- बिहार में लीची, जामुन, सरसो, यूकलिप्टस और करंज सहित कई तरह के शहद का उत्पादन किया जाता है। लेकिन यहां उत्पादित शहद में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण बाजार में किसानों को अच्छी कीमत नहीं मिल पाती।
- राज्य में शहद की गुणवत्ता जांचने की कोई व्यवस्था नहीं है और इस जांच के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर होने की मजबूरी है।
- शहद के काम में लगे किसानों का मानना है कि सरकार की ओर से मार्केटिंग, प्रमोशन और पैकेजिंग का कोई पुख्ता इंतजाम न होने की वजह से भी शहद को ठीक कीमत नहीं मिल रही है।
बिहार के गया जिले में परैया मरांची गांव के चितरंजन कुमार 18-20 टन शहद का उत्पादन करते हैं। ठीक ऐसे ही, इस ही गाँव के निरंजन प्रसाद भी साल में करीब 20 क्विंटल शहद का उत्पादन करते हैं। लेकिन, इतने उत्पादन के बावजूद भी उन्हें शहद उत्पादन में बहुत ज्यादा फायदा नहीं होता है। चितरंजन और निरंजन दोनों ही इसके लिए प्रदेश में शहद के प्रोसेसिंग प्लांट की कमी और शहद उत्पादकों को पैकेजिंग और मार्केटिंग के प्रशिक्षण की कमी को जिम्मेदार मानते हैं।
चितरंजन बताते हैं कि बड़े-बड़े ब्रांड की कंपनियां उनसे कच्चा शहद खरीदती हैं। लेकिन प्रोसेसिंग प्लांट नहीं होने के कारण उन्हें कंपनियों को कच्चा शहद ही देना पड़ता है। वह बताते हैं कि अगर वह कंपनियों को प्रोसेसिंग के बाद शहद बेचें तो उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी।
बिहार राज्य बागवानी मिशन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में सालाना करीब 20620.5 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। इसमें मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। वहीं, पूर्वी चम्पारण और बेगूसराय में 2500 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है।
लोक सभा में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वार पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 और साल 2021-22 में बिहार शहद उत्पादन में 16,000 मीट्रिक टन के साथ चौथे स्थान पर रहा था। पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश (22,500 मीट्रिक टन), दुसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल (20,000 मीट्रिक टन), और पंजाब (17,000 मीट्रिक टन) तीसरे स्थान पर रहा।
राज्य में होने वाले शहद में लीची, जामुन, सरसो, यूकलिप्टस और करंज का शहद शामिल है। यहां 30 प्रतिशत शहद सरसो से और 20-25 प्रतिशत लीची से होता है। लीची के फूलों का रस पतला होने की वजह से इसका प्रभाव शहद पर पड़ता है और लीची के शहद में नमी की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके कारण यह बाजार में सीधे नहीं बिक पाता है।
भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण 18 प्रतिशत नमी पर शहद को बाजार के लायक मान्यता देता है। लेकिन बिहार के शहद में 26 प्रतिशत तक नमी पायी जाती है जिसे निर्धारित मानकों पर लाने के लिए प्रोसेसिंग के लिए भेजना आवश्यक हो जाता है।
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राज्य में पांच प्रोसेसिंग यूनिट सुपाैल, वैशाली, गया, भागलपुर और औरंगाबाद में मौजूद हैं लेकिन या तो ठीक से चल नहीं रहीं हैं या फिर किसानों को इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं। ऐसे में किसान अपने शहद की प्रोसेसिंग के लिए उसे दुसरे राज्यों में भेजने को मजबूर हो जाते हैं।
