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कैसे होगा प्‍लास्टिक पर पलटवार!

बैनर तस्वीर: मुंबई के धारावी में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग यूनिट की एक तस्वीर। अनुमान के मुताबिक मुंबई का 60% प्लास्टिक धारावी में रीसाइकल होता है। तस्वीर- Cory Doctorow/फ्लिकर

बैनर तस्वीर: मुंबई के धारावी में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग यूनिट की एक तस्वीर। अनुमान के मुताबिक मुंबई का 60% प्लास्टिक धारावी में रीसाइकल होता है। तस्वीर- Cory Doctorow/फ्लिकर

  • प्लास्टिक प्रदूषण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जिस गति से भारत में पेट्रोकेमिकल उद्योग का विस्तार हो रहा है उसे देखकर विशेषज्ञ सवाल करते हैं कि 2070 का नेट जीरो का लक्ष्य कैसे हासिल होगा!
  • चूंकि प्लास्टिक से निपटने के लिए विकल्प की कमी है, ऐसे में भारत सर्कुलर व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए निवेश कर रहा है। पर नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए अन्य मजबूत समाधान खोजने की भी जरूरत है।

पिछले कुछ सालों में कई वैश्विक संस्थानों और विशेषज्ञों ने बढ़ते प्लास्टिक कचरे पर रिपोर्ट प्रकाशित की है।

जैसे संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु परिवर्तन सम्‍मेलन (कॉप26) के आयोजन से ठीक पहले संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने ‘फ्रॉम पाल्यूशन टू सॉल्‍यूशन’ शीर्षक से समुद्री प्‍लास्टिक संकट को समझाते हुए वैश्विक आकलन रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट- समुद्री कचरे, विशेषकर प्‍लास्टिक और माइक्रोप्‍लास्टिक्‍स के भयावहता को लेकर- सामान्य जन में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से लाई गयी थी। इस रिपोर्ट में जागरूकता की कमी,  स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कुप्रभाव और संभावित समाधान को लेकर बात की गयी थी।

ऐसे ही 2021 के अक्टूबर में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के दो पेपर में प्‍लास्टिक प्रदूषण की समस्‍या से निपटने के लिए ताजा जानकारी और सिफारिशों की फेहरिस्त दी गयी थी। इनमें एक शोध पत्र में सिर्फ एक बार उपयोग होने वाले प्‍लास्टिक कचरे (एकल प्लास्टिक) को लेकर बात की गयी थी। इस तरह के कचरे के नियंत्रण के लिए उन नीतियों का जिक्र था जिन्हें सबसे असरदार माना जाता है। अन्‍य वैश्विक संगठनों ने भी प्‍लास्टिक प्रदूषण की तरफ ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है। कॉमनसीज ने एक आकलन साधन प्‍लास्टिक ड्राडाउन तैयार किया है उसमें प्‍लास्टिक प्रदूषण कम करने की असरदार नीतियों के आकलन हेतु देश में उपलब्‍ध संसाधनों का आधार बनाया गया है।

नवंबर में संपन्न हुए कॉप26 में प्लास्टिक पॉल्‍यूशन कोलीशन के ऐक्टिविस्ट ने वहां मौजूद नेताओं से आग्रह किया कि वे प्‍लास्टिक प्रदूषण एवं जलवायु संकट से निपटने के उपाय अपनाएं। द ग्‍लोबल अलायंस फॉर इनसिनरेटर आल्‍टरनेटिव्‍स (जीएआईए), ब्रेक फ्री फ्रॉम प्‍लास्टिक्‍स (बीएफएफपी), बियान्‍ड प्‍लास्टिक्‍स, रिसाइक्लिंग एसोसिएशन जैसे अनगिनत संगठन एवं संस्‍थाएं भी इस दिशा में प्रयत्‍नशील हैं।

अब प्रश्‍न यह है कि जलवायु परिवर्तन सम्‍मेलन के समय इतने सारे संगठन प्‍लास्टिक प्रदूषण के बारे में शोर क्‍यों मचा रहे थे? इसका कारण यह है कि महासागरों, पारिस्थितिकियों एवं मानव के स्‍वास्‍थ्‍य पर प्लास्टिक का असर बढ़ रहा है। प्‍लास्टिक संकट का एक और महत्‍वपूर्ण किन्‍तु कम ज्ञात पहलू भी है- यह प्रदूषण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन एवं जलवायु परिवर्तन में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

