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महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 30 साल बाद फिर दिखने लगे बाघ, इंसानों के साथ संघर्ष शुरू

खेत पर कटाई करते मजदूर। इलाके में बाघ की इतनी दहशत है कि किसानों को कम काम के लिए भी अधिक मात्रा में मजदूर रखने की जरूरत होती है, ताकि बाघ के हमले से बचा जा सके। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

खेत पर कटाई करते मजदूर। इलाके में बाघ की इतनी दहशत है कि किसानों को कम काम के लिए भी अधिक मात्रा में मजदूर रखने की जरूरत होती है, ताकि बाघ के हमले से बचा जा सके। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

  • महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में बीते कुछ वर्षों में बाघ की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसकी वजह पास के चंद्रपुर जिले स्थित ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व है। यहां बाघ की संख्या बढ़ी है और अब ये नए इलाके खोज रहे हैं।
  • स्थानीय लोगों को बाघों के साथ रहने का अनुभव नहीं है। इस वजह से लोगों में डर का माहौल बन रहा है। कहीं-कहीं यह इंसान और बाघों के बीच संघर्ष का रूप ले रहा है।
  • वन विभाग और जानकार मानते हैं कि जंगल के गलियारे को दुरुस्त कर इंसान और बाघ के बीच होने वाले संघर्ष को कम किया जा सकता है।

हाल के वर्षों तक महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में स्थानीय लोग बेफिक्र होकर जंगल में चले जाया करते थे। जलावन की लकड़ी हो, फल-फूल इकट्ठा करना हो या अपने खेतों में फसल की बोआई और रोपाई का काम हो। हालांकि, अब परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। अब तो लोग अपने खेतों में जाने के नाम पर खौफ खाते हैं। अंधेरा होने के साथ ही घरों से बाहर निकलना बंद हो जाता है। बाघ के डर से। गढ़चिरौली में बाघों की बढ़ती संख्या और उनके यहां-वहां विचरण से लोग खौफ़जदा हैं। 

गढ़चिरौली में चार साल पहले मानव-बाघ मुठभेड़ की शुरुआत हुई थी। इस साल ऐसी घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। बाघों से इंसानों का यह सामना कई बार जानलेवा भी साबित होता है। ऐसे हमले में अब तक 11 लोगों की जान जा चुकी है। 

ग्रामीणों ने अब तक धैर्य दिखाया है और प्रतिशोध में बाघों पर हमला करने या उन्हें मारने से परहेज किया है। हालांकि, वन विभाग पर इस बढ़ती समस्या का समाधान खोजने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

14,412 वर्ग किमी में फैला गढ़चिरौली जिला प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। यहां कई घने जंगल हैं। इन जंगलों में पांच दशक पहले अच्छी-खासी संख्या में बाघ रहते थे। सौ से अधिक। पर देश के अन्य जगहों की तरह, यहां भी धीरे-धीरे बाघों के लिए मुश्किल बढ़ती गई। इनकी संख्या कम होती गयी। 

हालांकि, ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व (टीएटीआर) के साथ-साथ पड़ोसी चंद्रपुर जिले के खुले जंगलों में बाघों की तेजी से बढ़ती संख्या ने इन्हें गढ़चिरौली की ओर पलायन करने और स्थानीय स्थिति में खुद को ढालने के लिए मजबूर किया है। 

बाघों को ट्रैक करने के लिए तलाशी अभियान शुरू करने से पहले वन कर्मचारी। सौरभ कटकुरवार
बाघों को ट्रैक करने के लिए तलाशी अभियान शुरू करने से पहले वन कर्मचारी। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

महाराष्ट्र वन विभाग के अनुसार, 2000-02 में गढ़चिरौली में बाघों की आधिकारिक संख्या घटकर मात्र दो रह गई थी। कुछ ने तो यहां तक ​​दावा किया कि बाघ बिल्कुल भी नहीं थे। अब जिले में बाघों की वापसी के साथ मानव-बाघ मुठभेड़ जैसी घटनाओं में भी इजाफा हो रहा है। 

