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[समीक्षा] बाघ के अतीत और वर्तमान की रोचक कहानियां बताती किताब ‘बाघ, विरासत और सरोकार’

मध्य भारत के एक टाइगर रिजर्व में एक बाघ। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

मध्य भारत के एक टाइगर रिजर्व में एक बाघ। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

  • बाघ विशेषज्ञ समीर कुमार सिन्हा और विनीता परमार की किताब ‘बाघ, विरासत और सरोकार’ में बाघ संरक्षण को लेकर अतीत और वर्तमान में हुए प्रयासों को सहेजा गया है।
  • किताब में कई शोधपत्रों के हवाले से बाघ संरक्षण के बारे में कई रोचक जानकारियां दी गईं हैं, जिसमें देशभर के प्रमुख बाघ अभयारण्यों के इतिहास के साथ वहां चल रही संरक्षण की गाथा को भी शामिल किया गया है।
  • किताब में देश के 52 टाइगर रिजर्व में से 11 टाइगर रिजर्व की रोचक कहानियां हैं, जो किसी रिपोर्ताज की तरह बाघ संरक्षण के अलावा वहां के इतिहास की गाथा और वर्तमान की समस्याओं पर भी प्रकाश डालती हैं।

“कथाओं के इस देश में 

मैं भी एक कथा हूं

एक कथा है बाघ भी

इसलिए कई बार 

जब उसे छिपने को नहीं मिलती 

कोई ठीक-ठाक जगह

तो वह धीरे-से उठता है

और जाकर बैठ जाता है

किसी कथा की ओट में”

 

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और साहित्यकार केदारनाथ सिंह की इस कविता से शुरू होती एक किताब देश में बाघ संरक्षण के इतिहास की कहानियां संजो रही है। हाल ही में प्रकाशित इस किताब का शीर्षक है ‘बाघ, विरासत और सरोकार’। इस कविता की तरह ही बाघ का अस्तित्व भी कथाओं में सिमटता गया और आज विश्व में सिर्फ 13 देशों में ही बाघ स्वच्छंद होकर जंगलों में घूम रहे हैं। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार, चीन, रूस, वियतनाम, कम्बोडिया, लाओस, इंडोनेशिया और थाइलैंड के अलावा भारत भी इन देशों में शामिल है। किताब का पहला अध्याय कहता है कि बिखरे हुए आंकड़ों को जोड़ने के बाद बाघों की वैश्विक आबादी करीब 4,600 के करीब पहुंचती है जिसमें से 3,000 के करीब बाघ भारत में पाए जाते हैं। 

बाघ संरक्षण के सरोकार और उससे जुड़े तथ्यों को संजोती इस किताब को बाघ विशेषज्ञ समीर कुमार सिन्हा और पर्यावरणविद् विनीता परमार ने लिखा है। समीर कुमार सिन्हा दो दशकों से अधिक समय से वन्यजीवों के संरक्षण से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। वहीं किताब की सह-लेखिका विनीता परमार 15 वर्षों से अधिक समय से संरक्षण और पर्यावरणीय शिक्षा से जुड़ी हैं। 

पुस्तक 'बाघ, विरासत और सरोकार' का कवर। साभार- वाणी प्रकाशन
पुस्तक ‘बाघ, विरासत और सरोकार’ का कवर। साभार- वाणी प्रकाशन

बाघ पर लिखी इस किताब में दोनों लेखकों ने शोधपरक जानकारियों के साथ अपने फील्ड के अनुभवों को भी शामिल किया है। वाणी प्रकाशन की वाणी पृथ्वी द्वारा प्रकाशित 172 पन्नों की इस पुस्तक की कीमत 399 रुपए है। किताब में शामिल 83 संदर्भ और 27 अतिरिक्त संदर्भ इसे पुख्ता जानकारियों से लैस करते हैं।  

उप प्रजाति, सफेद-काले बाघ की कहानी 

पुस्तक में बाघ के परिचय की शुरुआत इनकी उप प्रजातियों के जिक्र से होती है। बाघ की कुल उप-प्रजातियों की संख्या नौ है जिसमें से छः उप-प्रजातियां ही फिलहाल अस्तित्व में हैं। इस अध्याय में बाघ के अतीत की रोचक कहानियों में बाघ के विस्तार की कहानी है। यहां भारत का जिक्र सफेद बाघों की कहानी से शुरू होता है जो कि अब देश के जंगलों में नहीं मिलते। रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह जुदेव ने साल 1951 में एक सफेद बाघ को शिकार के दौरान बंदी बनाया था। अध्याय में आगे सफेद बाघ नई नई पीढ़ी को बनाने में उनके जुनून की गाथा है। 

इतिहास के पन्नों में सफेद बाघ का जिक्र मुगल काम में भी आता है। किताब के मुताबिक, 1556 से 1605 ईस्वी तक देश में सफेद बाघ मिले हैं। 

यह किताब बाघ की जीवटता की कहानी भी कहती है। बाघ की कई प्रजातियों ने खुद को साइबेरिया के -30 डिग्री तापमान के ठन्डे मौसम में भी रहने लायक बना लिया है। भारत में पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में पाए जाने वाले बाघ न सिर्फ जलीय माहौल में ढल गए हैं बल्कि केकड़े और मछली खाना भी सीख गए हैं। 