2019 में प्‍लास्टिक एंड क्‍लाइमेट: द हिडन कॉस्‍ट ऑफ ए प्‍लास्टिक प्‍लेनेट शीर्षक से जारी रिपोर्ट और अक्‍टूबर, 2021 में जारी एक अन्य रिपोर्ट में जलवायु पर प्‍लास्टिक के विनाशकारी प्रभाव का आकलन किया गया है। इसमें सबसे बड़ी जो चिंताजनक बात उभरी वह यह कि अधिकतर बुरे प्रभाव से लोग अवगत नहीं है। इसको लेकर सरकार तथा उद्योगों की जवाबदेही भी बहुत कम है।

यह सच है कि इन दोनों रिपोर्ट में विश्‍व के सबसे बड़े प्‍लास्टिक प्रदूषक अमेरिका में प्‍लास्टिक उद्योग को निशाना बनाया गया है। किन्‍तु इसके निष्‍कर्ष अन्‍य देशों पर भी लागू होते हैं जहां पेट्रोरसायन उद्योगों का विस्‍तार हो रहा है।

प्‍लास्टिक उसी क्षण से वैश्विक कार्बन बोझ बढ़ाने लगता है, जब जीवाश्म ईंधन धरती से निकलना शुरू होता है। उस दौरान ग्रीनहाउस गैस मीथेन वायुमंडल में मिलती है। फिर प्‍लास्टिक के पूरे जीवन चक्र में यह सिलसिला जारी रहता है। प्‍लास्टिक का निर्माण कच्‍चे तेल के प्रोसेसिंग में निकले पदार्थ नेफ्था और तरल प्राकृतिक गैस ईथेन के साथ अन्‍य रसायनों के मिश्रण से होता है जिनमें से अधिकतर रसायन जीवाश्म ईंधन से लिए जाते हैं।

इस प्रकार प्‍लास्टिक का उत्‍पादन ग्रीनहाउस उत्‍सर्जन का एक बड़ा स्रोत है। रासायनिक तत्‍वों को मिलाकर प्‍लास्टिक से पॉलीमर बनाए जाते हैं। यही रसायनिक तत्‍व प्‍लास्टिक को ऐसे गुण देते हैं जिनसे उसका उपयोग सुविधाजनक हो जाता है। इसी से तय होता है कि प्लास्टिक कठोर, होगा या नरम या फिर कुछ और। 

हाल में एक अध्‍ययन के दौरान पता लगा कि प्‍लास्टिक तैयार करने के लिए 8,000 से अधिक रसायनिक तत्‍व इस्‍तेमाल होते हैं जिनमें से कुछ कार्बन डाइऑक्‍साइड से हजार गुना अधिक घातक ग्रीनहाउस गैस हैं। 

कॉप26 के आयोजन स्थल पर प्रदर्शन करते लोग। तस्वीर- प्रियंका शंकर/ मोंगाबे
कॉप26 के आयोजन स्थल पर प्रदर्शन करते लोग। तस्वीर- प्रियंका शंकर/ मोंगाबे

 

भारत में प्‍लास्टिक चक्र

भारत दुनिया के उन अनेक देशों में शामिल है जहां पेट्रोरसायन उद्योगों का विस्‍तार हो रहा है। 2030 तक घरेलू उत्‍पादन बढ़ाने के लिए $100 अरब का निवेश होने से अगले दशक में भारत में कच्‍चे तेल की मांग बढ़ेगी और पेट्रोरसायन उत्‍पादन की गति तेज होगी।