गढ़चिरौली के मानद वन्यजीव वार्डन मिलिंद उमरे ने कहा कि अधिकारियों का मानना ​​था कि 2017 में गढ़चिरौली में एक या दो बाघ थे। लेकिन यह संख्या अब 30-32 के आसपास हो गई है। “स्थानीय समुदायों पर बाघ के हमले का पहला मामला 2017 में दर्ज किया गया था जब एक बाघिन ने रावी गांव में दो लोगों को मार डाला था। बाघिन सामान्यतः पलायन नहीं करती हैं। पर वह बाघिन संभवतः चंद्रपुर से अस्थायी रूप से पलायन कर रही थी। तब तक गढ़चिरौली में बाघ की उपस्थिति का पता नहीं था। समय के साथ हमने महसूस किया कि बाघ गढ़चिरौली में स्थायी निवास की तलाश कर रहे थे,” उमरे ने कहा।

ऐसा प्रतीत होता है कि गढ़चिरौली के नए बाघ ब्रह्मपुरी डिवीजन से आए हैं। ब्रह्मपुरी, चंद्रपुर का एक जंगल है जो गढ़चिरौली से वैनगंगा नदी द्वारा अलग होता है। टीएटीआर से बाघों के पलायन के कारण ब्रह्मपुरी संभाग भारी दबाव में है। इस प्रकार, बाघ अब आवास की तलाश में गढ़चिरौली की ओर पलायन कर रहे हैं। वन संरक्षक (प्रादेशिक) किशोर मानकर ने कहा कि वर्तमान में  गढ़चिरौली में 20-24 बाघ रहते हैं। “यह एक अनुमानित संख्या है। हमारे पास कुछ की तस्वीरें हैं। इनमें तीन प्रजनन करने वाली बाघिन हैं। तीन साल पहले गढ़चिरौली में बाघ नहीं थे,उन्होंने कहा।

ठाकरी गांव की 70 वर्षीय मीराबाई मुत्तेवार ने कहा कि आखिरी बार उन्होंने लगभग 30 साल पहले एक बाघ देखा था। “जब हम जलावन की लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगलों के अंदर जाते तो हमें बाघ दिखाई देते थे। पर हम डरते नहीं थे। बाघ भी इंसानों पर हमला नहीं करते थे बल्कि वे इंसानों से बचने की कोशिश करते। फिर बाघों का दिखना बंद हो गया। पिछले 30 सालों में कोई बाघ नहीं दिखा। पर अब सुनने में आ रहा है कि बाघ लौट आए हैं।”

टीकाराम गवटूरे, पांडुरंग भरने और अरविंद जंगते अपने 40 के दशक के उत्तरार्ध में हैंइन लोगों ने अपने जीवनकाल में कभी भी गढ़चिरौली के जंगल में बाघों को ने देखा है और न ही इनके बारे में सुना है। ऐसे में अचानक बाघों की मौजूदगी ने सबको चौंका दिया है।

गवटूरे ने अपने भाई और जंगते, उनकी पत्नी को पिछले वर्ष बाघों के हमलों में खो दिया। गावटूरे कहते हैं कि उनके भाई गोविंद को एक बाघ ने अक्टूबर 2020 मार दिया थावे अपने खेत में काम करने में व्यस्त थे जब बाघ का हमला हुआ था। “हमारे क्षेत्र में यह पहला मामला था। यह विश्वास करना कठिन था कि बाघ ने इंसान को मार डाला,” गावटूरे कहते हैं।

मीराबाई मुत्तेवार (बीच में) और पूर्णिमा चौधरी। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार
मीराबाई मुत्तेवार (बीच में) और पूर्णिमा चौधरी। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