सुपौल के शहद उत्पादक प्रदीप कुमार भारती बताते हैं कि उनके पास एक हजार शहद का बक्सा है। हाल में ही उन्होंने शहद के लिए प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई है, लेकिन दिक्कत यह है कि सरकार द्वारा किसी तरह के प्रमोशन की व्यवस्था नहीं है। इसके कारण अन्य किसान शहद प्रोसेसिंग के लिए उनके पास नहीं आते हैं।
ऐसी ही हालत औरंगाबाद में शहद उत्पादन और प्रोसेसिंग का काम कर रहे योगेन्द्र की भी है। वह एक दिन में 20 क्विंटल शहद की प्रोसेसिंग कर लेते हैं। लेकिन सरकार द्वारा प्रमोशन की व्यवस्था न होने के कारण अधिकतर ग्राहक प्रोसेसिंग के लिए नहीं आते हैं।
लैब, मूल्य निर्धारण नहीं
बिहार में शहद की गुणवत्ता जांचने की कोई लैब नहीं है। इसके कारण बिहार में शहद की प्रोसेसिंग करने वाली कंपनियां दिल्ली और यूपी में शहद की गुणवत्ता जांच करने के लिए भेजती हैं। दूसरे राज्यों में शहद की गुणवत्ता जांच करने के लिए भेजने और जांच होने में दो-तीन महीने लग जाते हैं। दिक्कत यह होती है कि शहद उत्पादकों को कई बार कई बार दूसरे राज्यों में आना-जाना पड़ता है और इस देरी के कारण कई बार ग्राहक शहद लेने से इनकार कर देते हैं। कभी-कभी लैब्स शहद बिना जांच किए हुए भी लौटा देती हैं।
पूर्वी चम्पारण के मेहसी प्रखंड के शहद उत्पादक विजय प्रसाद 700 मधुमक्खी के बक्से से साल भर में 12 टन तक शहद का उत्पादन कर लेते हैं। वह बताते हैं कि बिहार में कच्चे शहद का कोई निर्धारित मूल्य नहीं है। इसके कारण व्यापारी औने-पौने दाम पर शहद खरीद लेते हैं। “सरकार द्वारा शहद खरीदने की व्यवस्था होनी चाहिए थी। सरकार द्वारा चिन्हित एजेंसी के माध्यम से शहद की खरीद होती तो उत्पादकों को सही रेट मिल पाता है,” उन्होंने बताया।
बागवानी मिशन के उपनिदेशक देवनारायण महतो बताते हैं कि किसानों को शहद की अच्छी कीमत नहीं मिलने का एक और कारण यह है कि यह है कि बिहार के शहद उत्पादक मधुमक्खी का छत्ता परिपक्व हुए बगैर बेच देते हैं। “इसके कारण शहद की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। शहद के लिए छत्ते का 70 प्रतिशत परिपक्व होना बहुत जरूरी है,” उन्होंने बताया। उन्होंने बताया कि बिहार में गुणवत्ता जांच के लिए लैब होना चाहिए। इसके लिए सरकार अभी कृषि विश्वविद्यालय में स्थापित लैब में व्यवस्था कर रही है। उन्होने ये भी माना कि बिहार में प्रोसेसिंग यूनिट कम है जिसके कारण कच्चा शहद बाहर ले जाना पड़ता है। “इस संबंध में भी सरकार काम कर रही है,” महतो ने बताया।
वरीय कृषि वैज्ञानिक पीके द्विवेदी बताते हैं कि बिहार में नमी के उतार चढ़ाव के कारण शहद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और अधिक दिन रखने पर स्वाद में बदलाव आने लगता है। “शहद उत्पादन के दौरान मधुमक्खी इसे अपने पंख की हवा से सुखाती है। लेकिन आधा सूखा हुआ ही शहद निकाल लिया जाता है। इससे शहद उत्पादन तो बढ़ता है, लेकिन शहद में नमी की मात्रा अधिक हो जाती है। मधुमक्खी का छत्ता 70 प्रतिशत विकसित होने के बाद ही शहद निकाला जाना चाहिए,” उन्होने बताया। द्विवेदी का भी मानना है कि सरकार को सीधे तौर पर शहद प्रोसेसिंग प्लांट लगाना चाहिए, जिससे शहद की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है।
बैनर तस्वीरः लीची के फूल पर मंडराती एक मधुमक्खी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। तस्वीर– फ़ॉरेस्ट और किम स्टार/विकिमीडिया कॉमन्स