Site icon Mongabay हिन्दी

मधुमक्खी और तितली जैसे कीड़े-मकोड़ों के कम होने का असर इंसानों पर भी, हर साल मर रहे पांच लाख लोग

सिक्किम में एक तितली। एक नई मॉडलिंग स्टडी के मुताबिक, हर साल लगभग 5 लाख लोग अपनी उम्र पूरी किए बिना ही मर जा रहे हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर परागणक का काम करने वाले कीड़े-मकोड़ों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। तस्वीर- नंदिता चंद्रप्रकाश/मोंगाबे।

सिक्किम में एक तितली। एक नई मॉडलिंग स्टडी के मुताबिक, हर साल लगभग 5 लाख लोग अपनी उम्र पूरी किए बिना ही मर जा रहे हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर परागणक का काम करने वाले कीड़े-मकोड़ों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। तस्वीर- नंदिता चंद्रप्रकाश/मोंगाबे।

  • एक नई मॉडलिंग स्टडी के मुताबिक, हर साल लगभग 5 लाख लोग अपनी उम्र पूरी किए बिना ही मर जा रहे हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर परागण करने वाले कीड़े-मकोड़ों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
  • ये कीड़े-मकोड़े फूल को फल बनने के लिए जरूरी प्रक्रिया परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी कमी से खाने-पीने की स्वास्थ्यवर्धक चीजों जैसे कि फलियों, सब्जियों और मूंगफली-बादाम की उपलब्धता और कीमत पर भी असर पड़ रहा है।
  • मध्यम आय वाले देश जैसे कि भारत, रूस और चीन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से हैं। वहीं, अमीर देश परागणकों की कम होती संख्या से थोड़े कम प्रभावित हुए हैं।
  • मौजूदा परागणकों को संरक्षित रखने और उनके लिए खेतों और राष्ट्रीय स्तर पर रहने और बसने की नई जगह बनाने से परागणकों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके लिए नियोनिकोटिनोइड्स और जैसे हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल कम और खत्म करना होगा और जलवायु परिवर्तन से जुड़े कदम भी उठाने होंगे।

बटरफ्लाई थ्योरी कहती है कि न के बराबर होने वाले बदलाव भी बहुत बड़ा असर दिखाते हैं। केओस थ्योरी के बारे में चर्चा के दौरान अक्सर एक रूपक का इस्तेमाल किया जाता है कि ब्राजील में तितली अपने पंख झटकती है और तीन महीने बाद भारत के जंगलों में भयानक आग लगती है। यही सच भी है कि तितली, मधुमक्खी जैसे परागणक न सिर्फ अपनी मौजूदगी से असर डालते हैं बल्कि उनकी गैरमौजूदगी से भी बहुत असर पड़ता है।

एन्वायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में छपी एक नई मॉडलिंग स्टडी बताती है कि वैश्विक स्तर पर परागणक कीड़ों की संख्या कम होने की वजह से हर साल लगभग 5 लाख लोग उम्र पूरी करने से पहले ही मर जा रहे हैं। ऐसा होने की वजह यह है कि परागणकों की कमी की वजह से सेहतमंद खाना, पौष्टिक चीजों जैसे कि मूंगफली और बादाम, फल और सब्जियों की उपलब्धता और कीमत पर असर पड़ रहा है। इस पर भी रिसर्चर्स का कहना है कि उनका अनुमान बदलने वाला नहीं है।

रिसर्चर्स लिखते हैं, “परागणकों की कमी के सेहत पर असर के अनुमान की तुलना वैश्विक स्तर पर मौजूद अन्य बड़े खतरों से की जा सकती है। खासकर उन खतरों से जो चीजों के इस्तेमाल में होने वाली गड़बड़ी, दो लोगों के बीच हिंसा या प्रोस्टेट कैंसर जैसी समस्याएं पैदा करते हैं।”

इस अनुमान तक पहुंचने के लिए रिसर्चर्स ने साल 2016 में Science में प्रकाशित स्टडी का अध्ययन किया जो कृषि उत्पादन में आ रहे अंतर के बारे में बताती है। उदाहरण के लिए- खेतों के औसत और फसलें देने वाले खेतों के औसत में अंतर का बड़ा कारण परागणकों की कमी था। उस स्टडी में दुनियाभर के 33 प्रकार के परागणकों के आधार पर 344 खेतों का अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि फसलों में अंतर का एक चौथाई हिस्सा सिर्फ परागणकों की कम संख्या की वजह से था।   

एक हमिंगबर्ड मोठ। तस्वीर- मैगडेबर्गर/पिक्साबे
एक हमिंगबर्ड मोथ (पतिंगा)। तस्वीर- मैगडेबर्गर/पिक्साबे

साल 2016 के ही उस आंकड़े का इस्तेमाल करके इस टीम ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक स्तर पर परागणकों की संख्या में कमी आने की वजह से फलों के उत्पादन में 4.7 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है। इसके बाद इस टीम ने यह समझने की कोशिश की कि अगर ये परागणक पूरी संख्या में होते तो उसका क्या असर होता। इससे फलों और सब्जियों का उत्पादन कितना ज्यादा होता? इससे कीमतों पर क्या फर्क पड़ता? और आखिर में इन खाने-पीने की अतिरिक्त चीजों से हर देश और दुनिया के लोगों की सेहत पर कितना असर पड़ता?

