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खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिए एलपीजी सब्सिडी तंत्र में बदलाव जरूरी है

स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को बढ़ाना भारत में चुनौतीपूर्ण है। नतीजतन, लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में, खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जलाते हैं। फोटो: संयम बहगा/विकिमीडिया कॉमन्स।

स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को बढ़ाना भारत में चुनौतीपूर्ण है। नतीजतन, लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में, खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जलाते हैं। फोटो: संयम बहगा/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना द्वारा एलपीजी (तरलीकृत पेट्रोलियम गैस) के प्रसार में सहयोग करने के बावजूद, तेजी से बढ़ती कीमतों के कारण हाल के महीनों में इसके उपयोग में गिरावट आई है।
  • भले ही एलपीजी एक जीवाश्म ईंधन है, लेकिन पर्यावरण और स्वास्थ्य की दृष्टि से, खाना पकाने के लिए ईंधन के तौर यह अन्य विकल्पों की तुलना में बेहतर है।
  • एलपीजी के उपयोग के लिए कार्बन क्रेडिट को बढ़ावा देना, एलपीजी सब्सिडी बास्केट में योगदान के लिए अन्य सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को शामिल करना और एक डिजिटल एलपीजी बैंक के माध्यम से माइक्रोफाइनेंस का विस्तार करने जैसी पहल, एलपीजी पर राष्ट्रीय सरकारी सब्सिडी के बोझ बिना, जरूरतमंद लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के कुछ नए तरीके हो सकते हैं।
  • इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं।

हाल के महीनों में एलपीजी की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद क्या यह भारत में खाना पकाने का सबसे लोकप्रिय ईंधन बना रह सकता है? व्यापक रूप से लोकप्रिय प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने एलपीजी को लगभग हर जगह उपब्ध करा दिया, जिसकी वजह से 95% से अधिक घरों में एलपीजी की सीधी पहुंच बन गयी है। नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन के अनुसार, 2021 में 70% से अधिक परिवारों ने खाना पकाने के लिए प्राथमिक ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग किया।

लेकिन ऐसे समय में जब ‘जीवाश्म ईंधन प्रतिबंध‘ जलवायु और विकास के बारे में मुखर लोगों के लिए चर्चा का विषय है, यदि एलपीजी जैसा जीवाश्म ईंधन, खाना पकाने के लिए प्राथमिक या सबसे महत्वपूर्ण ईंधन न रहे तो हमें इसकी परवाह क्यों करनी चाहिए?  क्या हमें इस बात की खुशी नहीं होनी चाहिए कि सरकार ने जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी वापस लेकर इसे बहुत महंगा कर दिया, जिससे लोग इसे छोड़ रहे हैं? क्या इस वजह से जलवायु समर्थक लोगों को खुश नहीं होना चाहिए? विशेषज्ञ जो जलवायु परिवर्तन से इनकार करने की कल्पना भी नहीं करते वे खाना पकाने के लिए एलपीजी जैसे विशेष मामलों के लिए जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर जोर देते हैं।

अक्षय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को लेकर भारत में बड़ी चुनौतियां हैं। अध्ययनों से पता चला है कि बायोगैस संयंत्र का प्रबंधन जटिल है और बड़े पैमाने पर इसकी आपूर्ति भी मुश्किल है। दुर्भाग्य से सौर कुकर खाना पकाने के लिए किफायती समाधान के रूप तकनीकी रूप से परिपक्व नहीं है। खाना पकाने के उपयुक्त समय पर (सुबह और देर शाम) सबसे कम सौर ऊर्जा का समय होता हैं।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से 95% से अधिक भारतीय घरों में एलपीजी पहुंच गया है। तस्वीर- एड्रियन हैंड्स/विकिमीडिया कॉमन्स।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से 95% से अधिक भारतीय घरों में एलपीजी पहुंच गया है। तस्वीर– एड्रियन हैंड्स/विकिमीडिया कॉमन्स।

 इलेक्ट्रिक इंडक्शन स्टोव का बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए भारत में बिजली पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पश्चिमी देशों में केवल किसी आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियां ही बिजली आपूर्ति में रुकावट डालती हैं, लेकिन भारत में बिजली कटौती आम बात है। हाल के महीनों में शहरी इलाकों में भी स्थिति और खराब हुई है। ऐसे में, क्या कोई ऐसी तकनीक पर निर्भर रह सकता है जो खाना पकाने के समय काम ही न करे? जब घर में बच्चे भूखे हों तो किसी को बिजली की आपूर्ति करने वाली कंपनी की दया पर नहीं रहना चाहिए। वैसे भी भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 51% कोयले पर आधारित है।