चूंकि इस क्षेत्र में बाघ, तेंदुआ, भालू जैसे मांसाहारी जीवों की उपस्थिति लगभग शून्य मानी जाती रही है, इसलिए स्थानीय लोग निर्भय होकर जंगलों में प्रवेश करते रहे हैं। इस साल अगस्त में जंगटे की पत्नी वंदना मुदजा गांव की अन्य महिलाओं के साथ करी बनाने में इस्तेमाल होने वाले फूल लेने गई थीं।

“ये महिलाएं एक-दूसरे से कुछ ही मीटर की दूरी पर थीं और फूल तोड़ने में व्यस्त थीं। अचानक एक बड़ा शोर हुआ। सब डर गए और इकट्ठे हो गए। उन्होंने महसूस किया कि वंदना गायब थी। उन्होंने इलाके की तलाशी ली तो उसका शव मिला। चोट के निशान और घावों ने पुष्टि की कि उसे एक बाघ ने मारा था, ” जंगटे ने बताते हैं। 

अब गढ़चिरौली के उत्तर और मध्य भागों में बाघ दिन के उजाले में नियमित रूप से देखे जाते हैं। बल्कि वडसा रेंज मानव-बाघ संघर्ष का केंद्र बन गया है।

गढ़चिरौली में बाघों के लिए मवेशी महत्वपूर्ण शिकार हैं। इसने बाघों को खेतों और मानव बस्तियों के करीब ला दिया है। वन्यजीव विशेषज्ञ सुरेश चोपने कहते हैं कि चूंकि गढ़चिरौली में दशकों से कोई बाघ नहीं था, इसलिए स्थानीय समुदाय के सदस्यों को बाघों के साथ मुठभेड़ों से निपटने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

“गड़चिरौली में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है क्योंकि अवैध शिकार की गतिविधियों में कमी आई है। वन विभाग द्वारा निगरानी में सुधार हुआ है, चोपने ने कहा। वे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति के सदस्य हैं।

गांवों के पास बाघों की खुले में आवाजाही और हमले के डर ने कई गांव के निवासियों को अपनी जीवन शैली में कुछ बदलाव लाने को मजबूर किया है। पूर्णिमा चौधरी की सास को पिछले साल दिसंबर में एक बाघ ने मार डाला था। कहती हैं कि उन्होंने अकेले खेत में जाना बंद कर दिया है और यहां तक ​​कि अंधेरा होने के बाद अपने घर से बाहर कदम रखने से भी बचती हैं। 

एक और समस्या है जिसका सामना स्थानीय लोग कर रहे हैं। खेत के मालिक को अब खेती-बारी के कार्यों के लिए आवश्यकता से अधिक मजदूरों को रखना पड़ता है। “मुझे अपने खेत की कटाई के लिए कम से कम दस ग्रामीणों की व्यवस्था करनी होगी क्योंकि कोई भी अकेले या छोटे समूह में काम करने के लिए तैयार नहीं है। मैं सभी दस का भुगतान नहीं कर सकता। यह संभव नहीं है। बाघों के हमलों ने हमारी आजीविका को प्रभावित किया है, ” पांडुरंग भरने अपना दुखड़ा बताते हैं। 

वैनगंगा नदी जो गढ़चिरौली और चंद्रपुर (ब्रह्मपुरी मंडल) को अलग करती है। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार
वैनगंगा नदी जो गढ़चिरौली और चंद्रपुर (ब्रह्मपुरी मंडल) को अलग करती है। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

अब वे वन विभाग से बाघों के हमलों को रोकने के लिए एक व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए कह रहे हैं। मनुष्यों पर हमले के पीछे संदिग्ध बाघों को पकड़ने के लिए वन विभाग ने एक टीम का गठन किया है। “वन क्षेत्र खेत से घिरे या बिखरे हुए हैं। इसके अलावा वहां झाड़ियों का एक महत्वपूर्ण घेरा है। इससे संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। हमारे पास वन कर्मचारियों की एक विशेष टीम है, जिसे ग्रामीणों के साथ समन्वय, समस्या वाले जानवरों की पहचान और पकड़ने का काम सौंपा गया है, ” राकेश मडावी, रेंज वन अधिकारी (वडसा) ने बताया।

