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दिल्ली के चिड़ियाघर में मरने वाले जीवों में आधे से अधिक सदमे के शिकार

दिल्ली के चिड़ियाघर में दोपहर के दौरान लेटा भालू। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

दिल्ली के चिड़ियाघर में दोपहर के दौरान लेटा भालू। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

  • दिल्ली ‌के चिड़ियाघर में साल 2018 से 2020 के बीच 450 वन्यजीवों की मौत हुई है। इनमें से 220 वन्यजीवों की मौत शॉक या फिर ट्रॉमैटिक शॉक की वजह से हुई है। इनमें से करीब 70 काले हिरण हैं।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि वन्यजीवों को शॉक या फिर ट्रॉमैटिक शॉक कई तरह से हो सकता है। इनमें मुख्य वजह जंगल का छूटना और चिड़ियाघर में कैद होना बताया जा रहा है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि काले हिरण काफी संवेदनशील होते हैं। यह थोड़ी सी आवाज से भी डरने लगते हैं। इसलिए शॉक का असर इन पर अधिक होता है।

चिड़ियाघर में जानवरों की मौत के लिए शॉक या सदमा सबसे बड़ी वजह बनता जा रहा है। दिल्ली चिड़ियाघर के आंकड़ों से तो यही साबित होता है। यहां पिछले तीन सालों में 450 वन्यजीवों की जान गई है। इनमें से करीब आधी मौत शॉक या सदमे से हुई है। सदमे से जान गंवाने वाले जानवरों में करीब आधे काले हिरण हैं। हालांकि, वन्यजीवों में सदमे की वजह पर कुछ नहीं बताया गया है। 

इसी साल सात जुलाई को विवेक पांडे ने आरटीआई के माध्यम से चिड़ियाघर प्रशासन से इस बारे में जानकारी मांगी थी। इसके जवाब में चिड़ियाघर प्रशासन ने एक अप्रैल 2018 से 31 दिसंबर 2020 तक के आंकड़े उपलब्ध कराए। जानकारी के मुताबिक इस दौरान 150 वन्यजीवों की मौत सदमे से हुई। 47 वन्यजीवों की जान ट्रॉमैटिक शॉक के चलते गई। वहीं एन्टराइटिस से 70 और वृद्धावस्था की वजह से 73 वन्यजीवों ने दम तोड़ा। सिरोसिस जैसी क्रोनिक बीमारी के चलते 30, प्लुरसी (फुफ्फुस रोग) से 12, तपेदिक (टीबी) से पांच और एक की मौत दूसरे वन्यजीव का शिकार बनने से हुई।

विवेक पांडे ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “आरटीआई का अध्ययन करने के बाद उन्हें काफी निराशा हुई और आश्चर्य भी। सबसे ज्यादा वन्यजीवों की मौत सदमे से हुई है। फिर भी आरटीआई में ‘सदमे’ से हुई मौत पर विस्तार से नहीं बताया गया है कि आखिर इन्हें किस-किस तरह का शॉक हुआ होगा।“

सदमें की कई वजहें

मौत की वजहों पर  बात करने के लिए दिल्ली चिड़ियाघर की निदेशक डॉ. सोनाली घोष से संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। लेकिन केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के पूर्व सदस्य सचिव डॉ. डीएन सिंह का कहना है, “वन्यजीवों की गिनती बनाए रखने पर ही सबसे अधिक जोर दिया जाता है। वन्यजीवों की मौत का असली कारण जानना बहुत जरूरी है। इस पर काम होना चाहिए लेकिन कोई निष्पक्ष निकाय भी नहीं है।“ 

 दिल्ली चिड़ियाघर में ‘खामोश’ टाइगर। कई दिन से इसकी दैनिक दिनचर्या भी सुस्त है। तस्वीर- परीक्षित निर्भय
दिल्ली चिड़ियाघर में ‘खामोश’ टाइगर। कई दिन से इसकी दैनिक दिनचर्या भी सुस्त है। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