रिसर्च के मुख्य लेखक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ में रिसर्चर मैथ्यू स्मिथ कहते हैं, “महामारी विज्ञान संबंधी रिसर्च बताती है कि ज्यादा मात्रा में फल, सब्जियां और मूंगफली-बादाम जैसी चीजें खाने से गंभीर बीमारियों जैसे कि हृदय संबंधी बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर और शुगर से होने वाली मौतों में कमी आती है। इसी रिसर्च के आधार पर हमने अनुमान लगाया कि अगर लोग ये सेहतमंद चीजें खा रहे होते तो उसका क्या असर होता।”

दुनियाभर में परागणकों की संख्या कई कारणों के चलते कम हो रही है लेकिन उनमें से सबसे बड़ी वजह है कि इनके रहने-बसने की जगहें कम होती जा रही हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और कीटनाशकों का इस्तेमाल भी इनकी संख्या को लगातार कम कर रहा है। वैसे तो कई जानवर (स्तनधारी भी), पक्षी और रेंगने वाले जंतु भी परागणक का काम करते हैं लेकिन यह स्टडी परागणक का काम करने वाले कीड़े-मकोड़ों पर है जो कि इंसान के भोजन के लिए सबसे अहम भूमिका निभाते हैं।

इस स्टडी से कोई संबंध न रखने वाले ऑस्ट्रेलिया की न्यू इंग्लैंड यूनिवर्सिटी के एंटोमोलॉजिस्ट मनु सॉन्डर्स कहते हैं, “जिस तरह से जैव विविधता कम होती जा रही है इससे इंसान की सेहत और उसके भोजन की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है और पड़ेगा। यह सब जानकारी का एक अहम बिंदु है लेकिन ज्यादातर बार जैव विविधता के कम होने के अध्ययन में इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है।”

फूलों का रस और पराग इकट्ठा करती एक मधुमक्खी। उस स्टडी में दुनियाभर के 33 प्रकार के परागणों के आधार पर 344 खेतों का अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि फसलों में अंतर का एक चौथाई हिस्सा सिर्फ परागणों की कम संख्या की वजह से था। तस्वीर- डस्टिन ह्यूम्स/अनस्प्लैश।
फूलों का रस और पराग इकट्ठा करती एक मधुमक्खी। उस स्टडी में दुनियाभर के 33 प्रकार के परागणकों के आधार पर 344 खेतों का अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि फसलों में अंतर का एक चौथाई हिस्सा सिर्फ परागणकों की कम संख्या की वजह से था। तस्वीर– डस्टिन ह्यूम्स/अनस्प्लैश।

देशों के हिसाब से असर

रिसर्चर्स ने वैश्विक स्तर पर परागणकों की कमी के असर को न सिर्फ दुनिया के हिसाब से बताया है बल्कि देशों के स्तर पर भी इसको समझाया है।

मध्यम आय वाले देश जैसे कि रूस, चीन और भारत ऐसे थे जिनमें परागणकों की संख्या सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। साथ ही, इन देशों में गंभीर बीमारियों जैसे कि कैंसर, डायबिटीज और स्ट्रोक से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या पहले ही काफी ज्यादा है। इस मामले में अमीर देशों की स्थिति काफी बेहतर है क्योंकि ऐसे देश ज्यादा कीमत देकर भी फल और सब्जियां खरीद और खा सकते हैं।

हैरान करने वाली बात यह है कि कुछ ऐसे भी देश हैं जो खाद्य सुरक्षा के मामले काफी पिछड़े हुए हैं लेकिन उनमें परागणकों की संख्या में बहुत कम कमी आई है। उदाहरण के लिए- लैटिन अमेरिका और सब-सहारा अफ्रीकी देश।

स्मिथ समझाते हैं, “कई उष्णकटिबंधीय देशों में लोगों की आय बहुत कम है तो अगर वहां खाने-पीने की चीजों का उत्पादन बढ़ भी जाए तो वे चीजें उनके लिए महंगी ही रहेंगी और उनको खाने को नहीं मिलेंगी। अमीर देशों की तुलना में कम और मध्यम आय वाले देशों में गंभीर बीमारियों की दर कम होती है। यही वजह है कि उप-सहारा अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश इसके बुरे असर से बहुत कम प्रभावित हैं।”