मानव-बाघ द्वंद को भी किताब ने संजीदा तरीके से शामिल किया है। 

बाघ संरक्षण की कहानी 

20वीं शताब्दी की शुरुआत में बाघों की अनुमानित वैश्विक आबादी एक लाख के करीब थी। भारत में इस वक्त करीब 40 हजार बाघ पाए जाने का अनुमान है। साल 1964 में भारत में बाघ घटकर मात्र 4,000 बच गए थे। वर्ष 1952 में भारतीय वन्यजीव बोर्ड का गठन हुआ और मैसूर में आयोजित इसकी पहली बैठक में 14 जीवों की सूची जारी की गई जिनके सुरक्षा और संरक्षण पर जोर दिया गया। बाघ संरक्षण के इस अध्याय में बाघ संरक्षण के क्षेत्र में प्रमुख आयामों को बारीकी से शामिल किया गया है। इसमें बाघ प्राधीकरण बनने तक की कहानी बताई गई है। 

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघ। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघ। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

संरक्षण के लिए राज्य स्तर पर चल रही योजनाओं का जिक्र भी है। साथ ही, बाघ संरक्षण को लेकर वर्तमान में आ रही चुनौतियां की चर्चा भी की गई है। 

अवैध व्यापार बाघ के शिकार की प्रमुख वजह बन रहा है। भारत में जंगल की खराब गुणवत्ता भी संरक्षण की कोशिशों में बाधा बन रही है। देश में 35 प्रतिशत बाघ संरक्षित क्षेत्र या टाइगर रिजर्व के बाहर विचरण करते हैं, जो न सिर्फ बाघ के लिए खतरा है बल्कि मानव-बाघ द्वंद की वजह भी बन रहा है। 

टाइगर रिजर्व की रोचक कहानियां

किताब का बड़ा हिस्सा देश भर के 11 टाइगर रिजर्व के रोचक किस्सों से भरा हुआ है। वर्तमान में बाघ देश के 16 राज्यों में पाए जाते हैं। देशभर में 52 टाइगर रिजर्व मौजूद हैं। समीर कुमार सिन्हा को राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधीकरण के मनोनीत विशेषज्ञ के तौर पर देशभर के दो दर्जन टाइगर रिजर्व में प्रबंधन का मूल्यांकन करने का मौका मिला। इस किताब में शामिल जमीनी कहानियों में उनका जंगल के साथ यह रिश्ता देखा जा सकता है।

पलामू टाइगर रिजर्व का एक दृश्य। यह वन झारखंड के छोटा नागपुर पठार के पलामू ज़िले में स्थित है। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा
पलामू टाइगर रिजर्व का एक दृश्य। यह वन झारखंड के छोटा नागपुर पठार के पलामू ज़िले में स्थित है। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

 टाइगर रिजर्व की कहानियों की शुरुआत वाल्मिकी टाइगर रिजर्व से होती है। इस अध्याय में बाघ के अलावा गैंडा की विलुप्ति और वाल्मिकी में गौर या जंगली भैंसे की उपस्थिति की रोचक कहानी भी शामिल है। 

त्रिवेणी में ‘बाघ की इंसानी हरकत’ के बारे में किताब में लेखक ने एक वाक्या साझा किया है। उनकी टीम ने बाघों की तस्वीर लेने के लिए ट्रैप कैमरा लगाए थे। कैमरे में अपनी तस्वीरें खिंचवाने की अभ्यस्त हो चुकी एक बाघिन ने एक बार कैमरे का फ्लैश न चमकने पर उसके ऊपर पंजे मारे। अंत में वह कैमरे पर मूत्र त्याग कर चली गई। 


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इसी तरह की रोचक कहानी सुंदरबन के जंगलों से भी सामने आती है। इस अध्याय में ‘माछ चढ़े गाछ’ यानी मछली के पेड़ पर चढ़ने की कहानी और जंगल की देवी बोनबीबी की गाथा शामिल की गई है। बाघ की वजह से अपने पति गवां चुकी महिलाओं के गांव ‘बिधोबा पाड़ा’ की मार्मिक कहानी किताब को जमीनी रिपोर्ताज का दर्जा भी देती है। 

इस किताब में आगे मध्य प्रदेश स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व के पुनर्उत्थान की गाथा भी बताती हैं जिसमें 2009 में सभी बाघ मरने के बाद बाघिन टी-3 के जरिए जंगल को दोबारा आबाद करने की कहानी शामिल हैं। 

टाइगर रिजर्व में न सिर्फ बाघ का संरक्षण होता है बल्कि इस पहल के साथ दूसरी संकटग्रस्त प्रजातियां भी संरक्षित होती हैं। उदाहरण के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ के साथ गिद्धों को भी संरक्षण मिल रहा है। देश के दूसरे टाइगर रिजर्व की कहानियों में ऐसी कई मिसाल इस किताब में शामिल की गई हैं।

 

बैनर तस्वीरः मध्य भारत के एक टाइगर रिजर्व में एक बाघ। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

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