- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) का अनुमान है कि ओडिशा में सौर ऊर्जा की कुल क्षमता लगभग 2,678 गीगावाट (GW) है। iFOREST की एक हालिया स्टडी में दावा किया गया है कि ओडिशा में सौर ऊर्जा की क्षमता 170 गीगावाट यानी नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुमान से लगभग 7 गुना ज्यादा है।
- मंत्रालय का अनुमान जमीन के इस्तेमाल के पैटर्न पर आधारित है वहीं iFOREST की रिपोर्ट में कहा गया है कि ओडिशा में नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता काफी ज्यादा हो सकती है अगर खाली जमीन और पानी के भंडारों को सौर ऊर्जा पैदा करने के लिए बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाए।
- कुछ ऐसे एक्सपर्ट जो स्टडी से संबंध नहीं रखते हैं उनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट से जुड़े सुझावों को जमीन पर लागू करने में कई तरह की चुनौतियां सामने आ सकती हैं। उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा की क्षमता उन इलाकों में भी आंकी गई है जहां बायोमास और चारे की सप्लाई वाले इलाके हैं और जानवरों और इंसानों की बस्तियां भी मौजूद हैं।
नई दिल्ली के थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) ने अपनी हालिया स्टडी में दावा किया है नवीन और नवीकरणीय उर्जा मंत्रालय ने ओडिशा में सौर ऊर्जा की जितनी क्षमता आंकी है, असल में इस राज्य में उससे सात गुना ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा की जा सकती है।
मंत्रालय का अनुमान ओडिशा में मौजूद जमीन और सोलर रेडिएशन पर आधारित है। साल 2020 में मंत्रालय का अनुमान था कि ओडिशा में 25.78 गीगावाट सौर ऊर्जा पैदा की जा सकती है। इस बारे में iFOREST ने 15 फरवरी को अपनी स्टडी ‘ओडिशा रीन्यूएबल एनर्जी रीअससेमेंट’ प्रकाशित की है। इस स्टडी के मुताबिक, मंत्रालय ने ओडिशा में सौर ऊर्जा की क्षमता को कम आंका है। इस स्टडी के मुताबिक, ओडिशा में बहुत सारी बंजर जमीन और जलाशय हैं। इनका बेहतर इस्तेमाल करके ओडिशा में सौर ऊर्जा की क्षमता को 170 गीगावाट तक बढ़ाया जा सकता है।
जहां नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय बंजर जमीन के 3 प्रतिशत हिस्से को नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के सेटअप के उपयुक्त मानता है वहीं iFOREST का सुझाव है कि अलग-अलग तरह की खाली जमीन के 10 से 50 प्रतिशत हिस्सों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें, खनन के बाद खाली पड़ी जमीन, औद्योगिक क्षेत्र की खाली जमीन, खुली झाड़ियों और घनी झाड़ियों वाली खाली जमीन और पथरीली जमीन शामिल है जिसका पर्यावरणीय महत्व बेहद कम है। स्टडी के मुताबिक, सिर्फ इन इलाकों में सौर ऊर्जा प्लांट लगाकर 149 गीगावाट बिजली पैदा की जा सकती है जो कि ओडिशा में अनुमानित सौर ऊर्जा क्षमता के 88 प्रतिशत हिस्से के बराबर है। स्टडी का मानना है कि 2,973 वर्ग किलोमीटर जमीन को सौर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस स्टडी में यह भी कहा गया है कि ओडिशा में पीक सोलर इन्सोलेशन यानी तय समय में किसी खास सतह पर गिरने वाली सूरज की किरणों से होने वाला रेडिएशन उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की तुलना में ज्यादा है। इस स्टडी में कहा गया है, “ओडिशा में पीक इन्सोलेशन 900 वाट प्रति वर्ग किलोमीटर है जो कि गुजरात जैसे राज्यों के मुकाबले अच्छी-खासी है जहां नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन काफी ज्यादा होता है। हालांकि, पूरे राज्य के आंकड़े देखें तो औसत कम हो जाता है क्योंकि मॉनसून सीजन जून से सितंबर तक खिंचता है और जमकर बारिश होती है। इसके बावजूद औसत इन्सोलेशन देश के दूसरे सबसे ज्यादा सोलर इन्स्टॉलेशन वाले राज्य कर्नाटक के आसपास है। ओडिशा में सौर ऊर्जा की क्षमता उन राज्यों के बराबर है जिन्होंने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी अच्छी पहचान बनाई है।”
iFOREST की रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया गया है कि खाली पड़ी जमीनों के अलावा जलाशय भी राज्य की सौर उर्जा क्षमता बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। ओडिशा में कुल 204 जलाशय हैं। इसमें से 125 जलाशय ऐसे हैं जिन पर तैरने वाले सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “अगर ओडिशा के 125 जलाशयों पर तैरने वाले सोलर पावर प्लांट लगाए जाएं तो कंजर्वेटिव सेनैरियों में 6.7 गीगावाट सौर ऊर्जा और हायर यूटिलाइजेशन सेनैरियो में 18.7 गीगावाट सौर ऊर्जा बढ़ाई जा सकती है। रेंगाली और हीराकुंड जलाशय ऐसे हैं जिनमें सबसे ज्यादा 3.7 गीगावाट सौर ऊर्जा पैदा की जा सकता है। इसके बाद, ऊपरी इंद्रावती और बालीमेला जलाशय का नंबर आता है जो 1 गीगावाट उर्जा पैदा कर सकते हैं।”