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी ऊष्णकटिबंधीय इसके असर से बचे रह सकते हैं। उदाहरण के लिए, स्टडी के मुताबिक, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में इंडोनेशिया, वियतनाम और म्यांमार शामिल हैं। स्मिथ कहते हैं कि इन देशों में परागणों की संख्या कम (वैश्विक औसत से ज्यादा) होने की वजह से फलों की खपत 7 से 15 प्रतिशत तक कम हो गई है। वहीं, इन्हीं देशों में स्ट्रोक जैसी बीमारियों की दर वैश्विक औसत से भी कहीं ज्यादा है।

फूल पर बैठी एक मक्खी और मधुमक्खी। रिसर्चर्स का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर परागणों की संख्या में कमी आने की वजह से फलों के उत्पादन में 4.7 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है। तस्वीर- कोकोपैरिसिएन/पिक्साबे
फूल पर बैठी एक मक्खी और मधुमक्खी। रिसर्चर्स का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर परागणों की संख्या में कमी आने की वजह से फलों के उत्पादन में 4.7 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है। तस्वीर– कोकोपैरिसिएन/पिक्साबे

स्मिथ बताते हैं, “अभी तक के हिसाब से स्ट्रोक ऐसी चीज है जो काफी प्रबलता से यह दिखाता है कि कम फल खाने से गंभीर बीमारियां बढ़ती हैं।”

परागणकों की कम संख्या का मतलब है कि फलों की संख्या कम होगी और दुनिया के उन हिस्सों में स्ट्रोक की संख्या बढ़ेगी, जहां स्ट्रोक की वजह से मौतें आम हैं। यह उदाहरण दिखाता है कि परागणकों की कम संख्या भले ही इंसानी जीवन के हर पहलू पर असर न डाल सके लेकिन अगर इससे पहले से मौजूद खतरे और गंभीर होते हैं तो यह बहुत बुरा असर डाल सकती है।


और पढ़ेंः सुंदरता बनी जी का जंजाल: क्या तितली पार्क बनाने से बचेगा यह जीता-जागता फूल!


भोजन उत्पादन, अर्थव्यवस्था और बीमारियों के आपसी संबंधों जटिलता की ओर इशारा करते हुए सॉन्डर्स समझाते हैं, “फूड प्रोडक्शन सिस्टम में किसी भी एक समस्या के लिए किसी किसी एक कारक या इनपुट को मुख्य वजह नहीं माना जा सकता। परागणकों की संख्या में कमी कई कारणों से आती है और इस पर स्थानीय परागणक जैव विविधता में कमी आने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”

स्मिथ मानते हैं कि कई ऐसी अनिश्चितताएं हैं जो हमारे अनुमान के साथ भी जुड़ी हुई हैं और ये अनियमितताएं किसी भी जटिल तंत्र की मॉडलिंग स्टडी में पाई जा सकती हैं।

वह आगे कहते हैं, “हालांकि, हमारा मानना है कि इन आकलनों से इसके असर का थोड़ा बहुत पता चलता है कि दुनियाभर में कम सेहतमंद चीजें खाने-पीने से हर साल कई हजार मौतें ज्यादा हुई हैं जबकि अगर स्वास्थ्यवर्धक चीजें खाई जातीं तो ये मौतें कम होतीं।” 

अगर और भी स्टडी से साबित किया जाए तो निष्कर्ष बहुत घातक है। दशकों से दुनियाभर के अलग-अलग महाद्वीपों के अलग-अलग देशों में परागणकों की संख्या में कमी देखी गई है और अब इससे इंसानों की सेहत और मौत पर भी असर पड़ रहा है।

एक फूल का परागण करती एक मक्खी और एक कीड़ा। परागणों की कम संख्या का मतलब है कि फलों और सब्जियों की उपलब्धता कम होगी। तस्वीर- श्वाज़े/पिक्साबे
एक फूल का परागण करती एक मक्खी और एक कीड़ा। परागणकों की कम संख्या का मतलब है कि फलों और सब्जियों की उपलब्धता कम होगी। तस्वीर– श्वाज़े/पिक्साबे

भूख से भरा होगा भविष्य?

