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तमिलनाडु के अनामलाई पहाड़ियों में सड़क पार करते हुए एक हाथी और उसका बच्चा। खराब तरीके से बनाई गई सड़कों और रेलवे लाइनों की वजह से एशियाई हाथियों की गाड़ियों से टक्कर हो रही है, जिससे वे मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं। तस्वीर- श्रीधर विजयकृष्णन/NCF

हाथियों की सड़क और रेलवे पटरियों पर होने वाली मौतों को रोकने के लिए नई हैंडबुक जारी

इस साल की शुरुआत में, कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास एक ट्रेन से एक हाथी और उसके बच्चे को टक्कर मार दी, जिससे दोनों की मौत हो गई। कुछ महीने…
तमिलनाडु के अनामलाई पहाड़ियों में सड़क पार करते हुए एक हाथी और उसका बच्चा। खराब तरीके से बनाई गई सड़कों और रेलवे लाइनों की वजह से एशियाई हाथियों की गाड़ियों से टक्कर हो रही है, जिससे वे मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं। तस्वीर- श्रीधर विजयकृष्णन/NCF
लास वेगास में सुपरमार्केट। तस्वीर- हैरिसन कीली/ विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 4.0 DEED)। 

पर्यावरण हितैषी उत्पादों के नाम पर ग्रीनवाशिंग रोकने में कितने कारगर होंगे नए गाइडलाइन्स

क्या पर्यावरण हितैषी होने का दावा करने वाले उत्पाद पर्यावरण के लिहाज से उतने ही अच्छे हैं जितना कि बताया जाता है? जैसे-जैसे पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है,…
लास वेगास में सुपरमार्केट। तस्वीर- हैरिसन कीली/ विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 4.0 DEED)। 
असम के बारपेटा में बिहार के प्रवासी मधुमक्खी पालक। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 

[वीडियो] शहद की तलाश में मधुमक्खियों के साथ यात्रा कर रहे किसान, बेहतर हुआ शहद उत्पादन

असम के नुमालीगढ़ क्षेत्र के बोरसापोरी गांव के दूर क्षितिज पर सूरज डूब रहा था। दूर-दूर तक फैले सरसों के खेतों में मधुमक्खियों की भिनभिनाहट के बीच लीला चरण दत्ता…
असम के बारपेटा में बिहार के प्रवासी मधुमक्खी पालक। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 
पंजाब के नांगल में सड़क किनारे इकट्ठा हुआ नारियल का कचरा। तस्वीर- रवलीन कौर

नारियल के कचरे से निपटना हुआ मुश्किल

उदयवीर सिंह पिछले छह सालों से पंजाब के शहर नांगल में नारियल का स्टॉल चला रहे हैं। कर्नाटक से नारियल की सप्लाई करने वाले एक एजेंट से वह इन्हें खरीदते…
पंजाब के नांगल में सड़क किनारे इकट्ठा हुआ नारियल का कचरा। तस्वीर- रवलीन कौर
बेंगलुरु के रहने वाले वॉटर डिवाइनर एस. सैमसन तांबे के उपकरण से बोर पॉइंट खोजने की कोशिश कर रहे हैं। पास ही खड़े बच्चे उन्हें काम करते हुए देख रहे हैं। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे 

वाटर डिवाइनिंगः नारियल और सूखी टहनियों से भूजल खोजने का पारंपरिक तरीका

शनमुगन ने अपनी धोती ऊपर उठाई और बड़ी ही सावधानी से अपना एक पैर जमीन पर रखा। कुछ महसूस न होने पर वह दूसरी दिशा की ओर बढ़ गए। फिर…
बेंगलुरु के रहने वाले वॉटर डिवाइनर एस. सैमसन तांबे के उपकरण से बोर पॉइंट खोजने की कोशिश कर रहे हैं। पास ही खड़े बच्चे उन्हें काम करते हुए देख रहे हैं। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे 
ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम के पास खड़े हुए बिनोद कुमार महतो। तस्वीर- विशाल कुमार जैन

