आदिवासी

झारखंड, भारत में रांची जिले में हुंडरू झरने से ली गई एक घाटी। तस्वीर- अजय कुमार/विकिमीडिया कॉमन्स

झारखंड: लैंड बैंक से तैयार हो रही संघर्ष की नई ज़मीन!

इस साल 15 जुलाई को झारखंड में गोंदलपुरा के निवासियों ने हजारीबाग जिला कलेक्टर कार्यालय की ओर से रखी गई जनसुवाई के दौरान ‘अडानी कंपनी वापस जाओ’  के नारे लगाए।…
झारखंड, भारत में रांची जिले में हुंडरू झरने से ली गई एक घाटी। तस्वीर- अजय कुमार/विकिमीडिया कॉमन्स
तेंदू यानी डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन के पत्तों का उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है। आदिवासी इलाकों में इसे हरा सोना भी कहा जाता है क्योंकि वनोपज संग्रह पर निर्भर एक बड़ी आबादी के लिए तेंदूपत्ता आय का सबसे बड़ा स्रोत है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता खुद बेचना चाहते है आदिवासी, सरकार को है ऐतराज

छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले के डोटोमेटा के सरपंच जलकू नेताम खुश हैं कि इस बार उनके गांव के लोगों को तेंदूपत्ता की सही क़ीमत मिलेगी। उनका आरोप है कि वनोपज…
तेंदू यानी डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन के पत्तों का उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है। आदिवासी इलाकों में इसे हरा सोना भी कहा जाता है क्योंकि वनोपज संग्रह पर निर्भर एक बड़ी आबादी के लिए तेंदूपत्ता आय का सबसे बड़ा स्रोत है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे
छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले के साल्ही गांव से लगे हसदेव अरण्य के जंगल में आदिवासी पेड़ कटने का विरोध कर रहे हैं। पिछले कई दिनों से यहां प्रदर्शन हो रहे हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

कोयले के लिए हसदेव अरण्य में काटे जा सकते हैं साढ़े चार लाख पेड़, रात-दिन जागकर पेड़ों की रक्षा कर रहे हैं आदिवासी

देश में चारों तरफ लोगों को यह सलाह दी जा रही है कि जानलेवा धूप है, घर से ना निकालें। छत्तीसगढ़ में भी कई इलाकों में मौसम का पारा 46…
छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले के साल्ही गांव से लगे हसदेव अरण्य के जंगल में आदिवासी पेड़ कटने का विरोध कर रहे हैं। पिछले कई दिनों से यहां प्रदर्शन हो रहे हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल
रोरो गांव के लोग खेती के अलावा जंगल के उत्पाद जैसे महुआ आदि पर निर्भर हैं। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

एसबेस्टस खनन के बंद होने के 39 साल बाद भी क्यों हो रहें हैं झारखंड के आदिवासी बीमार

मोहन सूंडी झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के रोरो गांव के रहने वाले 35 वर्षीय युवक हैं। केरल के एक थिएटर में काम करते हैं और महीने भर पहले अपने…
रोरो गांव के लोग खेती के अलावा जंगल के उत्पाद जैसे महुआ आदि पर निर्भर हैं। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
[कॉमेंट्री] उदारीकरण के 30 साल: क्या कोविड-19 की दूसरी लहर भारतीय मध्य वर्ग की दिशा बदलेगी?

कोविड, किसान आंदोलन, उदारीकरण, पेसा, नेट जीरो से जोड़कर देखा जाएगा साल 2021

अभी 2022 दहलीज पर खड़ा है और इसके साथ ओमीक्रॉन भी। पूरी मानव सभ्यता इस उम्मीद में है कि कोविड के डेल्टा ने 2021 में जो तबाही मचाई वैसे आगे…
[कॉमेंट्री] उदारीकरण के 30 साल: क्या कोविड-19 की दूसरी लहर भारतीय मध्य वर्ग की दिशा बदलेगी?
60 वर्षीय जानकीअम्मा कभी शहद इकट्ठा करने का काम करती थीं, लेकिन आज वे एक अवॉर्ड विनिंग कंपनी की डायरेक्टर हैं। तस्वीर- आरथी मेनन

