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कॉप15: साल 2030 तक 30% जैव-विविधता को बचाने पर भारत का जोर, सहमति बनाना बड़ी चुनौती

मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के समापन के दो सप्ताह बाद जैव विविधता शिखर सम्मेलन हो रहा है। तस्वीर: संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता/फ़्लिकर।

मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के समापन के दो सप्ताह बाद जैव विविधता शिखर सम्मेलन हो रहा है। तस्वीर: संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता/फ़्लिकर।

  • कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैव विविधता (सीबीडी) सम्मेलन की पंद्रहवीं बैठक (कॉप15) हो रही है। इसमें शामिल सरकारों का लक्ष्य साल 2020 के बाद के लिए वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (जीबीएफ) को अपनाने पर होगा। इसका मकसद प्रकृति को हो रहे नुकसान को साल 2030 तक रोकना है।
  • वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के नए संस्करण में 23 लक्ष्य शामिल किए गए हैं। इन्हें चार वर्गों में बांटा गया है। हालांकि जैव विविधता वित्तीय अंतर को पाटना और डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन तक पहुंच और उससे मिलने वाले लाभ को साझा करने जैसे मुद्दों पर मतभेद दूर करना बाकी है।
  • साल 2030 तक दुनिया की 30% भूमि और महासागरों को बचाने की प्रतिबद्धता यानी फ्रेमवर्क के ’30 बाय 30′ लक्ष्य को पूरा समर्थन मिल रहा है।
  • कॉप15 से जुड़ी पूर्व की बैठकों में मतभेद वाले बिंदुओं पर बहुत कम प्रगति हुई है। लेकिन स्थानीय लोगों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने से जुड़े अधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाने पर फ्रेमवर्क में प्रगति हुई है।

संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (कॉप15) को लेकर आयोजक देश कनाडा में गहमागहमी बढ़ गई है। जैव विविधता को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए यहां ऐतिहासिक समझौते पर सरकारें आखिरी दौर की बातचीत कर रही हैं। हालांकि समझौते को लेकर कई तरह के मतभेद अब भी बने हुए हैं। इनमें जैव विविधता वित्तीय अंतर (फाइनेंशियल गैप), स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा, डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन (डीएसआई) तक पहुंच और इससे होने वाले लाभ के बंटवारे जैसे मुद्दे शामिल हैं। कोविड महामारी के चलते कई बार स्थगित होने के बाद अब सम्मेलन का आयोजन हो रहा है।

सरकारों का लक्ष्य 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (जीबीएफ) को अपनाने का है। इसे अक्सर ‘प्रकृति के लिए पेरिस समझौते’ के रूप में देखा जाता है, ताकि कुदरत को हो रहे नुकसान को रोका जा सके। यह इस तरह की पंद्रहवीं बैठक है। कॉप15 का आयोजन सात दिसंबर से 19 दिसंबर तक हो रहा है। चीन इस सम्मेलन का अध्यक्ष है। हालांकि, महामारी के चलते सम्मेलन को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। कॉप15 के पहले हिस्से में सभी पक्षों ने कुनमिंग घोषणा को अपनाया। इसमें 2020 के बाद के लिए असरदार जैव विविधता ढांचे पर बातचीत करने पर प्रतिबद्ध जताई गई है।

साल 2010 में हुए आइची जैव विविधता लक्ष्यों पर सहमति के बाद जीबीएफ पहला वैश्विक फ्रेमवर्क होगा। हालांकि 2020 की सीबीडी (कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी) रिपोर्ट के अनुसार आइची के किसी भी लक्ष्य को पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सका। द इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज ने 2019 में एक ऐतिहासिक रिपोर्ट में अनुमान लगाया कि जीव और पौधों की 10 लाख प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म होने के कगार पर हैं।