झारखंड में तकनीक की मदद से खेती में मिलती सिंचाई, मौसम और बीमारियों की सटीक जानकारी

बात साल 2020 की है, जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी और काम-धंधे बंद हो रहे थे। इन सबके बीच 10 साल से पुणे में बैंक मार्केटिंग का…
ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम के पास खड़े हुए बिनोद कुमार महतो। तस्वीर- विशाल कुमार जैन
राम-मोल किसान खरपतवार हटाने के लिए हल्की जुताई जैसी प्राकृतिक खेती तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसे स्थानीय भाषा में विखेड़ा कहा जाता है। तस्वीर- सात्विक-प्रमोटिंग इकोलॉजिकल एग्रीकल्चर के सौजन्य से।

सूखे इलाकों में फसल उगाने के लिए परंपरागत राम-मोल कृषि तकनीक पर भरोसा

मई का महीना करीब है और कच्छ के धरमपुर गांव में सूरज अभी से आग बरसा रहा था। इसकी परवाह किए बिना मवाभाई डांगर अपने अरंडी की फसल का जायजा…
राम-मोल किसान खरपतवार हटाने के लिए हल्की जुताई जैसी प्राकृतिक खेती तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसे स्थानीय भाषा में विखेड़ा कहा जाता है। तस्वीर- सात्विक-प्रमोटिंग इकोलॉजिकल एग्रीकल्चर के सौजन्य से।
हाथीपाखना गांव का निवासी हुंडी या मंदिर में प्रार्थना कर रहा है। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे 

घटते फॉरेस्ट कॉमन्स, कोरापुट के आदिवासी समुदायों के लिए त्यौहार मनाना हुआ मुश्किल

ओडिशा के कोरापुट जिले में चैता परब का मौसम है। इन दिनों ज्यादातर आदिवासी महुआ के पेड़ के फूलों से बनी स्थानीय शराब महुली का लुत्फ उठाने के लिए बेताब…
हाथीपाखना गांव का निवासी हुंडी या मंदिर में प्रार्थना कर रहा है। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे 
उरावु लैब्स में पानी की शुद्धता की जांच करता हुआ एक कर्मचारी। उरावु लिक्विड डेसीकेंट तकनीक का इस्तेमाल करता है जो हवा से नमी को सोखता है। फिर इसे फिल्टर और विशोषण प्रक्रिया के जरिए भेजा जाता है, ताकि पानी में दूषित पदार्थ न हों। मोंगाबे के लिए अभिषेक एन. चिन्नाप्पा द्वारा ली गई तस्वीर।

नई तकनीक से हवा से तैयार हो रहा किफायती पीने योग्य पानी

बेंगलुरु जैसे भारतीय महानगर पिछले कुछ समय से डे जीरो (किसी दिन पूरी तरह पानी नहीं मिलना) के संभावित खतरे से दो-चार हैं। शहर में जल संसाधनों का कुप्रबंधन इतना…
उरावु लैब्स में पानी की शुद्धता की जांच करता हुआ एक कर्मचारी। उरावु लिक्विड डेसीकेंट तकनीक का इस्तेमाल करता है जो हवा से नमी को सोखता है। फिर इसे फिल्टर और विशोषण प्रक्रिया के जरिए भेजा जाता है, ताकि पानी में दूषित पदार्थ न हों। मोंगाबे के लिए अभिषेक एन. चिन्नाप्पा द्वारा ली गई तस्वीर।
एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

खाद्यान का नुकसान कम करने और किसानों की आय बढ़ाने वाली तकनीकें

कल्पना कीजिए कि आप टमाटर की खेती करने वाले किसान हैं। आपको सूखे का सामना करना पड़ा है। इससे पैदावार कम हुई है। फसल की गुणवत्ता भी खराब हुई है।…
एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ता कंगनी (फोक्सटेल मिलेट) के पौधे की ऊंचाई मापते हुए। तस्वीर - हैदराबाद विश्वविद्यालय के टमाटर जीनोमिक्स रिसोर्सेज की रिपॉजिटरी से।

