- ऑर्गेनिक (जैविक) उत्पाद, खेती के ऐसे तरीकों से उपजाए जाते हैं जिनमें खतरनाक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, ग्रोथ रेगुलेटर और मवेशियों के फ़ीड एडिटिव के इस्तेमाल से बचा जाता है।
- जैविक कृषि के चार सिद्धांत हैं जो स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी, निष्पक्षता और देखभाल से संबंधित हैं।
- भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस) और राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) खाने-पीने के जैविक उत्पादों के लिए दो भारतीय प्रमाणन प्रणालियां हैं।
आपने अपने मोहल्ले की किराना दुकान पर खाने-पीने की ऑर्गेनिक चीजें देखी होंगी। लेकिन इन उत्पादों को ऑर्गेनिक का तमगा किस तरह दिया जाता है? और इनकी कीमत बहुत ज़्यादा क्यों होती है?
खाने-पीने की ऑर्गेनिक चीजें, खेती के ऑर्गेनिक तरीकों से तैयार की जाती है। ऐसे तरीकों का बड़ा उद्देश्य पर्यावरण के हिसाब से, प्रदूषण-मुक्त वातावरण में टिकाऊ कृषि उत्पादन करना है। यहां मुख्य ध्यान प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों, जैसे कि जैविक अपशिष्ट (फसल, पशु और खेत के अपशिष्ट, जलीय अपशिष्ट) और अन्य जैविक सामग्रियों के साथ-साथ लाभकारी जीवाणुओं (जैव उर्वरक/जैव नियंत्रण एजेंटों) का इस्तेमाल करने पर होता है, ताकि फसलों को पोषक तत्व मिल सकें और उपज बढ़ाने के लिए उन्हें कीड़ों, कीटों और बीमारियों से बचाया जा सके।
दुनिया भर के जैविक हितधारकों के नेटवर्क आईएफओएएम-ऑर्गेनिक्स इंटरनेशनल (IFOAM-Organics International) और जैविक कृषि के लिए शोध संस्थान-एफआईबीएल स्विट्जरलैंड (FiBL Switzerland) की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक जैविक बाजार 2015 से 2020 यानी पांच सालों अवधि में 8.7% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा। भारत के बाजार अनुसंधान आंकड़ों ने 2022 से 2028 की अवधि के बीच सीएजीआर में 22% वृद्धि का अनुमान लगाया है यानी लगभग 4082 मिलियन डॉलर का मार्केट।
ऑर्गेनिक खेती में शामिल चीजें
ऑर्गेनिक खेती के चार सिद्धांत हैं। ये सिद्धांत स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी, निष्पक्षता और देखभाल से संबंधित हैं।
स्वास्थ्य का सिद्धांत यह तय करता है कि ऑर्गनिक खेती को मिट्टी, पौधा, मवेशी, इंसान और धरती की सेहत को टिकाऊ बनाए रखते हुए बढ़ाना चाहिए। इसे देखते हुए, उर्वरकों, कीटनाशकों, मवेशियों से जुड़ी दवाओं और खाद्य एडिटिव (food additives) के इस्तेमाल से बचना चाहिए। इनका सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
ऑर्गेनिक खेती को पारिस्थितिकी के सिद्धांत का भी पालन करना चाहिए। इसका मतलब है कि यह जीवित पारिस्थितिक प्रणालियों और चक्रों पर आधारित होनी चाहिए। उनको ध्यान में रखकर खेती की जानी चाहिए। उनका अनुकरण करना चाहिए और उन्हें बनाए रखने में मदद करनी चाहिए। जो लोग ऑर्गेनिक उत्पादों का उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार या उपभोग करते हैं, उन्हें लैंडस्केप, जलवायु, आवास, जैव विविधता, हवा और पानी सहित पर्यावरण से जुड़ी आम चीजों की रक्षा करनी चाहिए और उनका लाभ उठाना चाहिए।