हालांकि विशेषज्ञ सदमे की कई वजहें बताते हैं। नई दिल्ली स्थित जैन चैरिटेबल अस्पताल (पक्षियों का अस्पताल) के डॉ. हरवतार सिंह कहते हैं, “इंसान और वन्यजीव, सदमा दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है। वन्यजीवों के मामले में इसकी व्याख्या कर पाना मुश्किल है लेकिन अधिकांश मामलों में सदमे की वजह इनका घर, परिवार, माहौल, अप्राकृतिक खान-पान इत्यादि होती हैं।“  उन्होंने कहा, “जंगल इनका घर है और वहां खुद ही अपना जीवन जीना व प्रकृति में मौजूद परिस्थितियों से लड़ना इन्हें अच्छे से आता है लेकिन चिड़ियाघर में आने के बाद इन्हें सबकुछ बनावटी सा लगता है और ये उदास रहने लगते हैं। इनकी दिनचर्या या फिर केस हिस्ट्री के बारे में जानकारी रखने पर और सटीक कारण पता चल सकता है लेकिन बेजुबानों के लिए इतनी मेहनत कौन करता है?”

वहीं पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) के मुताबिक जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास जंगल है न कि शहर के बीच बने चिड़ियाघर की सीमित भूमि और संसाधन, क्योंकि यह सब जानवरों की प्राकृतिक आवासीय आवश्यकताओं को हरगिज पूरा नहीं करते। 

दिल्ली के चिड़ियाघर में मरने वाले जीवों में आधे से अधिक सदमे के शिकार

सदमे की एक वजह तापमान में होने वाला उतार-चढ़ाव भी हो सकता है। दिल्ली पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. राकेश सिंह को लगता है कि सदमे का एक कारण हीट स्ट्रोक या फिर कोल्ड स्ट्रोक हो सकता है। उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “दिल्ली का तापमान हमेशा आम जगहों के मुकाबले एकद‌म अलग देखने को मिलता है। यहां ग‌र्मी और सर्दी दोनों ही बहुत अधिक पड़ती है। वायु और ध्वनि प्रदूषण भी काफी है। यहां सर्दियों में भी वन्यजीवों को काफी परेशानी होती है। इसीलिए दिल्ली सरकार समय-समय पर गाइडलाइंस जारी करती है और फिर विभाग की एक टीम इनकी पड़ताल भी करती है।“ डॉ सिंह ने स्वीकार किया कि दिल्ली सरकार जानवरों को शॉक से बचाने के लिए विशेष अभियान नहीं चलाती है। उदाहरण के लिए, गर्मियों  में दिल्ली का पारा 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वहीं सर्दियों में यह गिरकर तीन से चार डिग्री पर भी पहुंच जाता है। 

काले हिरणों पर ज्यादा असर की वजह 

विवेक बताते हैं कि साल 2018-2020 के बीच कई लुप्तप्राय प्रजातियों ने अपनी जान गंवाई है। इनमें 31 चित्तीदार हिरण और छह बाघ भी शामिल हैं। सदमे से हुई मौत में 70 से अधिक (करीब आधे) काले हिरण हैं। इनमें शॉक और ट्रॉमैटिक शॉक दोनों ही कारण शामिल हैं। सूची में बंगाल टाइगर, बाघिन और शेर भी शामिल हैं। उन्होंने कहा, “साल 2010-11 से साल 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय प्राणी उद्यान को 157 करोड़ रुपये की राशि दी गई। इसमें 50.90 लाख रुपये चिकित्सा पर खर्च हुए । साल 2018 से 2020 के बीच 25.31 लाख रुपये खर्च हुए। इससे पता चलता है कि जानवरों पर इलाज की लागत बहुत कम थी। ऐसे में हो सकता है कि वन्यजीवों की मौत खराब इलाज के कारण भी हुई हो।“ 

