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पृथ्वी के सबसे तेज जानवर चीता के लिए कैसे तैयार हुआ कूनो का जंगल?

लकड़ी के बक्से से झांकती एक मादा चीता। यह चीता भारत आने वाले आठ चीतों में से एक है। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड

लकड़ी के बक्से से झांकती एक मादा चीता। यह चीता भारत आने वाले आठ चीतों में से एक है। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड

  • मध्य प्रदेश में कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान चीतों के स्वागत के लिए तैयार है। पहले चरण में अफ्रीकी देश नामीबिया से आठ चीतों को लाया जा रहा है।
  • आठ चीतों में पांच मादा और तीन नर चीते शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 72वें जन्मदिन के मौके पर 17 सितंबर को प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत करेंगे।
  • देश में आखिरी बार वर्ष 1952 में चीते देखे गए थे। अब लगभग सात दशक बाद देश में चीतों की वापसी हो रही है। इन चीतों को पहले कुछ महीने, पांच किलोमीटर में फैले बाड़े में रखा जाएगा।
  • चीतों की मेजबानी के लिए कूनों के जंगल में कई महीनों से तैयारियां चल रही हैं। हालांकि, इस चाकचौबंद व्यवस्था के बावजूज शुरुआत में चीतों को कई मुश्किलें आने वाली हैं। जंगल में तेंदुए जैसे जीव चीतों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

कूनो नदी के किनारे बसे सेसईपुरा गांव में इन दिनों अलग किस्म की गहमागहमी है। नदी गांव से होते हुए कूनो पालपुर नेशनल पार्क के भीतर प्रवेश करती है। इसी नदी के नाम पर कूनो नेशनल पार्क का नाम रखा गया है। पार्क के बाहर मौजूद सेसईपुरा फॉरेस्ट गेस्ट हाउस देश-विदेश से आए अधिकारियों और मेहमानों से भरा हुआ है। 

इस गहमागहमी की वजह है देश में 70 साल के बाद हो रही चीतों की वापसी। इस शनिवार, 17 सितंबर, 2022 को अफ्रीकी देश नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क में आठ चीते आ रहे हैं। इस दिन का इंतजार पिछले 12 वर्षों से हो रहा था। करीब 12 साल पहले, वर्ष 2009 में, देश में चीतों को दोबारा लाने की कवायद शुरू हुई थी। 

फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में नामीबिया से आए दो मेहमान बार्थेलेमी बल्ली और एलिया मुंडी सुबह-सुबह जंगल जाने की तैयार कर रहे हैं। ये दोनों अंतरराष्ट्रीय गैर लाभकारी संस्था चीता कंजर्वेशन फंड (सीसीएफ) से हैं। यह संस्था नामीबिया से चीता लाने में सहयोग कर रही है। दोनों विशेषज्ञ पिछले कई महीनों से गेस्ट हाउस से 40 किलोमीटर दूर स्थित बने चीता के बाड़े में जाकर काम करते हैं। चीता आने के बाद भी ये लोग कई महीनों तक यहीं रुकेंगे। इनका काम है आने वाले मेहमान चीतों को, नए वातावरण के हिसाब से खुद को ढालने में मदद करना। जंगल के बीच पांच किलोमीटर लंबा बाड़ा बनाया गया है जहां इन चीतों को शुरुआत के कुछ महीने रखा जाएगा। 

‘भारत में चीता को लाने संबंधी कार्य योजना ‘एक्शन प्लान फॉर इंट्रोडक्शन ऑफ चीता इन इंडिया’ को जनवरी में जारी किया गया। इसे प्रोजेक्ट चीता का नाम दिया गया और इसके तहत दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से पांच वर्षों में, कूनो सहित विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में 50 चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस) लाने का प्लान है। इसके लिए वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक प्रोजेक्ट टाइगर के फंड से 38.70 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। नामीबिया के अलावा दक्षिण अफ्रीका से भी चीते आएंगे लेकिन अभी समझौते पर हस्ताक्षर होना बाकी है।

