- भारत में मवेशियों की अच्छी-खासी संख्या है जिनपर क्लाइमेट चेंज यानी मौसम में अनियमित बदलाव से नुकसान का खतरा है। अत्यधिक गर्मी और सर्दी से जानवरों में प्रजनन और दूध देने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- भारत के देसी नस्ल के मवेशियों में मौसम में आ रहे इन बदलावों को झेलने की क्षमता है। भारत सरकार देसी नस्ल की मवेशियों के इसी क्षमता का विकास कर ऐसे पालतू जानवरों का विकास करना चाहती है जो क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाली तेज गर्मी को झेल सके।
- जानकार मानते हैं कि देसी नस्ल के मवेशी बाहरी और और संकर नस्लों की मवेशियों की तुलना में बेहतर हैं। इसको लेकर सरकार को लोग पहले से अवगत करा रहे थे पर सरकार का ध्यान अब गया है।
क्लाइमेट चेंज यानी मौसम में अनियमित बदलाव की बात अब जगजाहिर है। खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है। आने वाले समय में मौसम का मिजाज के और भी अनियमित और बिगड़ने का अनुमान है।
दूध उत्पादन पर क्लाइमेट चेंज के इस प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से सरकार देसी नस्ल के मवेशियों की तरफ रुख कर रही है। जानकारों का मानना है कि देसी नस्ल के जीव अधिक तामपान सह सकते हैं। बल्कि इनके दूध उत्पादन और प्रजनन पर भी बढ़ते तापमान का कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
इस बाबत कृषि पर बनी स्थाई समिति ने अगस्त 2017 में संसद के पटल पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बिहार के मधुबनी से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रहे हुकुम देव नारायण ने इसे पेश किया। उनका कहना था, “वर्ष 2070 से 2099 तक क्लाइमेट चेंज की वजह से तापमान 2 से 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान लगाया जाता है और इससे देश के दूध उत्पादन क्षमता तथा मवेशियों के प्रभावित होने का डर है,”।
यह रिपोर्ट कहती है कि क्लाइमेट चेंज परिणामस्वरूप विदेशी नस्ल और संकर मवेशियों में उत्पादकता में सबसे अधिक गिरावट देखी जाएगी।
स्थायी समिति ने केंद्र सरकार को यह सुझाव दिया है कि आने वाले समय की चुनौती को देखकर देसी नस्ल की पहचान शुरू कर देनी चाहिए। इसके प्रजनन की योजना भी बनानी चाहिए। साथ ही, बीमारियों से बचाने के लिए जानवरों के टीके का प्रबंध भी अभी से शुरू कर देना चाहिए। इस तरह से देश के किसानों को क्लाइमेट चेंज की विभीषिका से बचने के लिए तैयार किया जा सकेगा।
देसी नस्लों को और उम्दा बनाने के मकसद से स्थायी कमेटी ने सरकार को सलाह दी है कि वे डेयरी क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं और किसानो के साथ मिलकर इस मुद्दे पर काम करे। पहली रिपोर्ट के बाद संसद की इस समिति ने एक दूसरी रिपोर्ट वर्ष 2018 में जारी कि जिसमें पिछली रिपोर्ट से लेकर अबतक सरकार द्वारा उठाए कदमों की जानकारी शामिल है।
“विदेशी मवेशियों की तुलना में देसी नस्ल की मवेशियों के जैव-रासायनिक, रूपात्मक और शारीरिक बनावट का विश्लेषण किया गया। हीट शॉक प्रोटीन, एयर कोट कलर और ऊनी बाल जैसे देसी नस्ल की विशेषताएं देशी मवेशियों को गर्मी से जुड़े तनाव को सहन करने की शक्ति देती हैं।
भविष्य में पशु प्रजनन कार्यक्रमों में इन विशेषताओं को उभारकर नई नस्ल विकसित की जा सकती है। इससे इन मवेशियों में बढ़े तापमान को झेलने की क्षमता विकसित होगी,” सरकार ने समिति को बताया।