इंसानों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या (2022 में 8 बिलियन से ज्यादा), परागण के बाद उत्पादित होने वाले खाने (इंसान को मिलने वाले खाने का 75 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा परागण से ही मिलता है) की ज्यादा जरूरत और परागणकों के तुरंत संरक्षण को लेकर जो समस्या जारी है वह निकट भविष्य में खत्म होती नहीं दिखाई दे रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान बताते हैं कि 2030 तक पूरी दुनिया की आबादी 8.5 बिलियन, 2050 तक 9.7 बिलियन और 2100 तक 10.4 बिलियन पहुंच सकती है।

स्मिथ चेतावनी देते हैं कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जाएगी और कम आय वाले देश अमीर होते जाएंगे वैसे-वैसे खाने की मांग बढ़ती जाएगी। हालांकि, इस स्टडी में भविष्य में खाने की जरूरत का अनुमान नहीं लगाया गया था।

वह कहते हैं, “इन रुझानों में डाइट की ज्यादा विविधता, कुपोषण और भुखमरी में कमी और बेहतर सेहत वाले खान-पान की ज्यादा मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि, भविष्य में ज्यादा और अमीर जनसंख्या के लिए हमें भोजन उत्पादन बढ़ाने की जरूरत होगी।

स्मिथ का कहना है कि या तो हमें परागणकों की संख्या को काफी तेजी से बढ़ाना होगा या फिर पारंपरिक खेती को दोगुना करना होगा जो कि हमारे वैश्विक पर्यावरण पर पहले ही काफी बुरा असर डाल रही है। स्मिथ आगे कहते हैं, “इन नुकसानों में ग्रीनहाउस गैसों का भीषण उत्सर्जन, मिट्टी और पानी का प्रदूषण, खाद के लिए मिलने वाले पोषक तत्वों की कमी और सिंचाई के लिए ताजे पानी की कमी शामिल है जो कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

फूल पर मौजूद एक ततैया। दशकों से दुनियाभर के अलग-अलग महाद्वीपों के अलग-अलग देशों में परागणों की संख्या में कमी देखी गई है और अब इससे इंसानों की सेहत और मौत पर भी असर पड़ रहा है। तस्वीर- पीटर स्टेंज़ेल/फ़्लिकर
फूल पर मौजूद एक ततैया। दशकों से दुनियाभर के अलग-अलग महाद्वीपों के अलग-अलग देशों में परागणकों की संख्या में कमी देखी गई है और अब इससे इंसानों की सेहत और मौत पर भी असर पड़ रहा है। तस्वीर– पीटर स्टेंज़ेल/फ़्लिकर

स्मिथ के मुताबिक, ये सभी प्रभाव ऐसे हैं जो उन सभी परागणकों पर असर डालते हैं जिनकी हमें जरूरत है लेकिन इनके उपचारों को लेकर दुविधा बनी हुई है। वह आगे कहते हैं कि पॉलिनेटर इकोलॉजी कम्युनिटी में इन समस्या के समाधानों को लेकर अच्छी आम सहमति है।

स्मिथ के मुताबिक, सबसे पहले तो हमें परागणकों के रहने की जगहों को संरक्षित करने और उन्हें बनाने की जरूरत है। इसमें, छोटे खेतों में इनके खाने-पीने का इंतजाम करना भी शामिल है। हमें ऐसे फूल लगाने की भी जरूरत है जिन पर परागणक रह सकें और हमें नुकसानदायक कीटनाशक जैसे कि निओनिकोटोइड्स का इस्तेमाल कम और खत्म करने की जरूरत है क्योंकि इसे परागणकों के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है।

इन प्रयासों से न सिर्फ परागणकों को मदद मिलेगी बल्कि जैव विविधता और कीट-पतंगें भी बढ़ेंगे। 

स्मिथ आगे कहते हैं, “इन समाधानों को कई स्तर पर लागू किया जा सकता है। किसानों से लेकर देश की सरकार तक ऐसे समाधान अपना सकती हैं जिससे इस समस्या का त्वरित हल निकाला जा सकता है।”

तितलियां खुद अराजकता के एजेंट की तरह काम करती हैं। अगर उनकी कमी से हर साल सैकड़ों-हजारों लोगों की जान जा सकती है तो उनकी और परागण करने वाली अन्य प्रजातियों की ज्यादा संख्या लोगों की जिंदगी बचा सकती है।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: सिक्किम में एक तितली। एक नई मॉडलिंग स्टडी के मुताबिक, हर साल लगभग 5 लाख लोग अपनी उम्र पूरी किए बिना ही मर जा रहे हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर परागणक का काम करने वाले कीड़े-मकोड़ों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। तस्वीर- नंदिता चंद्रप्रकाश/मोंगाबे। 

पर्यावरण से संबंधित स्थानीय खबरें देश और वैश्विक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण होती हैं। हम ऐसी ही महत्वपूर्ण खबरों को आप तक पहुंचाते हैं। हमारे साप्ताहिक न्यूजलेटर को सब्सक्राइब कर हर शनिवार आप सीधे अपने इंबॉक्स में इन खबरों को पा सकते हैं। न्यूजलेटर सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।

Exit mobile version