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भारत आने वाले सभी आठ चीतों की तस्वीर। तस्वीर साभार- चीता कंजर्वेशन फंड

भारत सरकार के अनुसार मध्य प्रदेश स्थित कूनो का संरक्षित जंगल 748 वर्ग किलोमीटर में श्योपुर और शिवपुरी जिलों में फैला हुआ है। यहां 21 चीतों के रहने लायक संसाधन मौजूद हैं। कार्य योजना के अनुसार, कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को रखने के लिए आवश्यक स्तर की सुरक्षा, शिकार और निवास स्थान है।

चीतों के आगमन को लेकर कूनो के शांत जंगल में उत्साह और गर्व का माहौल तो है ही साथ में एक बड़ी चिंता भी नजर आ रही है। 

श्योपुर में भारी बारिश ने सभी छोटी और बड़ी नदियों में पानी भर दिया था, जिससे तैयारियों में मुश्किलें आ रही थीं। भारी बारिश के कारण गिरे हुए पेड़ों ने सड़कों को दुर्गम बना दिया, जिससे राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करने का केवल एक ही रास्ता रह गया।

हाल ही में, वन अधिकारियों को एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। उन्होंने अचानक एक दिन बाड़े के अंदर तेंदुए की आवाजाही देखी। यह देख इन अधिकारियों के माथे पर बल पड़ गए। इन तेंदुओं का पता लगाने के लिए सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से दो हाथी लाना पड़ा। लक्ष्मी और सिद्धनाथ नामक दो हाथियों को कूनो लाया गया। हाथियों की मदद से वनकर्मियों ने पांच तेंदुओं को काफी मशक्कत के पकड़ लिया और उन्हें शिवपुरी के निकटतम माधव राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया। हालांकि, एक तेंदुआ अभी भी चीतों के लिए बने बाड़े में मौजूद है और उसकी तलाश जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों के मुकाबले तेंदुए आकार में बड़े होते हैं जिससे खतरा हो सकता है।

मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ वन्यजीव) जेएस चौहान ने कहा, “अभी तक, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता तेंदुओं को बाड़े से स्थानांतरित करना है। अब केवल एक तेंदुआ बचा है।”

“चीतों के आने के बाद, पहले उन्हें क्वारंटाइन किया जाएगा। मुझे उम्मीद है कि क्वारंटाइन के दौरान हमें कुछ दिनों का समय मिलेगा और इस दौरान बचे हुए काम कर लिए जाएंगे। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि आखिरी तेंदुआ भी जल्द पकड़ लिया जाए,” उन्होंने कहा।

विशेषज्ञों का यह भी मानना ​​है कि शिकारी जानवर कूनो में चीतों के अस्तित्व को चुनौती दे सकते हैं।

“कूनो में तेंदुए की अच्छी खासी संख्या मौजूद है। कूनो नेशनल पार्क में प्रतिस्पर्धी शिकारियों में तेंदुए, भेड़िये, सुस्त (स्लॉथ) भालू और धारीदार लकड़बग्घा शामिल हैं,” मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए इंडेंजर्ड वाइल्डलाइफ ट्रस्ट, दक्षिण अफ्रीका के मैनेजर विन्सेंट वैन डेर मेरवे ने कहा। उन्होंने कहा, “ये शिकारी चीतों के बच्चों को मार सकते हैं। कई बार देखा गया है कि तेंदुए वयस्क चीतों को मार देते हैं।”

वन्यजीव जीवविज्ञानी और संरक्षण वैज्ञानिक रवि चेल्लम ने वैन डेर मेरवे की राय से मिलती जुलती बात कही। “मुझे लगता है कि चीतों को अन्य मांसाहारी, विशेष रूप से तेंदुए, भेड़िये, भालू और कभी-कभी बाघों से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। बड़े परिदृश्य में कुत्तों की मौजूदगी भी जोखिम भरा साबित होता है,” चेल्लम ने कहा। चेल्लम मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ और बायोडायवर्सिटी कलेक्टिव नामक संस्था के समन्वयक भी हैं।