बदलते मौसम में खेती-बाड़ी के लिए विकसित होती बेहतर तकनीक

भारत में किसान हमेशा मौसम के हिसाब से खेती-बाड़ी का काम करते रहे हैं। हालांकि, हाल के सालों में बारिश और मौसम से जुड़ी भविष्यवाणी करना चुनौती बन गया है।…
हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ता कंगनी (फोक्सटेल मिलेट) के पौधे की ऊंचाई मापते हुए। तस्वीर - हैदराबाद विश्वविद्यालय के टमाटर जीनोमिक्स रिसोर्सेज की रिपॉजिटरी से।
नौशेरा फॉरेस्ट डिवीजन के सुंदरबनी जंगल में बिखरी चीड़-देवदार की पत्तियों को इकट्ठा किया जा रहा है। तस्वीर- राकेश वर्मा

आग की जगह आजीविका के अवसर देतीं चीड़ की ज्वलनशील पत्तियां

जैसे ही जम्मू-कश्मीर के सुंदरबनी के जंगलों में बसंत का सूरज लंबे-लंबे चीड़ (Pinus roxburgii) के पेड़ों पर चमकना शुरू होता है, वैसे ही जंगल के पास रहने वाले लोग…
नौशेरा फॉरेस्ट डिवीजन के सुंदरबनी जंगल में बिखरी चीड़-देवदार की पत्तियों को इकट्ठा किया जा रहा है। तस्वीर- राकेश वर्मा
लंबे समय से बर्तन बनाने वाले कारीगर सैय्यद अहमद उन बर्तनों को तैयार करते हुए जिन्हें अगले दो दिन में भट्ठी के लिए भेजना है। तस्वीर-विशेष इंतजाम।

खुर्जा में चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने के सतत तरीकों के प्रयास जारी

50 साल के सैय्यद अहमद का मिट्टी के बर्तनों को आकार देने का तरीका पारंपरिक तरीके से अलग है जबकि ज्यादातर कारीगर पारंपरिक तरीके से ही बर्तन बनाते हैं। बर्तनों…
लंबे समय से बर्तन बनाने वाले कारीगर सैय्यद अहमद उन बर्तनों को तैयार करते हुए जिन्हें अगले दो दिन में भट्ठी के लिए भेजना है। तस्वीर-विशेष इंतजाम।
अलीगढ़ में कबाड़ का एक गोदाम। अलीगढ़ में ताला बनाने वाले लोग कार के कबाड़ का इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर करते हैं। तस्वीर- जोया अदा हुसैन/मोंगाबे।

अलीगढ़ का मशहूर ताला बनाने के बेहतर और टिकाऊ तरीकों की खोज

एक आम सोमवार की सुबह 47 साल के साजिद अली एक रोलर में बड़ी बारीकी से स्टील की शीट डाल रहे हैं। यह मशीन इस शीट को चपटी कर देती…
अलीगढ़ में कबाड़ का एक गोदाम। अलीगढ़ में ताला बनाने वाले लोग कार के कबाड़ का इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर करते हैं। तस्वीर- जोया अदा हुसैन/मोंगाबे।
भारत सिंथेटिक कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। तस्वीर: रवलीन कौर/मोंगाबे।

मौसम में बदलाव के बीच टिकाऊ तरीक़ों को बढ़ावा देता सूरत का कपड़ा उद्योग

साजिदा शेख की उम्र 45 साल है। वो 17 साल से गुजरात के सूरत जिले के पलसाना में स्थित कपड़ा क्लस्टर गुजरात ईको टेक्सटाइल पार्क में रंगाई के लिए आने…
भारत सिंथेटिक कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। तस्वीर: रवलीन कौर/मोंगाबे।
अप्रैल 2016 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चितई के पास चीड़ के जंगलों में लगी आग। फाइल तस्वीर- Ramwik/विकिमीडिया कॉमन्स