आइची लक्ष्यों की जगह तय नवीनतम मसौदा जीबीएफ में 2030 के लिए 23 लक्ष्यों का प्रस्ताव है। इन्हें चार वर्गों में रखा गया है। लक्ष्यों में हाल ही में प्रस्तावित सेहत से जुड़ा वन हेल्थ लक्ष्य भी शामिल है। ये लक्ष्य 2050 तक इंसान को प्रकृति के साथ “मिलकर रहने” में मदद करेंगे। जीबीएफ लक्ष्यों में प्रदूषण को कम करना, घुसपैठिया प्रवृत्ति की बाहरी प्रजातियों के आने की दर को रोकना या कम करना, सभी तरह के कारोबार की तरफ से जैव विविधता पर अपनी निर्भरता और पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना और इसकी रिपोर्ट करना तथा नकारात्मक प्रभावों को कम करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP 15) को संबोधित करते हुए मेजबान देश कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता / फ़्लिकर
संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP15) को संबोधित करते हुए मेजबान देश कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो। तस्वीर– संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता/फ़्लिकर

समझौते की सबसे अहम बात 2030 तक दुनिया की 30% भूमि और महासागरों को बचाने की प्रतिबद्धता है। इसे आम तौर पर ’30 बाय 30′ के नाम से जाना जाता है। 

हालांकि, इस लक्ष्य की स्थानीय समुदायों के अधिकारों की हिमायत करने वाले कार्यकर्ता आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों को बेदखल कर सकता है। पांच दिसंबर को प्रकाशित एक विचार में संरक्षणवादियों के एक वर्ग ने चेतावनी दी है। उनका कहना है कि जैव विविधता को सीधे और परोक्ष तौर पर नुकसान पहुंचाने वालों, जैव विविधता को बचाने के लिए अवास्तविक उद्देश्य तय करना और समय-सीमा का पूरा ध्यान नहीं रखना तथा अतीत व मौजूदा संरक्षण और प्रकृति के लाभों को साझा करने की मौलिक असमानताओं को दूर करने में विफलता जीबीएफ की सफलता की संभावना को कमजोर कर सकती है।

कॉप15 से पहले, ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (OEWG-5) के वार्ताकारों ने 3 दिसंबर से 5 दिसंबर तक जीबीएफ के एक संशोधित, कम किंतु-परंतु वाले मसौदे को आगे बढ़ाने का काम किया। अब इसी के आधार पर कॉप15 में आखिरी वार्ता होगी। सीबीडी की कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ मर्मा ने ये कहते हुए चिंता जताई कि कुछ प्रगति हुई है “लेकिन उतनी नहीं जितनी की जरूरत थी या जिसकी उम्मीद थी।” मर्मा ने कॉप15 के उद्घाटन के मौके पर प्रेस वार्ता में कहा, “और मुझे निजी रूप से यह स्वीकार करना होगा कि मुझे नहीं लगता कि प्रतिनिधि हमारी अपेक्षा के अनुरूप आगे बढ़ पाए।”

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने कॉप15 की पूर्व की बैठकों में साफ-सुथरा मसौदा देने की “कछुआ चाल” पर भी चिंता जताई। लेकिन फ्रेमवर्क में अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को दृढ़ता से शामिल करने की जरूरत पर “काफी प्रगति और सहमति” को उम्मीदों से भरा भी बताया। उन्होंने भूमि और क्षेत्रों पर स्थानीय लोगों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों की मान्यता और ढांचे में एक लैंगिक दृष्टिकोण शामिल करने को भी प्रासंगिक माना।

इस बेहद जरूरी बातचीत से पहले, ग्लोबल यूथ बायोडायवर्सिटी नेटवर्क (जीवाईबीएन) द्वारा आयोजित यूथ समिट (3 दिसंबर से 5 दिसंबर) में दुनिया भर के 300 से ज्यादा युवाओं ने हिस्सा लिया। इन युवाओं ने मंत्रियों और गणमान्य लोगों के साथ “संगठित होने, नेटवर्क बनाने, नया कौशल हासिल करने” के गुर सीखे। उन्होंने कॉप-15 से अपनी उम्मीद और चिंताओं को साझा भी किया।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर इंटर गवर्नमेंटल विज्ञान-नीति मंच की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दस लाख से अधिक जीव और पौधों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। तस्वीर- केशवमूर्ति एन / विकिमीडिया कॉमन्स
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर इंटर गवर्नमेंटल विज्ञान-नीति मंच की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दस लाख से अधिक जीव और पौधों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। तस्वीर– केशवमूर्ति एन / विकिमीडिया कॉमन्स