अफ्रीका से आ रहे चीता को लेकर कई महीनों से तैयारियां चल रही हैं। इन तैयारियों में लगे वन विभाग के कर्मियों के लिए भी यह गर्व का क्षण है। 

कूनो राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
कूनो राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

जमीनी स्तर पर तैयारियों का नेतृत्व कर रहे कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान के संभागीय वन अधिकारी प्रकाश वर्मा ने कहा, “इतना बड़ा मौका मिलना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण तो है पर रोमांचक भी है। मुझे लगता है कि मैं इतिहास का हिस्सा हूं।”

वर्मा जमीन पर तैयारी सुनिश्चित करने के लिए सुबह से देर रात तक काम करते हैं। 

उन्होंने आगे कहा, “मैं 32 वर्षों से वन विभाग की सेवा कर रहा हूं, और मैंने मध्य प्रदेश में पन्ना और पेंच टाइगर रिजर्व में कई चुनौतीपूर्ण समय का सामना किया है। लेकिन इस बार, चुनौती थोड़ी अलग है।” 

चीता आने के बाद देश के जंगलों में एकबार फिर चारों बड़ी बिल्लियां- शेर, बाघ, तेंदुआ और चीता- रहने लगेंगे। 

चीतों का नामीबिया से भारत तक का सफर

मोंगाबे इंडिया को सीसीएफ ने जानकारी दी है कि चीतों को लाने के लिए बोइंग 747 “जंबो जेट” विमान का उपयोग हो रहा है। यह एक यात्री विमान है जिसमें पिंजरों को अलग से लगाया गया है। उड़ान के दौरान पशु चिकित्सक मौजूद रहेंगे। विमान एक अल्ट्रा-लॉन्ग रेंज जेट है जो 16 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम है। यह विमान नामीबिया से सीधे भारत के लिए  लगातार उड़ान भर सकता है। 

17 सितंबर को आने वाले नामीबिया के पहले खेप में आठ चीते हैं – तीन नर और पांच मादा। वे विंडहोक से ग्वालियर तक 11 घंटे की यात्रा करेंगे। ग्वालियर से चीतों को हेलीकॉप्टर की मदद से सीधा कूनो लाया जाएगा।

यह विमान विंडहोक, नामीबिया में होसे कुटाको अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरेगा। चीतों के रखने के लिए लकड़ी के बक्से बनाये गए हैं जिसमें पर्याप्त हवा के लिए कई छेद किए गए हैं। चीता खुद को नुकसान न पहुंचाए इसलिए इन बक्सों में भीतर की तरफ से रबर लगाया गया है। 

फरवरी 2022 में, भारत सरकार ने संसद को बताया कि चीतों की निगरानी के लिए रिमोट रेडियो कॉलर के साथ लगाया जाएगा। नामीबिया से लाए जा रहे आठ चीतों को पहले ही सैटेलाइट कॉलर लगाया जा चुका है। उन्हें अब कूनो में बने क्वारंटाइन सेंटर में निगरानी में रखा जाएगा।

भारत लाने से पहले नामीबिया में चीतों को जरूरी वैक्सीन लगाए गए। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड
भारत लाने से पहले नामीबिया में चीतों को जरूरी वैक्सीन लगाए गए। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड

चीता कंजर्वेशन फंड द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “सभी चीतों को टीका और सैटेलाइट कॉलर लगाया गया है।” 

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “चीतों का चयन स्वास्थ्य, जंगली स्वभाव, शिकार कौशल और आनुवंशिकी में योगदान करने की क्षमता के आधार पर किया गया था।”

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वन विभाग ने चीतों के खाने के लिए शिकार के रूप में 250 चीतलों को बाड़े में रखा है।

वैन डेर मेरवे ने कहा, “चीता छोटे से मध्यम आकार के जानवरों को शिकार बनाते हैं। इनमें से 89% 14-135 किलोग्राम वजन सीमा के जीव होते हैं। कूनो के जंगल में पर्याप्त शिकार मौजूद है जो इस वजन सीमा में आते हैं।”

