- विश्व के 150 देशों के करीब 40 फीसदी लोगों को डेंगू होने का खतरा है।
- हर साल बारिश के बाद डेंगू का प्रकोप बढ़ जाता है जिससे देशभर में सैकड़ों लोग प्रभावित होते हैं।
- भारत में डेंगू वायरस के सभी चार प्रकार मौजूद हैं। वर्ष 2019 में भारत में 1,57,315 डेंगू के मरीज सामने आए थे जिनमें से 166 मरीजों की मृत्यु हो गई।
- हाल में हैदराबाद की एक संस्था ने डेंगू की वजह से ब्लड प्लेटलेट में तेजी से गिरावट की वजह का पता लगाया है।
पूरी दुनिया इस वक्त कोविड-19 के टीके की राह देख रही है। लेकिन, क्या टीका खोजना इतना आसान है! दो दशक से डेंगू का टीका खोजने का प्रयास हो रहा है पर कोई खास सफलता नहीं मिल पायी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कोविड-19 की तरह ही डेंगू वायरस का जटिल होना।
लेकिन अच्छी खबर यह है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के नए शोध से डेंगू के वायरस को समझने में मदद मिल रही है। अगर शोधकर्ताओं के दावे सही साबित हुए तो कोविड-19 के वायरस को भी समझने में मदद सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भविष्य में कोविड के इलाज में भी आसानी होगी।
यूनिवर्सिटी ने हाल ही में इस संबंध में तीन महत्वपूर्ण खोज किया है। इसमें डेंगू के चारो स्ट्रेन की पहचान, डेंगू जांच के लिए आसान टेस्ट किट के साथ-साथ संक्रमित व्यक्ति के खून में प्लेटलेट्स की संख्या में अचानक गिरावट की वजह भी शामिल है।
डेंगू और कोविड-19 के बीच संबंध
हैदराबाद यूनिवर्सिटी का यह शोध जर्नल ऑफ वायरोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में सामने आया है कि एनएस3 के नाम से जाना जाने वाला वायरस प्रोटीन कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और यही ब्लड प्लेटलेट्स में कमी के लिए जिम्मेदार होता है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक नरेश सेपुरी और एम वेंकटरमना ने इसे समझाते हुए कहा कि पहली बार हम दिखा पाए हैं कि एनएस3 प्रोटीन माइटोकॉन्ड्रियल कंपार्टमेंट में प्रवेश कर जाता है। यह कंपार्टमेंट मैट्रिक्स के नाम से जाना जाता है जोकि कोशिकाओं का सबसे अंदरूनी हिस्सा होता है। इसमें मौजूद प्रोटीन जीआरपीईएव1 के साथ मिलकर डेंगू का प्रोटीन प्लेटलेट्स की संख्या को अचानक कम कर देता है।
माइटोकॉन्ड्रियल के भीतर की कोशिकाओं में मैट्रिक्स फ्लूइड या द्रव्य भी होता है। यहां वायरस के प्रोटीन माइटोकॉन्ड्रियल के भीतर के प्रोट्रीन के साथ मिलकर इस द्रव्य को नुकसान पहुंचाते हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि कोविड-19 के वायरस के भीतर में इसी तरह की क्षमता होती है। डेंगू के वायरस की इस तरह की बारीक पहचान होने से कोविड-19 के वायरस को भी करीब से समझने में मदद मिल सकती है।
कोविड-19 और डेंगू के वायरस प्रोटीन में लिपटे होते हैं और आरएनए आधारित होते हैं। पिछले 20-30 वर्षों में सामने आए इबोला, एचआईवी-एड्स, जिका और एचवनएनवन जैसे वायरस भी आरएनए आधारित हैं। डेंगू वायरस में 10 प्रोटीन की संरचना पाई गई है जबकि कोविड में 30 तरह की प्रोटीन संरचनाओं का पता चला है।
“हमने ये जानने की कोशिश की कि क्या कोविड-19 के प्रोटीन शरीर में माइटोकॉन्ड्रियल में घुस सकते हैं और पाया कि इनमें से तीन प्रोटीन में ऐसा कर पाने की क्षमता है। इसकी वजह से अचानक सांस लेने में तकलीफ और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इस तरह के लक्षण कोविड-19 के मरीजों में दिख भी रहे हैं” वेंकटरमना ने समझाते हुए कहा।