इंडियन बायोडायवर्सिटी यूथ नेटवर्क की राष्ट्रीय समन्वयक पाखी दास ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि जीबीएफ को जमीन पर उतारने के बाद युवा कई तरह की गतिविधियां में हिस्सा ले सकते हैं। इनमें ऑनलाइन नागरिक विज्ञान पोर्टल बनाना और लक्ष्यों पर हो रही प्रगति की निगरानी करने के लिए ऐप विकसित करना शामिल है। “भारत के युवा हमारी राष्ट्रीय आबादी का लगभग 30% हैं और इसलिए हमारी संख्या में भी ताकत है। दास ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम जमीन पर काम करने के लिए अतिरिक्त लोगों को उतार सकते हैं, आकलन कर सकते हैं, डिजिटल एटलस विकसित कर सकते हैं और सूचना को ज्यादा उपलब्ध, सुलभ और सार्वजनिक बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर सकते हैं।”

वित्तीय अंतर को पाटना, कार्यान्वयन और लक्ष्यों की निगरानी

सम्मेलन में कई मु्द्दों पर चर्चा हो रही है। इनमें जीबीएफ को लागू करने के लिए संसाधन जुटाना और प्रकृति-आधारित समाधानों (एनबीएस) में निवेश करना शामिल है। साल 2030 तक जैव विविधता वित्त अंतर लगभग 700 अरब डॉलर प्रति वर्ष होने का अनुमान है।

कॉप15 के पिछले आयोजनों की तुलना में इस बार कारोबारी जगत और वित्त समुदाय से ज्यादा भागीदारी देखने को मिली है। जैव विविधता शिखर सम्मेलन मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप27 के समापन के दो सप्ताह बाद हो रहा है। कॉप27 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एनबीएस की अहम भूमिका को स्पष्ट तौर पर रेखांकित किया गया था। इस बात पर भी जोर दिया गया है कि उन्हें ‘1.5 को बनाए रखने’ यानी तापमान को इतना कम करने के लिए उत्सर्जन में भारी कटौती को नहीं पलटना चाहिए।

लेकिन कई देश जीबीएफ में एनबीएस के बजाय ‘इको-सिस्टम आधारित दृष्टिकोण’ का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। भारत की वरिष्ठ वन अधिकारी सोनाली घोष ने कहा, “ऐसा इसलिए क्योंकि प्रकृति से मिलने वाले कई लाभ अमूर्त हैं। जैसे कि हरे-भरे इलाकों में पैदल चलने/रहने से मानसिक स्वास्थ्य को फायदा मिलता है। इसलिए पारिस्थितिक तंत्र आधारित दृष्टिकोण इस तरह के अमूर्त लाभों को इसमें शामिल करे।”

कॉप15 से पहले जारी की गई यूएनईपी की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि 2030 तक जमीन पर पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के 30% हिस्से को संरक्षित करने के लिए सावधानीपूर्वक तय प्रयास के साथ 15% बहाल लैंडस्कैप से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (GtCO2) को एक साल में कम से कम 3 गीगाटन तक कम किया जा सकता है। लेकिन कॉप15 से पहले प्रकाशित स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट के दूसरे संस्करण से पता चलता है कि वर्तमान में एनबीएस के लिए वित्तीय व्यवस्था महज 154 अरब डॉलर प्रति वर्ष है, जो कि 2025 तक आवश्यक एनबीएस में 384 अरब डॉलर प्रति वर्ष के निवेश के आधे से भी कम है। यानी 2030 तक जरूरी निवेश का महज एक-तिहाई।

पीटलैंड की प्रतीकात्मक तस्वीर। यह एक प्रकार की आर्द्रभूमि (घास के दलदली मैदान) है जिसमें कार्बन अवशोषित करने की क्षमता होती है। तस्वीर- मिया एम/विकिमीडिया कॉमन्स
पीटलैंड की प्रतीकात्मक तस्वीर। यह एक प्रकार की आर्द्रभूमि (घास के दलदली मैदान) है जिसमें कार्बन अवशोषित करने की क्षमता होती है। तस्वीर– मिया एम/विकिमीडिया कॉमन्स

भारत के राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) के पूर्व अध्यक्ष विनोद माथुर ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “दुर्भाग्य से, आइची जैव विविधता लक्ष्यों को लागू करने के लिए सभी संबंधित (देशों) द्वारा पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था। इसलिए हम उन्हें हासिल करने में विफल रहे। कार्यान्वयन भी संसाधन जुटाने के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। जीबीएफ के संदर्भ में, ग्लोबल साउथ, विशेष रूप से भारत, गंभीर चिंताओं को व्यक्त करता रहा है। यानी कि जीबीएफ से जुड़ी बड़ी महत्वाकांक्षाओं के लिए बड़े स्तर पर संसाधन जुटाना जरूरी है।”

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के नीति अनुसंधान और विकास प्रमुख गुइडो ब्रोएखोवेन ने कार्यकारी समूह की बैठक के मुख्य अंशों पर एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि कार्यान्वयन तंत्र पर चर्चा और इसे किस तरह मजबूत किया जाए, यह “लगातार समय की कमी से ग्रस्त” रहा है और साथ ही कार्यकारी समूह की चर्चाओं में जो अभी-अभी समाप्त हुई हैं, “ये मुद्दे वार्ता में शामिल नहीं थे।”

ब्रोएखोवेन ने कहा, “इसके अलावा, कारोबार की भूमिका पर भी चर्चा की गई, लेकिन इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवसाय को प्रकृति से जुड़ी सकारात्मक गतिविधियों में निवेश करने के लिए किस तरह बदला जाए। इसलिए हम असल में मानते हैं कि पार्टियां (वार्ता में शामिल देश) आग से खेल रही हैं, और उन्हें वास्तव में रास्ता बदलने की जरूरत है।”

जैव विविधता को बचाने के लक्ष्य

भारत सीबीडी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शामिल है। वह अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (ओईसीएम) को व्यापक बनाने की मांग करके ’30 बाय 30′ लक्ष्य का समर्थन करता है। भारत, नेचर एंड पीपुल जैसे उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन (HAC) का हिस्सा है। यह 70 से ज़्यादा देशों का एक समूह है जो 2030 तक 30% भूमि और समुद्र के किनारों को बचाने के वैश्विक लक्ष्य को अपनाने को प्रोत्साहित करता है। लेकिन स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा जैसे मुद्दों को अभी सुलझाना बाकी है।

भारत ने कृषि लैंडस्केप, जैव विविधता पार्क और औद्योगिक क्षेत्रों सहित ओईसीएम को संभावित रूप से परिभाषित करने के लिए तीन व्यापक समूहों – स्थलीय, जल निकायों और समुद्र के तहत एक 14 श्रेणियों वाली वर्गीकरण प्रणाली विकसित की है।

माथुर ने कहा, “हम ओईसीएम दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि ओईसीएम इन-सीटू जैव विविधता संरक्षण के लिए और ’30 बाय 30′ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक बेहतर और प्रभावी रास्ता प्रदान करते हैं। ओईसीएम में अपनी भूमि का योगदान कर सकने वाले स्थानीय समुदाय को जैव विविधता वित्त के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा। यही कारण है कि कॉप15 में संसाधन जुटाना अहम होगा।”

वर्तमान में, दुनिया की लगभग 17% भूमि और महासागर संरक्षित हैं। यह 2010 में पृथ्वी की सतह के 17% क्षेत्र के संरक्षण के लिए तय आइची लक्ष्य-11 पर के करीब है। लेकिन दुनिया भर में समुद्री वातावरण के 10% हिस्से की सुरक्षा करने में अब तक नाकामी हाथ लगी है। भारत का कहना है कि उसने स्थलीय क्षेत्र-आधारित संरक्षण के 17% के आइची लक्ष्य को हासिल कर लिया है।


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घोष ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हमें स्थानीय समुदायों के जमीनी प्रयासों को मुख्यधारा में लाने की भी जरूरत होगी जो इन ओईसीएम को ज्यादा औपचारिक तरीके से संरक्षित करते हैं, ताकि उनकी भागीदारी को बड़ी नीति और फंडिंग तंत्र के हिस्से के रूप में पहचाना जा सके।” उन्होंने कहा, “इसके अतिरिक्त, हमें ओईसीएम की श्रेणियों और मानदंडों को ज्यादा वास्तविक रूप से देखने की जरूरत होगी क्योंकि कई ऐसे जैव विविधता और कार्बन समृद्ध पैच हैं। जैसे कि पवित्र वन, जो हमारी नीतियों में कहीं नहीं हैं।”