जानकीअम्माः शहद बटोरने वाली निरक्षर महिला से कंपनी डायरेक्टर का सफर, यूएन से मिला सम्मान

जीवन के 60 वसंत देख चुकी जानकीअम्मा आज एक कृषि उत्पाद कंपनी की डायरेक्टर हैं। दक्षिण भारत के आदिम जनजाति कुरुंबा से वास्ता रखने वाली अम्मा कभी शहद इकट्ठा करने…
60 वर्षीय जानकीअम्मा कभी शहद इकट्ठा करने का काम करती थीं, लेकिन आज वे एक अवॉर्ड विनिंग कंपनी की डायरेक्टर हैं। तस्वीर- आरथी मेनन
ग्राम सभा की बैठक के दौरान ग्रामीण और सुरक्षाबल। तस्वीर- राजाराम सुंदरेसन

ओडिशा: बॉक्साइट खनन को लेकर पुलिस तंत्र के साये में ग्राम सभा, आदिवासियों में रोष

मणिमा पटनायक एक आदिवासी समाज की महिला हैं जो कई वर्षो से माली पर्वत के नीचे स्थित अपने गांव मे अपने परिवार के साथ रहती हैं। पिछले महीने, नवम्बर 22…
ग्राम सभा की बैठक के दौरान ग्रामीण और सुरक्षाबल। तस्वीर- राजाराम सुंदरेसन
खनन के खिलाफ स्वदेशी समुदायों के सदस्यों के लिए कला का इस्तेमाल एक सशक्त हथियार है। तस्वीर- अमोल के. पाटिल। कॉपीराइट © प्रभाकर पचपुते, कोलकाता।

गांव छोड़ब नहीं: खनन से जुड़े प्रतिरोध में कला के सहारे बुलंद होती आवाज

“आगे मशीनीकरण के राज, जुच्छा कर देही सबके हाथ, बेरोजगारी हे अइसे बाढ़े हे, अउ आघु बढ़ जाही रे, मेहनतकश जनता हा, बिन मौत मारे जाही रे, फिर होही अनर्थ…
खनन के खिलाफ स्वदेशी समुदायों के सदस्यों के लिए कला का इस्तेमाल एक सशक्त हथियार है। तस्वीर- अमोल के. पाटिल। कॉपीराइट © प्रभाकर पचपुते, कोलकाता।
आदिवासी जंगल में जाते हुए। गढ़चिरौली के क्षेत्र में इन दिनों नए तरीके से शहद निकाला जा रहा है जो न केवल टिकाऊ है बल्कि रोजगार देने वाला भी है। तस्वीर तस्वीर- सौरभ कटकुरुवार

महाराष्ट्र के आदिवासी जिलों में शहद निकालने का आया एक नया टिकाऊ तरीका

पूर्वोत्तर महाराष्ट्र में स्थित गढ़चिरौली जिले के आदिवासी परिवार शहद निकालने का एक ऐसा तरीका अपना रहे हैं जिसमें मधुमक्खियों को नुकसान नहीं होता। यहां के आदिवासी परिवार आसपास के…
आदिवासी जंगल में जाते हुए। गढ़चिरौली के क्षेत्र में इन दिनों नए तरीके से शहद निकाला जा रहा है जो न केवल टिकाऊ है बल्कि रोजगार देने वाला भी है। तस्वीर तस्वीर- सौरभ कटकुरुवार
23-वर्षीय एलिस बरवा ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में आदिवासी युवाओं का प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व में गांव छोड़ब नहीं और हसदेव अरण्य बचाओ जैसे पोस्टर्स प्रदर्शनी में शामिल किए गए। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे

कॉप-26 में गूंजा ‘गांव छोड़ब नहीं’ की धुन, युवाओं ने भी संभाला मोर्चा

यह ग्लासगो में जलवायु सम्मेलन कॉप 26 का दूसरा सप्ताह है। विश्व के नेताओं ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की आवश्यकता के साथ अपने देशों…
23-वर्षीय एलिस बरवा ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में आदिवासी युवाओं का प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व में गांव छोड़ब नहीं और हसदेव अरण्य बचाओ जैसे पोस्टर्स प्रदर्शनी में शामिल किए गए। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे