- एक शोध में प्रदूषण की वजह से मधुमक्खियों के व्यवहार, शारीरिक बनावट और अनुवांशिकी पर भी परिवर्तन देखा गया है।
- यह परिवर्तन उन शहरों में भी देखा गया जो सरकार के मानकों के मुताबित कम प्रदूषित हैं।
- मधुमक्खी और दूसरे कई छोटे कीट फसल के फूलों को परागन की मदद से फल बनने में मदद करते हैं जिसपर पैदावार निर्भर होता है।
वायु प्रदूषण को लेकर देश के कुछ महानगर और औद्योगिक शहरों की चर्चा होती है, जहां प्रदूषण का स्तर मानक से काफी अधिक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदूषण के मानक से कम प्रदूषित इलाकों में भी वायु प्रदूषण का खतरनाक असर देखा जा रहा है? वैज्ञानिकों के हालिया शोध में सामने आया है कि अपेक्षाकृत कम प्रदूषित शहरों में यह असर मधुमक्खियों पर दिख रहा है। बैंगलुरु शहर और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में चार साल तक चले अध्ययन के बाद अमेरिकी शोध पत्रिका पीएनएएस ने इसके नतीजों को प्रकाशित किया है।
मधुमक्खियों की आबादी कम होना मतलब खतरे की घंटी। इसका सीधा संबंध हमारे भोजन की उपलब्धता से है। शोध के मुताबिक वायु में मौजूद प्रदूषक तत्व की वजह से मधुमक्खी सहित दूसरे परागन में सहायक जीवों का जीवन कम हो रहा है, जिससे शहरी इलाकों के आसपास की हरियाली को ही नहीं बल्कि खेती पर भी इसका असर दिखेगा। मधुमक्खी और दूसरे कई छोटे कीट फसल के फूलों को परागन की मदद से फल बनने में मदद करते हैं जिसपर पैदावार निर्भर होता है।
प्रदूषण की वजह से मधुमक्खियों की हृदय गति प्रभावित हुई है और उनकी अनुवांशिक बनावट में भी परिवर्तन देखा जा रहा है। इन बदलावों में मधुमक्खियों का स्वभाव भी शामिल है। इस तरह उनका जीवन चक्र छोटा हो रहा है जिसके दूरगामी परिणाम इंसानों पर भी दिखेंगे।
अमेरिकी शोध संस्था राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र (एनसीबीसी) ने बैंगलुरु में पिछले चार साल तक 1,820 जंगली मधुमक्खियों पर यह शोध किया गया। इसमें मधुमक्खियों के शारीरिक, बनावट और आनुवंशिक विशेषताओं को विभिन्न पद्धतियों से परखा गया। एशिया के शहद वाली मधुमक्खियां भारत के शहरी इलाकों में भी पायी जाती हैं और इनका कृषि और जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में काफी योगदान होता है। बैंगलुरु शहर का विस्तार भी देश के दूसरे शहरों की तरह तेजी से हुआ है जिससे यहां हवा में पीएम10 की मात्रा कई स्थानों पर मानक से अधिक है। शहर की आबादी भी वर्ष 2000 के बाद तिगुनी हुई है और वहीं हरियाली 88 प्रतिशत तक कम हो गई है।
इस शोध को करने वाले लेखकों में से एक शैनन ओल्सन बताते हैं कि उन्होंने बैंगलुरु में पाया कि मधुमक्खियों की संख्या काफी कम हो गई है। अध्ययन में यह पता लगाना था कि क्या कीटनाशक की वजह से ऐसा हुआ या पानी की कमी या फिर छाया के अभाव के कारण इनकी संख्या कम हुई। नेचर इंस्पायर्ड केमिकल इकोलॉजी समूह से ओल्सन प्रमुख खोजकर्ता के रूप में जुड़े हैं। इन सवालों के बाद इस शोध की मुख्य लेखिका गीता थिमेगौड़ा ने बैगलुरु के कई इलाकों का दौरा किया और मधुमक्खियों को अलग-अलग स्थानों से शोध कार्य के लिए इकट्ठा किया।
एनसीबीसी ने शहर के चार इलाकों जिनमें ग्रामीण, कम प्रदूषित, मध्यम प्रदूषित और अति प्रदूषित इलाकों को चुना। यह शोध जनवरी 2017 से लेकर अप्रैल 2019 तक चला। ग्रामीण इलाकों की हवा में औसत पीएम 10 की मात्रा 29.32 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और सबसे अधिक स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी।