हैदराबाद विश्वविद्यालय की टीम ने इस काम को आगे बढ़ाते हुए कई और गहरी समझ विकसित की है। इस बीच डेंगू और कोविड-19 की समस्या एक ही मरीज में सामने आने की आशंका है। इस अध्ययन से ऐसे मरीजों के इलाज में भी मदद मिलने की संभावना है।
डेंगू के बारे में अबतक क्या जानते हैं हम
डेंगू का संक्रमण मादा एडीज मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर साफ पानी में पनपते हैं और दिन के समय सक्रिय रहते हैं। विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने वेंकटरमना के नेतृत्व में डेंगू के सभी चार प्रकार की खोज की है। डेंगू के चार वायरस (DENV-1, DENV-2, DENV-3, DENV-4) फ्लाविविरिडे परिवार से जुड़े हैं। इस वजह से हल्के से गंभीर बुखार या रक्तस्रावी बुखार होता है। इस तरह के बुखार में अंदरुनी अंगों में रक्तस्त्राव होता है जो खतरनाक साबित हो सकता है। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) के मुताबिक 2019 में 1,57,316 डेंगू के मामले सामने आए थे जिनमें से 166 मरीजों की मृत्यु हो गई। गुजरात में सबसे अधिक 18,219 केस सामने आए, जिसके बाद कर्नाटक (16,986), महाराष्ट्र (14,907), राजस्थान (13,706) और फिर तेलंगाना का स्थान आता है।
डेंगू की जांच सस्ती होने की उम्मीद
इस शोध के बाद डेंगू की जांच और इलाज में कम खर्च आने का अनुमान लगाया जा रहा है। अब तक डेंगू के एंटीजेन टेस्ट होते हैं जो कि महंगे होते हैं। हैदराबाद विवि के शोधकर्ताओं ने एलाइजा आधारित टेस्ट विकसित किया है जिससे शरीर में वायरस की स्थिति एक सप्ताह के भीतर ही पता चल सकता है। वेंकटरमना के मुताबिक अबतक 300 मरीजों पर इसकी जांच हो चुकी है।
स्ट्रेन का पता चलने के बाद इलाज भी काफी असरकारी और सस्ता हो जाएगा। “हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में सस्ता इलाज और जांच विकसित किया जाए। इसके साथ ही यह भी कि यह इलाज डेंगू के साथ जिका और चिकनगुनिया पर भी असरकारी हो,” वेंकटरमना कहते हैं।
डेंगू, चिकनगुनिया, जिका और मलेरिया जैसी बीमारियां मच्छर के काटने से होती हैं और इससे निपटने के लिए सरकार टनों रासायनिक पदार्थों का छिड़काव करती है। इसका पर्यावरण और इंसा न के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर होता है।
क्यों नहीं बन पाया डेंगू का कारगर टीका
डेंगू का कारगर टीका बनाने में दो दशक से दुनियाभर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। कुछ तो इसमें असफल रहे तो कुछ को सीमित सफलता मिली। फ्रेंच कंपनी सनोफी ने डेंगवेक्सिया नाम के टीके का विकास किया जिसके मिले-जुले परिणाम सामने आए। जानकार मानते हैं कि टीका विकसित करने में सबसे बड़ी समस्या है डेंगू के चार प्रकार का होना। एक टीके को इन चारों प्रकार के डेंगू से निपटने में सक्षम होना होगा।
हाल ही में जापान की कंपनी टाकेडा फार्मास्यूटिकल ने दावा किया है कि ये डेंगू का ऐसा टीका विकसित कर रहे हैं जो 80 फीसदी कारगर है। इनके दावे के अनुसार इस टीके का 4 से 16 वर्ष तक के 20,000 बच्चों पर परीक्षण भी किया गया है।
एक बयान में नवंबर में टाकेडा के ग्लोबल वेक्सीन बिजनस यूनिट के प्रमुख राजीव वेंकय्या ने कहा कि इस वेक्सीन को एशिया, लैटीन अमेरिका के विभिन्न परिस्थितियों में भी परखा जा रहा है।
बैनर तस्वीर- डेंगू के मच्छर जमे हुए पानी में पनपते हैं और दिन में सक्रिए रहते हैं। फोटो- एस. गोपीकृष्णा वारियर/मोंगाबे