हालांकि, विशेषज्ञों को संदेह है कि चीतल का शिकार करने में चीतों को दिक्कत आ सकती है। अफ्रीका के जंगल में चीतल नहीं पाए जाते हैं, जहां से चीते आ रहे हैं। 

“मुझे आशंका है कि चीतों के लिए चीतल हिरण का शिकार करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होगा। अफ्रीका में उन्हें ऐसा शिकार नहीं मिलता है। चीतों के लिए लंबी दूरी की आवाजाही हमेशा चुनौतीपूर्ण होती है। इस मामले में एक महादेश से दूसरे महादेश (ट्रांस-कॉन्टिनेंटल) में लाया जा रहा है जो कि एक चुनौती हो सकती है,” चेल्लम ने कहा।

कूनो पहुंचने में शेर से आगे निकले चीते

पहले कूनो के जंगल को एशियाई शेरों के लिए तैयार किया गया था। हालांकि, गुजरात से कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई शेरों को स्थानांतरित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, अभी भी कूनो में शेरों का इंतजार हो रहा है। इस बीच यहां चीते आ रहे हैं। सरकार की योजना गुजरात के भीतर ही शेरों को स्थानांतरित करने की है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने संसद को बताया, “मंत्रालय ने गुजरात में संभावित स्थलों में शेरों के आवास की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया है।”

चीतों को लाने के लिए बोइंग 747 “जंबो जेट” विमान का उपयोग हो रहा है। विमान के आगे वाले हिस्से पर बाघ की शक्ल पेंट की गई है। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड
चीतों को लाने के लिए बोइंग 747 “जंबो जेट” विमान का उपयोग हो रहा है। विमान के आगे वाले हिस्से पर बाघ की शक्ल पेंट की गई है। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड

चीता को भारत वापस लाने की चर्चा 2009 में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा शुरू की गई थी।

“सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2013 के अपने आदेश में बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि शेरों को 6 महीने के भीतर कूनो में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अदालत के आदेश को 9 साल से अधिक समय से लागू नहीं किया गया है,” चेल्लम कहते हैं। 

चेल्लम इस बात से भी चिंतित हैं कि शेरों के स्थानांतरण में देरी से शेरों की आबादी को खतरा हो सकता है।उन्होंने कहा, “शेरों के स्थानान्तरण को लागू करने में लगातार हो रही देरी, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है और गंभीर चिंता का विषय है। खासकर कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और बेबियोसिस जैसी बीमारियों के कारण कई शेरों को मौत का खतरा है,” उन्होंने कहा।

“अफ्रीकी चीतों को लाने की कार्य योजना और इस काम में लगे शीर्ष लोगों के बयान से साफ होता है कि कूनो में चीतों की एक स्थापित आबादी होने के बाद शायद शेरों को यहां लाया जाए। इसमें कम से कम 15 साल लगने की उम्मीद है।” चेल्लम ने कहा। 

कूनो के जंगल में चीतल का एक झुंड। चीतों के लिए यहां चीतल एक मुख्य शिकार होगा। तस्वीर- एली वॉकर/सीसीएफ
कूनो के जंगल में चीतल का एक झुंड। चीतों के लिए यहां चीतल एक मुख्य शिकार होगा। तस्वीर- एली वॉकर/सीसीएफ

चीतों को भारत वापस लाने के पीछे घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण भी एक मकसद है। कार्य योजना दस्तावेज में कहा गया है, “इस पहल से घास के मैदान और खुले जंगल को बचाया जा सकेगा। साथ ही यहां मौजूद कई विलुप्तप्राय प्रजातियों को भी बचाया जा सकेगा।”

“इनमें से काराकल (कैराकल कैरकल), भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस पल्लीप्स) और बस्टर्ड परिवार की तीन लुप्तप्राय प्रजातियां हैं- हौबारा (क्लैमाइडोटिस अंडुलता मैक्वेनी), लैसर फ्लोरिकन (साइफेटाइड्स इंडिका) और सबसे लुप्तप्राय प्रजाति द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड शामिल है, ” इस दस्तावेज में कहा गया। 