मधुमक्खियों के पंख पर दिखा वायु प्रदूषण
शोधकर्ताओं ने पाया कि कम प्रदूषित इलाकों में फूलों पर मधुमक्खियों की संख्या अधिक प्रदूषण वाले इलाके की तुलना में अधिक रहती है। प्रदूषण का मधुमक्खियों के जीवन चक्र से सीधा संबंध भी दिखता है। जिन मधुमक्खियों को कम और मध्यम प्रदूषित इलाकों से इकट्ठा किया गया था उनमें से 80 फीसदी मधुमक्खियां 24 घंटे में ही मर गईं और बाकी डेढ़ दिन के भीतर। इसकी तुलना में, ग्रामीण इलाकों की 50 फीसदी मधुमक्खियां एक दिन जीवित रहीं और बाकी चार दिन तक जीवित रहीं। मधुमक्खियों के पैर, एंटीना और पंख पर प्रदूषक पदार्थों का लेप भी लगा हुआ पाया गया। इस लेप में आर्सिनिक, लेड और टंगस्टन जैसे भारी पदार्थ पाए गए जो कि कीटों के लिए जहर के समान है।
इंसानों में जहां अधिक प्रदूषण वाले इलाकों में सांस संबंधी समस्याएं पाई जाती हैं, मधुमक्खियों के मामले में ऐसा कम प्रदूषिक इलाकों में भी देखने को मिला। प्रदूषण की वजह से मधुमक्खियों में असामान्य हृदयगति देखने को मिली। प्रदूषण की वजह से इनके शरीर में हेमोसाइट की मात्रा कम हो गई जिससे उनकी बीमारियों से बचने के क्षमता कम हो गई और तनाव बढ़ा हुआ पाया गया। वायु प्रदूषण की वजह से मधुमक्खियों में ठीक वैसा ही असर देखने को मिला जैसा कीटनाशक से होता है।
थिमेगौड़ा ने बताया कि प्रदूषण की वजह से सांस संबंधी बीमारी, कैंसर, हृदय रोग, हृदयघात और अस्थमा जैसी बीमारियां इंसानों को हो रही है। इसी तरह का मामला मधुमक्खियों के साथ भी है। हालांकि, यह देखना काफी चौंकानेवाला है कि बैंगलुरु में दिल्ली, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों की तुलना में अपेक्षाकृत कम प्रदूषण होने के बावजूद मधुमक्खियों पर ऐसा विपरीत असर दिख रहा है। प्रयोगशाला में इस बात पर शोध जारी कि कि ऐसे कौन से तत्व हैं जिसके मिश्रण से वायु प्रदूषण इस तरह का असर दिखा रहा है।
शहर से 100-200 किलोमीटर दूर तक दिखेगा असर
मधुमक्खियों पर हो रहे प्रदूषण के विपरीत असर का परिणाम सिर्फ शहरी हरियाली को नहीं, बल्कि 100-200 किलोमीटर दूर तक देखने को मिलेगा। एशिया की मधुमक्खियां दूर तक परागन के लिए जाती हैं। बैंगलुरु विश्वविद्यालय से जुड़े कृषि विशेषज्ञ एन नागाराजा ने बैंगलुरु में मधुमक्खियों के प्रवास पर एक अध्ययन किया है जिसमें उन्होंने पाया कि मधुमक्खियां गर्मी और बरसात के समय शहर की सीमा से बाहर चली जाती है। उन्होंने पाया कि इस तरह का प्रवास परागन के लिए जरूरी होता है।
इस अध्ययन के नतीजों से वायु प्रदूषण के मानकों पर एक बार दोबारा विचार करने की जरूरत महसूस हो रही है। सिर्फ मधुमक्खी ही नहीं बल्कि शोधकर्ताओं ने इसका असर मक्खियों और दूसरे छोटे कीटों पर भी देखा है। इस वक्त शहरों में पीएम 10 की मात्रा 60 से कम हो तो उसे ठीक समझा जाता है, जबकि उस स्तर का प्रदूषण भी मधुमक्खियों के लिए घातक साबित हो रहा है। इसकी वजह से फूलों पर उनकी आवक कम हो गई है। इस शोध से जुड़े और ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के सीईओ अरुणाभ घोष का कहना है कि भारत में वायु प्रदूषण के मानकों को दुरुस्त करने की जरूरत है। उनका कहना है कि वायु प्रदूषण को मापने के लिए और अधिक सघन संयंत्र लगाने की जरूरत है जिससे वायु की गुणवत्ता पर अधिक निगरानी रखी जा सके।
बैनर तस्वीर- मधुमक्खी की नजदीक से ली गई तस्वीर। फोटो- जॉन सुलिवन/विकिमीडिया कॉमन्स