अन्य विकल्पों से बेहतर है एलपीजी 

इसलिए, खासतौर पर भारत के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में लोगों को अपना खाना पकाने लिए ठोस ईंधन जलाने का विकल्प अपनाने के लिए छोड़ दिया गया है। वे मिट्टी के चूल्हों में जलाने के लिए जलावन लकड़ी, कृषि अवशेष और पशुओं के सूखे गोबर इकठ्ठा कर सकते हैं या खरीद सकते हैं। जलावन के कारण इन चूल्हों से निकलने वाले धुएं से घरों में वायु प्रदूषण होता है। एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि केवल खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग करने वाले एक भारतीय परिवार में रसोई और रहने वाले क्षेत्र में क्रमशः 450 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और 113 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की 24 घंटे में औसत सांद्रता 2.5 पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 24 घंटे की सुरक्षित औसत जोखिम सीमा 2.5 पार्टिकुलेट मैटर के लिए 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के रिसर्च के अनुसार  भारत में समय से पहले होने वाली लगभग एक मिलियन यानिकि 10 लाख मौतों का कारण घरेलू वायु प्रदूषण है।

इसके अलावा, चूंकि ठोस ईंधन को इकठ्ठा करने की मुख्य रूप से जिम्मेदार महिलाओं और लड़कियों की होती है, इस वजह से उन्हें शिक्षा और आर्थिक गतिविधियों से संबंधित मिलने वाले अवसरों को गंवाना पड़ता है और कठिन मेहनत करनी पड़ती है। इसकी वजह से वन क्षेत्रों का भी ह्रास होता है। एक अध्ययन के अनुसार ठोस ईंधन से खाना पकाना कम से कम पांच विकास लक्ष्यों के लिए बाधक है। इसके अलावा, जबकि जलाऊ लकड़ी, सैद्धांतिक रूप में, नवीकरणीय है, एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि स्थायी रूप से काटे गए जलाऊ लकड़ी की तुलना में एलपीजी अधिक जलवायु-अनुकूल हो सकता है।

पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में पुरुषों का एक समूह एक नाव में सिलेंडर ले जाते हुए। तस्वीर- बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स 
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में पुरुषों का एक समूह एक नाव में सिलेंडर ले जाते हुए। तस्वीर– बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

अब, हम फिर से अपने असल सवाल पर आते हैं कि ‘एलपीजी को लोगों की पसंद कैसे बनाए रखा जाए? जब इसके विकल्प विकास के लिए बुरा प्रभाव रखते हैं?’, और यहाँ तक ​​​​कि यह जलवायु के नजरिए से भी सही नहीं हैं। व्यवहारिकता भी मायने रखती है, खासतौर से उच्च मूल्य स्तरों पर सब्सिडी महत्वपूर्ण हो जाती है। पांच लोगों के एक सामान्य परिवार को अपना खाना पकाने की ऊर्जा की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक साल में कम से कम सात सिलेंडर की आवश्यकता होगी, यानी मौजूदा कीमत पर कम से कम 7,000 रूपए हर साल। नई दिल्ली में केवल पिछले 12 महीनों के दौरान कीमतें 834.50 रुपये से बढ़कर 1,053 रुपये हो गई, यानी 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी। वैश्विक स्तर पर घटते-बढ़ते दाम को देखते हुए इस बात का कोई आश्वासन नहीं है कि कीमतें मौजूदा स्तर से आगे नहीं बढ़ेंगी।

ऐसा लगता है कि भारत सरकार ने सब्सिडी के मामले में सोचा-समझा रुख अपनाया है कि अर्थव्यवस्था में मंदी को देखते हुए राजकोष की चुनौतियों के मद्देनजर एलपीजी पर सब्सिडी देने की बहुत कम गुंजाइश बची है। सरकार ने हाल ही में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत केवल 90 मिलियन (9 करोड़) लाभार्थियों के लिए प्रति 14.2 किलोग्राम सिलेंडर पर 200 रुपये की सब्सिडी का प्रावधान किया है। जिसके तहत केवल गरीब और सामाजिक रूप से वंचित महिलाओं का ही नामांकन है। लेकिन क्या 90 मिलियन उज्ज्वला योजना के लाभार्थी भी एलपीजी के लिए 800 रूपए का खर्च उठा सकते हैं? साथ ही, क्या बाकी 210 मिलियन अन्य उपभोक्ताओं में से हर कोई 1000 रुपये की कीमत पर एलपीजी खरीद सकता है। यदि कीमत और अधिक बढ़ती है, फिर क्या होगा? 

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने पूंजीगत सब्सिडी के माध्यम से गरीब महिलाओं को अपने जीवन में पहली बार स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन का उपयोग करने के लिए सशक्त बनाने का एक सराहनीय काम किया। उनकी रसोई में स्वच्छ हवा थी जिसके कारण घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से, समय से पहले होने वाली मौतों में 13% की कमी आई। समय के साथ रिफिल (फिर से एलपीजी भराना) के दरों में भी मामूली वृद्धि हुई। ये लाभ अब समाप्त हो रहे हैं और उज्जवला योजना वाले सिलेंडर के रिफिल दरों में भारी गिरावट हुई है। जबकि इन उपभोक्ताओं को अभी भी खाना पकाना है, इसलिए, वे बुरी आर्थिक स्थिति के दौरान ईंधन के सबसे खराब विकल्प ठोस ईंधन की ओर पलायन कर रहे हैं। 

एलपीजी का विकल्प 

मैं पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय से अधिक सब्सिडी की मांग से परे, एलपीजी को और अधिक किफायती बनाने के लिए तीन नए तरीकों को प्रस्तावित करता हूँ।

पहला, उज्ज्वला योजना लाभार्थियों को एलपीजी के लिए कार्बन क्रेडिट को बढ़ावा देना और इसे सुविधाजनक बनाने के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित करना। जीवाश्म ईंधन के लिए कार्बन क्रेडिट एक ऑक्सीमोरोन की तरह लग सकता है, लेकिन बेहतर विकल्पों की कमी को देखते हुए, यह बड़े पैमाने पर स्वच्छ खाना पकाने के लिए, फायदे के साथ व्यवहारिक वित्त-पोषित तंत्र बन सकता है। 

दूसरा, एलपीजी सब्सिडी बास्केट में योगदान करने के लिए अन्य सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को शामिल करना। यदि कोई परोपकारी व्यक्ति जो माताओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और एक खास समय अवधि के लिए गर्भवती महिलाओं और नई माताओं के लिए एलपीजी पर सब्सिडी देना चाहे, तो इसे पाने की आसान सुविधा होनी चाहिए। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को सभी विवरण बिना किसी बाधा के सूचित करने और आसानी से भुगतान करने सुविधा होनी चाहिए। सबसे गरीब और सबसे कमजोर नागरिकों को सब्सिडी देने के लिए कंपनियों को अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) के तहत फंडिंग करने के लिए प्रोत्साहित करना, एलपीजी सब्सिडी के लिए नकदी प्रवाह को साकार कर सकता है।

सीईईडब्ल्यू (काउन्सिल ऑफ़ एनर्जी एन्वार्न्मेंट एंड वाटर) के एक अध्ययन के अनुसार, 2021 में 70 प्रतिशत से अधिक परिवारों ने प्राथमिक खाना पकाने के ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग किया। तस्वीर: प्रेस सूचना ब्यूरो।
सीईईडब्ल्यू (काउन्सिल ऑफ़ एनर्जी एन्वार्न्मेंट एंड वाटर) के एक अध्ययन के अनुसार, 2021 में 70 प्रतिशत से अधिक परिवारों ने प्राथमिक खाना पकाने के ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग किया। तस्वीर: प्रेस सूचना ब्यूरो।

तीसरा, फिनटेक प्लेटफॉर्म की भारी लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए डिजिटल एलपीजी बैंक के माध्यम से माइक्रो फाइनेंस का विस्तार करना। यह उन लोगों के लिए, जो एलपीजी की कीमत वहन कर सकते हैं लेकिन तुरंत नकद राशि जमा करने में असमर्थ हैं। एक डिजिटल एलपीजी बैंक उपभोक्ताओं के लिए एलपीजी खरीद के लिए बचत करने और ऋण लेने का एक सुरक्षित ज़रिया बन सकता है। संभावित रूप से एलपीजी के लिए निर्धारित डिजिटल बचत, परिवारों के लिए एक सिलेंडर से दूसरा सिलेंडर खरीदने के बीच अपनी बचत नगदी का सुरक्षित स्थान हो सकता है। इस तरह से एलपीजी खातों में जमा राशि पर छूट देने के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सकता है।


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उपभोक्ताओं के लिए बिना किसी कागजी कार्रवाई के आसानी से मिल सकने वाला अल्पकालिक ऑटो-स्वीकृत ऋण की सुविधा हो। इस तरह की सुविधा सीमित क्रेडिट या बिना क्रेडिट रिकॉर्ड वाले उपभोक्ताओं के लिए, वेतन मिलने से पहले सिलेंडर समाप्त होने या तत्काल खरीद के लिए नकदी की कमी होने की स्थिति में सिलेंडर खरीदने और एलपीजी का उपयोग जारी रखने में सहायक होगा। दुरुपयोग से बचने के लिए, उपभोक्ता के एलपीजी खाते की बचत राशि समाप्त होने की स्थिति में अल्पकालीन ऋण सीधे वितरक के पास जमा की जा सकती है।

लाभकारी कंपनियों के रूप में, मोबाइल भुगतान प्लेटफार्मों को तेल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों के साथ जोखिम-साझाकरण समझौते के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसके तहत ऋण की अदायगी न होने की स्थिति में जोखिम के बोझ को दोनों साझा करें। छोटी वस्तुओं के लिए मैन्युअल-एप्रूवल और ऋण वसूली माइक्रोफाइनेंस कंपनी के लिए लागत पर प्रभाव नहीं डालती है। मोबाइल भुगतान प्लेटफॉर्म को विज्ञापन राजस्व के साथ-साथ अन्य उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए निचले तबके तक लाखों उपभोक्ताओं तक पहुंच मिलती है।

 


अभिषेक कर कोलंबिया विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टोरल शोधार्थी थे और हाल ही में दिल्ली स्थित काउन्सिल ऑफ एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर से जुड़े हैं।


 

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बैनर तस्वीरः स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को बढ़ाना भारत में चुनौतीपूर्ण है। नतीजतन, लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में, खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जलाते हैं। तस्वीर: संयम बहगा/विकिमीडिया कॉमन्स।

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