रिसाइक्लिंग के मामले में स्थिति और भी खराब है। भारत में हर वर्ष 9.46 मेगाटन प्‍लास्टिक कचरा पैदा होता है जिसमें से 40 प्रतिशत एकत्र नहीं किया जाता। उसे या तो जला दिया जाता है या वह गुम हो जाता है। बड़ी मात्रा में कचरे को लैंडफिल पर फेंक दिया जाता है या नदियों में बहा दिया जाता है। कुल उत्‍पादित प्‍लास्टिक्‍स में से आधा पैकेजिंग में इस्‍तेमाल होता है जिसमें से अधिकतर एकल उपयोग लायक होता है। 5000 पंजीकृत रिसाइक्लिंग इकाइयों के बावजूद प्‍लास्टिक की अधिकतर रिसाइक्लिंग देसी तरीके से होती है। कचरा इकट्ठा करने के जटिल प्रणाली में प्‍लास्टिक कचरे की छंटाई, रिसाइक्लिंग और प्‍लास्टिक अर्थव्‍यवस्‍था से कुछ कमाई होती है।


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कचरे से ऊर्जा बनाने की कमजोर क्षमता के कारण इकाइयों के बंद होने, पर्यावरण सुरक्षा नियमों के उल्‍लंघन के लिए जुर्माने और ऊंची संचालन लागत जैसी तमाम परेशानियों के बावजूद हम रिसाइकिल की इन टेक्‍नोलॉजी में निवेश करते जा रहे हैं क्‍योंकि हमारे पास कोई और विकल्‍प मौजूद नहीं हैं। द एनर्जी एंड रिर्सोसेज इंस्‍टीच्‍यूट (टेरी) में एक ठोस कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ कौशिक चन्‍द्रशेखर के अनुसार, ”बेशक कचरे के निपटान अथवा प्रोसैसिंग के लिए ऐसे उर्जा बनाना इत्यादि चलन में है पर और बेहतर करने के लिए अन्‍य रास्तों के बारे में भी सोचने की जरूरत है।” प्‍लास्टिक को जलाना या ईंधन के रूप में रिसाइकिल करना समाधान का केवल एक अंग हो सकता है, खासकर यदि उनसे भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन में वृद्धि होती है।

यदि हमें 2070 तक कुल शून्‍य उत्‍सर्जन का अपना लक्ष्‍य हासिल करना है तो हमें कुछ साहसिक समाधान तलाश करने होंगे।

सीईईडब्ल्यू के अनुमान के अनुसार, अगर भारत को नेट जीरो का लक्ष्य 2070 तक हासिल करना है तो सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की क्षमता 5,630 गीगावाट कर लेनी होगी। तस्वीर- Sarangib/Pixabay
सीईईडब्ल्यू के अनुमान के अनुसार, अगर भारत को नेट जीरो का लक्ष्य 2070 तक हासिल करना है तो सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की क्षमता 5,630 गीगावाट कर लेनी होगी। तस्वीर- Sarangib/Pixabay

भारत का लक्ष्‍य : 2070 तक कुल शून्‍य कार्बन उत्‍सर्जन

नवम्‍बर, 2021 में कार्बन उत्‍सर्जन को लेकर भारत ने घोषणा की कि इसे 2070 तक शून्य कर लिया जाएगा। इसकी काफी तारीफ भी हुई। विश्‍व के चौथे सबसे बड़े कार्बन उत्‍सर्जक के इन लक्ष्‍यों से पता चलता है कि भारत ने जलवायु परिवर्तन की समस्‍या की भयावहता को समझा है और उसके समाधान के लिए संकल्‍पबद्ध भी है। किन्‍तु हमारी औद्योगिक स्थितियां एकदम विपरीत दिशा में जा रही हैं तो क्‍या हम वास्‍तव में अगले 50 वर्ष में कुल शून्‍य उत्‍सर्जक हो सकेंगे?

नई दिल्‍ली स्थित एक अध्‍ययन केन्‍द्र काउंसिल फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर रिसर्च (सीईईडब्‍ल्‍यू) ने हाल में एक अध्‍ययन में अनुमान लगाया है कि नेट जीरो का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए बिजली, परिवहन, भवनों और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों के बुनियादी ढांचे को उन्‍नत करने पर $100 खरब (700 लाख करोड़ रुपए) से अधिक लागत आएगी। कच्‍चा तेल क्षेत्र के लिए आदर्श परिस्थिति यह होगी कि उसकी खपत 2050 तक शिखर पर पहुंच जाए। उसके बाद 2050 से 2070 के बीच खपत में 90 प्रतिशत की गिरावट आए। सीईईडब्‍ल्‍यू की रिपोर्ट के लेखकों में से एक डॉक्‍टर वैभव चतुर्वेदी का निष्‍कर्ष है, ”प्लास्टिक के हर पहलू के आंकड़े की जरूरत है जैसे प्लास्टिक बनाने में खर्च होने वाले ईंधन और इसमें लगने वाला कच्चा माल कितना लगता है, सब। तभी हमें पेट्रोकेमिकल उद्योग से होने वाले उत्सर्जन का पता चलेगा। हालांकि उद्योग इसके विकल्प खोजने की बजाय चाहेंगे कि प्लास्टिक आधारित व्यवस्था बनी रहे। यह उनके हित में है।”