इस क्षेत्र में काम कर चुके विशेषज्ञ रिपोर्ट की तारीफ करते हैं लेकिन उन्होंने उन चुनौतियों की ओर भी इशारा किया है जो इस प्रोजेक्ट को जमीन पर लागू करते समय सामने आ सकती हैं।
ओडिशा नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (OREDA) के रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर अशोक चौधरी इस रिपोर्ट को सेकेंडरी डेटा पर आधारित ‘नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता पर अच्छी और सूचनात्मक रिपोर्ट’ बताते हैं। उनका कहना है कि ओडिशा में पीक आवर (सर्वाधिक मांग के समय) में ऊर्जा की मांग 5.6 गीगावाट है और अगर राज्य में इससे पांच गुना ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है तो राज्य नेट-जीरो वाला बन सकता है। उनका यह भी कहना है कि जमीन पर इसे लागू करने में कई सारी चुनौतियां हैं जिन्हें सही तरह से संभालकर ही नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता को अच्छे से बढ़ाया जा सकता है।
और पढ़ेंः ओडिशा की नई अक्षय ऊर्जा नीति और 10 गीगावाट का लक्ष्य
इस रिपोर्ट से संबंध न रखने वाले अशोक चौधरी ने मोंगाबे इंडिया से कहा, “रिपोर्ट कहती है कि हम बायोमास से 3.4 गीगावाट ऊर्जा पैदा कर सकते हैं लेकिन यह रिपोर्ट फसल अवशेष साइकल डेटा पर आधारित है। हालांकि, बायोमास की बढ़ोतरी में जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह है कि ओडिशा में इसके लिए साल भर कच्चा माल उपलब्ध नहीं होता है। वहीं, खाली पड़ी जमीनों का इस्तेमाल करने में सबसे बड़ी समस्या अवैध कब्जे की आएगी। कई इलाकों में लोगों ने खाली पड़ी जमीनों पर कब्जा कर रखा है। ऐसे में अगर इन खाली जमीनों पर सोलर प्लांट लगाने की कोशिश की जाती है तो टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए इस तरह के सुझावों को लागू कर पाना काफी चुनौतियां से भरा हो सकता है।
भुवनेश्वर के सस्टेनेबिलिटी एक्सपर्ट जे पी जगदेव मोंगाबे इंडिया से कहते हैं, “यह हर प्रकार की क्षमता का गणितीय या तकनीकी अनुमान है। हम इसका कितना फायदा उठा सकते हैं यह राजनीतिक इच्छा शक्ति और प्रशासकीय प्रभाव पर निर्भर होगा। इसके अलावा, हमें यह भी देखना होगा कि इसका इंसानों, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों या माइक्रो ईकोसिस्टम पर क्या असर पड़ेगा। ये खाली पड़ी जमीनें बहुत सारे जानवरों का घर और हाथियों के रहने के इलाके हैं।” आपको बता दें कि जगदेव की कंपनी OREDA के साथ मिलकर सभी सरकारी सोलर प्रोजेक्ट के लिए सोलर असेट मैनेजमेंट से जुड़ी सेवाएं देती है।
ज्यादा ऊर्जा पैदा करने वाला राज्य है ओडिशा
ओडिशा के अंगुल जिले की तलचर कोलफील्ड में पावर ग्रेड कोयले का सबसे बड़ा कोयला भंडार पाया जाता है। देश में ताप विद्युत (Thermal Power) की मांग को पूरा करने में भी ओडिशा अहम भूमिका निभाता है। ओडिशा हर साल देश की जरूरत का 23.7 प्रतिशत कोयला पैदा करता है और अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली भी बनाता है।
हालांकि, रीन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन (RPO) के लक्ष्यों में बढ़ोतरी के बाद ओडिशा को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाना होगा। RPO के लक्ष्यों के मुताबिक, बिजली बनाने वाली सभी कंपनियों को अपनी ऊर्जा जरूरत का एक तय न्यूनतम हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से या तो पैदा करना होगा या फिर खरीदना होगा। अपने वैश्विक वादों के मुताबिक, केंद्र सरकार RPO तय करती है। केंद्र सरकार के नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 2022-23 में 22.41 के RPO को बढ़ाकर 2029-30 तक 43.3 प्रतिशत पहुंचाने का लक्ष्य रख दिया है।
ओडिशा में ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ ओडिशा (GRIDCO) राज्य सरकार की वह इकाई है जो सरकार की ओर से बिजली की थोक सप्लाई और ट्रांसमिशन का काम देखती है। आंकड़े बताते हैं कि 2021-22 में RPO के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ओडिशा को दूसरे राज्यों से नवीकरणीय ऊर्जा खरीदनी पड़ी थी।