भारत ने जीबीएफ (एक नया लक्ष्य 22) में लैंगिक समानता पर एक खास लक्ष्य को भी अपना समर्थन दिया है। इसे पहले कोस्टा रिका द्वारा प्रस्तावित किया गया था और मार्च 2022 में जिनेवा में 11 अन्य पक्षों की तरफ से इसका समर्थन किया गया था।

माथुर ने कहा, “जीबीएफ के सभी लक्ष्यों में लैंगिक समानता को मुख्याधारा में लाना आवश्यक है, लेकिन लैंगिक समानता पर एक समर्पित लक्ष्य भी जीबीएफ में बहुत मददगार होगा। भारत, अपने कई कानूनों में, विशेष रूप से जैव विविधता कानून, 2003 के तहत जैव विविधता प्रबंधन समितियों के गठन में लैंगिक समानता को मुख्यधारा में ला रहा है।”

अगर दिसंबर 2022 में मॉन्ट्रियल में जीबीएफ को अपनाया जाता है, तो भारत और अन्य देशों को इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जीबीएफ के हिसाब से अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (एनबीएसएपी) को तय करना होगा। माथुर ने कहा, “राज्यों/प्रांतों (भारत में) को भी अपनी राज्य जैव विविधता रणनीति और कार्य योजनाओं को राष्ट्रीय लक्ष्यों के हिसाब से बनाना होगा। सभी देशों द्वारा जीबीएफ को लागू करने की खातिर और एनबीएसएपी में बदलाव करने में मदद करने के लिए वैश्विक पर्यावरण सुविधा (एक बहुपक्षीय पर्यावरण फंड) से धन प्राप्त करना होगा।”

हाल ही में वन्य जीवों और वनस्पतियों (CITES) की लुप्तप्राय प्रजातियों (CITES) में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर समझौते को लेकर सभी पक्षों द्वारा जताई गई प्रतिबद्धता भी जैव-विविधता को बचाने में मददगार होगी। CITES की बैठक में (कॉप19) 500 नई प्रजातियों के व्यापार को रेगुलेट करने पर भी सहमति बनी थी।  

डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन और लाभ साझा करना

कॉप15 में डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन (डीएसआई/ऐसी चीजें जिसमें डाटा आनुवंशिक संसाधनों से मिलता है) और आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंच और लाभ साझा करने पर मौजूदा विश्व समझौतों के बीच संबंध है। पार्टियां जीबीएफ पर कार्यकारी समूह के काम और अनौपचारिक विचार-विमर्श के आधार पर विकल्पों पर विचार करेंगे।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया में शासन, कानून और नीति के निदेशक विशेष उप्पल ने कार्यकारी समूह की बैठकों से निकले तथ्यों पर एक प्रेस वार्ता में बताया, हालांकि अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है क्योंकि पूरे मसौदे पर बातचीत होनी बाकी है। मसौदे में इस बात पर जोर दिया गया है कि “आनुवांशिक संसाधनों पर डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन से मिलने वाले लाभ का इस्तेमाल जैव विविधता के संरक्षण और टिकाऊ इस्तेमाल के समर्थन के लिए किया जाना चाहिए। मुख्य तौर पर इन लाभों को प्राप्त करने वालों को स्थानीय लोगों और स्थानीय समुदायों की जरूरत होती है जो संसाधनों और इससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान के संरक्षक हैं।”

उप्पल ने मीडिया से कहा, “हमें वास्तव में एक समझौते और सुझाव की जरूरत है कि 2020 के बाद जीबीएफ के संदर्भ में अनुवांशिक संसाधनों पर डिजिटल सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन को किस तरह सुलझाया जाए।”

 

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बैनर तस्वीर: मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के समापन के दो सप्ताह बाद जैव विविधता शिखर सम्मेलन हो रहा है। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता/फ़्लिकर।

 

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