गांव

मध्य प्रदेश की बैगा आदिवासी महिलाएं। बैगा मूलतः वनवासी हैं, जो जंगलों में प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में वनों की कटाई और विकास की गति ने उन्हें शहरों के नजदीकी स्थानों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। (प्रतीकात्मक इमेज) तस्वीर-सैंडी और व्याज/विकिमीडिया कॉमन्स

बेहतर वन प्रबंधन के लिए आदिवासी समुदाय का नजरिया शामिल करना जरूरी

भारत में जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदायों के लिए जंगल का क्या मतलब है? क्या वे वन पारिस्थितिकी तंत्र को उसी तरह देखते हैं जैसे जंगल के बाहर के…
मध्य प्रदेश की बैगा आदिवासी महिलाएं। बैगा मूलतः वनवासी हैं, जो जंगलों में प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में वनों की कटाई और विकास की गति ने उन्हें शहरों के नजदीकी स्थानों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। (प्रतीकात्मक इमेज) तस्वीर-सैंडी और व्याज/विकिमीडिया कॉमन्स
बिछड़ी में ज्यादातर लोग अपना सबसे ज्यादा समय पानी भरने और लाने में बिताते हैं। तस्वीर- शिवा सिंह।

[वीडियो] कारखानों के कचरे से प्रदूषित हुआ राजस्थान का बिछड़ी गांव, 35 साल बाद भी न्याय का इंतजार

बिछड़ी गांव की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए आपको ज्यादातर घरों के बाहर रखे या खिड़कियों पर लटके हुए सभी आकार के पानी के कंटेनर दिखाई देंगे। ऐसा ही एक…
बिछड़ी में ज्यादातर लोग अपना सबसे ज्यादा समय पानी भरने और लाने में बिताते हैं। तस्वीर- शिवा सिंह।
थार रेगिस्तान में ऊंट को पानी पिलाता एक ग्रामीण। एक अनुमान है कि साल 2030 तक भारत में 1.5 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होगी। तस्वीर- व्याचेस्लाव आर्जेनबर्ग / विकिमीडिया कॉमन्स

[कॉमेंट्री] स्थानीय स्तर पर पानी की सफाई से दूर होगा जल संकट

साल 2030 तक भारत में पानी की जरूरत 1.5 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी। भारत में जितना सीवेज या अपशिष्ट जल निकलता है उसमें से सिर्फ 16.8 प्रतिशत की…
थार रेगिस्तान में ऊंट को पानी पिलाता एक ग्रामीण। एक अनुमान है कि साल 2030 तक भारत में 1.5 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होगी। तस्वीर- व्याचेस्लाव आर्जेनबर्ग / विकिमीडिया कॉमन्स
बैनर तस्वीर: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा इस परियोजना की समीक्षा की गई। इसमें कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार के चुनिंदा गांवों का अध्ययन हुआ। तस्वीर- विजय कुट्टी /आईएलओ एशिया पैसिफिक / फ़्लिकर

जलवायु परिवर्तन से जूझने में कितने कारगर कार्बन पॉजिटिव गांव?

कर्नाटक के किसान महेश जब भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए जल और मृदा संरक्षण को लेकर चर्चा करते हैं, उनका सवाल होता कि उससे कृषि की…
बैनर तस्वीर: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा इस परियोजना की समीक्षा की गई। इसमें कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार के चुनिंदा गांवों का अध्ययन हुआ। तस्वीर- विजय कुट्टी /आईएलओ एशिया पैसिफिक / फ़्लिकर