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ओडिशा: बॉक्साइट खनन को लेकर पुलिस तंत्र के साये में ग्राम सभा, आदिवासियों में रोष

ग्राम सभा की बैठक के दौरान ग्रामीण और सुरक्षाबल। तस्वीर- राजाराम सुंदरेसन

ग्राम सभा की बैठक के दौरान ग्रामीण और सुरक्षाबल। तस्वीर- राजाराम सुंदरेसन

  • ओडिशा के कोरापुट ज़िले के आदिवासी इलाकों मे स्थित माली पहाड़ी पर पुनः बॉक्साइट खनन की कोशिश हो रही है। स्थानीय स्तर पर इसका काफी विरोध हो रहा है।
  • इस इलाके में इस परियोजना को रोकने के लिए पिछले दो दशकों से आंदोलन जारी हैं । खनन के लिए पर्यावरण संबंधित अनुमति 2006 में ही मिल गयी थी। पर 2014-15 के बाद इसपर काम होना बंद हो गया।
  • खनन की योजना के अनुसार यहां से निकाला जाने वाला बॉक्साइट उत्तर प्रदेश, झारखंड और कर्नाटक के उद्योगों के लिए भेजा जाएगा। दूसरी तरफ स्थानीय लोगों को डर है कि इस परियोजना के आने से माली पहाड़ पर स्थित प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाएंगे, प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होगी और खेती-बाड़ी भी प्रभावित होगा।

मणिमा पटनायक एक आदिवासी समाज की महिला हैं जो कई वर्षो से माली पर्वत के नीचे स्थित अपने गांव मे अपने परिवार के साथ रहती हैं। पिछले महीने, नवम्बर 22 को माली पहाड़ी पर खनन की रजामंदी के लिए ग्राम सभा की एक बैठक बुलाई गई थी। पटनायक कुछ लोगों के साथ, उसी ग्राम सभा में शामिल होने जा रहीं थीं जब पुलिस ने उन्हें रोका और उन्हें अपनी गाड़ी में थाने ले गयी। पटनायक ने यह मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए बताया।

“मैं ग्राम सभा की बैठक मे भाग लेने के लिए जा रही थी कि बीच रास्ते में ही पुलिस ने मुझे और कुछ महिला साथियों को रोका। अपनी गाड़ी मे बैठाया और हमें सेमिलिगुड़ा थाने ले गई। हमें वहां पांच घंटे बैठाये रखा। उन्होने हमसे एक खाली पेपर पर हस्ताक्षर करने को भी कहा। हमलोग खनन की इस योजना के खिलाफ हैं और पुलिस को शायद इसकी भनक लग गयी थी। ये लोग चाहते थे कि ग्राम सभा में सिर्फ वही लोग शामिल हों जो खनन के समर्थन में हैं,” पटनायक आगे बताती हैं। 

पटनायक के गांव की ही रहने वाली हैं नानु पुजारी। उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया लेकिन सभा से दूर ले गई ताकि वे वहां पहुंच न पाएं। “14 अन्य महिलाओं के साथ मुझे पुलिस ने उस दिन बस में बैठा दिया और सभा से लगभग पांच किलोमीटर दूर ले गई। पुलिस नहीं चाहती थी कि हम लोग उस सभा मे जाएं,” पुजारी बताती हैं। 

माली पर्वत पर बॉक्साइट खनन दशकों से विवाद में रहा है। यहां से बॉक्साइट का खनन कर ओडिशा सरकार देश के दूसरे राज्यों में भेजना चाहती है। यहां का आदिवासी समाज और आस पास के लोग इस पहाड़ी पर होने वाले खनन का विरोध कर रहे हैं। कुछ लोग खनन के समर्थन में भी हैं। विरोध कर रहे लोगो का कहना है कि इस परियोजना से आसपास के गांव में हो रही खेती और आबोहवा प्रभावित हो सकती है। 

परसू पुजारी को ही लीजिए। वे इस गांव मे रहने वाले एक किसान हैं। उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “हमलोग इस गांव में कई सालों से रह रहे हैं। हमारा गांव और माली पहाड़ी के आसपास बसे कई गांव यहां होने वाले खनन से प्रभावित होंगे। इस पहाड़ी से ऐसे कई पानी के झरने निकलते हैं जिससे आस पास के खेतों में सिचाई होती है। ये खेत प्रभावित हो सकते हैं। इस खनन से आसपास प्रदूषण भी बढ़ेगा। इन सबको लेकर हमलोग चिंतित हैं।”

माली पर्वत के आस पास बहुत सी उपजाऊ ज़मीन है यहां आदिवासी किसान खेती करते है। किसानों का कहना है की कृषि के लिए पानी माली पर्वत के झरनो से ही आता है। तस्वीर-मनीष कुमार

इन्हीं ग्रामीणों की रायशुमारी के लिए हाल ही में ग्राम सभा का आयोजन हुआ था जो काफी विवाद में रहा। मीडिया में बताए गए आंकड़ों के अनुसार इस बैठक के लिए 20 प्लाटून पुलिस फोर्स बुलाई थी। ड्रोन का भी प्रयोग किया गया। कांटेदार तार, लाठियां, बंदूक और अन्य कई और सामानो के साथ पुलिस इस बैठक को सफल बनाने में जुटी थी। पुलिस का कहना था कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पिछले बार की बैठक (सितंबर 22, 2021) में भारी हंगामा हुआ था। कुछ ग्रामीणो द्वारा कुछ हिंसक वारदातें भी की गई थी, पुलिस ने दावा किया।  