बकाया वेतन, संसाधनों का अभाव, जंगल की आग से कैसे लड़ेंगे उत्तराखंड के अग्नि प्रहरी

इस साल उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों में वनाग्नि के मामले दर्ज किये गए। राज्य की दोनों प्रशासनिक इकाइयों में सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, देहरादून…
अप्रैल 2016 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चितई के पास चीड़ के जंगलों में लगी आग। फाइल तस्वीर- Ramwik/विकिमीडिया कॉमन्स
एकलव्य फाउंडेशन की ग्रीन बिल्डिंग धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटो से बनी है जिस से यह दूसरी इमारतों के मुकाबले ठंडी रहती है। तस्वीर- एकलव्य फाउंडेशन

भोपाल की यह ईको-फ्रेंडली इमारत है पर्यावरण के लिए लाभकारी

मई और जून के महीनों में बाहर पड़ रही भीषण गर्मी के बावजूद भी भोपाल के एकलव्य फाउंडेशन के कर्मचारी एक पंखे के नीचे खुश हैं। उन्हें दूसरे दफ्तरों के…
एकलव्य फाउंडेशन की ग्रीन बिल्डिंग धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटो से बनी है जिस से यह दूसरी इमारतों के मुकाबले ठंडी रहती है। तस्वीर- एकलव्य फाउंडेशन
अपने बैलों के साथ सुंडी बाई उइके। बैल मोटे अनाज के सूखे डंठलों के चारों तरफ घूमते हैं। इस प्रक्रिया में अनाज के दाने डंठल से अगल हो जाते हैं। तस्वीर - शुचिता झा/मोंगाबे।

मोटे अनाज से क्यों दूर हो रहे हैं मध्य प्रदेश के आदिवासी?

सुंडी बाई उइके मध्य प्रदेश के मांडला जिले के केवलारी गांव में रहती हैं। गांव में उनकी झोपड़ी मिट्टी और गाय के गोबर से लीपकर बनाई गई है। झोपड़ी के…
अपने बैलों के साथ सुंडी बाई उइके। बैल मोटे अनाज के सूखे डंठलों के चारों तरफ घूमते हैं। इस प्रक्रिया में अनाज के दाने डंठल से अगल हो जाते हैं। तस्वीर - शुचिता झा/मोंगाबे।
अपने खेतों में काम करते हुए मोनपा जनजाति के कुछ लोग। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 

[वीडियो] क्या अरुणाचल के बढ़ते बिजली संकट को हल कर पाएंगी पारंपरिक पनचक्कियां

रूपा बौद्ध मठ में काफी चहल पहल है। उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के रूपा उप-मंडल में रहने वाली एक प्रमुख जनजाति शेरटुकपेन अपने सबसे लोकप्रिय…
अपने खेतों में काम करते हुए मोनपा जनजाति के कुछ लोग। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 
भांगा मेले में अपने स्टॉल पर इस्माइल मोल्ला। मोल्ला बचपन से ही अपने पिता के साथ मेले में जाते रहे हैं। मेले से उनका गहरा भावनात्मक संबंध है। तस्वीर- जॉयमाला बागची/मोंगाबे 

बंगाल का ‘भांगा मेला’, जहां कचरा बेकार नहीं जाता

हर साल जनवरी में फसलों के त्योहार मकर संक्रांति को मनाने के साथ ही पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना का मथुरापुर गांव एक अनोखे मेले की तैयारियों में जुट…
भांगा मेले में अपने स्टॉल पर इस्माइल मोल्ला। मोल्ला बचपन से ही अपने पिता के साथ मेले में जाते रहे हैं। मेले से उनका गहरा भावनात्मक संबंध है। तस्वीर- जॉयमाला बागची/मोंगाबे 
कर्नाटक के कोक्करेबेल्लूर गांव में एक लड़की ने अपने कपड़े सूखने को डाले हैं और पास के पेड़ों पर रंगीन सारस और पेलिकन ने अपने घोंसले बना रखे हैं। शिम्शा नदी के किनारे मौजूद इस गांव में हर साल औसतन 500 पेलिकन और 2000 रंगीन सारस आते हैं और घोंसला लगाते हैं। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे।