सरकार ने समिति को दिए जवाब में यह भी कहा कि नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएजीआर) करनाल ने एक शोध किया है। इस शोध से पता चला है कि देश के कई हिस्सों में मौजूद देसी नस्ल के पशु गर्मी सहन करने की क्षमता रखते हैं। इन देशी नस्ल के मवेशियों में विदेशी नस्ल के मुकाबले कई बीमारियों से लड़ने की अधिक क्षमता है।
“चूंकि देसी नस्ल के पशु अधिक दूध नहीं दे सकते, इसलिए उनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। इन जीवों के जीन में बदलाव कर इन्हे विदेशी पशुओं के मुकाबले अधिक उत्पादक बनाने की कोशिश होनी चाहिए,” सरकार ने कहा।
सरकार की तरफ से इस बात पर जोर दिया गया कि देसी नस्ल के पशुओं पर काम शुरू कर दिया गया है।
“प्रयोगशाला में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि साहीवाल गाय गर्मी सहने के मामले में काफी आगे है। इस नस्ल में हेमटोलॉजिकल, सेल प्रोलिफेरेशन, हीट शॉक प्रोटीन और स्ट्रेस मार्कर के आंकड़े संतोषजनक पाए गए हैं,” सरकार ने कहा।
भारत के लिए यह कदम काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश विश्व में दूध उत्पादन और पशु-बल के मामले में शीर्ष पर है।
वर्ष 2019 में हुए पशुधन गणना के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी 53.50 करोड़ के करीब है। इसमें गोजातीय आबादी (मवेशी, भैंस, याक और मिथुन) की आबादी 30.28 करोड़ के करीब है। इनमें से तीस करोड़ के करीब मवेशी और भैंस हैं। देश में मौजूद कुल 19.2 करोड़ मवेशियों में 14.2 करोड़ से अधिक देशी नस्ल के मवेशी हैं। स्वदेशी मादा मवेशी की कुल संख्या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 10 प्रतिशत बढ़ गई है। वहीं विदेशी या संकर नस्ल वाली मवेशी की कुल संख्या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 26.9 प्रतिशत बढ़ी है।
कृषि के जानकार देवेंद्र शर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि देसी नस्लों को लेकर यह बात विशेषज्ञ लंबे समय से कर रहे थे। “अभी भी कोई देर नहीं हुई है। भारत ने अपने देसी नस्लों को नजरअंदाज किया जबकि ब्राजील जैसे देश ने हमारे यहां की गायों को पालने में दिलचस्पी दिखाई। ब्राजील ने भारतीय-नस्ल के गायों को आयात किया और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से उनकी दूध देने की क्षमता बढ़ायी और अब यह देश भारतीय-नस्ल के मवेशियों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। यह सही समय है जब हम अपने देसी नस्ल के मवेशियों पर ध्यान देना शुरू करें,” वह कहते हैं।
सरकार ने समिति को दिए अपने जवाब में कहा कि इस दौरान पशुओं के चारे की पहचान भी की जा रही है जिससे उनमें गर्मी सहने की क्षमता विकसित हो सके।
“खुराक को प्रसंस्कृत कर मवेशियों को देने से उनके तनाव को कम किया जा सकता है। इससे मिथेन गैस का उत्सर्जन भी कम किया जा सकता है। मवेशियों के रहने के स्थान को आधुनिक तरीके से तैयार करना, क्रोमियम प्रोपियोनेट और दूसरे खनिज की खुराक देकर उन्हें विदेशी नस्लों के मुकाबले बेहतर बनाया जा सकता है,” सरकार का कहना है।
सरकार ने समिति के सामने जवाब पेश करते हुए कहा कि देश के 121 कठिन मौसम वाले जिलों में किसानों के साथ पशुपालन में इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसके सुखद परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट ने पशुपालन में इस्तेमाल हो रही मौजूदा तकनीक को मौसम के मुकाबिक बेहतर करने की सलाह भी दी है।
बैनर तस्वीर: भारत पशुधन और दूध उत्पादन के मामले में विश्व का सबसे बड़ा देश है। तस्वीर– आईएलआरआई (स्टीव मान)/विकिमीडिया कॉमन्स