प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए क्या हो रहा उपाय?

सर्कुलर इकॉनोमी की नीति प्‍लास्टिक के जीवन चक्र को ध्‍यान में रखती है। अप्रैल, 2021 में टेरी नाम की संस्था की तरफ से एक संभावित रूपरेखा जारी की गयी थी जिसमें प्‍लास्टिक प्रदूषण एवं ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन, दोनों समस्‍याओं के समाधान का जिक्र था। इसमें कच्चे तेल से प्लास्टिक उत्पादन को अलग करना और मौजूद कचरे को बार-बार इस्तेमाल की सलाह दी गयी थी। 

हालांकि इनमें से कोई भी पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल नहीं हैं। अत: उद्योगों को पैकेजिंग सामग्री के लिए अन्‍य विकल्‍पों की तलाश करनी होगी।

सितम्‍बर, 2021 में विश्‍व वन्‍य जीव कोष और कन्‍फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्‍ट्रीज के बीच सहयोग के अंतर्गत, यूके रिसर्च एंड इनोबेशन के समर्थन से इंडिया प्‍लास्टिक्‍स पैक्‍ट (आईपीपी) पर हस्‍ताक्षर किया गया। एशिया में अपने किस्‍म के इस पहले समझौते का उद्देश्‍य समूची प्‍लास्टिक मूल्‍य श्रृंखला में प्‍लास्टिक पैकेजिंग के दोबारा इस्‍तेमाल या रिसाइक्लिंग को समाप्‍त करने के अभिनव तरीकों और अन्य बेहतर तरीकों को ईजाद करना है।

अमेजॉन और कोका कोला, हिन्‍दुस्‍तान यूनीलीवर, आईटीसी लिमिटेड, टाटा कंज्‍यूमर प्रोडक्‍ट्स लिमिटेड तथा गोदरेज के तीन ट्रेडमार्क जैसी कंपनियों ने इस समझौते पर हस्‍ताक्षर किया है। यदि इस तरह की व्‍यवसाय करने वाली कंपनियां अपनी पैकेजिंग के तरीके बदल लें तो यह प्‍लास्टिक प्रदूषण समाप्‍त करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम होगा।

अन्‍य क्षेत्रों की तरह रिसाइक्लिंग क्षेत्र में भी बुनियादी सुविधाएं जुटाने पर बड़ी मात्रा में सार्वजनिक एवं नि‍जी निवेश की आवश्‍यकता होती है जिसमें से बहुत बड़ी राशि भ्रष्‍टाचार में गुम हो जाती है। दिल्‍ली में एक पर्यावरण विशेषज्ञ भारती चतुर्वेदी की सलाह है, ”जब लैंडफिल, बायोगैस संयंत्र जैसी सार्वजनिक रिसाइक्लिंग सुविधाओं के लिए सरकारी जमीन आवंटित करती है तो देसी या अनौपचारिक क्षेत्र की बहुत हद तक अनदेखी की जाती है, जबकि रिसाइक्लिंग व्‍यवसाय में सबसे अधिक निवेश उनका ही होता है। सार्वजनिक अवसंरचना पर खर्च करने की बजाय सरकार को इस अनौपचारिक क्षेत्र को सहारा देना चाहिए।”


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अनुवाद: ए के मित्तल 

 

बैनर तस्वीर: मुंबई के धारावी में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग यूनिट की एक तस्वीर। अनुमान के मुताबिक मुंबई का 60% प्लास्टिक धारावी में रीसाइकल होता है। तस्वीर– Cory Doctorow/फ्लिकर

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