हर समय पक्षियों के झुंड की रक्षा करता है ये गांव

दिसंबर का महीना है और कोक्करेबेल्लूर गांव में सुबह-सुबह चमकदार सूरज निकला होने के बावजूद ठंड अपने चरम पर है। साल 2017 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कम्युनिटी…
कर्नाटक के कोक्करेबेल्लूर गांव में एक लड़की ने अपने कपड़े सूखने को डाले हैं और पास के पेड़ों पर रंगीन सारस और पेलिकन ने अपने घोंसले बना रखे हैं। शिम्शा नदी के किनारे मौजूद इस गांव में हर साल औसतन 500 पेलिकन और 2000 रंगीन सारस आते हैं और घोंसला लगाते हैं। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे।
ओडिशा के सुंदरगढ़ के फुलधुडी गांव में अपनी मशरूम की फसल के साथ खड़ी कुछ महिलाएं। तस्वीर- ऐश्वर्या मोहंती/मोंगाबे।

भूसे और पराली से मशरूम की खेती ने ओडिशा के गांवों की बदली तस्वीर

ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के फुलधुडी गांव में रहने वाली 30 साल की भारती प्रूसेच के घर के पीछे की जमीन कई साल से बंजर पड़ी थी। लेकिन आज यही…
ओडिशा के सुंदरगढ़ के फुलधुडी गांव में अपनी मशरूम की फसल के साथ खड़ी कुछ महिलाएं। तस्वीर- ऐश्वर्या मोहंती/मोंगाबे।
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं। तस्वीर- सुमित यादव

सोलर फेंसिंग मशीन: यूपी के किसानों की जरूरत, ‘खेत सुरक्षा योजना’ करवा रही है इंतजार

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के किसान साल 2017 के बाद से खेतों की रखवाली करते हुए मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। आवारा गोवंशो और…
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं। तस्वीर- सुमित यादव
गर्मी के मौसम में दिल्ली के मयूर विहार में नारियल पानी बेचता एक व्यक्ति। तस्वीर- अंकुर जैन/विकीमीडिया कॉमन्स

[एक्सप्लेनर] हीटवेव में हो रही है बढ़ोतरी, क्या प्रभावी हैं भारत के हीट एक्शन प्लान?

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अप्रैल में आई हीटवेव कई संवेदनशील और पिछले समुदायों के लिए…
गर्मी के मौसम में दिल्ली के मयूर विहार में नारियल पानी बेचता एक व्यक्ति। तस्वीर- अंकुर जैन/विकीमीडिया कॉमन्स
अपनी बकरियों को चराने के लिए ले जाता हुआ एक चरवाहा। शुष्क क्षेत्रों में तेजी से फैलने वाली घास को कम करने में आग एक जरूरी भूमिका निभाती है। तस्वीर- सी.एस. सनीश 

चराई या आग: सवाना में बढ़ती घास से निपटने का कौन सा तरीका बेहतर

पूर्वी घाट के एक अध्ययन में मेसिक सवाना पारिस्थितिकी तंत्र में तेजी से फैल रही देसी सिम्बोपोगोन घास (लेमनग्रास) को लेकर चिंता जाहिर की और पारिस्थितिक तंत्र को पुरानी स्थिति…
अपनी बकरियों को चराने के लिए ले जाता हुआ एक चरवाहा। शुष्क क्षेत्रों में तेजी से फैलने वाली घास को कम करने में आग एक जरूरी भूमिका निभाती है। तस्वीर- सी.एस. सनीश 
फरवरी 2024 में नोएडा में आयोजित सरस मेले में बांस के उत्पादों को दिखाता एक कारीगर। सरकार सरस आजीविका मेला जैसी पहलों के जरिए मार्केट लिंकेज पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां कारीगर अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं। तस्वीर-कुंदन पांडे/मोंगाबे।