घास के मैदानों के संरक्षण के बारे में बात करते हुए, चेल्लम ने कहा, “अगर भारत सरकार इन आवासों के संरक्षण के बारे में गंभीर है, तो सरकार को पहले भारत के बंजर भूमि एटलस से ऐसे आवासों को हटाना चाहिए।” 

कई सरकारी दस्तावेज में घास के मैदानों को बंजर भूमि या वेस्टलैंड की श्रेणी में रखा गया है। 

प्रोजेक्ट चीता की चुनौतियां

दक्षिणपूर्व अफ्रीका के देश मलावी में चीता को सफलतापूर्वक स्थानान्तरित किया गया है। यहां सात चीतों को दक्षिण अफ्रीका से दोबारा लाया गया था।

मोंगाबे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में, सात चीतों को अफ्रीकन पार्क और लुप्तप्राय वन्यजीव ट्रस्ट (ईडब्ल्यूटी) द्वारा चलाई जा रही एक परियोजना के तहत लिवोंडे नेशनल पार्क में फिर से लाया गया था। 

मलावी की सफलता का आकलन करने वाले कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस शोध पत्र के अनुसार, इसे सफल माना जाता है क्योंकि सभी मादा चीतों ने चार महीने के भीतर ही यहां शावकों को जन्म दिया। 

कूनो नदी की तस्वीर। इसी नदी पर कूनो नेशनल पार्क का नाम रखा गया है। नदी पार्क से होकर गुजरती है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
कूनो नदी की तस्वीर। इसी नदी के नाम पर कूनो नेशनल पार्क का नाम रखा गया है। नदी पार्क से होकर गुजरती है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

वैन डेर मेरवे ने कहा, “मलावी में दोबारा चीतों को लेकर जाना भारत की अपेक्षा कम चुनौतीपूर्ण था क्योंकि यहां के जंगल पूरी तरह से घिरे हुए थे। भारत का प्रोजेक्ट लंबे समय का है लेकिन शुरुआत में भारत में कई चुनौतियां आ सकती हैं।”

उन्होंने कहा, “दक्षिण अफ्रीका और मलावी में जनसंख्या वृद्धि के लिए बाड़ लगाने का तरीका काम कर गया। बिना बाड़ वाले जंगलों में चीते को रखने का कोई सफल उदाहरण नहीं है।”

चेल्लम मानते हैं कि कूनो में जंगल के आकार की वजह से चुनौतियां आ सकती हैं। उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी चुनौती जो मैं देख रहा हूं वह है आवास का आकार। लगभग 1/100 वर्ग किमी के बहुत कम घनत्व में चीता मौजूद हैं। खुद को माहौल में ढालने के लिए चीतों को कम से कम 5000 वर्ग किमी शिकार-समृद्ध आवास की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में भारत में नहीं है।


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कूनो में चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, वैन डेर मेरवे ने कहा, “कूनो के चारों ओर घेरा न होने की वजह से वहां रहने वाले लोगो के पशु मारे जा सकते हैं। इसके लिए सरकार को उचित मुआवजा देना होगा।”

वन विभाग स्थानीय समुदायों में जन जागरूकता फैलाने के लिए ‘चिंटू चीता’ नाम से अभियान चला रहा है।

विन्सेंट वैन डेर मेरवे ने भारत को ट्रांसलोकेशन में होने वाले फायदों के बारे में भी बताया। “भारत सह-अस्तित्व के दृष्टिकोण का उपयोग करके अपनी बड़ी शिकारी आबादी को बढ़ाने में कामयाब रहा है। इसके पीछे मुआवजे के अलावा लोगों का पशुओं के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण भी हो सकता है,” उसने कहा।

 

बैनर तस्वीरः लकड़ी के बक्से से झांकती एक मादा चीता। यह चीता भारत आने वाले आठ चीतों में से एक है। तस्वीर- चीता कंजर्वेशन फंड

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