वडसा में वन विभाग ने चार लोगों की हत्या के संदेह में टी17नाम के एक बाघ पर शिकंजा कसा है। “हम उस बाघ को पकड़ने के लिए आवश्यक उपकरणों के साथ तैयार हैं। जब भी गांव के निवासी हमें बाघ के देखे जाने की सूचना देते हैं तो हम मौके पर पहुंच जाएंगे। हालांकि, यहां बाघों को ट्रैक करना आसान नहीं है क्योंकि इलाका कठिन है। घास और कठोर मिट्टी की वजह से हम पगमार्क नहीं खोज सकते, एक वन रक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा

कुछ स्थानों पर ग्रामीणों और स्थानीय नेताओं ने मांग की है कि समस्या वाले जानवरों को पकड़कर चिड़ियाघरों में भेजा जाए या उन्हें यहां से दूर भेजा जाए। हालांकि, वन विभाग सह-अस्तित्व को एक व्यावहारिक समाधान के रूप में देखता है। “चूंकि 30 वर्षों से अधिक समय से बाघ नहीं थे, इसलिए गढ़चिरौली के लोग इस बात से अनजान हैं कि उनसे कैसे निपटा जाए। ये बाघ जंगल के अंदर हैं। इसलिए हम उन्हें ऐसे ही पकड़ नहीं सकते। तरह-तरह के उपाय सुझाए जा रहे हैं। लेकिन हमारा मानना है कि सह-अस्तित्व ही एकमात्र व्यवहारिक विकल्प है,” मानकर कहते हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञों का भी मानना ​​है कि सह-अस्तित्व ही स्थायी समाधान है और अगर छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो संघर्ष को काफी हद तक कम किया जा सकता है। “यह देखा गया है कि ज्यादातर हमले चरवाहों पर हुए हैं। बाघ मवेशियों को मारने का इरादा रखता है, लेकिन चरवाहा मवेशियों को बचाने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में उस पर हमला हो जाता है। वन विभाग वैसे भी मारे गए मवेशियों के मालिकों को मुआवजा देता है। इसलिए अगर चरवाहे बाघ के शिकार के रास्ते में नहीं आते हैं तो मानव हताहतों की संख्या कम हो सकती है। ऐसे कई छोटी-छोटी सावधानियों से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है,” वन्यजीव कार्यकर्ता मुकेश भंडारकर ने कहा।


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विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि वन्यजीव गलियारों को बरकरार रखा जाना चाहिए और मानवीय हस्तक्षेप से संरक्षित किया जाना चाहिए। “इन गलियारों के बाधित होने से बाघों बाघों का प्रवास कठिन हो जाता है। बाघों के प्रवास में गड़बड़ी से मानव-बाघ मुठभेड़ों की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए हमें एक सुगम वन्यजीव गलियारा सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए,” चोपने जोर देकर कहते हैं। 

टीएटीआर में तेजी से बढ़ रही बाघों की आबादी के मद्देनजर, गढ़चिरौली क्षेत्र में निकट भविष्य में बाघों की आबादी बढ़ने की संभावना है। यह बाघों को जिले के दक्षिणी हिस्सों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर करेगा, जहां घने जंगल तो हैं लेकिन शिकार की कमी है। मानव-बाघ संघर्षों को कम करने के लिए जन जागरूकता और एक प्रभावी वन्यजीव प्रबंधन योजना आवश्यक हैं।

 

बैनर तस्वीरः खेत पर कटाई करते मजदूर। इलाके में बाघ की इतनी दहशत है कि किसानों को कम काम के लिए भी अधिक मात्रा में मजदूर रखने की जरूरत होती है, ताकि बाघ के हमले से बचा जा सके। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

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