सदमे से हुई मौत में 70 से अधिक (करीब आधे) काले हिरण हैं। इनमें शॉक और ट्रॉमैटिक शॉक दोनों ही कारण शामिल हैं। सूची में बंगाल टाइगर, बाघिन और शेर भी शामिल हैं। तस्वीर- परीक्षित निर्भय
सदमे से हुई मौत में 70 से अधिक (करीब आधे) काले हिरण हैं। इनमें शॉक और ट्रॉमैटिक शॉक दोनों ही कारण शामिल हैं। सूची में बंगाल टाइगर, बाघिन और शेर भी शामिल हैं। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और वन्यजीवों की प्रजातियों के जानकार राजकुमार बताते हैं, “काले हिरण को कृष्णमृग या भारतीय ऐंटीलोप भी कहा जाता है। इनकी खास बात यह है कि नर और मादा दोनों के रंग अलग-अलग होते हैं। ये हमेशा झुंड में ही रहना पसंद करते हैं। अक्सर यह देखने को मिलता है कि झुंड में मौजूद काले हिरण में से अगर किसी एक को परेशानी होती है तो उसका असर बाकी सभी हिरण पर पड़ता है। सदमे से सबसे अधिक काले हिरणों की मौत के पीछे यह एक प्रमुख वजह हो सकती है।“

दिल्ली के संजय गांधी पशु चिकित्सालय के डॉ महेंद्र सिंह ने कहा, “काले हिरण न सिर्फ दुर्लभ बल्कि काफी संवेदनशील होते हैं। यह थोड़ी सी आवाज से भी डरने लगते हैं। इसलिए गहरे और बड़े जंगल इनके लिए सबसे उचित रहते हैं लेकिन किसी शहर में लाकर इन्हें रखा जाए तो इनके लिए वाहनों की ध्वनि या फिर आसपास का शोरगुल ही काफी डरा देता है। इसके अलावा दिनचर्या में बदलाव होना, सही खानपान न मिल पाना, खुला वातावरण न मिलने जैसे भी कई कारण हैं जिनकी वजह से यह काफी तनाव में आते हैं और धीरे धीरे कमजोरी या फिर अन्य तरह की परेशानियां इन्हें होने लगती हैं। दिल्ली ही नहीं अन्य जगहों पर भी यह सबसे अधिक प्रताड़ित होते हैं।“ 

पिंजड़े के पास घूमता सफेद शेर। जानकार मानते हैं कि सदमे की एक वजह तापमान में होने वाला उतार-चढ़ाव भी हो सकता है। तस्वीर- परीक्षित निर्भय
पिंजड़े के पास घूमता सफेद शेर। जानकार मानते हैं कि सदमे की एक वजह तापमान में होने वाला उतार-चढ़ाव भी हो सकता है। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

टीबी फैलने का खतरा बरकरार

कोरोना के बाद चिड़ियाघरों को बंद करने की मांग पूरी दुनिया में जोर पकड़ रही है। इसकी वजह चिड़ियाघर में रखे गए जानवारों से फैलने वाली बीमारियां हैं। साल 2003 के एक रिव्यू के मुताबिक मनुष्यों में बीमारियों का कारण बनने वाले 1,415 संक्रामक एजेंटों में से 868, या 61% प्रकृति में जूनोटिक (जानवरों से मनुष्यों में पहुंचने वाले संक्रामक एजेंट) हैं। 

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के वरिष्ठ डॉक्टर कृष्ण प्रसाद बताते हैं कि जानवरों में टीबी का संक्रमण और उससे होने वाली मौतें लगातार दर्ज की जा रही हैं। यह संक्रमण जानवरों से इंसानों तक में भी पहुंच सकता है और पूरी दुनिया में लगातार इस विषय पर एक बहस भी छिड़ी हुई है। सरकार साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने के लक्ष्य पर काम कर रही है लेकिन इस विषय पर ध्यान बेहद कम है। वन्यजीवों को टीबी संक्रमण होने के बाद वहां आने वाले पर्यटक और कर्मचारियों को भी खतरा बना रहता है लेकिन यह उन्हीं जीवों के साथ संभव है जिनसे इंसानों का संपर्क अधिक रहता है जैसे गाय, हाथी इत्यादि।

 

बैनर तस्वीरः दिल्ली के चिड़ियाघर में दोपहर के दौरान लेटा भालू। तस्वीर- परीक्षित निर्भय

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