निष्पक्षता का सिद्धांत कहता है कि ऑर्गेनिक खेती को उन संबंधों पर निर्माण करना चाहिए जो सामान्य पर्यावरण और जीवन के अवसरों के बीच निष्पक्षता पक्का करते हैं। निष्पक्षता के लिए उत्पादन, वितरण और व्यापार की ऐसी प्रणालियों की ज़रूरत होती है जो खुली और न्यायसंगत हों। साथ ही वास्तविक पर्यावरणीय और सामाजिक लागतों के लिए जिम्मेदार हों।
देखभाल के सिद्धांत के तहत, मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों और पर्यावरण के स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा के लिए जैविक खेती को एहतियाती और जिम्मेदार तरीके से प्रबंधित किया जाना चाहिए। फैसलों को पारदर्शी और भागीदारी प्रक्रियाओं के जरिए प्रभावित होने वाले सभी लोगों के मूल्यों और जरूरतों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
दुनिया भर में हो रहा जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण और जैव विविधता के नुकसान के बढ़ते खतरे को देखते हुए, धरती पर सबसे कमजोर प्राकृतिक संसाधनों में से एक मिट्टी है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार मिट्टी, खेती और जलवायु परिवर्तन जटिल रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। मिट्टी दुनिया में कार्बन के सबसे बड़े भंडार के रूप में काम करती है। यहां तक कि स्थलीय वनस्पति और वायुमंडल से भी ज्यादा। कृषि और भूमि उपयोग से जुड़ी अन्य इंसानी गतिविधियां वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (आईपीसीसी 2019) का 23 प्रतिशत हिस्सा हैं। हालांकि, प्राकृतिक भूमि प्रक्रियाएं भी वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती हैं, जो कार्बन सिंक के रूप में काम करती हैं। इस प्रकार, जैविक खेती में स्वस्थ, प्राकृतिक मिट्टी को बनाए रखने की क्षमता है, जो बदले में कार्बन को अवशोषित करेगी। इसके अतिरिक्त, कृत्रिम रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल न करके – जिसका उत्पादन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है- ऑर्गेनिक खेती जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान देती है।
ऑर्गेनिक उत्पाद महंगे क्यों?
गैर-ऑर्गेनिक उत्पादों की तुलना में ऑर्गेनिक उत्पाद ज्यादा महंगे हैं।
एफएओ के अनुसार, खेती के ऊंचे मानक, बीजों और जैव उर्वरकों की गुणवत्ता और उत्पादन के छोटे पैमाने के चलते जैविक खेती की उत्पादन लागत ज्यादा होने का अनुमान है।
किसानों को सरकारी प्रमाणन दिशा-निर्देशों के अनुसार खेती के तरीकों का मानक ऊंचा बनाए रखने की जरूरत होती है – जैसे बेहतर खेत बनाए रखना, फसलों और पशुधन की सुरक्षित हैंडलिंग और उत्पादों का स्वच्छ भंडारण और परिवहन। इसके अतिरिक्त, किसानों को जैविक बीज और अच्छी गुणवत्ता वाले जैव उर्वरकों की खरीद में निवेश करना होता है, जिससे लागत बढ़ जाती है। कटाई के बाद उपज की अपेक्षाकृत कम मात्रा को संभालने से भी उत्पादन की लागत बढ़ सकती है। इन कारकों को देखते हुए, जैविक उत्पाद महंगे हैं, लेकिन यह संभव है कि आने वाले दिनों में उनकी कीमत पारंपरिक वस्तुओं के बराबर हो जाए।
ऑर्गेनिक खेती और इसके उत्पाद से मिलने वाले फायदे