खनन के खिलाफ दशकों से चल रहा संघर्ष

इस गांव में बॉक्साइट खनन को लेकर विरोध और आंदोलन लगभग दो दशकों से चला आ रहा है। इसकी शुरुआत 2003 में हुई जब इस परियोजना का पर्यावरण प्रभाव आकलन कराया गया। उसी समय विरोध कर रहे आदिवासी और गैर-आदिवासी ग्रामीण एक साथ माली पर्वत सुरक्षा समिति के बैनर तले विरोध के लिए सामने आए। 2006 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए पर्यावरण संबंधित अनुमति दी। वैसे 2007 तक सारी अनुमति मिल गई थी लेकिन भारी विरोध के कारण 2011 तक खनन शुरू नहीं हो पाया। इसके कारण 2006 में मिली पर्यावरण संबंधित अनुमति 2011 में आकार अवैध हो गई। 

हालांकि नियमों के विपरीत जाते हुए खनन कंपनी ने 2012-2014 के बीच खनन किया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के एक हालिया रिकार्ड में इस उल्लंघन का जिक्र किया गया है। आखिरकार भारी विरोध, हिंसक गतिविधियों के बाद 2014 में खनन का काम रोक दिया गया जो अभी तक रुका हुआ था।

वर्ष 2020 में उधर कोरोना ने अपनी पकड़ मजबूत की और इधर कंपनी ने फिर से माली पर्वत पर खनन करने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का दरवाजा खटखटाया। पहले तो मंत्रालय ने (सितंबर 24, 2020) इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि कंपनी ने पहले नियमों के उलंघन किया था। फिर कुछ और कागजी कार्यवाई के बाद फरवरी 8,2021 को अपने टर्म्स ऑफ रिफ्रेन्स (टीओआर) जारी किए और खनन के लिए आगे की कार्यवाई शुरू हुई। 

हाल ही में ग्राम सभा का आयोजन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा था। इस सभा का निर्णय अगर खनन के पक्ष में होता है तो कंपनी को मंत्रालय से पर्यावरण संबंधित अनुमति मिलने मे सहूलियत हो जाएगी।  

फिर से खनन की शुरुआत और ग्राम सभा का आयोजन

ओडिशा सरकार की पिछली इकनॉमिक सर्वे में बताया गया है कि यह राज्य देश का 51% बॉक्साइट खनन करता है। राज्य के कुल खनन में 76.52% बॉक्साइट का ही है। इस पहाड़ी पर खनन के बाद यहां का बॉक्साइट उत्तर प्रदेश के रेणुकोट, झारखंड के मूरी और कर्नाटक के बेलगाँव  मे भेजा जाएगा। 

इस परियोजना से लगभग 42 गांव प्रभावित होने वाले हैं। इन गावों में 15,000 से अधिक लोग रहते हैं। पर इस जन-सुनवाई में 300 से भी कम लोग शामिल हुये। कोविड महामारी का हवाला देते हुये कम लोगो की मौजूदगी में ही सभा संपन्न कर ली गई। 

हालांकि यह पर्यावरण मंत्रालय के 2020 में दिए गए आदेश का उल्लंघन है जिसमें साफ कहा गया है कि कोविड के समय अधिकतर लोगों की सहमति के लिए नए नए तरीके अपनाए जाएं। इसमें लिखित सहमति, विस्तृत क्षेत्र में सभा का आयोजन, इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से इसका प्रचार-प्रसार करने का सुझाव शामिल है।   

पर्यावरण के क्षेत्र मे काम कर रहे कार्यकर्ता प्रफुल्ल समानतरा ने 2006 मे दिये पर्यावरण संबंधी अनुमति को भी 2007 मे राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय अधिकरण (एनईएए) के समक्ष चुनौती दी थी जो देरी के कारण निरस्त भी हो गयी थी। 

समानतरा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “सरकारी दस्तावेज़ में यह कहा जाता है कि इस पहाड़ी पर ना तो जंगल है और ना पानी के झरने। पर यह सही नहीं है। माली पहाड़ी क्षेत्र में  लगभग 36 ऐसे जल स्रोत हैं जिससे आस पास के गावों में सिचाई होती है। सरकार खुद अपने बातों को गलत साबित कर रही है। 2006 के दस्तावेज़ कहते है कि पहाड़ी में कोई जल स्रोत नहीं है जबकि 2021 के दस्तावेज़ में कुछ और ही कहा गया है। इसके अनुसार जल स्रोत तो हैं लेकिन मौसमी हैं। मंत्रालय की नजर में भी खनन कंपनी ने पर्यावरण संबंधित नियमो का उलंघन किया है। ऐसे स्थिति में ये खनन का आवेदन खारिज किया जाना चाहिए।” 

माली पर्वत के पास के गांव में रहने वाली एक आदिवासी महिला। खनन से यहां के आदिवासी आबादी प्रभावित हो सकती है। तस्वीर-मनीष कुमार

पर्यावरणविद एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण के वकील शंकर प्रसाद पानी कहते हैं कि बल का प्रयोग कर की गई जन सुनवाई का कोई मतलब नहीं है। यह भय मुक्त सुनवाई कर लोगों की राय जानने के पूरे सोच पर सवालिया निशान खड़ा करती है।  

ग्रामीणों का डर गलत नहीं हैं। 2021 मे बनाए गए पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट में भी इन समस्याओं की तरफ इशारा किया गया है। इसमें यह स्वीकार किया गया है कि खनन से वायु प्रदूषण में इजाफा, ध्वनि प्रदूषण में इजाफा, ब्लास्टिंग, मानसून में कचरे का पहाड़ी के नीचे बहने जैसी समस्या हो सकती है। हालांकि, इस रिपोर्ट में यह भी कह दिया गया है कि इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे। 

बैनर तस्वीर: ग्राम सभा की बैठक के दौरान ग्रामीण और सुरक्षाबल। तस्वीर- राजाराम सुंदरेसन

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