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[वीडियो] मिथिला मखानः सांस्कृतिक पहचान को बचाने की राह में अनेक चुनौतियां

भारत का अधिकांश मखाना बिहार से आता है और इसका लगभग एक चौथाई उत्पादन दरभंगा के आर्द्रभूमि में होता है। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे

भारत का अधिकांश मखाना बिहार से आता है और इसका लगभग एक चौथाई उत्पादन दरभंगा के आर्द्रभूमि में होता है। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे

  • मिथिला मखाना के नाम से मशहूर भारत का एक लोकप्रिय नाश्ता दक्षिण और पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली वॉटर लिली प्रजाति, यूरीले फेरोक्स का बीज है।
  • बिहार का दरभंगा क्षेत्र इसकी खेती के लिए जाना जाता है। यहां वेटलैंड्स या नमभूमि में इसकी खेती होती है।
  • भारत का 85% से अधिक मखाना बिहार में उपजता है और इसका लगभग एक चौथाई उत्पादन दरभंगा के पोखर और तालाबों में होता है।
  • सरकारी दस्तावेजों के अनुसार दरभंगा जिले में लगभग 850 तालाबों का उपयोग वर्तमान में मखाना की खेती के लिए किया जाता है। इसलिए, ये वेटलैंड्स राज्य की मखाना खेती और उनके द्वारा समर्थित आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, जलस्रोत प्रदूषण, अवैध निर्माण और अतिक्रमण के कारण हालात खराब हो रहे हैं।

मखाना, वेटलैंड्स या आद्रभूमि में होने वाली फसल है। इसे मुख्यतः बिहार के पोखर, तालाबों और जलजमाव वाले क्षेत्रों में उपजाया जाता है। मखाना का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र मिथिला है जो कि एक सांस्कृतिक क्षेत्र हैं। इसमें बिहार, झारखंड और नेपाल के कुछ इलाके शामिल हैं। मखाना को स्थानीय भाषा में मखान और अंग्रेजी में फॉक्स नट कहते हैं। 

मखाना के बीजों को जब पानी से निकाला जाता है तो यह सख्त काले रंग का होता है। बाजार में जो सफेद मखाना हमें दिखता है इसे उस रूप में लाने के लिए सुखाकर गर्म किया जाता है। इसके बाद ग्रेडिंग और भूनने की प्रक्रिया होता है। काफी मेहनत के बाद इन बीजों से सफेद मखाना निकलता है। तब जाकर यह हमारे स्नैक शेल्फ पर आ जाता है और हम इसे सादा या पेरी-पेरी और शेज़वान जैसे स्वादों में खाते हैं। मखाने का उपयोग पारंपरिक खीरऔर करी बनाने के लिए भी किया जाता है।

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बिहार में मखाना की खेती के लिए आर्द्रभूमि महत्वपूर्ण हैं। बिहार के बागवानी विभाग के अनुसार, दरभंगा में लगभग 2,000 तालाब, टैंक, बाढ़ जल संचयन प्रणाली जैसे जल निकाय हैं, जो प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। कई संरचनाएं मनुष्यों द्वारा भी बनाए गए हैं। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार जिले में लगभग 850 तालाबों का उपयोग वर्तमान में मखाना की खेती के लिए किया जाता है। हालाँकि, जलस्रोत प्रदूषण, अवैध निर्माण और अतिक्रमण के कारण ख़राब हो रहे हैं।

 2001 के एक अध्ययन में तालाबों और उनमें उगने वाले मखाने में सीसा, क्रोमियम, तांबा और कैडमियम जैसी जहरीली धातुओं के निशान पाए गए। जो लोग महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के पास रहते हैं वे भी शिकायत करते हैं कि आसपास के क्षेत्रों से कचरा और नालियां इन तालाबों में बहती हैं।

प्रोसेसिंग के बाद तैयार मखाना। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे
प्रोसेसिंग के बाद तैयार मखाना। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के प्रभारी प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक, मनोज कुमार कहते हैं, “परंपरागत रूप से, मखाने की खेती तालाबों में होती रही है। वहां बड़ी संख्या में तालाब थे और लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए मखाने की खेती से जुड़े थे। जैसे-जैसे तालाबों की संख्या कम होने लगी और उनकी गुणवत्ता ख़राब होने लगी, हमने देखा कि, आठ से दस साल पहले तक कई जिलों में मखाना की खेती में इस्तेमाल होने वाला कुल क्षेत्रफल काफी कम होने लगा था।”

तालाबों की वजह से मछलियां भी स्वाभाविक रूप से दरभंगा की अर्थव्यवस्था, आहार और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लेकिन आर्द्रभूमियों के लिए बुरी खबर मछली और मछुआरों के लिए भी बुरी खबर है। दरभंगा के एक मछुआरे राजा साहनी कहते हैं, “अब, दरभंगा के तालाबों में मछलियां बहुत अधिक नहीं बढ़ती हैं। मछुआरे केवल छोटी मछलियां बेचने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि अगर वे अधिक बढ़ने के लिए मछलियों को तालाब में लंबे समय तक छोड़ देंगे, तो वे मर जाएंगी।”

दरभंगा में समुदाय पीढ़ियों से मछली पकड़ने और मखाना की खेती में शामिल रहे हैं। शहरी जैव विविधता के इन रूपों के बिना, उनकी आजीविका और बिहार की सांस्कृतिक विरासत खतरे में पड़ जाएगी।

मखाना दक्षिण और पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली वॉटर लिली प्रजाति यूरीले फेरोक्स का बीज है। काले मखाने के बीजों को सुखाकर, गर्म करके और फोड़कर निकाला जाता है, जिसके बाद वे सफेद रूप ले लेते हैं। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे
मखाना दक्षिण और पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली वॉटर लिली प्रजाति यूरीले फेरोक्स का बीज है। काले मखाने के बीजों को सुखाकर, गर्म करके और फोड़कर निकाला जाता है, जिसके बाद वे सफेद रूप ले लेते हैं। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे

 

इस वीडियो रिपोर्ट को मोंगाबे-इंडिया और एएलटी ईएफएफ की एक संयुक्त पहल – ‘पर्यावरण वीडियो रिपोर्टिंग अवसर‘- के सहयोग से तैयार किया गया है।

 

इस वीडियो रिपोर्ट को अंग्रेजी में देखने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: भारत का अधिकांश मखाना बिहार से आता है और इसका लगभग एक चौथाई उत्पादन दरभंगा के आर्द्रभूमि में होता है। तस्वीर- प्रणव कुमार/मोंगाबे

 

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