खेती से मिलने वाले पारंपरिक उत्पादों के विपरीत, ऑर्गेनिक खाद्य उत्पादों का पर्यावरण पर कम असर होता है। ऑर्गेनिक खेती मिट्टी की जैव विविधता को बनाए रखने और ऊपरी मिट्टी के कटाव को कम करके मिट्टी के पोषक तत्वों के स्तर और उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती है। यह जल संरक्षण में भी मदद करती है; पारंपरिक खेती से जलमार्गों में कीटनाशकों और उर्वरक अवशेषों की उच्च सांद्रता होती है, जिससे नीचे के प्रवाह में मीठे पानी की आपूर्ति प्रदूषित होती है। इससे जलीय जैव विविधता पर विपरीत असर पड़ता है और शैवाल का निर्माण होता है। हालांकि, ऑर्गेनिक खेती भारी उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचती है, जिससे पास के जल निकायों पर नाइट्रेट और फॉस्फेट का भार कम हो जाता है। इसके अलावा, ऑर्गेनिक खेती को स्वस्थ मिट्टी को बनाए रखकर जलवायु परिवर्तन के लिए कम नकारात्मक होने के लिए जाना जाता है, जो वायुमंडलीय कार्बन के लिए कार्बन सिंक के रूप में काम करती है। साथ ही, पारंपरिक तकनीकों की तुलना में ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करती है। इसके अलावा, ऑर्गेनिक खेती उपभोक्ताओं में बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। उनमें भारी धातु (कैडमियम, आदि), सिंथेटिक उर्वरक और कीटनाशक अवशेषों जैसे जहरीले मेटाबोलाइट्स का स्तर कम होता है। कीटनाशकों के इस्तेमाल की कमी के चलते, जैविक उत्पादों की अक्सर स्थानीय स्तर पर खेती की जाती है और कम दूरी तक भेजा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बाजार में सेहत के लिए अच्छे उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
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भारत में जैविक प्रमाणीकरण के कौन से तरीके मान्यता प्राप्त हैं?
भारत में दो तरीकों से खाने-पीने की ऑर्गेनिक चीजों को प्रमाणित किया जाता है। एक है सहभागी गारंटी प्रणाली (पीजीएस) जिसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है। दूसरा है राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) जिसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है। दोनों प्रणालियां एक-दूसरे से अलग हैं और तीसरे पक्ष की प्रमाणन एजेंसियों की आवश्यकता के बिना प्रमाणन प्रणाली को किफायती और सुलभ बनाने के लिए, पीजीएस-इंडिया लागू किया गया था। यह स्थानीय और घरेलू बाजारों के लिए किसान समूह-केंद्रित प्रमाणन प्रणाली है।
हर प्रमाणन प्रणाली में कई चरण होते हैं। प्रमाणन प्रक्रिया से गुजरते समय इनका पालन करने की जरूरत होती है।
ऑर्गेनिक है या नहीं? प्रमाणीकरण लोगों की जाँच करें
खाने-पीने की ऑर्गेनिक चीजों के लिए प्रमाणीकरण सरकार या अन्य स्वतंत्र संगठनों द्वारा तय जैविक खाद्य सुरक्षा मानकों के पालन की पुष्टि और गारंटी देता है। प्रमाणन लोगो से सभी को पता चलता है कि उत्पाद ने जैविक खेती के बेहतरीन तरीकों को सफलतापूर्वक पूरा किया है या नहीं। “100% ऑर्गनिक” कहने वाले विपणन लेबल से धोखा खाने के बजाय, उपभोक्ताओं को पैकेजिंग लेबल पर एफएसएसएआई के जैविक लोगों पर ध्यान देना चाहिए। प्रमाणन प्रणाली से उत्पाद को प्रमाणन मिलने के आधार पर, उत्पादों में भारत के एनपीओपी और पीजीएस सिस्टम के अतिरिक्त लोगो भी हो सकते हैं।
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बैनर तस्वीर: तमिलनाडु में खाने-पीने की ऑर्गेनिक चीजों का स्टॉल। तस्वीर– थमिझप्परिथि मारी/विकिमीडिया कॉमन्स
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