बांस के जरिए कारीगरों के लिए बेहतर भविष्य बनाने की कोशिश

ज्योत्सना देवनाथ का छोटी उम्र में पश्चिम त्रिपुरा के ब्रज नगर में नया सफर शुरू हुआ। यहां उनकी शादी हुई और वह एक ऐसे परिवार का हिस्सा बन गईं, जो…
फरवरी 2024 में नोएडा में आयोजित सरस मेले में बांस के उत्पादों को दिखाता एक कारीगर। सरकार सरस आजीविका मेला जैसी पहलों के जरिए मार्केट लिंकेज पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां कारीगर अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं। तस्वीर-कुंदन पांडे/मोंगाबे।
हाथ की चक्की पर बाजरे को पीसती हुई अट्टापडी में एक आदिवासी महिला। तस्वीर-मैक्स मार्टिन/मोंगाबे

लुप्त होती परंपरा बचाने के लिए केरल के आदिवासियों ने दोबारा शुरू की बाजरे की खेती

केरल के अट्टापडी हाइलैंड्स में आदिवासी बस्तियों के किनारे पहाड़ी जंगलों में एक बार फिर से बाजरा के लहलहाते खेत नजर आने लगे हैं। यह इलाका पश्चिमी घाट के वर्षा…
हाथ की चक्की पर बाजरे को पीसती हुई अट्टापडी में एक आदिवासी महिला। तस्वीर-मैक्स मार्टिन/मोंगाबे
वाइल्डलाइफ एसओएस के प्रांगण में टहलते हुए दो हाथी। तस्वीर साभार- वाइल्डलाइफ एसओएस

कैसे काम करता है भीख मांगने और सर्कस से बचाए गए हाथियों का संरक्षण केंद्र

आज से 14 साल पहले हरियाणा के पलवल हाईवे पर एक हथिनी चोटिल घूम रही थी। वन्यजीवों को बचाने वाली एक टीम ने उसकी देखभाल की। गंभीर चोट की वजह…
वाइल्डलाइफ एसओएस के प्रांगण में टहलते हुए दो हाथी। तस्वीर साभार- वाइल्डलाइफ एसओएस
चन्नापटना शहर में सड़क किनारे एक दुकान पर प्रदर्शित पारंपरिक चन्नापटना खिलौने। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे।

परंपरा और आधुनिक डिज़ाइन के बीच अटके चन्नापटना के लकड़ी के खिलौने और उनके कारीगर

एक साधारण से घर की चमकीली गुलाबी दीवार के सामने बरामदे में बैठीं बोरम्मा का सारा ध्यान एक धुरी पर है, जिसके ऊपर लकड़ी का एक टुकड़ा लगा हुआ है।…
चन्नापटना शहर में सड़क किनारे एक दुकान पर प्रदर्शित पारंपरिक चन्नापटना खिलौने। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे।
पहाड़ी नाली बनाने में अन्य मजदूरों का सहयोग करतीं चामी मुर्मू। पहाड़ पर जब बारिश होती है तो पानी तेजी से नीचे आता है, जिसे इस नाली की मदद से इकट्ठा किया जाता है। तस्वीर साभार- सहयोगी महिला

चामी मुर्मू: पेड़ और पानी से होते हुए पद्म श्री तक का सफर

32 साल में लगाए 30 लाख पेड़। हर दिन करीब 257 पौधे।   71 गांवों में चार अमृत सरोवर सहित कुल 217 तालाबों का निर्माण।  263 गांवों में बनाए 2873 स्वयं…
पहाड़ी नाली बनाने में अन्य मजदूरों का सहयोग करतीं चामी मुर्मू। पहाड़ पर जब बारिश होती है तो पानी तेजी से नीचे आता है, जिसे इस नाली की मदद से इकट्ठा किया जाता है। तस्वीर साभार- सहयोगी महिला