iFOREST में प्रोग्राम लीड (एनर्जी) और इस स्टडी की सह-लेखिका मांडवी सिंह ने मोंगाबे इंडिया से बातचीत में कहा कि अगर ओडिशा में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई तो यह राज्य जल्द ही बिजली आयात करने वाला राज्य बन जाएगा। उन्होंने आगे बताया, “मौजूदा समय में ओडिशा कोयले पर आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ है और यह देश की एक चौथाई कोयला जरूरतों को पूरा करता है। अभी के लिए यह जरूरत से ज्यादा ऊर्जा पैदा कर रहा है। RPO के लक्ष्यों में बढ़ोतरी के साथ ही राज्य ऊर्जा के क्षेत्र में अगुवाई वाला तमगा गंवा सकता है और ऊर्जा का आयात करने वाला राज्य बन सकता है। ओडिशा नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में गरीब रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में इसकी क्षमताओं का सही आकलन नहीं किया गया। इसकी वजह से निवेश के रास्ते में भी बाधा पहुंची है और सही नीतियां भी नहीं बन सकी हैं। अब समय है कि नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में ओडिशा की क्षमताओं को नए सिरे से आंका जाए।”
उनका कहना है कि अगर ओडिशा अपने RPO लक्ष्यों के आधे के बराबर बिजली भी राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पैदा कर सके तो इस क्षेत्र में 400 मिलियिन रुपयों का निवेश हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बायोमास ऊर्जा के मामले में ओडिशा की क्षमता लगभग 3.4 गीगावाट की है। इसमें सबसे आगे बारगढ़ जिला है जिसे ओडिशा का धान का कटोरा कहा जाता है और यहां धान का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है।
क्या हैं नवीकरणीय ऊर्जा के विकल्प
जमीन की सीमित मात्रा के साथ ओडिशा नवीकरणीय ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे कि तैरने वाले सोलर प्लांट और ग्रीन हाइड्रोजन को विकल्पों को खंगाल रहा है ताकि निवेश और बढ़ोतरी को बल मिल सके। हाल ही में ओडिशा की नवीकरणीय ऊर्जा नीति और औद्योगिक नीति लॉन्च किए जाने के बाद इस दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। नई नवीकरणीय ऊर्जा नीति के मुताबिक, राज्य का लक्ष्य है कि 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों से 10 गीगावाट बिजली पैदा की जाएगी। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2023 के आखिर में ओडिशा में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की क्षमता सिर्फ 627 मेगावाट है।
एनर्जी एंड यूटिलिटीज, प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PwC) के डायरेक्ट बिस्वदीप परिदा ने मोंगाबे इंडिया ने कहा कि हालिया नीति के साथ ओडिशा ने खुद को नवीकरणीय ऊर्जा वाले ऐसे राज्य के तौर पर पेश करना शुरू किया है जो निवेश के लिए रास्ता बना सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों की क्षमता को बढ़ा सकता है।
उन्होंने आगे कहा, “ओडिशा अब देश के उन चंद राज्यों में शामिल हो गया है जिन्होंने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा नीति में ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए इन्सेन्टिव का ऐलान किया है। हालांकि, पहले बड़े सोलर प्रोजेक्ट बनाने के लिए जमीन की कमी की समस्या आई थी लेकिन अब तैरने वाले सोलर पावर प्लांट और ग्रीन हाइड्रोजन के लिए जमकर निवेश आ रहा है। ओडिशा ने पारादीप और गोपालपुर बंदरगाह के पास ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट के लिए जमीन भी निर्धारित कर दी है। ओडिशा में कई बड़े और छोटे बंदरगाह, रिफाइनरी, स्टील और खाद कारखाने हैं ऐसे में राज्य को इस क्षेत्र में अच्छा खासा निवेश मिल सकता है क्योंकि यहां पहले से ही मांग बढ़ रही है और इस सेक्टर के लिए मूलभूत ढांचों को भी बढ़ाया जा रहा है।”
अभी तक एनटीपीसी, अडानी ग्रुप, जे एस डब्ल्यू (JSW), एक्मे (Acme), सतलुज विद्युत निगम और अन्य कंपनियों ने ओडिशा में ग्रीन प्रोजेक्ट में रुचि दिखाई है। इसमें, सोलर प्रोजेक्ट, तैरने वाले सोलर पावर प्लांट और ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट शामिल हैं।
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीर: ओडिशा के नुआपाड़ा जिले के खोलीभीतर गांव में लगा विकेंद्रीकित सौर ऊर्जा का एक प्लांट। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे