाएगा।  इस…
पीएम किसान योजना: क्या झारखंड के आदिवासी किसानों के साथ हो रहा सौतेला व्यवहार?

पीएम किसान योजना: क्या झारखंड के आदिवासी किसानों के साथ हो रहा सौतेला व्यवहार?

झारखंड के खूंटी जिले के रहने वाले साठ वर्षीय समसोन तोपनो को जब खबर मिली की केंद्र सरकार अब किसानों को हर साल 6,000 रुपये देगी तो उन्हें लगा कि…
पीएम किसान योजना: क्या झारखंड के आदिवासी किसानों के साथ हो रहा सौतेला व्यवहार?
जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर

जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर

कैपरान, अनंतनाग जिले का एक सरहदी कस्बाई गांव है जो चारों तरफ से पहाड़ों और घास के मैदानों से घिरा है। यहां आस-पास के तकरीबन दस गांवों के बाशिंदों के…
जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में हुए गोंड महासम्मेलन में समाज के प्रतिनिधियों ने शव को न जलाने का फैसला लिया। तस्वीर- सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़/फेसबुक

हरियाली बचाने के वास्ते गोंड समुदाय ने शवों को नहीं जलाने का लिया फैसला

देश के सबसे बड़े आदिवासी समाज के तौर पर गोंड समुदाय की पहचान होती है। हाल ही में इस समुदाय ने शवों के अंतिम संस्कार की अपनी वर्षों पुरानी परंपरा…
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में हुए गोंड महासम्मेलन में समाज के प्रतिनिधियों ने शव को न जलाने का फैसला लिया। तस्वीर- सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़/फेसबुक
पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार दिया गया है।

[वीडियो] पच्चीसवें साल में पेसा: ग्राम सभा को सशक्त करने के लिए आया कानून खुद कितना मजबूत!

पेसा यानी पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) क़ानून को आए पच्चीस साल पूरे होने वाले हैं। आदिवासी बहुल इलाकों में स्थानीय समाज को मजबूती देने के लिए लाया गया यह…
पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार दिया गया है।
देश के खनन प्रभावित क्षेत्रों में न सिर्फ वन संपदा को नुकसान हुआ है बल्कि वहां के स्थानीय लोगों पर भी खनन का दुष्प्रभाव दिखता है। तस्वीर- गुरविंदर सिंह

छत्तीसगढ़ और कोयला खनन: पेसा कानून की अनदेखी पर फिर उठे सवाल, सरकार और ग्रामीण आमने-सामने

तो क्या आदिवासियों के संरक्षण के लिए 1996 में लागू किया गया पेसा यानी पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) क़ानून का कोई अर्थ नहीं रह गया है? कम से कम…
देश के खनन प्रभावित क्षेत्रों में न सिर्फ वन संपदा को नुकसान हुआ है बल्कि वहां के स्थानीय लोगों पर भी खनन का दुष्प्रभाव दिखता है। तस्वीर- गुरविंदर सिंह
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले का एक ग्रामीण हाट। ऐसे हाट किसानों को अपनी उपज बेचने में मददगार हैं। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी

ग्राम: छोटे किसानों को सही दाम दिलाने के लिए तीन साल पहले लायी गयी योजना कागजों तक सीमित

करीब दो महीने तक राजधानी की सीमा के बाहर हाड़ कंपा देने वाले सर्दी में संघर्ष करने के बाद लाखों किसानों गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सीमा में ट्रैक्टर…
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले का एक ग्रामीण हाट। ऐसे हाट किसानों को अपनी उपज बेचने में मददगार हैं। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी
झारखंड के खनन क्षेत्र में एक महिला कोयला चुनते हुए

खनन का दंश झेल रही देश की महिलाएं, स्वास्थ्य से लेकर अस्मिता तक खतरे में

मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिला खनन के लिए जाना जाता है। खदान क्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं को जबरन देह-व्यापार में घसीट लिया गया। खनन के फायदे और नुकसान पर हो रही…
झारखंड के खनन क्षेत्र में एक महिला कोयला चुनते हुए
बीज का संग्रहण, उसकी रोपाई और खेती के अन्य मौके डोंगरिया के लिए त्योहार की तरह हैं।

प्रकृति पूजक डोंगरिया आदिवासी सहेज रहे बीजों की विरासत, बदलते मौसम में भी बरकरार पैदावार

नियमगिरि पहाड़ियों पर सुंदर और घने वनों के बीच आधुनिकता से दूर एक आदिवासी समाज रहता है। अपने में अनोखे इस समाज को डोंगरिया कोंध के नाम से जानते हैं।…
बीज का संग्रहण, उसकी रोपाई और खेती के अन्य मौके डोंगरिया के लिए त्योहार की तरह हैं।
भोरमदेव

विस्थापन के भय से छत्तीसगढ़ के भोरमदेव जंगल को टाइगर रिजर्व बनाने के विरोध में बैगा आदिवासी

छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश की सीमा से सटा भोरमदेव का जंगल अपने इतिहास और बाघ समेत दर्जनों अन्य प्रजाति के जीवों की उपस्थिति को लेकर चर्चा में रहा है। मध्यप्रदेश कान्हा…
भोरमदेव
पाम ऑइल 10 वर्ष की बच्ची सामेला कभी स्कूल नहीं जा पाई। वह अपनी दादी के साथ बेवेल देगुल के ताड़ के खेत में काम करती है। फोटो- अल्बर्टस वेम्ब्रिएन्टो

भारत और चीन के पाम ऑयल की जरूरत पूरी करने की कीमत चुका रहा इंडोनेशिया का आदिवासी समाज

इंडोनेशिया के पापुआ का बोवेन दिगोल क्षेत्र। घने जंगलों के लिए मशहूर इस इलाके की नई पहचान पाम ऑयल से है। ताड़ के बीजों से निकाले गए तेल को पाम…
पाम ऑइल 10 वर्ष की बच्ची सामेला कभी स्कूल नहीं जा पाई। वह अपनी दादी के साथ बेवेल देगुल के ताड़ के खेत में काम करती है। फोटो- अल्बर्टस वेम्ब्रिएन्टो
प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज के लिए बगीचे में औषधि तैयार करती महिलाएं

छत्तीसगढ़ के जंगलों की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को लोगों तक पहुंचा रही यह आदिवासी महिला

आज से करीब तीस साल पहले सरोजिनी गोयल के माता-पिता जड़ी-बूटी और इलाज में काम आने वाली फूल-पत्तियों की तलाश में घने जंगलों की ख़ाक छाना करते थे। तब नौ…
प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज के लिए बगीचे में औषधि तैयार करती महिलाएं